NCERT Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

NCERT Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

NCERT Solutions Class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति 12 वीं कक्षा से Chapter-8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी स्वतंत्र भारत में राजनीति के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ


स्वतंत्र भारत में राजनीति 

NCERT Solutions

CHAPTER-8  क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्नावली उत्तर सहित)

1. निम्नलिखित में मेल करें।

अ                                                                                                  ब 

क्षेत्रीय आकांक्षाओं की प्रकृति                                                        राज्य

(क) सामाजिक-धार्मिक पहचान के आधार पर राज्य का निर्माण   (i) नगालैंड/मिजोरम

(ख) भाषायी पहचान और केंद्र के साथ तनाव                              (ii) झारखंड/छत्तीसगढ़

(ग) क्षेत्रीय असंतुलन के फलस्वरूप राज्य का निर्माण                 (iii) पंजाब

(ख) आदिवासी पहचान के आधार पर अलगाववादी माँग            (iv) तमिलनाडु

उत्तर

अ                                                                                                ब 

क्षेत्रीय आकांक्षाओं की प्रकृति                                                         राज्य

(क) सामाजिक-धार्मिक पहचान के आधार पर राज्य का निर्माण     (i) पजाब

(ख) भाषायी पहचान और केन्द्र के साथ तनाव                              (ii) तमिलनाडु

(ग) क्षेत्रीय असंतुलन के फलस्वरूप राज्य का निर्माण                  (iii) झारखंड/छत्तीसगढ़

(घ)आदिवासी पहचान के आधार पर अलगाववादी माँग               (iv) नागालैंड/मिजोरम

2. पूर्वोत्तर के लोगों की क्षेत्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति कई रूपों में होती है। बाहरी लोगों के खिलाफ आंदोलन, ज्यादा स्वायत्तता की माँग के आंदोलन और अलग देश बनाने की माँग करना-ऐसी ही कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं। पूर्वोत्तर के मानचित्र पर इन तीनों के लिए अलग-अलग रंग भरिए और दिखाइए कि किस राज्य में कौन-सी प्रवृत्ति ज्यादा प्रबल है।

उत्तर (i) अलग देश बनाने की माँग नागालैंड तथा मिज़ोरम ने की 

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थी। कालांतर में मिजोरम स्वायत्त राज्य बनने के लिए राजी हो गया।

(ii) स्वायत्तता की मांगः मणिपुर-पिपुरा (असमी भाषा को लादने के खिलाफ)।

(iii) नए राज्य बने: मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल, त्रिपुरा और मणिपुर को राज्य का दर्जा दिया गया। अब भी कुछ छोटे समुदायों द्वारा स्वायत्तता की मांग रखी जा रही है जैसे करबी और दिमगा, बोडो जनजाति को न भी स्वायत्त परिषद् का दर्जा दिया गया है।

(iv) अलगाववादी आंदोलन: मिजोरम का समाधान हो गया है। (असम सरकार द्वारा 1959 में मिजो पर्वतीय राज्य में अकाल से निपटने की असफलता के कारण ऐसी भयंकर नौबत आई थी)।

(v) नागालैंडः नागालैंड में अलगाववाद की समस्या का पूर्ण समाधान अब पश्चिम भी नहीं हुआ है। वह बातचीत के अनेक प्रस्ताव ठुकरा चुका। कुछ नागाओं के अल्प समूह ने भारत सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं लेकिन अंतिम रूप से अलगाववादी समस्या का समाधान होना बाकी है।

3. पंजाब समझौते के मुख्य प्रावधान क्या थे? क्या ये प्रावधान पंजाब और उसके पड़ोसी राज्यों के बीच तनाव बढ़ाने के कारण बन सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर पंजाब समझौताः राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अकाली दल के नरमपंथी नेताओं से बातचीत शुरू की और सिक्ख समुदाय को शांत करने का प्रयास किया। परिणामस्वरूप अकाली दल के अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोगोंवाल और राजीव गांधी के बीच समझौता हुआ। इसे पंजाय समझौता भी कहा जाता है। इसके आधार पर अकाली दल 1985 में होने वाले चुनावों में भाग लेने को तैयार हुआ। पंजाब में स्थिति को सामान्य बनाने की ओर यह एक महत्त्वपूर्ण कदम था इसकी प्रमुख बातें निम्नलिखित थीं-

(i) चंडीगढ़ पर पंजाब का हक माना गया और यह आश्वासन दिया गया कि यह शीघ्र ही पंजाब को दे दिया जाएगा।

(ii) पंजाब और हरियाणा के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक अलग आयोग स्थापित किया जाएगा।

(iii)  रावी और व्यास के पानी का पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच बँटवारा करने के लिए एक न्यायाधिकरण (Tribunal) बैठाया जाएगा।  

(iv) सरकार ने वचन दिया कि वह भविष्य में सिक्खों के साथ बेहतर व्यवहार करेगी और उन्हें राष्ट्रीय धारा में किए गए उनके योगदान के आधार पर सम्मानजनक स्थिति में रखा जाएगा।

(v ) सरकार दंगा पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा भी देगी और दोषियों को दंड दिलवाए जाने का पूरा प्रयास करेगी।1985 के चुनावों में अकाली दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ और इसकी सरकार बनी। परन्तु कुछ समय बाद अकाली दल में दरार पैदा हुई और प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में एक गुट इससे अलग हो गया तथा वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा।

राजीव-गाँधी और लोगोवाल के समझौते के बाद भी पंजाब की स्थिति सामान्य नहीं हुई और वहाँ उग्रवादी तथा हिंसात्मक गतिविधि याँ चलती रहीं। 1991 के लोकसभा चुनावों के समय स्थिति सामान्य बनाने के लिए सरकार ने फरवरी 1992 में विधानसभा के चुनाव भी करवाए परन्तु अकाली दल समेत अन्य दलों ने इन चुनावों का बहिष्कार किया। आतंकवादियों ने भी लोगों को मतदान न करने की धमकी दी। 1992 के चुनावों में पंजाब में कुल 24 प्रतिशत मतदान हुआ था। पंजाब में 1990 के शतक के मध्य के बाद ही स्थिति सामान्य होने लगी। सुरक्षा बलों ने उग्रवाद को दबाया और इसके कारण 1997 के चुनाव कुछ सामान्य स्थिति में हुए। माहौल कांग्रेस के विरुद्ध था और अकाली दल ने भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन किया था। अतः अकाली दल के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार बनी। परन्तु 2002 के विधान सभा चुनाव में अकाली दल सत्ताहीन हुआ और 2007 के चुनाव में फिर से सत्ता में आया। इस प्रकार पंजाब में हिंसा का चक्र लगभग एक दशक तक चलता रहा। पंजाब की जनता को उग्रवादी गुटों के कारण हिंसा का शिकार होना पड़ा। नवंबर 1984 में सिख समुदाय को सिक्ख विरोधी दंगों का शिकार होना पड़ा। मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघनहुआ। डर और अनिश्चय की स्थिति ने वहाँ की व्यापारिक गतिविधियों पर बुरा प्रभाव डाला। 1980 के बाद एक समय ऐसा आया था जबकि पंजाब के बड़े-बड़े उद्योगपति वहाँ से पलायन करके हरियाणा आदि राज्यों में आने लगे थे। उग्रवाद ने पंजाब की आर्थिक दशा पर, विकास गतिविधियों पर, वहाँ की खुशहाली पर बुरा प्रभाव डाला था। लोंगोवाल का भी वध हुआ था। पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री बेअंतसिंह की भी सचिवालय में हत्या की गई। आजकल पंजाब में स्थित सामान्य कही जा सकती है।

4. आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने के क्या कारण थे?

उत्तर  1970 के दशक में अकालियों को कांग्रेस पार्टी से पंजाब में चिढ़ हो गई क्योंकि वह सिख और हिन्दू दोनों धर्मों के दलितों के बीच अधिक समर्थन प्राप्त करने में सफल हो गई थी। इसी दशक में अकालियों के एक समूह ने पंजाब के लिए स्वायत्तता की मांग उठाई। 1973 में, आनंदपुर साहिब में हुए एक सम्मेलन में इस आशय का प्रस्ताव पारित हुआ। आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में क्षेत्रीय स्वायत्तता की बात उठायी गई थी। प्रस्ताव को माँगों में केन्द्र-राज्य संबंधों को पुनर्परिभाषित करने की बात भी शामिल थी। इस प्रस्ताव में सिख 'कौम' (नेशन या समुदाय) की आकांक्षाओं पर जोर देते हुए सिखों के 'बोलबाला' (प्रभुत्व या वर्चस्व) का ऐलान किया गया। यह प्रस्ताव संघवाद को मजबूत करने की अपील करता है लेकिन इसे एक अलग सिख राष्ट्र की माँग के रूप में भी पढ़ा जा सकता है।

5. जम्मू-कश्मीर को अंदरुनी विभिन्नताओं की व्याख्या कीजिए और बताइए कि इन विभिन्नताओं के कारण इस राज्य में किस तरह अनेक क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने सर उठाया है।

उत्तर •(i) जम्मू-कश्मीर की अंदरूनी विभिन्नताएँ: जम्मू एवं कश्मीर में तीन राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र शामिल हैं-जम्मू कश्मीर और लाख। कश्मीर घाटी को कश्मीर के दिल के रूप में देखा जाता है। कश्मीरी बोली बोलने वाले ज्यादातर लोग मुस्लिम हैं। बहरहाल, कश्मीरी भापी लोगों में अल्पसंख्यक हिन्दू भी शामिल हैं। जम्मू क्षेत्र पहाड़ी तलहटी एवं मैदानी इलाके का मिश्रण है, जहाँ हिन्दू, मुस्लिम और सिख यानी कई धर्म और भाषाओं के लोग रहते हैं। लद्दाख पर्वतीय इलाका है, जहाँ चौद्ध एवं मुस्लिमों की आवादी है, लेकिन यह आबादी बहुत कम है।

(ii ) मुद्दे का स्वरूपः कश्मीर मुद्दा' भारत और पाकिस्तान के बीच सिर्फ विवाद भर नहीं है। इस मुद्दे के कुछ बाहरी तो कुछ भीतरी पहलू हैं। इसमें कश्मीरी पहचान का सवाल जिसे कश्मीरियत के रूप में जाना जाता है, शामिल है। इसके साथ ही साथ जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक स्वायत्तता का मसला भी इसी से जुड़ा हुआ है।

(iii ) अनेक आकांक्षाओं का सिर उठाना:

(क) धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने की शेख अब्दुल्ला की आकांक्षा: 1947 से पहले जम्मू एवं कश्मीर में राजशाही थी। इसके हिन्दू शासक हरि सिंह भारत में शामिल होना नहीं चाहते थे और उन्होंने अपने स्वतंत्र राज्य के लिए भारत और पाकिस्तान के साथ समझौता करने की कोशिश की। पाकिस्तानी नेता सोचते थे कि कश्मीर, पाकिस्तान से संबद्ध है, क्योंकि राज्य की ज्यादातर आवादी मुस्लिम है। बहरहाल यहाँ के लोग स्थिति को अलग नजरिए से देखते थे। वे अपने को कश्मीरी सबसे पहले, कुछ और बाद में मानते थे। राज्य में नेशनल कांफ्रेंस के शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में जन-आंदोलन चला। शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि महाराजा पद छोड़ें, लेकिन वे पाकिस्तान में शामिल होने के खिलाफ थे। नेशनल कांफ्रेंस एक धर्मनिरपेक्ष संगठन था और इसका कांग्रेस के साथ काफी समय तक गठबंधन रहा।

(ख) जम्मू-कश्मीर के आक्रमणकारियों से प्रतिरक्षा कराने की आकांक्षा, चुनाव और लोकतंत्र स्थापना की आकांक्षा: अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान ने कबायली घुसपैठियों को अपनी तरफ से कश्मीर पर कब्जा करने भेजा। ऐसे में महाराजा भारतीय सेना से मदद माँगने को मजबूर हुए। भारत ने सैन्य मदद उपलब्ध कराई और कश्मीर घाटी से घुसपैठियों को खदेड़ा। इससे पहले भारत सरकार ने महाराजा से भारत संघ में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करा लिए। इस पर सहमति जताई गई कि स्थिति सामान्य होने पर जम्मू-कश्मीर को नियति का फैसला जनमत सर्वेक्षण के द्वारा होगा। मार्च 1948 में शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रधानमंत्री बने (राज्य में सरकार के मुखिया को तब प्रधानमंत्री कहा जाता था) भारत, जम्मू एवं कश्मीर की स्वायत्तता को बनाए रखने पर सहमत हो गया। इसे संविधान में धारा 370 का प्रावधान करके संवैधानिक दर्जा दिया गया।

6. कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर विभिन्न पक्ष क्या हैं? इनमें कौन-सा पक्ष आपको समुचित जान पड़ता है?अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।

उत्तर कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर विभिन्न पक्षः जम्मू-कश्मीर राज्य की अधिक स्वायत्तता की माँग के भी दो पहलू हैं। पहला यह कि समस्त राज्य को केन्द्र के अत्यधिक नियंत्रण से मुक्ति मिले और उसे अपने आंतरिक मामलों में अधिक-से-अधि क आजादी मिले और वह अपने निर्णय बिना केंद्रीय हस्तक्षेप के कर सके तथा उन्हें लागू कर सके। धारा 370 को पूरी तरह लागू किया जाए।

स्वायत्तता के संबंध में एक दृष्टिकोण और भी है और वह जम्मू-कश्मीर की आंतरिक स्वायत्तता से संबंधित है। जम्मू-कश्मीर के अंदर भी विभिन्न आधारों पर क्षेत्रीय विभिन्नताएँ हैं और इसके तीन क्षेत्र अपनी अलग-अलग पहचान रखते हैं। कश्मीर घाटी, जम्मू तथा लद्दाख के क्षेत्र। जम्मू तथा लद्दाख के लोगों का आरोप है कि जम्मू-कश्मीर सरकार ने सदा ही उनके हितों की अनदेखी की है और ध्यान कश्मीर घाटी के विकास की ओर लगाया है तथा इन दोनों क्षेत्रों का कुछ भी विकास नहीं हुआ है। अतः इन क्षेत्रों को भी जम्मू-कश्मीर की सरकार के नियंत्रण से मुक्ति मिलनी चाहिए और इन्हें आंतरिक स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए। इसी मांग के संदर्भ में लद्दाख स्वायत परिषद की स्थापना की गई थी। आजादी के बाद से ही जम्मू एवं कश्मीर की राजनीति हमेशा विवादग्रस्त एवं संघर्षयुक्त रही। इसके बाहरी एवं आंतरिक दोनों कारण है। कश्मीर समस्या का एक कारण पाकिस्तान का रवैया है। उसने हमेशा यह दावा किया है कि कश्मीर घाटी पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए। जैसा कि आप पढ़ चुके हैं कि 1947 में इस राज्य में पाकिस्तान ने कबायली हमला करवाया। इसके परिणामस्वरूप राज्य का एक हिस्सा पाकिस्तानी नियंत्रण में आ गया। भारत ने दावा किया कि यह क्षेत्र का अवैध अधिग्रहण है। पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को 'आजाद कश्मीर' कहा। 1947 के बाद कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष एक बड़ा मुद्दा रहा है। आंतरिक रूप से देखें तो भारतीय संघ में कश्मीर की हैसियत को लेकर विवाद रहा है। आप जानते हैं कि कश्मीर को संविधान में धारा 370 के तहत विशेष दर्जा दिया गया है। धारा 370 एवं 371 के तहत् किए गए विशेष प्रावधानों के बारे में आपने पहले ही पढ़ा होगा। धारा 370 के तहत जम्मू एवं कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा स्वायत्तता दी गई है। राज्य का अपना संविधान है। भारतीय संविधान की सारी व्यवस्थाएँ इस राज्य में लागू नहीं होतीं। संसद द्वारा पारित कानून राज्य में उसकी सहमति के बाद ही लागू हो सकते हैं। इस विशेष स्थिति से दो विरोधी प्रतिक्रियाएँ सामने आई। लोगों का एक समूह मानता है कि इस राज्य को धारा 370 के तहत प्राप्त विशेष दर्जा देने से यह भारत के साथ पूरी तरह नहीं जुड़ पाया है। यह समूह मानता है कि धारा 370 को समाप्त कर देना चाहिए और जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों की तरह ही होना चाहिए। दूसरा वर्ग (इसमें ज्यादातर कश्मीरी हैं) विश्वास करता है कि इतनी भर स्वायत्तता पर्याप्त नहीं है। कश्मीरियों के एक वर्ग ने तीन प्रमुख शिकायतें उठायी हैं। पहला यह कि भारत सरकार ने वायदा किया था कि कवायली घुसपैठियों से निपटने के बाद जब स्थिति सामान्य हो जाएगी तो भारत संघ में विलय के मुद्दे पर जनमत संग्रह कराया जाएगा। इसे पूरा नहीं किया गया। दूसरा, धरा 370 के तहत दिया गया विशेष दर्जा पूरी तरह से अमल में नहीं लाया गया।

इससे स्वायत्तता की वहाली अथवा राज्य को ज्यादा स्वायत्तता देने की माँग उठी।

7. असम आंदोलन सांस्कृतिक अभिमान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था। व्याख्या कीजिए।

उत्तर असम आंदोलनः उत्तर-पूर्व के क्षेत्रों, विशेषकर असम राज्य में बाहरी लोगों के विरुद्ध आंदोलन हुआ है। बाहरी लोगों से अभिप्राय केवल विदेशी नहीं बल्कि वे सभी लोग माने जाते हैं जो या तो किसी दूसरे देश से आए या भारत के ही किसी अन्य क्षेत्र अथवा दूसरे राज्य से आए हैं। ऐसे दोनों प्रकार के लोगों को यहाँ की जनता बाहरी लोग कह कर पुकारती है। असम राज्य में बाहरी लोगों के विरुद्ध आंदोलन चला तथा उसने हिंसात्मक रूप भी धारण किया। असम के अतिरिक्त और भी कई राज्यों में बाहरी लोगों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता रहा है। इसका एक उदाहरण महाराष्ट्र है जहाँ का क्षेत्रीय शिव सेना खुले तौर पर कहता है कि "मुंबई केवल मुंबई वालों के लिए"। सन् 2007 में भी महाराष्ट्र के कई क्षेत्रों में बिहार, उड़ीसा आदि राज्यों में आए लोगों के साथ मारपीट की गई और एक बार तो रेलवे की भर्ती से संबंधित होने वाली परीक्षा में बाहर से आए उम्मीदवारों को परीक्षा में बैठने ही नहीं दिया गया। एक बार दिल्ली की मुख्यमंत्री ने भी कहा था कि दिल्ली की बुरी अवस्था, पानी, बिजली, बस सेवा कानून-व्यवस्था आदि के लिए बाहरी लोग उत्तरदायी हैं और जो बाहर से आते हैं यहीं बस जाते हैं। बाहरी लोगों के विरोध पर आधारित असम का छात्र आंदोलन ऐसे ही आंदोलनों में प्रमुख कहा जा सकता है। यह आंदोलन लगभग 6 वर्ष तक चला और अंत में असम समझौते के आधार पर समाप्त हुआ। यह आंदोलन 1978 में आरंभ हुआ था और 1985 में समाप्त हुआ।

असम में देश के दूसरे क्षेत्रों से आए लोगों के खिलाफ वहाँ के लोगों का गुस्सा इतना अधिक नहीं था जितना कि बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत आए विदेशियों के कारण था। इन बांग्लादेशियों ने यहाँ आकर स्थायी रूप से रहना आरंभ कर दिया था और अपने आपको मतदाता के रूप में भी रजिस्टर करवा लिया था। स्थानीय तथा क्षेत्रीय सुविधाओं पर दबाव पड़ने के साथ-साथ यहाँ के लोगों को यह खतरा महसूस होने लगा था कि वे इनकी बढ़ती हुई संख्या के कारण अल्पमत में आ जाएंगे। असम में तेल के भंडार थे, कोयले की खानें थीं और चाय के बागान थे फिर भी लोगों की आर्थिक दशा अच्छी नहीं थी और गरीबी का वातावरण था। सरकार इन विदेशियों के विरुद्ध कार्यवाही नहीं करती थी क्योंकि ये बाहरी लोग कांग्रेस के वोट बैंक की भूमिका निभाते थे। लोगों को विश्वास हो गया था कि राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का लाभ असम के लोगों को नहीं मिलता बल्कि बाहरी लोगों को होता है। उनमें धरती पुत्र की भावना जागृत और विकसित हुई। अर्थात् असम केवल असम के मौलिकवासियों के लिए है, बाहरी गों के लिए नहीं और बाहरी लोगों को असम से बाहर निकाला जाए। 1979 में वहाँ युवा छात्रों ने अपना एक संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू)-(All Assam Students Union) बनाया और बाहरी लोगों का विरोध शुरू किया। शीघ्र ही इस संगठन को वहाँ की जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ। इस आंदोलन की मुख्य माँगें थी-

1. बांग्लादेश से अवैध रूप से आए लोगों को वापस बांग्लादेश भेजा जाए।

2. यह भी मांग थी कि 1951 के बाद जितने भी लोग विदेश या देश के अन्य हिस्सों से असम आए हैं उन्हें वापस भेजा जाए।

3. असम में गैर कानूनी तौर पर दर्ज किए गए मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए जाएँ।

4 असम राज्य में गैर-असमी लोगों के दबदबे को समाप्त किया जाए और राज्य प्रशासन में असम के लोगों की भागीदारी होनी चाहिए।

शीघ्र ही यह आंदोलन सारे राज्य में फैल गया। वैसे तो यह आंदोलन शांतिपूर्ण ढंग से चलाया गया था परंतु इसमें हिंसक घटनाएँ भी हुई। आंदोलनकारियों ने असम के खनिज पदार्थों को राज्य से बाहर ले जाने में भी रुकावटें पैदा की। जानमाल का भी नुकसान हुआ। रेल-यातायात में भी रुकावट डालने की कोशिशें की गईं। आसू द्वारा चलाए गए आंदोलन को सभी दलों का समर्थन प्राप्त. था क्योंकि इस ने किसी एक दल के साथ अपने को नहीं जोड़ा था और आंदोलन पूरी तरह छात्रों के हाथों में था। राज्य सरकार तथा केंद्र सरकार ने आंदोलनकारियों के साथ कई बार बातचीत की परंतु कोई हल नहीं निकला। 1983 में केंद्र ने असम में विधानसभा चुनाव करवाने का निर्णय किया। छात्रों ने इसका विरोध किया परंतु सरकार ने सेना की मौजूदगी में जबरदस्ती चुनाव करवाए। परंतु उसमें बहुत ही कम संख्या में मत डले। कांग्रेस की सरकार तो बनी परंतु वह जनसमर्थन पर आधारित नहीं कही जा सकती थी। चुनावों के दौरान हिंसात्मक घटनाएँ घटीं और चुनावों के बाद स्थिति और अधिक विस्फोटक हुई तथा राज्य सरकार के लिए काम करना कठिन हो गया।

1985 में राजीव गांधी ने आंदोलनकारियों के साथ समझौता किया, जिसे असम समझौता कहा जाता है। इसमें कहा गया था कि

(1) जो लोग बांग्लादेश से बांग्लादेश-युद्ध, 1971 के दौरान और उसके बाद असम आए हैं उनकी पहचान की जाएगी और उन्हें वापस भेजा जाएगा, (2)असम में विधान सभा के नए चुनाव करवाए जाएंगे और सभी दल उसमें भागीदारी करेंगे, कोई उसका विरोध नहीं करेगा।

असम समझौते ने वहाँ की स्थिति को सामान्य बनाया। छात्र संगठन तथा कई दूसरे आंदोलनकारियों समूहों ने मिलकर एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल की स्थापना की जिसका नाम था असम गण परिषद। इस चुनाव में असम गण परिषद को भारी सफलता प्राप्त हुई और इसकी सरकार बनी। असम गण परिषद् के प्रधान थे एक छात्र नेता प्रफुल्ल कुमार मोहंती। वे मुख्यमंत्री बने। भारतीय राजनीति में यह पहला अवसर था जब कोई छात्र नेता विश्वविद्यालय से सीधा मुख्यमंत्री के पद पर पहुंचा। परंतु बाहरी लोगों के विरोध का मुद्दा पूरी तरह हल नहीं हुआ। यह असम में भी बना हुआ है और उत्तर-पूर्व के अन्य राज्यों में भी बना हुआ है। मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश में चकमा शरणार्थी बसे हुए हैं जो वहाँ के मूल निवासियों के लिए खतरा समझे जाते हैं। त्रिपुरा में बाहरी लोगों के कारण वहाँ के मूल निवासी अल्पसंख्यक बने हुए हैं।

8. हर क्षेत्रीय आंदोलन अलगाववादी माँग की तरफ अग्रसर नहीं होता। इस अध्याय से उदाहरण देकर इस तथ्य की व्याख्या कीजिए।

उत्तर प्रत्येक क्षेत्रीय आंदोलन अलगाववादी माँग की ओर अग्रसर नहीं होताः किसी भी समाज में क्षेत्रीय आकांक्षाओं का उभरना स्वाभाविक होता है और क्षेत्र के लोग उनकी पूर्ति की मांग करने लगते हैं। केन्द्रीय सरकार राष्ट्र के सभी क्षेत्रों का एक जैसा विकास नहीं कर सकती और सबको समान सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करवा सकती और सब क्षेत्रों की समस्याएँ भी समान नहीं होती। इसलिए लोकतान्त्रिक राष्ट्र में तो विशेष रूप से क्षेत्रीय माँगें उठती रहती हैं और क्षेत्रीय आंदोलन होते हैं। संघात्मक व्यवस्था में ये अधि क होते हैं। परंतु एकात्मक राज्य में भी तथा तानाशाही राज्य में भी इनका उभरना चलता रहता है। परंतु सभी क्षेत्रीय आंदोलन आगे चलकर अलगाववादी प्रकृति अपना लेते हैं. ऐसी बात नहीं। यदि क्षेत्रीय आंदोलनों को और आंरभ में ही ध्यान दे दिया जाए, बात-चीत के द्वारा क्षेत्रीय आकांक्षाओं तथा माँगों की पूर्ति के प्रयास किए जाएं तो क्षेत्रीय आंदोलन अधि कतर जल्दी ही समाप्त हो जाते हैं और स्थिति सामान्य होने लगती है। जब केन्द्रीय सरकार या सरकार क्षेत्रीय आंदोलन को बलपूर्वक दबाने का प्रयास करती है, आंदोलनकारियों की बात ही सुनने को तैयार नहीं होती तो वह आंदोलन दबने की बजाए ज्यादा तेज हो जाता है, हिंसात्मक हो जाता है, आंदोलनकारियों को अपने अस्तित्व का ही खतरा पैदा होने लगता है तो वह अलगाववादी बनने लगता है। क्षेत्रीय आंदोलन को कुचलने का प्रयास उसे अपनी मांगों की वृद्धि करने पर मजबूर करता है और क्षेत्र के लोगों का समर्थन अधिक मात्रा में प्राप्त होने लगता है तथा क्षेत्र के लोग अपने को राष्ट्र की मुख्य धारा से अलग करके अपना अलग राष्ट्र, अलग राज्य बनाने के प्रयास आरंभ कर देते हैं।

भारत में स्वतंत्रता के बाद उपजे विभिन्न क्षेत्रीय आंदोलन इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। उत्तर-पूर्व के राज्यों में उभरे सभी क्षेत्रीय आंदोलन अलगाववादी प्रकृति के नहीं हुए। असम का क्षेत्रीय आंदोलन अलगाववादी नहीं हुआ। आज पंजाब में अलगाववादी माँग नहीं है। जम्मू-कश्मीर में सभी समूह अलगाववादी नहीं है। वहाँ कई समूहों को पाकिस्तान द्वारा अलगाववादी नीति अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। दक्षिण भारत का क्षेत्रीय आंदोलन अलगाववादी नहीं हुआ। अधिकतर क्षेत्रीय आंदोलन क्षेत्रीय स्वायत्तता, नदी जल बँटवारे, किसी क्षेत्र को किसी दूसरे राज्य के साथ मिलाने, क्षेत्रीय विकास की माँग, क्षेत्रीय भाषा तथा संस्कृति के प्रश्न आदि के आधार पर खड़े होते हैं और सभी क्षेत्रीय आंदोलन अलगाववादी नहीं होते। क्षेत्रीय आंदोलन आपसी बातचीत तथा शीघ्रता से किया गया हल उसे हिंसात्मक तथा उग्रवादी नहीं होने देता।

9. भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से 'विविधता में एकता' के सिद्धांत की अभिव्यक्ति होती है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? तर्क दीजिए।

उत्तर क्षेत्रीय मांगों से 'विविधता में एकता' की अभिव्यक्ति (Manifestation of Unity in Diversity by Regional Demands)

: भारत एक बहुलवादी समाज है और कई प्रकार की विविधताओं वाला राष्ट्र है। ये विविधताएँ भाषा, धर्म क्षेत्र आदि के आधार पर बनी हुई हैं। इनके कारण क्षेत्रीय आकांक्षाएँ उभरती रहती हैं, बढ़ती रहती हैं। सभी क्षेत्रों की माँगें एक समान नहीं होती, कई बार वे एक-दूसरे की विरोधी भी होती हैं जैसे कि किसी नदी के जल के बँटवारे से संबंधित विवाद, किसी बड़े उद्योग को किस राज्य या क्षेत्र में लगाया जाए इस के संबंध में विवाद आदि। कभी अलगाववादी क्षेत्रीय मांग भी उभर आती है। परंतु इन विविधताओं के होते हुए भी राष्ट्रीय एकता बनी हुई है। अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की अलग पहचान है। भारत की एक अलग संस्कृति है जिसमें अहिंसा, विश्वशांति, विश्वबंधुत्व आदि प्रमुख विशेषताएँ हैं। भारत के अंदर बेशक कोई कहे कि वह पंजाबी है या बंगाली है. मराठी है या गुजराती है, भाषा के आधार पर राज्यों के निर्माण के लिए आंदोलन किए हैं, नदी जल बँटवारे को लेकर दो या तीन राज्यों के बीच संघर्ष हुए हैं, परंतु अब जब दो भारतीय अमेरिका या कनाड़ा, इंग्लैंड या पेरिस में एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं तो उनमें यह भावना सबसे पहले प्रकट होती है कि हम भारतीय हैं। विदेशों में सभी भारतीय एकजुट होकर भारतीय राष्ट्र का अंग होने और राष्ट्रीय सम्मान तथा हितों की रक्षा के लिए एकता का उदाहरण रखते हैं। भारत-पाक युद्धों के दौरान भारत के सभी दलों, सभी वर्गों, सभी क्षेत्रों के लोगों के लोगों ने राष्ट्रीय एकता का परिचय दिया और उसकी रक्षा के लिए सरकार को पूरा समर्थन दिया। जब 1962 में चीन ने नेफा (अब अरुणाचल प्रदेश) पर आक्रमण किया था तो गुजराती भी यह समझता था कि यह आक्रमण उस पर हुआ है, मद्रासी भी यही समझता था, उत्तर प्रदेश में रहने वाला नागरिक भी यही समझता था। अतः क्षेत्रीय मांगों से भारतीय राष्ट्र के विभाजन का अनुमान नहीं होता बल्कि विविधता में एकता का ज्ञान होता है।

10. नीचे लिखे अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:

हजारिका का एक गीत...एकत्ता की विजय पर है। पूर्वोत्तर के सात राज्यों को इस गीत में एक ही माँ की सात बेटियाँ

कहा गया है... मेघालय अपने रास्ते गई... अरुणाचल भी अलग हुई और मिजोरम असम के द्वार पर दूल्हे की तरह दूसरी बेटी से ब्याह रचाने को खड़ा है... इस गीत का अंत असमी लोगों की एकता को बनाए रखने के संकल्प के साथ होता है और इसमें समकालीन असम में मौजूद छोटी-छोटी कौमों को भी अपने साथ एकजुट रखने की बात कही गई है.

..करवी और मिजिंग भाई-बहन हमारे ही प्रियजन हैं।

--संजीब बरुआ

(क) लेखक यहाँ किस एकता की बात कह रहा है?

(ख) पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के अन्य राज्य क्यों बनाए गए?

(ग) क्या आपको लगता है कि भारत के सभी क्षेत्रों के ऊपर एकता की यही बात लागू हो सकती है? क्यों?

उत्तर (क) लेखक यहाँ देश की एकता, क्षेत्रीय, सांस्कृतिक विभिन्नता में एकता, पारस्परिक भाईचारा और पूर्वोत्तर के सात राज्यों के एक ही परिवार की सात पुत्रियों की एकता के माध्यम से एकता की विजय की बात करता है।

(ख) पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के अन्य राज्य निम्नलिखित कारणों से बनाए गए:

(i) आजादी के बाद असम ने माँ या बड़े भाई की भूमिका का निर्वाह नहीं किया। उसने गैर असमी लोगों पर असमी भाषा थोंप दी। इससे पूर्व के अन्य राज्यों में खिलाफत हुई, प्रदर्शन हुए. दंगे भड़के। जनजाति समुदाय के नेता असम से अलग होना चाहते थे। आखिरकार असम को बाँट कर मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश बनाए गए। त्रिपुरा और मणिपुर को भी राज्य का दर्जा दिया गया।

(ii) बोडो, करवी और दिमसा जैसे समुदायों ने अपने-अपने लिए अलग राज्य की माँग की, जन आंदोलन चलाए। इतने छोटे राज्य बनाए जाना संभव नहीं था। इस कारण करबी और दिमसा को जिला परिषद् के अंतर्गत स्वायत्तता दी गई जबकि बोडो जनजाति को हाल ही में स्वायत्त परिषद् का दर्जा दिया गया।

(ग) मैं समझता हूँ कि भारत के सभी क्षेत्रों के ऊपर एकता की यही बात लागू हो सकती है जिसकी ओर कवि हजारिका का गीत अथवा संजीब बरुआ का उद्धरण (कथन) हमारा ध्यान खींचता है।

(i) पहला तर्क यह है कि हमारा देश विभिन्नताओं वाला देश है। इन्हें बनाए रखना ही हमारे देश की सुंदरता, एकता, अखंडता और पहचान का आधार है।

(ii) क्षेत्रीय आकांक्षाएँ किसी देश की एकता के लिए खतरा नहीं हैं। उन्हें लेकर राजनीतिक दल या स्थानीय नेता या हित समूह या दबाव समूह कोई चर्चा करें तो घबराने की बात नहीं है। हमारा संविधान ऐसे लोगों द्वारा बनाया गया है जो अनुभवी, दूरदर्शी, राष्ट्रभक्त और महान् विद्वान थे। उन्होंने क्षेत्रीय विभिन्नताओं और आकांक्षाओं के लिए देश के संविधान में पर्याप्त प्रबंध और व्यवस्था की है।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

1. किस दशक को क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग के दशक के रूप में भी जाना जा सकता है?

उत्तर 1980 के दशक को।

2. देश में भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की माँग ने किन राज्यों में जन आंदोलन का रूप ले लिया?

उत्तर आध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात।

3. देश के किस हिस्से में हिन्दी को राजभाषा बनाने के खिलाफ आंदोलन हुआ?

उत्तर दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में खासकर तमिलनाडु में।

4. पंजाबी भाषी लोगों द्वारा अलग राज्य के गठन की मांग को लेकर कौन से राज्य बनाए गए?

उत्तर पंजाब और हरियाणा।

5. जम्मू एवं कश्मीर में शामिल राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र का नाम लिखें।

उत्तर जम्मू कश्मीर और लद्दाख।

6. लद्दाख में मुख्यतः किस धर्म के लोग रहते हैं?

उत्तर बौद्ध एवं मुस्लिम।

7. स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले जम्मू एवं कश्मीर का शासक कौन था?

उत्तर राजा हरि सिंह।

8. मार्च 1948 में जम्मू-कश्मीर राज्य का प्रधानमंत्री कौन बना?

उत्तर शेख अब्दुल्ला।

9. 'उत्तर हर दिन बढ़ता जाए, दक्षिण दिन-दिन घटता जाए' यह लोकप्रिय नारा किस आंदोलन का है?

उत्तर द्रविड़ आंदोलन

10. धारा 370 के तहत जम्मू एवं कश्मीर को किस प्रकार का विशेष दर्जा दिया गया है?

उत्तर धारा 370 के तहत जम्मू एवं कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक स्वायत्तता प्रदान की गई है।

11. भारतीय लोकतंत्र पर पृथकतावाद के कुप्रभावों को संक्षेप में लिखिए।

उत्तर भारतीय लोकतंत्र पर पृथकतावादी प्रवृत्तियों के काफी बुरे प्रभाव पड़े हैं-

(i) राष्ट्रीय एकता और अखंडता को खतराः पृथकतावाद देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करता है। क्षेत्रीय भावना आने पर क्षेत्र के लोग हिंसात्मक तथा विध्वंसात्मक गतिविधियों में लग जाते हैं। ऐसे समय लोग अपने को अलग करने के लिए विदेशी शक्तियों से सहायता लेने से भी नहीं हिचकिचाते।

(ii)स माज-विरोधी तत्वों को बढ़ावाः पृथकतावाद से समाज-विरोधी गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलता है। हिंसात्मक आंदोलनों और राजनीतिक अनिश्चितता के वातावरण में स्वार्थी तथा समाज-विरोधी तत्व अपना उल्लू सीधा करने में लग जाते हैं। सांप्रदायिक दंगे भी भड़का दिए जाते हैं और हर ओर अराजकता का माहौल दिखाई देने लगता है और कानून व्यवस्था और अधिक बिगड़ जाती है।

(iii) जीवन और संपत्ति की हानिः पृथकतावादी गतिविधियों से लोगों का जीवन और संपत्ति सुरक्षित नहीं रहते। कितने ही बेगुनाह व्यक्ति अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं और आंदोलनों में संपत्ति स्वाहा हो जाती है। आंदोलनकारी केवल सरकारी संपत्ति, सरकारी बसों और कारखानों को ही हानि नहीं पहुँचाते बल्कि आम लोगों की संपत्ति, कारें, स्कूटर, बिल्डिंग आदि को भी हानि पहुँचाते हैं। इन सबसे राष्ट्र को बहुत भारी आर्थिक हानि सहन करनी पड़ती है।

(iv) आर्थिक प्रगति को धक्काः पृथकतावादी प्रवृत्ति के वातावरण में राष्ट्र की आर्थिक प्रगति का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। जितने दिन कश्मीर और पंजाब में आतंकवादी वातावरण रहा, वहाँ लोगों का काम-धंधा व्यापार और उद्योग सब ठप्प हो गए।

उद्योपतियों ने दूसरे राज्यों में काम-धंधे शुरू कर दिए। व्यापार के लिए शांति और व्यवस्था का वातावरण चाहिए।

12. भारत के उत्तर-पूर्व के राज्यों अथवा क्षेत्रों में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की उत्पत्ति और विकास के कारणों की चर्चा कीजिए।

उत्तर भारत के उत्तर-पूर्व के राज्यों अथवा क्षेत्रों में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की उत्पत्ति और विकास के कई कारण उत्तरदायी रहे हैं जैसे-

(i) उत्तर-पूर्व के ये राज्य मुख्य राष्ट्र से कुछ अलग से रहे हैं। 22 मील लंबी एक पतली सी राहदारी इस क्षेत्र को शेष भारत से जोड़ती है। इस कारण ये क्षेत्र आरंभ से अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए है। विभाजन के कारण भारत और इन क्षेत्रों के बीच पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्ला देश) आ टपका जिससे ये भारत से अलग-थलग से पड़ गए।

(ii) इस क्षेत्र में अलग-अलग इलाकों में बहुत-सी आदिम जातियाँ या कबीले स्थित हैं और वे सभी अलग-अलग पहचान रखते रहे हैं। उनकी अलग पहचान उनकी भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाजों आदि के आधार पर रही है और आज भी है।

(iii) इन क्षेत्रों में आवागमन के साधनों तथा संचार के साधनों का पूरी तरह विकास नहीं हुआ और शेष भारत के लोग इन इलाकों में बहुत कम आते-जाते रहे हैं। इसका कारण यह । रहा है कि यहाँ आवागमन के साधन सुविधाजनक नहीं हैं और लोग इन इलाकों में आना-जाना सुरक्षित भी महसूस नहीं करते।

(iv) उत्तर-पूर्व के क्षेत्रों का विकास भी वैसा नहीं हुआ है जैसा कि देश के शेष भागों में हुआ है। वहाँ के लोगों का आरोप है कि केन्द्रीय सरकार ने इन क्षेत्रों के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया है। और वे सरकार की भेदभावपूर्ण नीति के शिकार रहे हैं, वे अपने को क्षेत्रीय असंतुलन से प्रभावित मानते हैं।

(v) इन क्षेत्रों में जब बाहरी लोगों अथवा दूसरे राज्यों से आकर उद्योगपतियों ने उद्योग लगाए और उनमें उच्च पदों पर दूसरे राज्य के लोगों की नियुक्ति हुई और इस क्षेत्र के लोगों को केवल छोटे कार्यों और छोटे पदों पर रखा गया तो इनमें यह भावना पैदा हुई कि बाहरी लोग इस क्षेत्र के संसाधनों का प्रयोग करके मालामाल हो रहे हैं और यहाँ के लोगों की दशा में विशेष सुधार नहीं होता तो इन्होंने बाहरी लोगों के आगमन का विरोध किया और उन्हें अपने क्षेत्रों से निकाले जाने के आंदोलन किए।

13. क्षेत्रीय आकांक्षाओं को राष्ट्रीय एकता तथा अखंडता में मजबूती लाने की भूमिका निभाने योग्य कोई पाँच कदमों का वर्णन कीजिए।

उत्तर निम्नलिखित कदम क्षेत्रीय आकांक्षाओं को राष्ट्रीय एकता तथा अखंडता में मजबूती लाने की भूमिका निभाने योग्य बनाने में बड़े प्रभावशाली साबित हो सकते हैं-

(i) क्षेत्रीय आकांक्षाएँ स्वाभाविक है और लोकतांत्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं: सभी नेताओं, शासकों तथा राजनीतिक दलों को यह सोचकर चलना चाहिए कि क्षेत्रीय आकांक्षाएँ स्वाभाविक है, प्रत्येक समाज में उभरती हैं और लोकतांत्रिक राजनीति का एक अभिन्न अंग है। लोकतंत्र बहुमत का शासन नहीं जनता का शासन है। लोकतंत्र में विचार अभिव्यक्ति की लोकतांत्रिक तरीकों से अभिव्यक्ति का अधिकार व स्वतंत्रता सबको मिलती है, बहुसंख्यक वर्ग तथा बड़े-बड़े क्षेत्रों को नहीं और राज्य का उद्देश्य सबके जीवन के विकास की प्राप्ति है कुछ लोगों के जीवन विकास की नहीं। जनमत का निर्माण सबकी इच्छाओं और आवश्यकताओं के मिलन से होता है। अत: क्षेत्रीय आकांक्षाओं का उभरना सामान्य रूप में लिया जाना चाहिए. गंभीर समस्या या राष्ट्रविरोधी समस्या के रूप में नहीं और उसका समाधान निकालने के उपाय किए जाने चाहिए। भारत एक विशाल जनसंख्या वाला तथा विभिन्नताओं वाला देश है। ये विभिन्नताएँ भी विभिन्न प्रकार की अतः यहाँ क्षेत्रीय आकांक्षाओं का उभरना, उनका आंदोलन का रूप लेना और कभी-कभी हिंसात्मक रूप लेना भारतीय समाज को लोकतांत्रिक विशेषता तथा क्षेत्रीय आकांक्षाओं की लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति के रूप में लिया आना आवश्यक है और उसी दृष्टिकोण को सामने रखते हुए उनका हल निकाला जाना भी आवश्यक है।

(ii) क्षेत्रीय आकांक्षाओं तथा मांगों का बातचीत द्वारा समाधान: लोकतंत्र में यह भी आवश्यक है कि क्षेत्रीय मांगों तथा आंदोलनों का समाधान आपसी बातचीन से हो। बल प्रयोग से किसी समस्या का समाधान नहीं होता, यहाँ तक कि सशस्त्र युद्ध से भी स्थायी शांति स्थापित नहीं होती। बल प्रयोग से दबाया गया आंदोलन कुछ समय के लिए ठंडा पड़ सकता है, स्थायी रूप से नहीं। समय आने पर परिस्थितियाँ अनुकूल होने पर आंदोलनकारी फिर से सर उठाने लगते हैं और पहले से अधिक हिसंक हो जाते हैं। प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस नीति का पालन किया था और कई समझौते किए और क्षेत्रीय समस्याओं को सुलझाया, कई में विरोध की तीव्रता कम हुई। पंजाब समस्या पर समझौता किया, असम समझौते से शाति का वातावरण बना। बातचीत के द्वारा मिजोरम की अलगाववादी आकांक्षा को भी सुलझा लिया गया।

(iii) केन्द्रीय शासन तथा नीतिनिर्माण में सभी क्षेत्रों की भागीदारी: संघीय शासन व्यवस्था केन्द्र और क्षेत्रों के बीच शक्तियों के बँटवारे पर टिकी होती है। परन्तु व्यावहारिक तथा वास्तविक रूप से संघीय निर्माण केन्द्र और क्षेत्रों के आपसी सहयोग पर टिका होता है। संघीय व्यवस्था में क्षेत्रों को क्षेत्रीय स्वायत्तता देना काफी नहीं होता, क्षेत्रों को यह भी महसूस होना चाहिए कि केन्द्रीय सरकार में भी उनकी भागीदारी है, वहाँ भी इस क्षेत्र के हितों की ओर ध्यान दिया जाता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सब वर्गों, हितों, समूहों की भागीदारी होती है, अल्पसंख्यकों की भी। इसी प्रकार संघीय व्यवस्था में केन्द्रीय शासन नीति-निर्माण तथा निर्णय-निर्माण में सभी क्षेत्रों की उचित भागीदारी का होना आवश्यक है। जब भी किसी क्षेत्र में यह भावना पनपने लगती है कि केन्द्रीय सरकार उसके हितों की अनदेखी करती है, उसके साथ भेदभाव करती है और अन्य क्षेत्रों कोअधिक महत्त्व देती है तो उसमें अलगाववादी आकांक्षा विकसित होने लगती है जो राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय अखंडता और कानून-व्यवस्था में भी बाधक बनती है। माँ-बाप भी जब एक बच्चे को दूसरे से अधिक महत्त्व देने लगते हैं या भेदभाव करने लगते हैं तो बच्चे में भी माँ-बाप के प्रति अलगाव की भावना विकसित होने लगती है।

(iv) सभी क्षेत्रों का संतुलित विकास केन्द्र को चाहिए कि वह ऐसी नीति अपनाए जिससे राष्ट्र के सभी वर्गों, सभी हितों, सभी क्षेत्रों का संतुलित विकास हो। जैसे माता-पिता अपने सभी बच्चों के विकास का प्रयत्न करते हैं, यदि कोई बच्चा मंदबुद्धि है तो उसकी शिक्षा तथा विकास के लिए विशेष कदम उठाते हैं, उसी प्रकार केन्द्र को उन क्षेत्रों के विकास पर भी पूरा ध्यान देना चाहिए जो पिछड़े हुए हैं, जहाँ भूमि उपजाऊ नहीं हैं, आने-जाने के साधन अच्छे नहीं हैं, पहाड़ी इलाके हैं, आदिवासी क्षेत्र हैं। यह ठीक है कि पहाड़ी क्षेत्रों, रेगिस्तानी इलाकों में उपज कम होती है, और वहाँ ऐसी खुशहाली होनी संभव नहीं जैसी कि मैदानी इलाकों और उपजाऊ भूमि वाले इलाकों में होती है परन्तु वहाँ ऐसे कदम अवश्य उठाए जा सकते हैं कि लोगों को दो समय का भोजन मिलने, जीवन की आवश्यक वस्तुएँ मिलने, आने-जाने के साधनों में विशेष कठिनाई नहीं हो। सभी क्षेत्रों के लोगों को यह महसूस होना चाहिए कि केन्द्र उनके विकास के लिए भी प्रयासरत है, उनकी अनदेखी नहीं कर रहा है। क्षेत्रीय असंतुलन और राष्ट्र का असंतुलित विकास क्षेत्रीय आकांक्षाओं को उग्रवादी तथा अलगाववादी रूप प्रदान करते हैं। जब सभी क्षेत्रों का विकास होता है तो एक क्षेत्र के लोग दूसरे क्षेत्रों में जाकर क्यों बसेंगे और बाहरी लोगों के विरुद्ध आंदोलन नहीं होंगे।

(v) सहयोगी संघवाद की भावनाः केन्द्र तथा राज्यों को सहयोगी संघवाद की भावना अपनानी चाहिए। इसका अर्थ है कि संघ तथा राज्यों के बीच शक्तियों के बँटवारे से यह नतीजा नहीं निकलना चाहिए कि दोनों अलग-अलग हैं। जिस प्रकार कहा जाता है कि सहयोग जीवन का आधार है उसी प्रकार यह भी सत्य है कि केन्द्र और राज्यों अथवा क्षेत्रों के बीच सहयोग को भावना का होना और सहयोग से काम करना संघीय व्यवस्था की सफलता का आधार है। इसके लिए अधिक जिम्मेवारी  केन्द्र की है, केन्द्र में सत्तासीन दलों की है। स्वतंत्रता के बाद से ही और विशेषकर 1967 के चुनावों के बाद को भारत की राजनीति इस बात को समर्थक है कि केन्द्र ने संघवाद के आदर्शों का पालन नहीं किया और राज्यों को अपनी स्वायत्तता का प्रयोग नहीं करने दिया। केन्द्र ने जब किसी राज्य में दूसरे दल की सरकार बनी तो उसे गिराने का प्रयत्न किया, अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया और यह कोशिश की कि राज्यों में भी उसी दल की सरकार हो। जब किसी राज्य में केन्द्र में सत्तासीन दल की सरकार होती है तब भी केन्द्र ने उस क्षेत्र के लोगों और नेताओं को अपनी इच्छानुसार मुख्यमंत्री चुनने और शासन चलाने की व्यावहारिक स्वायत्तता नहीं दी और अपनी इच्छा से मुख्यमंत्री बनाए तथा राज्य शासन में हस्तक्षेप किया। इस कारण से भी क्षेत्रीय आकांक्षाएँ उभरी हैं, केन्द्र विरोधी आंदोलन हुए हैं और क्षेत्रीय दल बने हैं तथा लोकप्रिय हुए हैं। आज क्षेत्रील दल राष्ट्रीय राजनीति पर हावी हैं, राष्ट्रीय दल नहीं।

बहुविकल्पीय प्रश्न

सही उत्तर पर ( ) का चिन्ह लगाइए-

1. देश में भाषा के आधार पर निम्न में से किस राज्य के गठन की मांग की गई थी?

(क) आंध्र प्रदेश

(ख) कर्नाटक

(ग) महाराष्ट्र

(घ) उपरोक्त सभी

2. हिन्दी को राजभाषा बनाने के खिलाफ निम्न में से किस राज्य में विरोध आंदोलन चला?

(क) तमिलनाडु

(ख) पंजाब

(ग) हरियाणा

(घ) गुजरात

3. पंजाबी भाषी लोगों ने अपने लिए अलग राज्य बनाने की मांग कब प्रारंभ की?

(क) 1960 के दशक में (ख) 1950 के दशक में (ग) 1970 के दशक में (घ) 1980 के दशक में

4. पंजाब और हरियाणा राज्यों का गठन कब हुआ?

(क) 1950 में

(ख) 1947 में

(ग) 1966 में

(घ) 1977 में

5. जम्मू एवं कश्मीर में निम्न में से कौन-सा क्षेत्र शामिल है?

(क) जम्मू

(ख) कश्मीर

(ग) लद्दाख

(घ) उपरोक्त सभी

6. कश्मीर में अधिकतर किस धर्म के लोग रहते हैं?

(क) मुस्लिम

(ख) हिन्दू

(ग) सिख

(घ) बौद्ध

7. जम्मू क्षेत्र में निम्न में से किस धर्म और भाषा के लोग रहते हैं?

(क) हिन्दू

(ख) मुस्लिम

(ग) सिख

(घ) उपरोक्त सभी

8. शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर राज्य का प्रधानमंत्री कब बनाया गया?

(क) मार्च 1948

(ख) अक्टूबर 1947

(ग) मार्च 1947

(घ) मार्च 1974

9. संविधान की किस धारा के तहत कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया है?

(क) धारा 370

(ख) धारा 372 

(ग) धारा 374

(घ) धारा 380

10. पूर्वोत्तर क्षेत्र में कितने राज्य हैं?

(क) पाँच

(ख) दो

(ग) सात

(घ) दस

उत्तर  1.(घ) 2.(क) 3.(ख) 4.(ग) 5.(घ) 6.(क) 7.(घ)  8.(क)  9.(क) 10.(ग) 


एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति - II