NCERT Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-4 भारत के विदेश सम्बन्ध

NCERT Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-4 भारत के विदेश सम्बन्ध

NCERT Solutions Class 12  स्वतंत्र भारत में राजनीति  12 वीं कक्षा से Chapter-4  भारत के विदेश सम्बन्ध के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
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Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-4  भारत के विदेश सम्बन्ध


CBSE Class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति 

NCERT Solutions

CHAPTER-4. भारत के विदेश सम्बन्ध

प्रश्नावली (उत्तर सहित)

1. इन बयानों के आगे सही या गलत का निशान लगाएँ:

(क) गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमरीका, दोनों की

सहायता हासिल कर सका।

(ख) अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध शुरुआत से ही तनावपूर्ण रहे।

(ग) शीतयुद्ध का असर भारत-पाक संबंधों पर भी पड़ा।

(घ) 1971 की शांति और मैत्री की संधि संयुक्त राज्य अमरीका से भारत की निकटता का परिणाम थी।

उत्तर (क)                          (ख) x

(ग) x                                 (घ) x

2 निम्नलिखित का सही जोड़ा मिलाएँ:

(क) 1950-64 के दौरान भारत की  विदेश नीति का लक्ष्य                (i) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा

   विदेश नीति का लक्ष्य                                                                  पार करके भारत चले आए।

(ख) पंचशील                                             (ii) क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा तथा आर्थिक विकास।

(ग) बांडुंग सम्मेलन                                    (iii) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांत।

(घ) दलाई लामा                                        (iv) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आंदोलन में हुई।

उत्तर (क) 1950-64 के दौरान भारत की        (i) क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा आर्थिक विकास।

विदेश नीति का लक्ष्य

(ख) पंचशील                                               (ii) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांत।

(ग) बांडुंग सम्मेलन                                     (iii) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आंदोलन में हुई।

(घ) दलाई लामा                                          (iv) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत चले आए।

3.नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतंत्रता का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते थे? अपने उत्तर में दो कारण बताएँ और उनके पक्ष में उदाहरण भी दें।

उत्तर नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतंत्रता का एक अनिवार्य संकेतक मानते थे। नेहरू जी ही नहीं कांग्रेस के सभी नेता इस बात के समर्थक थे। जब 1939 में दूसरा विश्व युद्ध आरंभ हुआ तो ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं से सलाह या बात किए बिना भारत के युद्ध में सम्मिलित होने की घोषणा कर दी। उस समय तो भारत स्वतंत्र नहीं था। उस समय भी कांग्रेस ने यह मांग की कि भारत के युद्ध में सम्मिलित होने की घोषणा किए जाने से पहले भारतीय नेताओं से बात-चीत की जानी आवश्यक थी। इसके विरोध स्वरूप कांग्रेस ने सभी प्रांतों की मंत्रिपरिषद् से त्यागपत्र दे दिए थे। विदेश नीति के स्वतंत्र निर्धारण तथा संचालन को नेहरू जी द्वारा स्वतंत्रता का अनिवार्य संकेतक समझे जाने के कई कारण थे जिनमें से दो कारण निम्नलिखित हैं- जो देश किसी दूसरे देश के दयाव में आकर अपनी विदेश नीति का निर्धारण और संचालन करता है तो उसकी स्वतंत्रता निरर्थक होती है और वह एक प्रकार से उस दूसरे देश के अधीन ही हो जाता है तथा ऐसी अवस्था में उसे कई बार अपने राष्ट्रीय हितों की भी अनदेखी करनी पड़ती है। वह दूसरे देश की हाँ में हाँ और न में न मिलाने वाली एक मशीन बनकर रह जाता है। नेहरूजी ने 1947 में भारत में हुए एशियाई संबंध सम्मेलन में यह बात स्पष्ट रूप से कही थी कि भारत स्वतंत्र राष्ट्र के में अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के आधार पर सभी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में पूर्ण रूप से भाग लेगा, किसी महाशक्ति अथवा किसी दूसरी देश के दबाव में नहीं।

(i) नेहरू जी का विचार था कि किसी स्वतंत्र राष्ट्र में यदि वह अपनी विदेश नीति का संचालन स्वतंत्रतापूर्वक नहीं कर सकता तो उसमें स्वाभिमान, आत्मसम्मान की भावना विकसित नहीं होती, वह विश्व समुदाय में सर ऊँचा उठाकर नहीं चल सकता और राष्ट्र का नैतिक विकास नहीं हो पाता। उसकी स्वतंत्रता नाममात्र होती है। बांडुंग सम्मेलन में बोलते हुए उन्होंने कहा था कि यह बड़ी अपमानजनक तथा असहाय बात है कि कोई एशियाई-अफ्रीकी देश महाशक्तियों के गुटों में से किसी गुट का दुमछल्ला बनकर जिए। हमें गुटों के आपसी झगड़ों से अलग रहना चाहिए और स्वतंत्रतापूर्वक अपनी विदेश नीति निर्माण तथा संचालन करना चाहिए।

4. "विदेश नीति का निर्धारण घरेलू जरूरत और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के दोहरे दबाव में होता हैं।" 1960 के दशक में भारत द्वारा अपनाई गई विदेश नीति से एक उदाहरण देते हुए अपने उत्तर की पुष्टि करें।

उत्तर प्रत्येक देश अपनी विदेश नीति का निर्धारण राष्ट्रीय जरूरतों और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के दोहरे दबाव के अंतर्गत करता है।

इसमें शक नहीं कि राष्ट्रीय जरूरतों अथवा हितों को प्रत्येक देश प्राथमिकता देता है, उसे सर्वोपरि मानता है परन्तु केवल राष्ट्रीय जरूरत ही विदेश नीति के निर्माण का एकमात्र आधार नहीं होता। प्रत्येक देश भी व्यक्ति की तरह अकेला नहीं रह सकता, उसे अन्य देशों के साथ संबंध बनाकर चलना पड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ प्रत्येक देश को विदेश नीति को प्रभावित करती हैं, उनको किसी देश द्वारा अनदेखी नहीं की जा सकती। जब भारत स्वतंत्र हुआ और इसने अपनी विदेश नीति का निर्धारण किया तो भारत के सामने इसकी सबसे बड़ी राष्ट्रीय जरूरत सामाजिक-आर्थिक विकास की थी और विश्व की परिस्थितियाँ ऐसी थी कि उसने सारे संसार को दो विरोधी गुटों में बाँट दिया था। यदि भारत किसी एक गुट में सम्मिलित होता तो दूसरे गुट के सभी देश इसके शत्रु होते और दो महाशक्तियों को टक्कर में इसे भी चोट पहुंचने की संभावना रहती। अत: भारत ने दोनों गुटों से मित्रता की नीति अपनाई ताकि बाह्य आक्रमण का खतरा न बने और वह अपने सामाजिक-आर्थिक विकास की ओर ध्यान दे सके। भारत पर 1962 में चीन का आक्रमण हुआ और इस समय सोवियत संघ ने तटस्थता दिखाई। पहले भारत सोवियत संघ पर अधिक निर्भर था क्योंकि कश्मीर के मामले में सोवियत संघ ने ही उसकी सहायता की थी। 1962 में हुए चीन के आक्रमण के समय भारत को अपनी नीति बदलनी पड़ी और ब्रिटेन तथा अमेरिका से सहायता की अपील करनी पड़ी। यह सहायता मिल भी जाती क्योंकि इससे अमेरिकी खेमे के मजबूत होने की संभावना बढ़ती। परन्तु चीन ने कुछ दिनों के बाद एकतरफ़ा युद्ध विराम कर दिया। भारत को अपनी सुरक्षानीति, उत्तर-पूर्व के क्षेत्रों के प्रति अपनी नीति, सैनिक ढाँचे के आधुनिकीकरण आदि के बारे में फिर से विचार करना पड़ा और अपने रक्षा व्यय में वृद्धि करनी पड़ी।

5. अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो आप इसकी किन दो बातों को बदलना चाहेंगे। ठीक इसी तरह यह भी बताएं कि भारत की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।

उत्तर मैं निम्नलिखित दो बातों को बदलना चाहूँगा-

(i) मैं गुटनिरपेक्ष आंदोलन की सदस्यता को त्याग कर संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देशों के साथ अधिक मित्रता बढ़ाना चाहूँगा। इसका कारण यह है कि आज दुनिया में पश्चिमी देशों की मनमानी चलती है और वे ही शक्ति संपन्न हैं। परन्तु साथ ही उसके साथ खास रिश्ता बनाए रखूगा।

(ii) पड़ोसी देशों के साथ वर्तमान की ढुलमुल विदेश नीति को बदलकर एक आक्रामक नीति अपनाऊँगा। पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने का प्रयास करूंगा, परन्तु आक्रामक नीति के तहत। 

जिन दो पहलुओं को बरकरार रखूगा वे निम्नलिखित हैं-

(i) सी.टी.वी.टी. के बारे में वर्तमान दृष्टिकोण को और परमाणु नीति की वर्तमान नीति को बनाए रसूंगा।

(ii) संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता को बरकरार रखना चाहूँगा और विश्व बैंक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से पूर्ववत् सहयोग बरकरार रखना चाहूँगा।

6.निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिएः

(क) भारत की परमाणु नीति

(ख) विदेश नीति के मामलों पर सर्व-सहमति

उत्तर (क) भारत की परमाणु नीति: भारत विश्व शांति और सुरक्षा को बढ़ावा दिए जाने के प्रसायों का समर्थक है और इसने सदा इस विषय पर संयुक्त राष्ट्र का समर्थन किया है तथा संयुक्त राष्ट्र ने जब किसी क्षेत्र में शांति सुरक्षा सेना भेजे जाने की अपील की, उसमें योगदान किया। इसके साथ ही भारत निःशस्त्रीकरण का समर्थक है और आरंभ से ही नि:शस्त्रीकरण को लागू किए जाने का समर्थक है। परन्तु यह भी सत्य है कि भारत ने अपनी परमाणु शक्ति के विकास के प्रयास किए हैं। भारत ने पहला परमाणु परीक्षण 1974 में किया था और फिर 1998 में भारत ने सफलता पूर्वक पाँच परमाणु परीक्षण किए। इन परीक्षणों के कारण भारत को महाशक्तियों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का सामना भी करना पड़ा। परन्तु भारत ने जो कदम उठाया था उससेपीछे नहीं हटा। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1969 में परमाणु अप्रसार संधि लागू की थी और गैर परमाणु शक्ति देशों पर यह प्रतिबंध लगाया था कि वे अणु शक्ति का विकास नहीं कर सकते, परमाणु परीक्षण तथा परमाणु विस्फोट नहीं कर सकते। भारत ने इसका विरोध किया था। फिर इस संधि को 1994 में परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि का नाम दिया गया। भारत ने इसका भी विरोध किया और इसे भी भेदभावपूर्ण बताया और कहा कि पाँच राष्ट्रों को परमाणु शक्ति के परीक्षणों तथा विकास पर एकाधिकार देना और शेष सभी देशों पर प्रतिबंध लगाना न्यायपूर्ण नहीं है. समानता के सिद्धांत जिसके आधार पर संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई, का उल्लंघन है। भारत का कहना है कि युद्ध के हथियारों के लिए परमाणु परीक्षण करना तथा परमाणु शक्ति का विकास करना उचित नहीं है और इससे विश्व शांति और सुरक्षा को खतरा है। इस पर प्रतिबंध लगाना उचित है। परन्तु विकास और शांति के लिए अणुशक्ति के विकास की छूट प्रत्येक राष्ट्र को होनी वांछित और आवश्यक है।

(ख) विदेश नीति के मामलों पर सर्व-सहमति- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच विदेश नीति को लेकर मतभेद जरूर है परन्तु इन दलों के बीच राष्ट्रीय अखंडता, अंतर्राष्ट्रीय सीमा सुरक्षा तथा राष्ट्रीय हित के मसलों पर व्यापक सहमति है। इस कारण, हम देखते है कि 1962-1972 के बीच जब भारत ने तीन युद्धों का सामना किया और इसके बाद के समय जब समय-समय पर कई पार्टियों ने सरकार बनाई, विदेश नीति की भूमिका पार्टी राजनीति में बड़ी सीमित रही।

7. भारत की विदेश नीति का निर्माण शांति और सहयोग के सिद्धांतों को आधार मानकर हुआ। लेकिन, 1962-1972 की अवधि यानी महज दस सालों में भारत को तीन युद्धों का सामना करना पड़ा। क्या आपको लगता है कि यह भारत की विदेश नीति की असफलता है अथवा, आप इसे अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम मानेंगे? अपने मंतव्य के पक्ष में तर्क दीजिए।

1. भारत की विदेश नीति शांति और सहयोग के आधार पर टिकी हुई है। लेकिन यह भी सत्य है कि 1962 में चीन ने 'चीनी-हिन्दुस्तानी भाई-भाई' का नारा दिया और पंचशील पर हस्ताक्षर किए लेकिन भारत पर 1962 में आक्रमण करके पहला युद्ध थोप दिया। निःसंदेह यह भारत की विदेश नीति की असफलता थी। इसका कारण यह था कि हमारे देश के कुछ नेता अपनी छवि के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति के दूत कहलवाना चाहते थे। यदि उन्होंने कूटनीति से काम लेकर दूरदर्शिता दिखाई होती और कम से कम चीन के विरुद्ध किसी ऐसी बड़ी शक्ति से गुप्त समझौता किया होता जिसके पास परमाणु हथियार होते या संकट की घड़ी में वह चीन द्वारा दिखाई जा रही दादागिरी का उचित जवाब देने में हमारी सहायता करता तो चीन की इतनी जुर्रत नहीं होती।

2- 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया लेकिन उस समय लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में भारतीय सरकार की विदेश नीति असफल नहीं हुई और उस महान नेता की आंतरिक नीति के साथ-साथ भारत की विदेश नीति की धाक भी जमी।

3. 1971 में बांग्लादेश के मामले पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक सफल कूटनीतिज्ञ के रूप में बांग्लादेश का समर्थन किया और एक शत्रु देश की कमर स्थायी रूप से तोड़कर यह सिद्ध किया कि युद्ध में सब जायज है। हम भाई हैं पाकिस्तान के, ऐसे आदर्शवादी नारों का व्यावहारिकता में कोई स्थान नहीं है।

4. राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। विदेशी संबंध राष्ट्रहितों पर टिके होते हैं। हर समय आदर्शा का ढिंढोरा पीटने से काम नहीं चलता। हम परमाणु शक्ति संपन्न हैं सुरक्षा परिषद् में स्थायी स्थान प्राप्त करेंगे और राष्ट्र की एकता, अखंडता, भू-भाग, आत्मसम्मान, यहाँ के लोगों के जानमाल की प्रतिरक्षा करेंगे, केवल मात्र हमारा यही मंतव्य है और हम सदा ही इसके पक्ष में निर्णय लेंगे, काम करेंगे। आज की परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि हमें बराबरी से हर मंच, हर स्थान पर बात करनी चाहिए लेकिन यथासंभव अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा सहयोग, प्रेम, भाईचारे को बनाए रखने का प्रयास भी करना चाहिए।

8. क्या भारत की विदेश नीति से यह झलकता है कि भारत क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति बनना चाहता है? 1971 के बांग्लादेश युद्ध के संदर्भ में इस प्रश्न पर विचार करें।

उत्तर भारत की विदेश नीति से यह बिल्कुल नहीं झलकता कि भारत क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति बनना चाहता है। 1971 का बांग्लादेश युद्ध इस बात को बिल्कुल सावित नहीं करता। बांग्लादेश के निर्माण के लिए स्वयं पाकिस्तान को पूर्वी पाकिस्तान के प्रति उपेक्षापूर्ण नीतियों थीं। भारत एक शांतिप्रिय देश है। वह शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नीतियों में विश्वास करता आया है, कर रहा है। और भविष्य में भी करेगा।

भारत ने क्षेत्रीय महाशक्ति बनने की आकांक्षा कभी नहीं पाली। हालांकि इसके पड़ोसी उस पर इस तरह के आरोप लगाते रहते हैं। भारत ने बांग्लादेश युद्ध के समय भी पाकिस्तान को धूल चटाया पर उनके सैनिकों को ससम्मान रिहा कर दिया। पाकिस्तान की भेदभावपूर्ण नीतियाँ और उपेक्षित व्यवहार के कारण ही पूर्वी पाकिस्तान की जनता विद्रोह कर बैठी और इसने युद्ध का रूप ले लिया भारत ने इसे अपना नैतिक समर्थन दिया।

9. किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह उस राष्ट्र की विदेश नीति पर असर डालता है? भारत की विदेश नीति के उदाहरण देते हुए इस प्रश्न पर विचार कीजिए।

उत्तर हर देश का राजनैतिक नेतृत्व उस राष्ट्र की विदेश नीति पर प्रभाव डालता है। उदाहरण के लिए-

(i) नेहरू जी के सरकार के काल में गुट-निरपेक्षता की नीति बड़ी जोर-शोर से चली लेकिन शास्त्री जी ने पाकिस्तान को ईंट का जवाब पत्थर से देकर यह साबित कर दिया कि भारत की सेनाएँ हर दुश्मन को जवाब देने की ताकत रखती हैं। उन्होंने स्वाभिमान से जीना सिखायाताशकंद समझौता किया लेकिन गुटनिरपेक्षता की नीति को नेहरू जी के समान जारी रखा।

(ii) कहने को श्रीमती इंदिरा गांधी नेहरू जी की पुत्री थीं। लेकिन भावनात्मक रूप से वह सोवियत संघ से अधिक प्रभावित थीं। उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। भूतपूर्व देशी नरेशों के प्रिवीपर्स समाप्त किए, गरीबी हटाओं का नारा दिया और सोवियत संघ से दीर्घ अनाक्रमक संधि की।

(iii) राजीव गांधी के काल में चीन तथा पाकिस्तान सहित अनेक देशों से संबंध सुधारे गए तो श्रीलंका के उन देशद्रोहियों को दबाने में वहां की सरकार को सहायता देकर यह बता दिया कि भारत छोटे-बड़े देशों की अखंडता का सम्मान करता

(iv) कहने को भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एन.डी.ए. की सरकार कुछ ऐसे तत्वों से प्रभावित थी जो सांप्रदायिक आदोप से बदनाम किए जाते हैं लेकिन उन्होंने चीन, रूस, अमेरिका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस आदि सभी देशों से विभिन्न क्षेत्रों में समझौते करके बस, रेल वायुयान, उदारीकरण, उन्मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण और आतंकवादी विरोधी नीति को अंतर्राष्ट्रीय मंचों और पड़ोसी देशों में उठाकर यह साबित कर दिया कि भारत की विदेश नीति केवल देश हित में होगी उस पर धार्मिक या किसी राजनैतिक विचारधारा का वर्चस्व नहीं होगा। अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीति, नेहरू जी की विदेश नीति से जुदा न होकर लोगों को अधिक प्यारी लगी क्योंकि देश में परमाणु शक्ति का विस्तार हुआ तथा अमेरिका के साथ संबंधों में बहुत सुधार हुआ। 'जय जवान' के साथ आपने नारा दिया 'जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान'।

10. निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए: गुटनिरपेक्षता का व्यापक अर्थ है अपने को किसी भी सैन्य गुट में शामिल नहीं करना... इसका अर्थ होता है चीज़ों को यथासंभव सैन्य दृष्टिकोण से न देखना और इसकी कभी ज़रूरत आन पड़े तब भी किसी सैन्य गुट के नजरिए को अपनाने की जगह स्वतंत्र रूप से स्थिति पर विचार करना तथा सभी देशों के साथ दोस्ताना रिश्ते कायम करना.... - जवाहरलाल नेहरू

(क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी क्यों बनाना चाहते थे?

(ख) क्या आप मानते हैं कि भारत-सोवियत मैत्री की संधि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।

(ग) अगर सैन्य-गुट न होते तो क्या गुटनिरपेक्षता की नीति बेमानी होती?

उत्तर (क) नेहरू सैन्य गुटों से निम्नलिखित कारणों से दूरी बनाना चाहते थे-

(i) वह देश में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करना चाहते थे। यह यकीन अमेरिका सहित सभी लोकतांत्रिक देशों को दिलाना चाहते थे।

(ii) वह गुट-निरपेक्षता की बात करके अमेरिका और सोवियत संघ दोनों के खेमों में सम्मिलित राष्ट्रों से भारत के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता पाकर तीव्र गति से आर्थिक विकास करना चाहते थे। वह एक और भाखड़ा नांगल जैसे विशाल बाँध, बहुउद्देशीय परियोजनाएँ, हीराकुंड जैसी परियोजनाएं बनाना चाहते थे तो दूसरी ओर भिलाई, राउरकेला आदि विशाल लौह-इस्पात के कारखाने लगाकर देश के औद्योगिक आधार को सुदृढ़ता देना चाहते थे।

(iii) उन्होंने नियोजन, सहकारी कृषि, भूमि सुधार, चकबंदी, जमींदारी उन्मूलन आदि वामपंथी कार्यक्रम लागू करके सोवियत संघ और साम्यवादी देशों में भारत की छवि को निखारा और ऐसा ही चाहते थे।

(ख) हमारे विचारानुसार भारत-सोवियत मैत्री संधि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ क्योंकि खुले तौर पर भारत सैद्धांतिक रूप से सोवियत संघ की तरफ शुक गया जिसका उल्लेख चीन, पाकिस्तन और भारत के विरोधी राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर करते हैं। कांग्रेस सरकार के विरोधी नेता और अमेरिका समर्थक राजनैतिक दल भी ऐसा कहते हैं।

(ग) हमारे विचारानुसार सैन्य गुट निरपेक्षता की नीति के जनक थे। जब गुट ही नहीं होते तो निर्गुटता का प्रश्न ही नहीं उठता। · निष्पक्ष मूल्यांकन हमारे हृदय और आत्मा को कहने के लिए विवश करता है कि गुटनिरपेक्षता तभी पैदा हुई जब विश्व में सैन्य गुट रहे। 1990 के बाद ही गुटनिरपेक्षता के अस्तित्व के औचित्य को लेकर प्रश्न खड़े हुए हैं, उससे पहले नहीं।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

1. भारत को जब आजादी मिली उस वक्त देश के समक्ष सबसे प्रमुख सवाल क्या था?

उत्तर भारत को जब आजादी मिली उस वक्त देश के समक्ष प्रमुख सवाल पुनर्निर्माण का था।

2. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दुनिया के विभिन्न देश किन दो खेमों में बँट गये थे?

उत्तर संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ।

3. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने किस संगठन की स्थापना की?

उत्तर इंडियन नेशनल आर्मी (आई.एन.ए.)।

4. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री कौन थे?

उत्तर जवाहरलाल नेहरू।

5. नेहरू की विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य क्या थे?

उत्तर कठिन संघर्ष से प्राप्त सम्प्रभुता को बचाए रखना, क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना और तेज रफ्तार से आर्थिक विकास करना।

6. किन दलों का यह मानना था कि भारत को अपनी विदेश नीति अमरीका के पक्ष में बनानी चाहिए?

उत्तर भारतीय जनसंघ एवं स्वतंत्र पार्टी का मानना था कि भारत को अपनी विदेश नीति अमेरीका के पक्ष में बनानी चाहिए।

7. शीतयुद्ध के दौरान भारत किस खेमे में शामिल था?

उत्तर शीतयुद्ध के दौरान भारत किसी खेमे में सम्मिलितं नहीं हुआ।

8. शीतयुद्ध के दौरान अमेरीका ने किस संगठन का निर्माण किया?

उत्तर उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO)।

9. 1956 में ब्रिटेन ने मिस पर क्यों आक्रमण किया?

उत्तर 1956 में ब्रिटेन ने स्वेज नहर के मामले को लेकर मिन पर आक्रमण किया।

10. नेहरू के नेतृत्व में मार्च 1947 में भारत ने किस सम्मेलन का आयोजन किया था?

उत्तर एशियाई संबंध सम्मेलन (एशियन रिलेशन कांफ्रेंस)।

11. भारत ने 1959 में तिब्बत के किस धार्मिक नेता को शरण दी?

उत्तर दलाई लामा। .

12. ताशकंद समझौता कब और किनके बीच हुआ?

उत्तर भारतीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री एवं पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के बीच 1965 में ताशकंद समझौता हुआ।

13. भारत की परमाणु नीति की विशेषताओं की चर्चा कीजिए।

उत्तर भारत की परमाणु नीति की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) भारत ने स्वतंत्रता के बाद ही अणुशक्ति के विकास का कार्यक्रम' अपना लिया था जब होमी जहांगीर भाभा के निर्देशन में भाभा अणुशक्ति आयोग की स्थापना की थी। इसका मुख्य उद्देश्य शांति और विकास के लिए अणुशक्ति का विकास करना था।

(ii) 1974 में भारत ने पहला अणु परीक्षण किया।

(iii) मई 1998 में भारत ने पाँच सफल अणु परीक्षण किए जिसके कारण उसे महाशक्तियों के कोप का भाजन भी बनना पड़ा और उस पर बहुत से प्रतिबंध लगाए गए।

(iv) सन् 2006 के आरंभिक दिनों में भारत और अमेरीका के बीच एक अणु समझौता भी हुआ जिसके अंतर्गत अमेरीका ने भारत को अणु शक्ति मानते हुए इसे यूरेनियम की आपूर्ति का भी आश्वासन दिया। यह समझौता अभी पूर्ण रूप से अमेरिकन कांग्रेस की पुष्टि प्राप्त नहीं कर सका है और उसके लिए दोनों ओर से प्रयास जारी हैं।

14. अंतर्राष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान पर भारत की विदेश नीति की एक विशेषता के रूप में एक नोट लिखिए।

उत्तर भारत की विदेश नीति की विशेषताओं में एक विशेषता यह है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान में विश्वास रखता है। भारत ने स्पष्ट घोषित किया है कि वह अन्य देशों के साथ उत्पन्न होने वाले विवादों का समाधान आपसी बातचीत. पारस्परिक समझौते तथा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार करेगा, युद्ध अथवा सशस्त्र संघर्ष द्वारा नहीं। यह बात भारतीय संविधान में वर्णित राज्य-नीति के निर्देशक सिद्धांतों में भी कही गई है। भारत ने इस सिद्धांत को केवल दिखावे के लिए ही नहीं अपनाया, बल्कि वह इस पर अमल भी करता आया है। कश्मीर का मामला भारत ने 1948 ही संयुक्त राष्ट्र संघ को सौंप दिया। हालांकि यदि दो दिन भारत और प्रतीक्षा करता तो वह समस्त कश्मीर वापस ले लेता। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अभी तक उसे नहीं सुलझाया है। पाकिस्तान ने 1965 और 1971 में भारत पर आक्रमण किया और इसी नीति के अनुसार भारत ने पाकिस्तान के जीते हुए इलाके भी वापस कर दिए। 1971 में तो पाकिस्तान के लगभग एक लाख सैनिकों को बंदी बना लिया गया था, परन्तु उन्हें भी भारत ने छोड़ दिया। इतना ही नहीं, भारत ने दूसरे देशों के विवादों को भी शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाने में काफी सहायता की है और इसके लिए अपनी सेवाएं पेश की हैं। भारत आक्रमण की नीति का समर्थक नहीं है, विश्व-शांति को बनाए रखना चाहता है।

15. गुट-निरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका को संक्षेप में समझाइए।

उत्तर गुट-निरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका- भारत ने गुर-निरपेक्षता की नीति को अपनाया और इसे एक आंदोलन का रूप दिया। वास्तव में गुट-निरपेक्षता का विचार संसार को भारत ने ही दिया था। आरंभ में तो कुछ देशों ने इस नीति को तटस्थता कहा और कुछ ने इसे अवसरवाद की संज्ञा दी। सर्वप्रथम बांडुंग सम्मेलन में गुट-निरपेक्षता के सिद्धांत में भारत के अतिरिक्त अन्य देशों nके द्वारा आस्था प्रकट की गई। इसमें 29 देशों ने भाग लिया था और पं. जवाहलाल नेहरू ने कहा था कि "यह बड़े शर्म और अपमान की बात है कि कोई एशियाई-अफ्रीकी देश किसी गुट का दुमछल्ला बनकर जिए और अपनी स्वतंत्र पहचान खो दे।"

इसके बाद भारत के प्रयत्नों से गुट-निरपेक्ष देशों का पहला सम्मेलन 1961 में बेलग्रेड में बुलाया गया जिसमें 25 देशों ने भाग लिया। भारत ने इस आंदोलन को शक्तिशाली बनाने में बड़ा योगदान दिया है। इस आंदोलन का 7वाँ सम्मेलन 1983 में भारत में हुआ था जिसमें 101 राष्ट्रों ने भाग लिया था। वास्तव में भारत इस आंदोलन का नेता है।

16. भारत की विदेश नीति की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) विदेशी नीति का स्वतंत्रतापूर्वक निर्धारण- भारतीय विदेश नीति की यह एक विशेषता है कि इसका स्वतंत्रतापूर्वक निर्धारण किया गया हैं। इसका अर्थ है कि भारत ने बिना किसी बाहरी दबाव के बिना किसी खेमे में सम्मिलित हुए या किसी खेमे के दबाव में आए हुए अपने स्वतंत्र दृष्टिकोण से और परिस्थितियों का अपने आप मूल्यांकन करते हुए इसका निर्माण किया है और अपने विदेशी संबंधों का संचालन किया है। भारत ने स्वतंत्रतापूर्वक तरीके से राष्ट्रमंडल में बने रहने का निर्णय लिया और सोवियत संघ के खेमे के देशों से संबंध बनाए रखे। भारत न तो पश्चिमी खेमे के दबाव में रहा और न ही सोवियत संघ के खेमे के दबाव में रहा। भारतीय नेता सोवियत संघ की नियोजित विकास की नीति से प्रभावित थे परन्तु उसकी अंधाधुंध नकल नहीं की और लोकतांत्रिक वातावरण के अनुसार नियोजित. विकास की प्रक्रिया को अपनाया। इस प्रकार भारत ने स्वतंत्रता के आधार पर विदेश नीति का निर्धारण और संचालन किया है।

(ii) निरंतरता- निरंतरता भी भारतीय विदेश नीति की एक विशेषता है। इसका अर्थ है कि स्वतंत्रता के साथ ही जो नीति अपनाई गई थी वह आज भी लागू है। भारत में बहु-दल प्रणाली है और चुनावों में विभिन्न दलों में सत्ता के लिए खुला संघर्ष होता है और इस संघर्ष में कई बार सत्ता परिवर्तन भी हुआ जैसे कि 1977 में, 1980 में, 1989 में, 1991 में, 1996 में, 1998 में और फिर 2004 में सत्ता परिवर्तन हुआ। परंतु जो भी दल सत्ता में आया उसने उसी विदेश नीति को अपनाए रखा जिसके निर्धारक जवाहर लाल नेहरू कहे जाते हैं और जो प्रधानमंत्री के साथ-साथ विदेश मंत्रालय का कार्यभार मी अपने अधीन रखते थे।

(iii) संवैधानिक मार्गदर्शन- भारत की विदेश नीति की एक विशेषता यह भी है कि संविधान इसके संबंध में प्रत्येक सरकार का वह कोई भी राजनीतिक दल हो, मार्गदर्शन करता है। संविधान कोई बाध्यकारी प्रावधान की व्यवस्था नहीं करता, केवल यह सुझाता है कि सत्तारूढ़ दल या वर्तमान सरकार को क्या करना चाहिए।

17. भारत की विदेश नीति के निम्नलिखित सिद्धांतों का वर्णन कीजिए-

(क) पंचशील

(ख) निःशस्त्रीकरण

(ग) साम्राज्यवाद का विरोध

(घ) क्षेत्रीय सहयोग

उत्तर पंचशील- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व व विश्व-शांति की नीति को पंचशील के सिद्धांत से व्यावहारिक रूप दिया गया है। इस पंचशील सिद्धांत की घोषणा 29 अप्रैल, 1954 की भारत-चीन समझौते में की गई थी। पंचशील सिद्धांत के पाँच सिद्धांत इस प्रकार से है।

(i) एक-दूसरे की प्रादेशिक अखंडता तथा संप्रभुता के प्रति पारस्परिक सम्मान की भावना रखना।

(ii) एक-दूसरे के क्षेत्र पर आक्रमण न करना।

(iii) एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का संकल्प।

(iv) समानता और पारस्परिक लाभ के सिद्धांत के आधार पर मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना।

(v) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।

निःशस्त्रीकरण- भारत शस्त्रीकरण को विश्व-शांति के लिए घातक मानता है। शस्त्रीकरण महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता व युद्धों को बढ़ावा देता है। इसलिए भारत ने सदैव निःशस्त्रीकरण का समर्थन किया है। भारत ने आणविक सामर्थ्य होते हुए भी अणु बम न बनाने की नीति को अपनाया है। आज विश्व में लगभग बीस अरब रुपया प्रतिदिन अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण पर खर्च किया जा रहा है तो दूसरी ओर चालीस हजार बच्चे प्रतिदिन भूख से मर जाते हैं। शस्त्रों की इस विनाश-लीला को रोकना अत्यन्त आवश्यक है। चेरनोबिल में हुई दुर्घटना ने विश्व को बता दिया है कि विश्व एक आणविक विस्फोट के कगार पर खड़ा है जो कभी भी जरा-सी मानवीय गलती से घट सकता है। इसलिए भारत शस्त्रीकरण का, विशेषकर आणविक शस्त्रों का घोर विरोधी है। भारत अमेरिका की 'स्टार वार' योजना का विरोधी है। निःशस्त्रीकरण के प्रयासों को गति देने के लिए 1985 में 'दिल्ली घोषणा' की गई जिसको भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के साथ मैक्सिको के राष्ट्रपति श्री मेट्डि; स्वीडन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री पाल्मे, यूनान के राष्ट्रपति श्री पापेन्द्रयू, अर्जेंटीना के राष्ट्रपति श्री एल्फोसिन तथा तंजानिया के राष्ट्रपति श्री न्येरेरे ने जारी किया था।

साम्राज्यवाद का विरोध- भारत द्वारा साम्राज्यवाद का विरोध स्वाभाविक ही है क्योंकि भारत स्वयं साम्राज्यवाद का शिकार रहा है। इसलिए भारत ने सदैव साम्राज्यवाद व साम्राज्यवादी शक्तियों का डटकर विरोध किया है। इसीलिए भारत ने डचों द्वारा इंडोनेशिया पर पुनः सत्ता स्थापित करने का विरोध किया और लीबिया और ट्यूनीशिया, मलाया, वियतनाम इत्यादि की स्वाधीनता पर बल दिया। भारत आर्थिक साम्राज्यवाद का भी विरोधी है।

क्षेत्रीय सहयोग- भारत के पास महाशक्ति बनने के लिए सभी तत्व मौजूद हैं लेकिन भारत ने महाशक्ति बनने का कभी प्रयास नहीं किया है। भारत का क्षेत्रीय सहयोग में सदैव विश्वास रहा है। भारत ने कभी भी क्षेत्रीय पड़ोसी राष्ट्रों पर दादागिरी नहीं चलाई जैसा कि महाशक्तियाँ करती रहती हैं। क्षेत्रीय सहयोग को मूर्त रूप देने के लिए भारत के प्रयासों को 1985 में सफलता मिली जबकि दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ (South-Asian Association for Regional Co-operation) की स्थापना की गई जिसे संक्षेप में 'सार्क' (SAARC) कहा जाता है। इस संघ में भारत के साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान, नेपाल, अफगानिस्तान तथा मालदीव सम्मिलित हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न

सही विकल्प पर(√ )का चिह्न लगाइए-

1. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया के विभिन्न देश कितने खेमों में बंट गए थे?

(क) दो

(ख) पाँच

(ग) चार

(घ) तीन

2 नेहरू की विदेश नीति के उद्देश्य निम्न में से कौन से थे?

(क) संप्रभुता को बचाए रखना

(ख) क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना

(ग)तीव्र गति से आर्थिक विकास करना

(घ)उपरोक्त सभी

3. ब्रिटेन ने स्वेज नहर के मामले को लेकर मिस पर आक्रमण किस वर्ष किया?

(क) 1950

(ख) 1956

(ग)1949

(घ) 1955

4, 1950 में किस देश ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया?

(क) भारत

(ख) पाकिस्तान

*(ग) चीन

(घ) अमरीका

5. भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता पर हस्ताक्षर कब हुए?

(क) 1954

(ख) 1948

(ग) 1955

(घ) 1950

6. भारत ने किस वर्ष तिब्बती नेता दलाई लामा को शरण दी?

(क) 1959

(ख) 1958

(ग) 1960

(घ) 1954

7. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रथम सम्मेलन कहाँ हुआ?

(क) बेलग्रेड

(ख) न्यूयार्क

(ग) लंदन

(घ) काहिरा

8. 1962 में किस देश ने भारत पर आक्रमण किया?

(क) पाकिस्तान

(ख) अमरीका

(ग) चीन

(घ) इंग्लैंड

9. निम्न में से किसे नेफा या उत्तर पूर्वी सीमांत कहा जाता था?

 (क) अरुणाचल प्रदेश

(ख) लद्दाख

(ग) हिमाचल प्रदेश

(घ) मध्य प्रदेश

10. सिंधु नदी जल संधि पर हस्ताक्षर कब हुए?

(क) 1950

(ख) 1960

(ग) 1966

(घ) 1947

उत्तर  1.(क)  2.(घ)  3.(ख)  4.(ग)  5.(क)  6.(क)  7.(क)   8(ग)   9.(क)  10.(ख) 


एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति - II