NCERT Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-9 भारतीय राजनीति - नये बदलाव

NCERT Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-9 भारतीय राजनीति - नये बदलाव

NCERT Solutions Class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति 12 वीं कक्षा से Chapter-9 भारतीय राजनीति - नये बदलाव के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
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Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-9 भारतीय राजनीति - नये बदलाव


स्वतंत्र भारत में राजनीति 

NCERT Solutions

CHAPTER-9 भारतीय राजनीति - नये बदलाव

प्रश्नावली (उत्तर सहित)

1. उन्नी-मुन्नी ने अखबार की कुछ कतरनों को बिखेर दिया है। आप इन्हें कालक्रम के अनुसार व्यवस्थित करें:

(क) जनता वल का गठन        (ख) बाबरी मस्तिव का विध्वंस

(ग) इंदिरा गांधी की हत्या        (घ) राजग सरकार का गठन

(ङ) संप्रग सरकार का गठन    (च) गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम

उत्तर कालक्रम के अनुसार निम्नलिखित ढंग से व्यवस्थित किया जा सकता है-

(i) जनता दल का गठन                                  (ii) इंदिरा गाँधी की हत्या

(iii) बाबरी मस्जिद का विध्वंस                        (iv) राजग सरकार का गठन

(v) गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम      (vi) संप्रग सरकार का गठन।

2. निम्नलिखित में मेल करें।

(क) सर्वानुमति की राजनीति                  (i) शाहबानो मामला

(ख) जाति आधारित दल                       (ii) अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार

(ग) पर्सनल लॉ और लैंगिक न्याय         (iii) गठबंधन सरकार

(घ)क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत      (iv) आर्थिक नीतियों पर सहमति

उत्तर (क) सर्वानुमति की राजनीति             (i) आर्थिक नीतियों पर सहमति

(ख) जाति आधारित दल                           (ii) अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार

(ग) पर्सनल लॉ और लैंगिक न्याय              (iii) शाहबानो मामला

(घ)क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत           (iv) गठबंधन सरकार

3. 1989 के बाद की अवधि में भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे क्या रहे हैं? इन मुद्दों से राजनीतिक दलों के आपसी जुड़ाव के क्या रूप सामने आए हैं?

उत्तर 1989 के बाद की अवधि में भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे इस प्रकार से थे-

(i) लोकसभा के आम चुनाव में कांग्रेस की हार हुई। उसे सिर्फ 197 सीटें मिलीं। इस कारण सरकारें अस्थिर रहीं और 1991 में पुनः मध्यावधि चुनाव हुआ। कांग्रेस की प्रमुखता समाप्त होने के कारण देश के राजनीतिक दलों में आपसी जुड़ाव बढ़ा। राष्ट्रीय मोर्चे की दो बार सरकारें बनी परन्तु कांग्रेस द्वारा समर्थन खींचने और विरोधी दलों में एकता के अभाव के कारण देश में राजनैतिक अस्थिरता रही।

(ii) देश राजनीति में मंडल मुद्दे का उदय हुआ। इसने 1989 के बाद की राजनीति में अहम् भूमिका निभाई। सभी पार्टियाँ वोटों की राजनीति करने लगीं। इसलिए पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण दिए जाने के मामले में अधिकतर दलों में आपसी जुड़ाव हुआ।

(iii) 1990 के बाद से ही विभिन्न दलों की सरकारों ने जो आर्थिक नीतियाँ अपनाई वे बुनियादी तौर पर बदल चुकी थीं। आर्थिक सुधार और नई आर्थिक नीति के कारण देश के अनेक दक्षिण पंधी राष्ट्र और क्षेत्रीय दल परस्पर जुड़ने लगे। इस संदर्भ में दो प्रवृत्तियाँ उभरकर आईं। कुछ दल गैर कांग्रेसी गठबंधन और कुछ दल गैर भाजपा गठबंधन के समर्थक बने।

(iv) दिसंबर 1992 में अयोध्या स्थित एक विवादित ढाँचा (बाबरी मस्जिद के रूप में प्रसिद्ध) विध्वंस कर दिया गया। इस घटना के बाद भारतीय राष्ट्रवाद और धर्म निरपेक्षता पर बहस तेज हो गई। इन बदलावों का संबंध भाजपा के उदय और हिंदुत्व की राजनीति से है।

4. “गठबंधन की राजनीति के इस नए दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते हैं।" इस कथन के पक्ष या विपक्ष में आप कौन-से तर्क देंगे।

उत्तर पक्ष में तर्क: गठबंधन की राजनीति के भारत में चल रहे नए दौर में राजनैतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठबंधन नहीं करते। इसके समर्थन में निम्नलिखित तर्क हैं-

(i).1977 में जे.पी. के आह्वान पर जो जनता दल (जनता पार्टी) वना था उसमें कांग्रेस के विरोधी प्रायः सी.पी.आई. को छोड़कर अधिकांश विपक्षी दल जिनमें भारतीय जनसंघ, कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी, भारतीय क्रांति दल, तेलगू देशम, समाजवादी पार्टी,अकाली दल, आदि शामिल थे। इन सभी दलों को हम एक ही विचारधारा वाले दल नहीं कह सकते।

(ii) जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद केन्द्र में राष्ट्रीय मोर्चा बना जिसमें एक ओर जनता दल के बी.पी. सिंह तो दूसरी ओर उन्हें समर्थन देने वाले वामपंथी और भाजपा जैसे तथाकथित हिन्दुत्व समर्थक, गाँधीवादी, राष्ट्रवादी दल भी थे। कुछ ही महीनों के बाद वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री नहीं रहे तो केवल मात्र सात महीनों के लिए चन्द्रशेखर को कांग्रेस ने समर्थन दे दिया। ये वही चन्द्रशेखर जी थे जो इंदिरा, उनके द्वारा लगाए गए आपातकालीन संकट के कट्टर विरोधी और जनता पार्टी के अध्यक्ष थे। उन्हें और उनके नेता मोरारजी को कारावास की सजाएँ भुगतनी पड़ी थीं।

(iii) कांग्रेस की सरकार 1991 से 1996 तक नरसिंह राव के नेतृत्व में अल्पमत में होते हुए भी इसलिए जारी रही क्योंकि अनेक ऐसे दलों ने उन्हें बाहर से ऑक्सीजन दी ताकि तथाकथित साम्प्रदायिक शक्तियाँ सत्ता में न आ सकें। ये शक्तियाँ केरल में साम्प्रदायिक शक्तियों से सहयोग प्राप्त करती रही हैं या जाति प्रथा पर टिकी हुई पार्टियों से उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में समर्थन लेती रही है।

(iv) अटल बिहारी जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) की सरकार लगभग 6 वर्षों तक चली लेकिन उसे जहाँ एक ओर. अकालियों ने तो दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस, बीजू पटनायक कांग्रेस, कुछ समय के लिए समता पार्टी, जनता दल, जनता पार्टी आदि ने भी सहयोग और समर्थन दिया। यही नहीं जम्मू-कश्मीर के फारूख अब्दुल्ला, एक समय वाजपेयी सरकार के कट्टर समर्थक माने जाते रहे।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि राजनीति में कोई किसी का स्थायी शत्रु नहीं होता। हकीकत में अवसरवादिता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश में कुमारी सुश्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर संयुक्त सरकार बनाती रही हैं, महाराष्ट्र में शिव सेना और भारतीय जनता पार्टी और राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें ऐसे निर्दलीय अथवा लघु क्षेत्रीय दलों के सहयोग में चलती रहीं जो भाजपा को चुनावों मंचों और अभियानों में भला-बुरा कहते रहे हैं।

हँसी तो तब आती है जब राज्य विधान सभा के चुनाव के दौरान गठबंधन या राजनैतिक दल परस्पर कीचड़ उछालते हैं लेकिन उसी काल या दिनों के दौरान केन्द्र में हाथ मिलाते और समर्थन लेते देते हुए दिखाई देते हैं। यह मजबूरी है या लोकतंत्र में भोली-भाली लेकिन जागरूक जनता का मजाक उड़ाने का एक दर्दनाक प्रयास कहा जा सकता है।

विपक्ष में तर्क

(i) हम इस कथन से सहमत नहीं है। गठबंधन की राजनीति के नए दौर में भी बामपंथ के चारों दल अर्थात् सी.पी.एम., सी. पी.आई., फारवर्ड ब्लॉक, आर.एस. ने भारतीय जनता पार्टी हाथ नहीं मिलाया। वह उसे अब भी राजनीतिक दृष्टि से अस्पर्शनीय पार्टी मानती है।

(ii) समाजवादी पार्टी, वामपंथी मोर्चा जैसे क्षेत्रीय दल किसी भी उस प्रत्याशी को खुला समर्थन नहीं देना चाहते जो एन.डी.ए, अथवा भाजपा का प्रत्याशी हो क्योंकि उनकी वोटों की राजनीति को ठेस पहुँचती है।

(iii) कांग्रेस पार्टी ने अधिकांश मोर्चा पर बी.जे.पी. विरोधी और बी.जे.पी. ने कांग्रेस विरोधी रुखा अपनाया है।

5. आपातकाल के बाद के दौर में भाजपा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी। इस दौर में इस पार्टी के विकास-क्रम का उल्लेख करें।

उत्तर (i) आपातकाल के दौरान भाजपा नाम की कोई पार्टी अस्तित्व में नहीं थी। 1977 में बनी पहली विपक्षी पार्टी जनता पार्टी की सरकार में भारतीय जनसंघ का प्रतिनिधित्व अवश्य था। कालांतर में 1980 में भारतीय जनसंघ को समाप्त कर भारतीय जनतापार्टी का गठन किया गया। अटल बिहारी वाजपेयी इसके संस्थापक अध्यक्ष बने।

(ii) श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या 1984 में कर दी गई। चुनावों में कुछ सहानुभूति की लहर होने के कारण कांग्रेस को जबरदस्त सफलता मिली जबकि भारतीय जनता पार्टी को केवल दो सीटें ही प्राप्त हुई। स्वयं अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से चुनाव हार गए। सफलता ने अभी भाजपा के कदम नहीं चूमे थे। इस बीच रामजन्म-भूमि का ताला खुलने का अदालती आदेश आ चुका था। कांग्रेस सरकार ने वहाँ का ताला खुलवाया। भाजपा ने इसका राजनीतिक लाभ उठाने का फैसला किया।

(iii) 1989 के चुनावों में इसे आशा से अधिक सफलता मिली और इसने कांग्रेस का विकल्प बनने की इच्छा शक्ति दिखाई। जो भी हो कांग्रेस से बाहर हुए वी.पी. सिंह ने जनता दल का गठन किया तथा 1989 के चुनाव लड़े। उन्हें पूर्ण बहुमत नहीं मिला पर भाजपा ने उन्हें बाहर से समर्थन देकर संयुक्त मोर्चा की सरकार का गठन कराया। भाजपा के नेता लालकृष्ण अडवाणी ने हिन्दुत्व तथा राम मंदिर के मुद्दे को लेकर एक रथ यात्रा का आयोजन किया। यह यात्रा जब विहार से गुजर रही थी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इसे रोक दिया। भाजपा ने इस मुद्दे पर केन्द्र से समर्थन वापस ले लिया और वी.पी. सिंह की सरकार जाती रही।

(iv) भाजपा ने 1991 तथा 1996 के चुनावों में अपनी स्थिति लगातार मजबूत की। 1996 के चुनावों में यह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इस नाते भाजपा को सरकार बनाने का न्यौता मिला। लेकिन अधिकांश दल भाजपा की कुछ नीतियों के खिलाफ थे और इस वजह से भाजपा की सरकार लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं कर सकी। आखिरकार भाजपा एक गठबंध न (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन-राजग) के अगुआ के रूप में सत्ता में आयी और 1998 के मई से 1999 के जून तक सत्ता में रही। फिर, 1999 में इस गठबंधन ने दोबारा सत्ता हासिल की। राजग को इन दोनों सरकारों में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। 1999 की राजग सरकार ने अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा किया। 2004 में पुनः चुनाव हुए लेकिन पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली।

6. कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है। इसके बावजूद देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर लगातार कायम है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।

उत्तर हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ कि यद्यपि कांग्रेस का पतन हो गया है या कहिए कि उसका केन्द्र एवं अधिकांश प्रांतों में जो राजनैतिक सत्ता का असर आजादी से लेकर 1960 तक कायम रहा वह अब वैसा नहीं दिखाई देता तथापि वह आज भी लोकसभा में सबसे बड़ा दल है। उसी का अध्यक्ष संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (सप्रंग) का व्यक्ष है और उसी का प्रधानमंत्री है। अनेक राज्यों में आज भी वह सत्ता में है। लेकिन देश का राजनैतिक इतिहास इस बात का गवाह है कि 1960 के दशक के अंतिम सालों में कांग्रेस के एकछत्र राज को चुनौती मिली थी लेकिन इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारतीय राजनीति पर अपना प्रभुत्व फिर से कायम किया। नब्बे के दशक में कांग्रेस को अग्रणी हैसियत को एक बार फिर चुनौती मिली। जो भी हो, इसका मतलब यह नहीं कि कांग्रेस की जगह कोई दूसरी पार्टी प्रमुख हो गई।

अभी भी कांग्रेस पार्टी देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी मानी जाती है। 2004 के चुनावों में कांग्रेस भी पूरे जोर के साथ गठबंध न में शामिल हुई। राजग की हार हुई और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार बनी। इस गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस ने किया। संप्रग को वाम मोर्चा ने समर्थन दिया। 2004 के चुनावों में एक हद तक कांग्रेस का पुनरुत्थान भी हुआ। 1991 के बाद इस दफे पार्टी के सीटों की संख्या एक बार फिर बढ़ी। जो भी हो, 2004 के चुनावों में राजा और संप्रग को मिले कुल वोटों का अन्तर बड़ा कम था। 2009 के आम चुनावों में कांग्रेस ने फिर अपनी पुरानी रंगत दिखाई और पहले से काफी अधिक सीटों पर - जीत हासिल की। यद्यपि उसे सहयोगियों को अभी भी आवश्यकता है।

7. अनेक लोग सोचते हैं कि सफल लोकतंत्र के लिए दो-दलीय व्यवस्था जरूरी है। पिछले बीस सालों के भारतीय अनुभवों को आधार बनाकर एक लेख लिखिए और इसमें बताइए कि भारत की मौजूदा बहुदलीय व्यवस्था के क्या फायदे हैं।

उत्तर 1. दलीय व्यवस्थाः अनेक लोग सोचते हैं कि सफल लोकतंत्र के लिए दलीय व्यवस्था आवश्यक है। वे इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क देते हैं:

(i) दो दलीय व्यवस्था से साधारण बहुमत के दोष समाप्त हो जाते हैं और जो भी प्रत्याक्षी या दल जीतता है वह आधे से अधिक अर्थात् 50 प्रतिशत से ज्यादा (मतदान किए गए कुल मतों का अंश) होते हैं।

(ii) देश में सभी को पता होता है कि यदि सत्ता एक दल से दूसरे दल के पास जाएगी तो कौन-कौन प्रमुख पदों प्रधानमंत्री, . उपप्रधानमंत्री, गृहमंत्री, वित्तमंत्री, विदेश मंत्री आदि पर आएँगे। प्रायः इंग्लैंड और अमेरिका में ऐसा ही होता है।

(iii) सरकार ज्यादा स्थायी रहती है और वह गठबंधन की सरकारों के समान दूसरे दलों की बैसाखियों पर टिकी नहीं होती। वह उनके निर्देशों को सरकार गिरने के भय से मानने के लिए बाध्य नहीं होती। बहुदलीय प्रणालियों में देश में फूट पैदा होती है। दल जातिगत या व्यक्ति विशेष के प्रभाव पर टिके होते हैं और सरकार के काम में अनावश्यक विलंब होता रहता है।

(iv) बहुदलीय प्रणाली में भ्रष्टाचार फैलता है। सबसे ज्यादा कुशल व्यक्तियों की सेवाओं का अनुभव प्राप्त नहीं होता और जहाँ साम्यवादी देशों की तरह केवल एक ही पार्टी की सरकार होती है तो वहाँ दल विशेष या वर्ग विशेष की तानाशाही नहीं होती।

2. गत बीस वर्षों के भारतीय अनुभव एवं विद्यमान बहुदलीय व्यवस्था के लाभः भारत विभिन्नताओं वाला देश है। यहाँ गत 60 वर्षों से बहुदलीय प्रणाली जारी है। यह दल प्रणाली देश के लिए निम्नलिखित कारणों से अधिक फायेदमंद जान पड़ती है:

(i) भारत जैसे विशाल तथा विभिन्नताओं वाले देश के लिए कई राजनीतिक दल लोकतंत्र की सफलता के लिए परम आवश्यक हैं। प्रजातंत्र में दलीय प्रथा प्राणतुल्य होती है। राजनीतिक दल जनमत का निर्माण करते हैं। चुनाव लड़ते हैं, सरकार बनाते हैं, विपक्ष की भूमिका भी अदा करते हैं।

(ii) दलीय प्रणाली जनता को राजनीतिक शिक्षा प्रदान करती है। राजनीतिक दल सभाएँ करते हैं. सम्मेलन करते हैं, जलूस निकालते हैं तथा अपने दल की नीतियाँ बनाकर जनता के सामने प्रचार करते हैं। सरकार की आलोचना करते हैं। संसद में अपना पक्ष प्रस्तुत करते हैं और इस प्रकार जनता को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती रहती है।

(iii) दलीय प्रणाली के कारण सरकार में दृढ़ता आती है क्योंकि दलीय आधार पर सरकार को समर्थन मिलता रहता है।

(iv) विपक्षी दल सरकार की निरंकुशता पर रोक लगाते हैं।

(v) दलीय प्रणाली में शासन और जनता दोनों में अनुशासन बना रहता है। राष्ट्रीय हितों पर अधिक ध्यान दिया जाता है।

(vi) अनेक राजनीतिक दल राजनीतिक कार्यों के साथ-साथ सामाजिक सुधार के कार्य भी करते हैं।

8. निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:

भारत की दलगत राजनीति ने कई चुनौतियों का सामना किया है। कांग्रेस-प्रणाली ने अपना खात्मा ही नहीं किया, बल्कि कांग्रेस के जमावड़े के बिखर जाने से आत्म-प्रतिनिधित्व की नयी प्रवृत्ति का भी ज़ोर बढ़ा। इससे दलगत व्यवस्था और विभिन्न हितों की समाई करने की इसकी क्षमता पर भी सवाल उठे। राजव्यवस्था के सामने एक महत्त्वूपर्ण काम एक ऐसी दलगत व्यवस्था खड़ी करने अथवा राजनीतिक दलों को गढ़ने की है, जो कारगर तरीके से विभिन्न हितों को मुखर और एकजुट करें...

(क) इस अध्याय को पढ़ने के बाद क्या आप दलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सूची बना सकते हैं?

(ख) विभिन्न हितों का समाहार और उनमें एकजुटता का होना क्यों जरूरी है।

(ग) इस अध्याय में आपने अयोध्या विवाद के बारे में पढ़ा। इस विवाद ने भारत के राजनीतिक दलों की समाहार की क्षमता के आगे क्या चुनौती पेश की?

उत्तर विद्यार्थी स्वयं करें।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

1. इंदिरा गांधी की हत्या के पश्चात् देश का प्रधानमंत्री किसे बनाया गया?

उत्तर राजीव गांधी को बनाया गया।

2, 1984 में लोकसभा का चुनाव कांग्रेस ने किसके नेतृत्व में लड़ा था?

उत्तर 1984 में लोकसभा का चुनाव कांग्रेस ने राजीव गांधी के नेतृत्व में लड़ा था।

3. 1980 के दशक के अंतिम वर्षों में देश में आए कोई दो बड़े परिवर्तन को लिखे।

उत्तर (i) 1989 के चुनावों में कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा।

(ii) 1990 में राष्ट्रीय मोर्चा की नई सरकार बनी।

4. राजीव गांधी की कब हत्या कर दी गई?

उत्तर राजीव गांधी की हत्या मई 1991 में कर दी गई।

5. 1989 के चुनावों की जीत हासिल करने के बाद राष्ट्रीय मोर्चा को किन दो परस्पर विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने समर्थन दिया था?

उत्तर भाजपा और वाम मोर्चा।

6. किस चुनाव के परिणाम के बाद बहुदलीय शासन-प्रणाली का युग प्रारंभ हुआ?

उत्तर 1989 के लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद।

7. 1996 में बनी संयुक्त मोर्चे की सरकार को किस दल ने समर्थन नहीं दिया?

उत्तर भाजपा

8. 1996 में बनी संयुक्त मोर्चे की सरकार को वाम वल और कांग्रेस पार्टी ने क्यों समर्थन दिया?

उत्तर क्योंकि कांग्रेस तथा वामदल दोनों भाजपा को सत्ता से बाहर रखना चाहती थी।

9. राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने किस आयोग की सिफारिशों को लागू करने का निर्णय लिया?

उत्तर मंडल आयोग।

10. बहुजन समाज पार्टी का नेतृत्व किसने किया?

उत्तर कांशीराम ने।

11. मंडल आयोग की सिफारिशों की घोषणा के क्या परिणाम थे?

उत्तर मंडल आयोग की सिफारिशों की घोषणा के परिणामः 8 अगस्त 1990 को प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने घोषणा की कि सरकार मंडल आयोग को रिपोर्ट लागू करेगी और सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करेगी। इस घोषणा ने भारतीय राजनीति को कई प्रकार से प्रभावित किया-

(i) इस घोषणा का तुरंत परिणाम यह निकला कि सारे उत्तर भारत में इसका विरोध हुआ, युवकों विशेषकर छात्रों ने इसका घोर विरोध किया, और कई दिनों तक जनसाधारण का सामान्य जीवन प्रभावित रहा। लगभग 200 लोगों ने इसके विरोध में आत्मदाह भी किया।

(ii) परन्तु यह विरोध अधिक दिन तक नहीं चला और 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी निर्णय दिया कि ऐसा करना संवैधानिक है।

(iii) इसके बाद लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अन्य पिछड़ी जातियों के कल्याण और उत्थान का मुद्दा अपनी नीतियों में अपनाया और अपने वोट बैंक का विस्तार करने का प्रयास किया। इससे राजनीति का मंडलीकरण हुआ।

(iv) इस घोषणा के बाद केन्द्र तथा राज्यों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की गई। इससे समाज के इस वंचित समूह का सशक्तिकरण हुआ, राजनीतिक व्यवस्था में इनकी भागीदारी बढ़ी और सभी दल चुनाव में पिछड़ी जातियों से अधिक से अधिक उम्मीदवार खड़ा करने लगे।

(v) अब कांग्रेस ने भी जिसने 1980 से 1989 तक इस रिपोर्ट की ओर देखा तक नहीं था, उच्च शिक्षा संस्थाओं में इन वर्गों के छात्रों के लिए स्थानों के आरक्षण का कानून बनाया। कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार निजी व्यापारिक संस्थाओं पर भी आरक्षण लागू करने के लिए दबाव बनाए हुए है।

12. क्या यह कहना उचित है कि भारत में कुछ सहमति बनाने में गठबंधन सरकार ने सहायता की है?

उत्तर (i) 1989 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार हुई थी। कांग्रेस अब भी लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन बहुमत में न होने के कारण उसने विपक्ष में बैठने का फैसला किया। राष्ट्रीय मोर्चा को (यह मोर्चा जनता दल और कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों को मिलाकर बनाया) परस्पर विरुद्ध दो राजनीतिक समूहों-भाजपा और वाम मोर्चे ने समर्थन दिया।

(ii) कांग्रेस की हार के साथ भारत पर एक प्रभुत्व का युग समाप्त हो गया। इस दौर में बहुदलीय शासन प्रणाली का युग शुरू हुआ। 1989 के बाद लोकसभा के चुनावों में कभी भी किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। इस बदलाव के साथ केन्द्र में गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ और क्षेत्रीय पार्टियों ने गठबंधन व सरकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

• (iii) गठबंधन की राजनीति में साझे कार्यक्रम के प्रति आम सहमति देखी गई है। नब्बे का दशक ताकतवर पार्टियों और आंदोलन के उभार का साक्षी रहा। पार्टियों और आंदोलनों ने दलित तथा पिछड़ा वर्ग (अन्य पिछड़ा वर्ग या ओबीसी) की नुमाइंदगी की। इन दलों में से अनेक ने क्षेत्रीय आकांक्षाओं की भी दमदार दावेदारी की। 1999 में बनी संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा की सरकार में इन पार्टियों ने अहम् किरदार निभाया।

(iv) नई आर्थिक नीति लागू करने, पिछड़ी जातियों की राजनीतिक और सामाजिक माँगों को स्वीकार करने, क्षेत्रीय या प्रांतीय दलों के उत्कर्प और विचारधारा के स्थान पर कार्य अथवा “साधन नहीं बल्कि उद्देश्य" को विशेष महत्त्व देने पर लगभग सभी राजनीतिक दल सहमत हैं।

13. गठबंधन सरकार के लाभ और हानियों को बतलाइए।

उत्तर गठबंधन सरकार का लाभः गठबंधन की राजनीति के कई लाभ भी हैं जिनमें प्रमुख लाभ निम्नलिखत हैं-

(i) बहुदलीय व्यवस्था वाले देशों में संसदीय सरकार की स्थापना गठबंधन की राजनीति के आधार पर ही संभव है। गठबंधनों की सरकारें बन सकती हैं क्योंकि मतदाता किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं देते।

(ii) सरकार पर किसी एक दल का प्रभुत्व नहीं जमता। 1988 तक सरकार पर कांग्रेस का ही नियंत्रण था। आरंभ में तो उसने सभी वर्गों और हितों का ध्यान रखा लेकिन बाद में अपनी मनमानी करनी आरंभ कर दी। शक्ति के दुरुपयोग के आधार पर आपातकाल की घोषणा गठबंधन की राजनीति में नहीं हो सकती थी।

(iii) सरकार अधिक-से-अधिक वर्गों, हितों तथा विचारधाराओं का ध्यान रखने लगती है और उसे जनता की सरकार कहना सार्थक प्रतीत होता है। यह समाज के विभिन्न पक्षों का प्रतिनिधित्व करने लगती है।

(iv) गठबंधन की राजनीति में छोटे-छोटे दलों को भी सरकार में भागीदारी मिलने लगती है। लोकसभा में जिन दलों के 5 सदस्य भी हो कई बार उन्हें भी मंत्रिमंडल में भगीदारी मिलने लगती है।

(v) कुछ समय बाद संसदीय शासन प्रणाली में बहुदलीय व्यवस्था के अंतर्गत गठबंधन की राजनीति की संस्कृति विकसित होने लगती है और यह दो-गठबंधनीय प्रणाली में बदलने लगती है जैसे कि भारत में हुआ है। अब भारत में दो प्रमुख दलों के नेतृत्व में गठबंधन का अस्तित्व है-कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन तथा भाजपा नेतृत्व वाला गठबंधन। इससे गठबंधन सरकारें भी दो दलीय व्यवस्था की तरह, अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल होती हैं। राजग ने अपने पाँच वर्ष पूरे किए और संप्रग ने भी अपना कार्यकाल पूरा किया।

गठबंधन की राजनीति का एक लाभ यह है कि सरकार समयानुसार अपनी नीतियों को बदलती रहती है। सरकार में कई दलों के सम्मिलित होने के कारण कोई न कोई घटक नई आवश्यकता तथा समस्याओं के प्रति आवाज उठाता है और सरकार का ध्यान उस ओर आकर्षित करता है।

गठबंधन सरकार की हानियाँ

गठबंधन की राजनीति की कई हानियाँ भी स्पष्ट हुई हैं, जो निम्नलिखित हैं-

(i) प्रथम कठिनाई तो यह है कि गठबंधनों का बनना, विभिन्न विचारधाराओं तथा नीतियों को मानने की घोषणा करने वाले दलों का आपस में मिलना आसान नहीं होता और इससे संसदीय शासन प्रणाली में सरकार का निर्माण एक समस्या बन जाता है।

(ii) गठबंधन सरकारें सामान्य रूप से अस्थाई होती है और जल्दी-जल्दी बदलती हैं। 1977 वाली सरकार 2 वर्ष भी नहीं चल पाई। 1998 में बनी सरकार एक वर्ष चली। 1999 की सरकार में स्थायित्व आया तो अब 2004 में बनी सरकार भी स्थाई गती है। सरकार अच्छी प्रकार से काम नहीं कर सकती।

(iii) गठबंधन सरकार में मंत्रिमंडल की राजनीतिक एकरूपता नहीं रहती, गठबंधन में सहयोगी दल कई बार एक-दूसरे की आलोचना करते दिखाई देते हैं। प्रधानमंत्री की स्थिति प्रभावकारी नहीं होती और उसे मंत्रियों की नियुक्ति में अपनी पसंद लागू करने का व्यावहारिक मौका नहीं मिलता। सहयोगी दलों के अध्यक्ष हो उस दल से लिए जाने वाले मंत्रियों के नामों की सूची सौंपते हैं और प्रधानमंत्री को वह माननी पड़ती है।

(iv) शासन की नीति में न तो एकरूपता आती है और न ही निरंतरता बनी रह सकती है। जल्दी-जल्दी नीतियों के बदलने, सरकारों के बदलने और सहयोगी दलों की आपसी खींचातानी से आदमी राजनीति से, लोकतंत्र से निराश होने लगता है। वह राजनीतिक दलों तथा दलीय राजनीति में विश्वास खोने लगता है।

(v) गठबंधन की राजनीति से राजनीतिक नैतिकता पर चोट पहुँचती है क्योंकि इसमें अधिकतर गठबंधन विचारों तथा सिद्धांतों को बलि देकर बनते हैं। आज एक दल दूसरे दल की आलोचना करता है तो अगले दिन उसे गले लगाने को तैयार हो जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

सही उत्तर पर (  ) का चिन्ह लगाइए-

1. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश का प्रधानमंत्री निम्न में से कौन बना?

(क) अटल बिहारी वाजपेयी  (ख) राजीव गांधी । 

(ग) सोनिया गांधी                (घ) वी.पी.सिंह

2. राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार कब बनी?

(क) 1984 में         (ख) 1999 में

(ग) 1990 में           (घ) 1996 में

3. निम्न में से किस सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया?

(क) राष्ट्रीय मोर्चा           (ख) कांग्रेस

(ग) भाजपा                   (घ) राजग

4. राजीव गांधी की हत्या कब हुई?

(क) दिसम्बर 1992   (ख) मार्च 1994 

(ग) मई 1991            (घ) मार्च 1984

5. बाबरी मस्जिद के विध्वंस की घटना कब घटी?

(क) दिसम्बर 1991     (ख) दिसम्बर 1992 

(ग) मई 1990            (घ) जून 1992

6. 1991 के चुनावों में निम्न में से कौन प्रधानमंत्री बना?'

(क) नरसिम्हा राव     (ख) राजीव गांधी

(ग) वी.पी. सिंह       (घ) अटल बिहारी वाजपेयी

7. 1989 के चुनावों के बाव बनी राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार को निम्न में से किसने बाहर से समर्थन दिया?

(क) भाजपा

(ख) वाम मोर्चा (ग) (क) एवं (ख) दोनों (घ) उपरोक्त में कोई नहीं

8. 1996 में बनी संयुक्त मोर्चे की सरकार को किस वल ने समर्थन नहीं दिया?

(क) कांग्रेस

(ख) भाजपा

(ग) वाम मोर्चा

(घ) उपरोक्त सभी

9. 1996 के चुनावों में कौन सबसे पड़ी पार्टी बनकर उभरी?

(क) भाजपा

(ख) जनता दल 

(ग) वाम मोर्चा

(घ) कांग्रेस

10, 2002 के फरवरी-मार्च में किस राज्य में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा भड़की?

(क) महाराष्ट्र

(ख) गुजरात

(ग) कर्नाटक

(घ) बिहार

उत्तर 1.(ख)  2.(ग) 3.(क) 4.(ग) 5.(ख) 6.(क) 7.(ग) 8.(ख) 9.(क) 10.(ख)


एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति - II