NCERT Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-3 नियोजित विकास की राजनीति

NCERT  Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-3  नियोजित विकास की राजनीति

NCERT Solutions Class 12  स्वतंत्र भारत में राजनीति  12 वीं कक्षा से Chapter-3  नियोजित विकास की राजनीति के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
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Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-3  नियोजित विकास की राजनीति


CBSE Class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति 

NCERT Solutions

CHAPTER-3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्नावली (उत्तर सहित)

1'बॉम्बे प्लान' के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा बयान सही नहीं है।

(क) यह भारत के आर्थिक भविष्य का एक ब्लू-प्रिंट था।

(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।

(ग) इसकी रचना कुछ अग्रणी उद्योगपतियों ने की थी।

(घ) इसमें नियोजन के विचार का पुरजोर समर्थन किया गया था।

उत्तर (ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।

2 भारत ने शुरुआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें निम्नलिखित में से कौन-सा विचार शामिल नहीं था?

(क) नियोजन (ख) उदारीकरण (ग) सहकारी खेती (घ) आत्मनिर्भरता

उत्तर (ख) उदारीकरण।

3. भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का विचार-ग्रहण किया गया था:

(क) बॉम्बे प्लान से                                          (ख) सोवियत खेमे के देशों के अनुभवों से

(ग) समाज के बारे में गाँधीवादी विचार से           (घ) किसान संगठनों की मांगों से

(क) सिर्फ ख और घ                             (ख) सिर्फ क और ख

(ग) सिर्फ घ और ग                                (घ) उपर्युका सभी

उत्तर (घ) उपर्युक्त सभी।

4.निम्नलिखित का मेल करें:

(क) चरण सिंह                 (i) औद्योगीकरण

(ख) पी.सी. महालनोबिस   (ii) जोनिंग

(ग) बिहार का अकाल       (iii) किसान

(घ) वर्गीज कूरियन            (iv) सहकारी डेयरी

उत्तर (क) चरण सिंह           (i) किसान

(ख) पी.सी. महालनोबिस     (ii) औद्योगीकरण

(ग) बिहार का अकाल        (iii) जोनिंग

(घ) वर्गीज कूरियन             (iv) सरकारी डेयरी।

-5. आजादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद क्या थे? क्या इन मतभेदों को सुलझा लिया गया?

उत्तर आजादी के समय विकास के प्रश्न पर प्रमुख पतभेद निम्नलिखित थे-

विकास के क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि हो और सामाजिक न्याय भी मिले-इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकार कौन-सी भूमिका निभाए? इस सवाल पर मतभेद थे। क्या कोई ऐसा केन्द्रीय संगठन जरूरी है जो पूरे देश के लिए योजना बनाए? क्या सरकार को कुछ महत्त्वपूर्ण उद्योग और व्यवसाय खुद चलाने चाहिए? अगर सामाजिक न्याय आर्थिक संवृद्धि की जरूरतों के आड़े आता हो तो ऐसी सूरत में सामाजिक न्याय पर कितना जोर देना उचित होगा?

इनमें से कुछ प्रश्नों को आंशिक तौर पर सुलझा लिया गया, परंतु कुछ प्रश्न ऐसे हैं जिन्हें अभी भी सुलझाना बाकी है। कुछ सुलझे हुए मतभेद निम्न प्रकार से है।

(i) सभी विचार धारा के नेतागण और राजनैतिक दल आर्थिक समृद्धि और आर्थिक, सामाजिक दोनों तरह की बात करते हैं। कुछ सुलझे हुए मतभेद निम्न प्रकार से है।

(ii) सभी इस बात पर सहमत हैं कि देश के व्यापार, उद्योगों और कृषि को क्रमशः च्यापारियों, उद्योगपतियों और किसानों के भरोसे पूरी तरह नहीं छोड़ा जा सकता।

(iii) सरकार ने सन् 1947 से लेकर 1990 के दशक के शुरू होने से पहले आर्थिक विकास में प्रमुख भूनिका निभाई लेकिन 1990 के दशक से आज तक हम यह कह सकते हैं कि मिश्रित नीति छोड़ दी गई है और देश में नई आर्थिक नीति अपनाई जा रही है लेकिन नियोजन की नीति को छोड़ा नहीं गया। अब भी कई महत्त्वपूर्ण उद्योगों पर सरकार का एकाधि कार है। जैसे रेलवे उद्योग, लेकिन धीरे-धीरे अनेक उद्योगों में सहकारी हिस्सों को बेचा जा रहा है और उदारीकरण और वैश्वीकरण के अंतर्गत देशी और विदेशी पूँजीपतियों, कंपनियों के हिस्से और निवेश को निरंतर बढ़ाया जा रहा है।

6. पहली पंचवर्षीय योजना का किस चीज पर सबसे ज्यादा जोर था? दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली से किन अर्थों में अलग थी?

उत्तर पहली पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल 1951 से लागू होकर 31 मार्च 1956 को समाप्त हुई। इस योजना में लोगों को गरीबी के जाल से निकालने का लक्ष्य था। इस योजना में ज्यादा जोर कृषि क्षेत्र पर दिया गया। इस योजना में भूमि सुधार पर जोर दिया गया और उसे देश के विकास की बुनियादी चीज माना गया। इस योजना के अन्तर्गत अनेक बाँध बनाए गए और सिंचाई के क्षेत्र में काफी धन-राशि का निवेश किया गया।

दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली पंचवर्षीय योजना से विभिन्न अर्थों में अलग थी।

(i) पहला अंतर यह था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्यागों के विकास पर जोर दिया गया। सरकार ने देसी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया। संरक्षण को इस नीति से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को आगे बढ़ने में काफी मदद मिली।

(ii) दोनों योजनाओं में दूसरा अंतर यह था कि पहली योजना में विकास की गति को धीमा रखा गया था। यह समझा गया था कि एक दशक तक विकास की रफ्तार धीमी रखी जाए नहीं तो वह अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव डालेगी। परन्तु दूसरी योजना में विकास की गति को तेज रखा गया और यह कोशिश की गई थी कि तेज गति से संरचनात्मक बदलाव किया जाए।

(iii) पहली योजना में कुल 2378 करोड़ रुपए के व्यय की व्यवस्था की गई थी जबकि दूसरी योजना के अंतर्गत 4500 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई थी।

(iv) प्रथम पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया धीमी थी और अधिक क्षेत्रों में इसे लागू नहीं किया गया था।

परन्तु दूसरी पंचवर्षीय योजना में बिजली, रेलवे, इस्पात, मशीनरी, संचार आदि उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया गया और आर्थिक क्षेत्र में राज्य का नियंत्रण बढ़ा।

7. हरित क्रांति क्या थी? हरित क्रांति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों का उल्लेख करें।

उत्तर सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनाई। नई रणनीति के अंतर्गत सरकार ने उन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया जो पहले से कृषि योग्य थे, सिंचाई की सुविधाएँ थीं, जहाँ खेती पहले से ही उपज देती थी। वहाँ संसाधन दिए गए और खेती को उपज में वृद्धि करने वाले संसाधन जैसे कि अच्छे बीज, रसायनिक खाद, (फर्टीलाइजर),कीटनाशक आदि वस्तुओं को रियायती दरों पर उपलब्ध कराया गया। ट्रैक्टर आदि खरीदने के लिए रियायती दरों पर ऋण की व्यवस्था की गई। सिंचाई की सुविधाओं में बढ़ोतरी के कदम उठाए गए, किसानों को नलकूप लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। रियायती दरों पर बिजली की आपूर्ति की गई। ये रियायतें केवल छोटे किसानों को ही नहीं बल्कि बड़े किसानों तथा भूपतियों को भी दो गई। इतना ही नहीं सरकार ने किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलवाए जाने का मी आश्वासन दिया और खाद्यान्नों के निम्नतम मूल्य निर्धारित किए। किसानों को निम्नतम मूल्यों के बाद बोनस दिए जाने की नीति अपनाई गई और उपज का विशेषकर गेहूँ और चावल की सरकारी खरीद (अथवा सरकार द्वारा खरीद किए जाने और उन्हें सरकारी गोदामों में स्टाक किए जाने) का कदम भी उठाया। इन बातों ने छोटे-बड़े सभी किसानों को अधिक से अधिक उपज उगाने और अनाज की मात्रा में वृद्धि करने के लिए प्रेरित किया। इसी को 'हरित क्रांति' का नाम दिया गया। हरित क्रांति के सकारात्मक परिणाम- इन प्रयासों के अच्छे परिणाम निकले और देश में अनाज की फसल में इतनी बढ़ोत्तरी हुई कि 1970 के दशक को हरितक्रांति का दशक बताया जाता है क्योंकि चारों तरफ लहलहाती फसल के कारण हरियाली ही हरियाली दिखाई देती थी। हरितक्रांति से अधिकतर गेहूँ और चावल की फसल में वृद्धि हुई। देश को खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई।

हरित क्रांति के बहुत से अच्छे परिणाम निकले जो स्वाभाविक भी थे।

(i) भारत को खाद्यान्न के मामले में आत्म निर्भरता प्राप्त हुई और अब वह इनका आयात करने की अपेक्षा निर्यात करने की स्थिति में आ गया।

(ii) ग्रामीण जीवन में खुशहाली आई और ग्रामीण लोगों को प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई।

(iii) खाद्यान्नों के आयात से जो विदेशी पूंजी खर्च जाती थी और देश पर विदेशी दबाव पड़ता था उसमें बहुत कमी आई।

(iv) खाद्यान्नों के आयात के स्थान पर भारत को औद्योगीकरण के लिए विदेशी प्रौद्योगिकी तथा मशीनरी को प्राप्त करने में

कम कठिनाई आई जिसने औद्योगीकरण को प्रक्रिया को तेज किया।

(v) भारत के कुछ राज्य या क्षेत्र कृषि उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हुए जैसे कि पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश और इसके कारण वहाँ के किसान आर्थिक दृष्टि से समृद्ध हुए।

(vi). किसान वर्ग की राजनीतिक व्यवस्था में स्थिति मजबूत हुई और उसकी राजनीतिक शक्ति में भागीदारी बढ़ी।

परन्तु हरित क्रांति के कुछ नकारात्मक प्रभाव या बुरे परिणाम भी निकले। हरित क्रांति के नकारात्मक परिणाम-

(i) हरित क्रांति से धनी किसान और धनी हुए तथा मध्यम वर्गीय किसानों को भी लाभ हुआ और उनकी आर्थिक दशा में वृद्धि हुई। परन्तु आम किसान और कृषि मजदूरों को इसका विशेष लाभ नहीं हुआ।

(ii) हरित क्रांति ने ग्रामीण क्षेत्र में अमीर-गरीब के बीच को खाई को चौड़ा किया।

(iii) उसने क्षेत्रीय असंतुलन में वृद्धि की क्योंकि कुछ राज्य अन्य राज्यों तथा क्षेत्रों के मुकाबले अधिक अमीर और गए।

(iv) हरित क्रांति ने कई क्षेत्रों में वामपंथी दलों की गतिविधियों को तेज करने में भूमिका निभाई क्योंकि उन्हें गरीब किसानों तथा खेतिहर मजदूरों को भूस्वामियों के विरुद्ध भड़काने और उन्हें लामबंद करने का अवसर मिला। खेती की दृष्टि से पिछड़े प्रदेशों में नक्सलवादी गतिविधियाँ तेज हुई।

8.दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास बनाम कृषि विकास का विवाद चला था। इस विवाद में क्या-क्या तर्क दिए गए थे।

उत्तर दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास और कृषि विकास के बीच चले विवाद में निम्नलिखित तर्क दिए गए थे-

(i) उद्योग और कृषि में से किस क्षेत्र में ज्यादा संसाधन लगाए जाएँ।

(ii) अनेक लोगों का मानना था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास की रणनीति का अभाव था और इस योजना के दौरान उद्योगों पर जोर देने के कारण खेती और ग्रामीण इलाकों को चोट पहुंची।

(iii) जे.सी. कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशस्त्रियों ने एक वैकल्पिक योजना का खाका प्रस्तुत किया था जिसमें ग्रामीण औद्योगिकरण पर ज्यादा जोर था। चौधरी चरण सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केन्द्र में रखने की बात बड़े सुविचारित और दमदार ढंग से उठायी थी।

* (iv) चौधरी चरण सिंह कांग्रेस पार्टी में थे और बाद में उससे अलग होकर इन्होंने भारतीय लोकदल नामक पार्टी बनाई। उन्होंने कहा कि नियोजन से शहरी और औद्योगिक तवके समृद्ध हो रहे हैं और इसकी कीमत किसानों और ग्रामीण जनता को चुकानी पड़ रही है।

(v) कई अन्य लोगों का सोचना था कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तेज किए बगैर गरीबी के मकड़जाल से छुटकारा नहीं मिल सकता। इन लोगों का तर्क था कि भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ाने की रणनीति अवश्य ही अपनायी गई थी। राज्य ने भूमि-सुधार और ग्रामीण निर्धनों के बीच संसाधन के बँटवारे के लिए कानून बनाए।

(vi) नियोजन में सामुदायिक विकास के कार्यक्रम तथा सिंचाई परियोजनाओं पर बड़ी रकम खर्च करने की बात मानी गई थी। नियोजन की नीतियाँ असफल नहीं हुई। दरहसल, इनका कार्यान्वयन ठीक नहीं हुआ क्योंकि भूमि-संपन्न तबके के पास सामाजिक और राजनीतिक ताकत ज्यादा थी। इसके अतिरिक्त, ऐसे लोगों की एक दलील यह भी थी कि यदि सरकार कृषि पर ज्यादा धनराशि खर्च करती तब भी ग्रामीण गरीवी की विकराल समस्या का समाधान न कर पाती।

9. अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति-निर्माताओं ने गलती की। अगर शुरुआत से ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से होता।" इस विचार के पक्ष एवं विपक्ष में अपने तर्क दीजिए।

उत्तर पक्ष में तर्क-

(i) अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति-निर्माताओं ने बड़ी भारी गलती की। 1990 से ही भारत ने नई आर्थिक नीति अपना ली है और वह बड़ी तेजी से उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की ओर बढ़ रहा है। देश के अनेक बड़े नेता जो दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री भी हुए है, ये भी निजी क्षेत्र उदारीकरण और सरकारी हिस्सेदारी को जल्दी से जल्दी सभी व्यवसायों, उद्योगों आदि में समाप्त करना चाहते हैं।

(ii) दुनिया की दो बड़ी संस्थाओं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोप और विश्व बैंक से भारत को तभी ऋण और ज्यादा से ज्यादा निवेश मिल सकते हैं जब बहुराष्ट्रीय कपनियाँ, विदेशी निवेशकों का स्वागत हो और उद्योगों के विकास के लिए आतंरिक सुविधाओं का बड़े पैमाने पर सुधार हो। इन सबके लिए सरकार पूँजी नहीं जुटा सकती। यह कार्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ, बहुराष्ट्रीय-कंपनियाँ और बड़े-बड़े पूंजीपति लोग कर सकते हैं जो बड़ी-बड़ी जोखिम उठाने के लिए तैयार है।

(iii) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता में भारत तभी ठहर सकता जब नीति क्षेत्र को छूट दे दी गई होती।

विपक्ष में तर्क-

(i) वामपंथी विचारधारा के समर्थक और जो सार्वजनिक क्षेत्र और सरकारी हिस्से को बढ़ाना चाहते हैं वे तर्क देते हैं कि भारत को सुदृढ़ कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में आधार सरकारी वर्चस्व और मिश्रित नीति से मिला है। यदि ऐसा नहीं होता तो भारत पिछड़ा रहता।

(ii) भारत में विकसित देशों की तुलना में जनसंख्या ज्यादा है। यहाँ बेरोजगारी है, गरीबी हैं, यदि पश्चिमी देशों की होड़ में भारत में सरकारी हिस्से को अर्थव्यवस्था में कम कर दिया जाएगा तो बेरोजगारी बढ़ेगी, गरीबी फैलेगी, धन और पूँजी कुछ ही कम्पनियों के हाथों में केन्द्रित हो जाएगी जिससे आर्थिक विषमता और बढ़ जाएगी।

(iii) भारत एक कृषि प्रधान देश है। वह अमेरिका जैसे देशों का कृषि उत्पादन में मुकाबला नहीं कर सकता। कुछ देश स्वार्थ के लिए पेटेंट प्रणाली को कृषि में लागू करना चाहते हैं और जो सहायता राशि सरकार भारतीय किसानों को देती है वे उसे अपने दबाव द्वारा पूरी तरह समाप्त करना चाहते हैं जबकि अपने देश के किसानों को वह हर तरह से आर्थिक सहायता देकर विकासशील देशों को कृषि सहित हर अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में मात देना चाहते हैं।

10. निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:

आजादी के बाद के आरंभिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियों पनपी। एक तरफ राष्ट्रीय पार्टी कार्यकारिणी ने राज्य के स्वामित्व का समाजवादी सिद्धांत अपनाया, उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ आर्थिक संसाधनों के संकेंद्रण को रोकने के लिए अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का नियंत्रण और नियमन किया। दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार ने निजी निवेश के लिए उवार आर्थिक नीतियाँ अपनाईं और उसके बढ़ावे के लिए विशेष कदम उठाए। इसे उत्पादन में अधिकतम वृद्धि की अकेली कसौटी पर जायज ठहराया गया।

                                                                                                                  -फ्रैंकिन फ्रैंकल

(क) यहाँ लेखक किस अंतर्विरोध की चर्चा कर रहा है? ऐसे अंतर्विरोध के राजनीतिक परिणाम क्या होंगे?

(ख) अगर लेखक की बात सही है तो फिर बताएं कि कांग्रेस इस नीति पर क्यों चल रही थी? क्या इसका

संबंध विपक्षी दलों की प्रकृति से था?

(ग) क्या कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और इसके प्रांतीय नेताओं के बीच भी कोई अंतर्विरोध था?

उत्तर (क) दिए गए अनुच्छेद में लेखक द्वारा कांग्रेस में उन दो समूहों की चर्चा की गई है जो क्रमशः वामपंथी विचारधारा से और दूसरा पक्ष दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रभावित था। इस प्रकार के अंतर्विरोध के राजनीतिक परिणाम देश में टकराव, वामपंथी मोर्चा का गठन, उनके द्वारा हिंसात्मक आंदोलनों को बढ़ावा देना या उन संगठनों को बढ़ावा मिलना जो लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते पूर्णतया तय है। पश्चिमी देश विशेषकर पूँजीवादी देश जो उदारवाद, वैश्वीकरण के पक्षधर हैं तथा समाजवाद और कम्युनिस्ट नीतियों के घोर विरोधी हैं, वे भारत में विरोधी राजनीति अपनाएँगे।

(ख) लेखक की बात सही है कि कांग्रेस एक ओर पूँजीवादी विरोधी दलों की नीति अपनाकर निजी क्षेत्र को और दूसरी ओर वामपंथी विरोधी दलों को साम्यवादी या समाजवादी नीतियों के अंतर्गत नियोजन, सार्वजनिक क्षेत्र को बढ़ावा देना और राज्य की भूमिका पर बल देने जैसी नीतियाँ नहीं अपना रही थी। इसे कांग्ग्रेस द्वारा मिश्रित आर्थिक नीति का नाम दिया गया। बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया परन्तु सार्वजनिक क्षेत्र के परिणाम बहुत अच्छे नहीं रहे।

(ग) कांग्रेस पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व और इसके प्रांतीय नेताओं के बीच खुलकर कोई अंतर्विरोध नहीं था परन्तु यह स्पष्ट था कि दबी जुबान में अनेक प्रांतों ने सरकारीकरण का विरोध किया। कई प्रांतों में कांग्रेस के कई नेताओं ने अपनी पार्टी छोड़कर अलग से अपनी नई पार्टी बना ली। चरणसिंह ने भारतीय क्रांति दल और फिर लोकदल बनाया। मोरारजी देसाई पूँजीवादी नीतियों का खुलेआम समर्थन करते थे। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने समाजवादी पार्टी का गठन किया। उड़ीसा में वीजू पटनायक ने उत्कल कांग्रेस का गठन किया।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

1. 'वामपंथ' से क्या तात्पर्य है?

उत्तर वामपंथ से उन लोगों की ओर संकेत किया जाता है जो गरीब और पिछड़े सामाजिक समूह की पैरवी करते हैं और इन वर्गों को लाभ पहुंचाने वाली सरकारी नीतियों का समर्थन करते हैं।

2. दक्षिणपंथ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर दक्षिणपंथ से उन लोगों को संकेत किया जाता है जो यह विश्वास करते हैं कि खुली प्रतिस्पर्धा और बाजारमूलक अर्थव्यवस्था के जरिए ही प्रगति हो सकती है-यानि सरकार को अर्थव्यवस्था में जरूरी होने पर ही हस्तक्षेप करना चाहिए।

3. स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष विकास के कौन-से दो मॉडल मौजूद थे?

उत्तर (i)उदारवादी पूंजीवादी मॉडल। यूरोप के ज्यादातर देश और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसी मॉडल को अपनाया गया था।

(ii) समाजवादी मॉडल। इसे सोवियत संघ ने अपनाया था।

4. योजना आयोग की स्थापना कब हुई थी?

उत्तर मार्च 1950 में।

5. 'बॉम्बे प्लान' किसे कहा जाता है?

उत्तर 1944 में उद्योगपतियों का एक वर्ग एकजुट हुआ। इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त मसौदा तैयार किया। इसे 'बॉम्बे प्लान" कहा जाता है।

6. प्रथम पंचवर्षीय योजना में सबसे महत्त्वपूर्ण और मुख्य यात क्या थी?

उत्तर गरीबी को किस प्रकार से कम या समाप्त किया जाए।

7. दूसरी पंचवर्षीय योजना में किस बात पर बल दिया गया था?

उत्तर भारी उद्योगों के विकास पर।

8. 'केरल मॉडल' में किस बात पर बल दिया गया था?

उत्तर इस मॉडल में शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि-सुधार, कारगर खाद्य वितरण और गरीबी-उन्मूलन पर अधिक बल दिया गया था।

9. 'मिल्क मैन ऑफ इंडिया' के नाम से कौन मशहुर है?

उत्तर वर्गीज कूरियन।

10. ऑपरेशन फ्लड किस चीज के उत्पादन से संबंधित है?

उत्तर दूध और इसके विभिन्न उत्पादों से।

11. हरित क्रांति में मुख्य रूप से कौन-से अनाज का उत्पादन अधिक बढ़ा?

उत्तर गेहूँ का

12. भूमि सुधार से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर भूमि सुधार-भारत में ब्रिटिश काल में जमींदारी प्रथा लागू थी और जमींदारों के एक ऐसे वर्ग का विकास हुआ था जो किसानों और सरकार के बीच श्रा, परन्तु उसका खेती-बाड़ी से कुछ लेना देना नहीं था। यह जमीन के मालिक समझे जाते थे और किसानों से लगान वसूलने और उसे सरकारी खजाने में जमा करवाने के उत्तरदायी थे। जमींदारी प्रथा से किसानों का शोषण होता था और वे उन पर अत्याचार भी करते थे। कांग्रेस ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान ही जमींदारी प्रथा का विरोध किया था और स्वतंत्रता मिलने पर इसके उन्मूलन तथा भूमि सुधार संबंधी और कई आश्वासन दिए थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद सरकार ने भूमि सुधार के कदम उठाए। जमींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया गया। इस से कृषि भूमि उस वर्ग के हाथ से मुक्त हुई जिस की कृषि कार्य में कोई रुचि नहीं थी और उसे कृषि विकास के प्रति चिन्ता नहीं थी। चकबंदी का कदम उठाया गया। चकबंदी छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ करने की योजना थी। यदि किसी किसान के पास दो अलग स्थानों या क्षेत्रों में कृषि भूमि थी तो उन्हें इकट्ठा करने के प्रयास किए गए। इससे उस व्यक्ति का खेती पर किया जाने वाला खर्च कम होता था और उपज की मात्रा बढ़ने की संभावना बनती थी। कृषि भूमि पर सोमा लगाई गई ताकि कृषि भूमि कुछ हाथों में केन्द्रित न हो और भूमिहीन किसानों को फालतू भूमि मिले। बटाई पर खेती करने वालों को कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया और अबजमींदार बटाई पर खेती करने वाले व्यक्ति को जब चाहे बेदखल नहीं कर सकता था।

भूमि सुधार प्रयासों का किसानों की आर्थिक दशा पर प्रभाव पड़ा और इनसे कृषि उत्पाद में भी वृद्धि हुई।

13. हरित क्रांति क्या है? इसे क्यों लागू किया गया और इससे किसानों को कैसे लाभ पहुँचा? संक्षेप में व्याख्या कीजिए।

उत्तर हरित क्रांति से अभिप्राय उत्पादन की तकनीक को सुधारने तथा कृषि उत्पादन से तीव्र वृद्धि करने से है। हरित क्रांति को दो मुख्य विशेषताएँ है- 

(i) उत्पादन की तकनीकी को सुधारना तथा (ii) उत्पाद में वृद्धि करना। इस संदर्भ में श्रीमती इन्दिरा गांधी ने लिखा था, "हरित क्रांति का आशय यह नहीं है कि खेतों में मेडबंदी करवाकर फावड़े, तगारी, मेंटी, इल इत्यादि उपयोगी कृषि के साध न प्राप्त करके कृषि की जाए अपितु इन साधनों के प्रयोग से कृषि उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि करना है।"हरित क्रांति लागू करने के कारण- हरित क्रांति लागू करने का उद्देश्य कृषि क्षेत्रक में उत्पादकता में वृद्धि करना तथा औपनिवेशिक काल के कृषि गतिरोध को स्थायी रूप से समाप्त करना था। किसानों को लाभ- हरित क्रांति से किसानों को निम्नलिखित लाभ हुआ

(i)हरित क्रांति से किसान अधिक गेहूँ तथा चावल उत्पन करने में समर्थ हुआ है। किसान के पास अब बाजार में बेचने के लिए काफी अनाज है।

(ii) किसानों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है।

14, प्रथम पंचवर्षीय योजना को संक्षेप में समझाइए।

उत्तर प्रथम पंचवर्षीय योजना- योजना आयोग ने अपनी स्थापना के तुरंत बाद ही अपना काम आरंभ कर दिया। इसका कार्य पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण तथा उनके कार्यान्वयन पर निगरानी रखना था। पंचवर्षीय योजना का अर्थ था कि अगले पाँच वर्षों के लिए विकास की गतिविधियों की योजना तैयार करना और उन गतिविधियों के लक्ष्य भी निश्चित करना। पंचवर्षीय योजना अगले पाँच वर्षों के लिए सरकार की आय और उसके खर्चों की योजना होगी। सभी राज्यों के लिए अगले पाँच वर्षों में क्या आय होगी और उनके द्वारा क्या खर्च किए जाएंगे। राज्य सरकार के बजट को दो भागों में बांटा गया था-एक भाग गैर योजना संबंधी खचों का था जो वार्षिक रूप से गैर विकास संबंधी मदों पर खर्च किया जाना था और दूसरा विकास के मुद्दों पर निश्चित प्राथमिकताओं के आधार पर अगले पाँच वर्ष में खर्च किया जाना था।

प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप नवंबर 1951 में तैयार हुआ और इसी वर्ष इसका वास्तविक स्वरूप भी अपना लिया गया और लागू किया गया। इस योजना की अवधि 1951 से 1956 तक मानी जाती है और 1956 में दूसरी पंचवर्षीय योजना लागू हुई। इस योजना में कृषि के क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता दी गई थी। इसी उद्देश्य से यांध बनाने और सिंचाई व्यवस्था का सुधार तथा विकास करने के लिए निवेश की व्यवस्था की गई थी। कृषि को प्राथमिकता दिए जाने के कई कारण थे। प्रथम तो भारत एक कृषि प्रधान देश था और इसकी 70 प्रतिशत के लगभग जनसंख्या गाँवों में रहती थी तथा कृषि कार्यों में लगी थी। कृषि के विकास से ग्रामीण जीवन की आर्थिक दशा में वृद्धि होती और इससे राष्ट्र की आर्थिक वृद्धि जुड़ी हुई थी। इसका दूसरा कारण यह था कि दूसरे महायुद्ध तथा बाद में विभाजन के कारण कृषि क्षेत्र को गहरी मार लगी थी। कृषि प्रधान देश होते हुए भी यह अपनी आवश्यकता के लिए खाद्यान्न पैदा नहीं कर पा रहा था और आयात पर निर्भर रहता था। सिंचाई परियोजनाओं तथा डैम निर्माण के साथ-साथ भूमि सुधार कानून बनाए गए और भूमि सुधार योजनाएं लागू की गई। इस योजना के अंतर्गत लोगों की बचत में वृद्धि और राष्ट्रीय आय में वृद्धि के लक्ष्य भी अपनाए गए। इस समय देश की आर्थिक दशा इतनी अच्छी नहीं थी इसलिए प्रथम पंचवर्षीय योजना का आकार भी छोटा रखा गया और इसमें कुल 2378 करोड़ रुपये खर्च किए जाने की व्यवस्था की गई थी। बेशक इस योजना के वांछित परिणाम नहीं निकले परन्तु भारत का नियोजित विकास की दशा में यह पहला कदम था और इसमें राज्य द्वारा पूर्ण रूप से नियंत्रित अर्थव्यवस्था नहीं अपनाई गई थी, बल्कि मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया था। इस दृष्टि से योजना को एक सफल कदम भी कहा जा सकता है।

15. योजना आयोग के कार्यों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर योजना आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

(i) राष्ट्र के भौतिक स्रोतों, मानव-संसाधनों तथा पूँजी का अनुमान लगाना- विकास की योजनाएं बनाने के लिए आवश्यक पूँजी तथा भौतिक व मानव संसाधनों का होना आवश्यक है। योजना आयोग का यह पहला काम है कि वह देश में उपलब्ध पूँजी, मानव-क्षमताओं, भौतिक पदार्थो, जल संसाधनों तथा वायु-शक्ति के सभी साधनों का अनुमान लगाता है जिन्हें पाँच वर्षों में देश के आर्थिक-सामाजिक विकास के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इनके बारे में सर्वेक्षण करके लेखा-जोखातैयार किया जाता है और उनके आधार पर ही योजना को वांछित प्रगति निश्चित की जाती है।

(ii) योजनाएँ बनाना- योजना आयोग सभी भौतिक तथा मानव संसाधनों व पूँजी का अनुमान लगाने के बाद यह योजना बनाता है कि अगले पाँच वर्षों में इन उपलब्ध साधनों का संतुलित रूप से उपयोग कैसे किया जाए कि उनका सर्वोत्तम परिणाम निकले। आयोग राष्ट्रीय प्रगति की दर भी निश्चित करता है। वह उपलब्ध संसाधनों के समुचित तथा संतुलित आबंटन के बारे में परामर्श देता है।

(iii) विकास की प्राथमिकताओं को निश्चित करना- वैसे तो सभी योजनाओं में सभी क्षेत्रों में विकास के कार्यक्रम अपनाए गए हैं, परन्तु प्रत्येक योजना में किसी एक क्षेत्र के विकास पर अधिक जोर दिया जाता रहा है। योजना आयोग ही यह निश्चित करता है कि इन सबमें प्राथमिकता किसे दी जाए। प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि को प्राथमिकता दी गई थी। स्वाभाविक है कि कृषि-उत्पादन से संबंधित कार्यो, जैसे कि सिंचाई, बिजली-उत्पादन, खाद्य, बढ़िया बीज आदि की उपलब्धि पर अधिक धन खर्च किया गया। दूसरी योजना में औद्योगीकरण को प्राथमिकता दी गई थी और इसमें भारी तथा आधारभूत उद्योगों को लगाने पर अधिक खर्च किया गया। व्यक्ति को खाने के लिए अन्न सबसे पहले चाहिए।

(iv) आर्थिक विकास में बाधक कारकों का पता लगाना- आयोग इस बात का भी अनुमान लगाता है कि देश की आर्थिक प्रगति में कौन-कौन कारक बाधा डाल सकते हैं और अब तक किन कारणों से राष्ट्र का आर्थिक विकास नहीं हो पाया है। इन कारणों को ध्यान में रखकर आयोग उन उपायों तथा मशीनरी का भी निर्णय करता है जिनका उपयोग करके आर्थिक विकास की प्राप्ति हो और बाधाओं का सामना आसानी से हो जाए तथा और निश्चयानुसार आर्थिक विकास की प्राप्ति हो जाए। आयोग योजनाओं के सफल परिणाम के लिए आवश्यक शर्तो को निश्चित करता है।

(v) योजनाओं के कार्यान्वयन तथा प्रगति का समय-समय पर मूल्यांकन करना- आयोग समय-समय पर इस बात का भी मूल्यांकन करता है कि किसी योजना को ठीक ढंग से लागू किया गया है या नहीं, योजना के अनुसार कार्य हो रहा है

बहुविकल्पीय प्रश्न

सही विकल्प पर () का चिह्न लगाइए-

1. पोस्को प्लांट कहाँ स्थित है?

(क) बिहार

(ख) उड़ीसा

(ग)मध्य प्रदेश

(घ) दिल्ली

2 श्वेत क्रांति संबंधित है?

(क) दूध के उत्पादन से

(ख) गेहूँ के उत्पादन से

(ग) फलों के उत्पादन से

(घ) चावल के उत्पादन से

3. सरकार को अर्थव्यवस्था में जरूरी होने पर हस्तक्षेप करना चाहिए। ऐसा कौन मानते हैं?

(क) उत्तर पंथी

(ख) वामपंथी

(ग) दक्षिण पंथी

(घ) इनमें से कोई नहीं

-4: उदारवादी मॉडल का समर्थक देश था?

(क) भारत

(ख) चीन

(ग) रूस

(घ) अमेरिका

5. समाजवादी मॉडल को मानने वाला देश था-

(क) भारत

(ख) पाकिस्तान

(ग) बर्मा

(घ) रूस

6. भारत ने आरंभ में किस आर्थिक नीति को अपनाया?

(क) समाजवादी मॉडल

(ख) उदारवादी मॉडल

(ग) मिश्रित आर्थिक नीति

(घ) इनमें से कोई नहीं

7. योजना आयोग की स्थापना हुई थी,

(क) 1948

(ग) 1951

(घ) 1962

8. हरित क्रांति के परिणामस्वरूप किस चीज के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई

(क) गेहूँ

(ख) चावल

(ग) ईंख

(घ) दाल

9. दूसरी पंचवर्षीय योजना की शुरुआत कय हुई थी?


(क) 1955

(ख) 1956

(ग) 1957

(घ) 1958

10. किस पंचवर्षीय योजना में कृषि पर अधिक बल दिया गया?

(क) प्रथम

(ख) द्वितीय

(ग) तृतीय

(घ) चतुर्थ

उत्तर 1.(ख)  2.(क)   3.(ग)   4.(घ)   5.(घ)   6.(ग)   7.(ख)   8.(क)   9.(ख)   10.(क)


एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति - II