NCERT Solutions Class 12 समकालीन विश्व राजनीति Chapter-1 शीत युद्ध का दौर

NCERT Solutions Class 12 समकालीन विश्व राजनीति Chapter-1 शीत युद्ध का दौर 

NCERT Solutions Class 12  समकालीन विश्व राजनीति  12 वीं कक्षा से Chapter 1  शीत युद्ध का दौर  के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी समकालीन विश्व राजनीति  के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 12 समकालीन विश्व राजनीति Chapter-1 शीत युद्ध का दौर


कक्षा 12

प्रश्नावली ( उत्तर सहित) Chapter-1

1. शीतयुद्ध के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?

(क) यह संयुक्त राज्य अमरीका, सोवियत संघ और उनके साथी देशों के बीच की एक प्रतिस्पर्धा थी?

(ख) यह महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर एक युद्ध था।

(ग) शीतयुद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की।

(घ) अमरीका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।

उत्तर (घ) अमरीका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।

2. निम्न में से कौन-सा कथन गुट-निरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश नहीं डालता?

(क) उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतंत्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना।

(ख) किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इंकार करना।

(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।

(घ) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केंद्रित करना।

उत्तर (ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।

3. नीचे महाशक्तियों द्वारा बनाए सैन्य संगठनों की विशेषता बताने वाले कुछ कथन दिए गए हैं। प्रत्येक कथन के सामने सही या ग़लत का चिह्न लगाएँ।

(क) गठबंधन के सदस्य देशों को अपने भू-क्षेत्र में महाशक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना ज़रूरी था।

(ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों स्तरों पर महाशक्ति का समर्थन करना था।

(ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक सदस्य-देश पर आक्रमण करता था तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था।

(घ) महाशक्तियाँ सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थीं।

उत्तर (क) सही 

(ख) सही

(ग) सही

(घ) गणना

4. नीचे कुछ देशों की एक सूची दी गई है। प्रत्येक के सामने लिखें कि वह शीतयुद्ध के दौरान किस गुट से जुड़ा था?

(क) पोलैंड

(ख) फ्रांस

(ग) जापान

(घ) नाइजीरिया

(ड) उत्तरी कोरिया

(च) श्रीलंका

उत्तर (क) पोलैंड-सोवियत संघ के साम्यवादी गुट में।      (ख) फ्रांस-संयुक्त राष्ट्र अमरीका के पूंजीवादी गुट में।

(ग) जापान-संयुक्त राष्ट्र अमरीका के पूँजीवादी गुट में।     (घ) नाइजीरिया-गुटनिरपेक्ष में

(ड) उत्तरी कोरिया-सोवियत संघ के साम्यवादी गुट में।     (च) श्रीलंका-गुटनिरपेक्ष में।

5. प्रीतयुद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियंत्रण - ये दोनों ही प्रक्रियाएँ पैदा हुई। इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थे?

उत्तर शीतयुद्ध के कारण हथियारों की होड़ : दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरूआत हो गई थी। अमरीका ने जापान के खिलाफ दो परमाणु बमों का प्रयोग किया। अमरीका द्वारा परमाणु बमों के अविष्कार ने अमरिका में इस भावना का विकास किया कि अब वह विश्व की सबसे बड़ी शक्ति है। परंतु अमरिका की परमाणु शक्ति ने सोवियत संघ को शांत रहने की बजाए उसे भी परमाणु बम बनाने के लिए प्रेरित किया और उसने भी जल्द ही इसे बनाने में सफलता पाई। अब ये दोनों महाशक्तियाँ परमाणु बम संपन्न हो चुके थे। दोनों महाशक्तियों ने अपने परीक्षणों को और तेज किया तथा अधिक से अधिक विनाशकारी हथियार बनाने और परमाणु परीक्षण करने आरंभ कर दिए। इसने दुनिया के भिन्न-भिन देशों में भय, आतंक और असुरक्षा की भावना पैदा की और विश्व का वातावरण तनावपूर्ण होता गया। छोटे-छोटे राष्ट्रों ने भी इन महाशक्तियों से नए-नए तथा घातक हथियार लेने आरंभ कर दिए और अपनी सेनाओं को उनसे सुसज्जित करने का प्रयास किया। दोनों महाशक्तियाँ अपने गठबंधन के सदस्यों को सैनिक हथियारों से युक्त करने लगी कि जाने कब इनका प्रयोग करना पड़े। शीतयुद्ध के दौरान कई ऐसे अवसर आए जबकि दोनों शक्तियों के बीच सशस्त्र युद्ध हो सकता था और ऐसे समय हथियारों का प्रयोग किया जा सकता था। इस प्रकार हथियारों की होड़ उस प्रक्रिया को कहा जाता है जिसमें छोटे-बड़े सभी राष्ट्र अपनी सुरक्षा हेतु नए-नए तथा विध्वंसकारी हथियार बनाने और उसका जखीरा करने में लगे हुए थे महाशक्तियों की स्पर्धा के साथ-साथ कई क्षेत्रों में भी बहुत से देश अपने पड़ोसी देशों के साथ स्पर्धा में लीन थे और अपने को पड़ोसी देश से अधिक अच्छे तथा विनाशकारी हथियारों से सुसज्जित करना चाहते थे। कोई भी देश यह नहीं चाहता था कि उसके पास सैनिक शक्ति कम मात्रा में हो क्योंकि विश्व की राजनीति में किसी देश की स्थिति का माप-तोल उसकी सैनिक शक्वि के आधार पर भी किया जाता रहा है। इस प्रकार शीतयुद्ध के कारण हथियारों की होड़ शुरू हो गई थी।

शीतयुद्ध के कारण हथियारों पर नियंत्रण : शीतयुद्ध ने विश्व के नेताओं को नि:शस्त्रीकरण के लिए भी प्रेरित किया। बेशक दोनों ही गुट नए-नए विध्वंसकारी हथियार बनाने और अणु परीक्षण करने पर जोर देते थे और अपने सहयोगी देशों को अधिक-से-अधिक सैनिक सहायता देते थे तो भी वे जानते थे कि यदि युद्ध छिड़ गया तो उसके बड़े भयंकर परिणाम निकलेंगे। दोनों ही गुट युद्ध में अपनी जीत के लिए आश्वस्त नहीं थे। यह भी जानते थे कि यदि कभी धमकी देने और अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने में ही किसी अणु बम का विस्फोट हो गया तो इससे समस्त मानव जाति के लिए बुरे परिणाम निकलेंगे। दोनों ही गुट बातचीत के दौरान संयम बरतते थे। कभी एक गुट संयम का प्रयोग करके पीछे हट जाता था तो कभी दूसरा. वे यह भी जानते थे कि संयम की भी सीमा होती है और यदि कभी कोई इस सीमा से बाहर निकल गया और युद्ध हो गया तो दोनों गुट ही धराशायी होंगे। अतः सभी नेताओं को विश्वास था कि विश्वशांति की स्थापना और विकास हथियारों की दौड़ नहीं, हथियारों पर नियंत्रण करने से संभव है/ हथियारों के आवश्यकता से अधिक निर्माण और उनके रखने, अंधाधुंध तरीके से अणु परीक्षण करने पर जब तक नियंत्रण नहीं लगता विश्व में स्थाई शांति और सुरक्षा की प्राप्ति नहीं हो सकती। दोनों ही गुट लगातार इस बात को समझते थे कि कोई भी पक्ष दूसरे के हथियारों की विश्व और उनकी क्षमता के बारे में गलत अनुमान लगा सकता है, दोनों एक-दूसरे की मंशा को समझने में भूल कर सकते हैं। यह भी संभावना थी कि किसी भी समय परमाणु दुर्घटना हो सकती है, परमाणु परीक्षण के दौरान गलती हो सकती है, हथियारों की खेप असामाजिक तत्वों के हाथों लग सकती है तो ऐसी स्थिति में भी विनाश का होना निश्चित है।

इस प्रकार शीत युद्ध के कारण, 1960 के दशक के उत्तरार्ध में हथियारों पर नियंत्रण लगाए जाने की प्रक्रिया आरंभ हुई यह प्रक्रिया कोई एकतरफा नहीं थी बल्कि दोनों ही गुट इस नियंत्रण के इच्छुक थे। एक दशक के अंदर ही, निशस्त्रीकरण से संबंधित तीन महत्त्वपूर्ण सम्झौते हुए। वैसे तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1946 में एक अणुशक्ति आयोग स्थापित किया था और 1947 में अमरीका तथा सोवियत संघ के प्रस्तावों के आधार पर परंपरागत शस्त्र आयोग भी स्थापित किया था और 1952 में इन दोनों आयोगों के स्थान पर निःशस्त्रीकरण आयोग स्थापित किया था/परंतु 1963 तक इस संबंध में कोई विशेष कदम नहीं उठाया गया था।/निःशस्त्रीकरण के संबंध में 1963 में अमरीका, सोवियत संघ और ब्रिटेन के बीच एक परमाणु प्रतिबंध संधि हुई थी। 

6.(इस प्रकार शीतयुद्ध ने निःशस्त्रीकरण अथवा हथियारों पर नियंत्रण लगाए जाने की प्रक्रिया को भी प्रोत्साहित किया।।

उत्तर महाशक्तिमा छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन रखती थी। इसके तीन कारण निम्नलिखित हैं-

1 ये छोटे-छोटे देश महत्वपूर्ण संसाधनों, जैसे-तेल और खनिज, की प्राप्ति के स्रोत थे।

2 महाशक्तियाँ यहाँ से अपने हथियारों और सेना का आसानी से संचालन कर सकते थे।

3. आर्थिक सहायता जिसमें गठबंधन में शामिल छोटे-छोटे देश सैन्य खर्च वहन करने में मददगार हो सकते थे।

7. कभी कभी कहा जाता है कि शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई संबंध नहीं था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण दें।

उत्तर मैं हैं के संघर्ष था। कुछ विद्वानों का तो मानना है कि पश्चिमों गुट लोकतंत्र, उदारवाद और पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का समर्थक था जबकि सोवियत संघ गुट जनवादी लोकतनं अथवा साम्यवादी दल की तानाशाही, लोकतांत्रिक केंद्रवाद तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था का समर्थक था। सोवियत संघ संपूर्ण विश्व में साम्यवाद का प्रसार करना चाहता था जबकि पश्चिमी गुट उसके प्रसार को रोकना चाहता था तथा विश्व में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को स्थापित करना चाहता था। इस प्रकार शीत युद्ध दो विचार-धाराओं के बीच टकराव और संघर्प था।

परंतु विचारधाराओं के टकराव के पीछे की वास्तविक स्थिति यह थी कि दोनों ही महाशक्तियाँ अपने वर्चस्व को स्थापित करना चाहती थी दूसरे विश्व युद्ध से पहले अमरीका को विश्व की राजनीति में महाशक्ति नहीं माना जाता था बल्कि ब्रिटेन को यह स्थिति प्राप्त थी. फ्रांस को भी महत्वपूर्ण शक्ति माना जाता था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमरीका और सोवियत संघ महाशक्तियों के रूप में उभरकर आए। उसके बाद इन दोनों में प्रथम स्थान की प्राप्ति के लिए संघर्ष आरंभ हो गया। यदि विचारधाराओं के संघर्ष को आधार माना जाए तो दूसरे विश्व युद्ध में सोवियत संघ को मित्र राष्ट्रों को सम्मिलित किए जाने का प्रश्न ही पैदा न होता और जर्मनी द्वारा रूस पर आक्रमण को पश्चिमी देशों द्वारा वैसे ही दृष्टिगोचर किया जाता। परंतु सोवियत संघ साम्यवादी विचारधारा वाला होते हुए भी मित्र राष्ट्रों में सम्मिलित था और सक्रिय सहयोगी था। इतिहास इस बात का साक्षी है कि विश्व राजनीति में प्रत्येक देश अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए ही अपने संबंध स्थापित करता है और विदेश नीति का संचालन करता है. केवल विचारधारा के आधार पर नहीं। प्रत्येक राष्ट्र अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है। इसका एक उदाहरण-1971 के भारत-पाक युद्ध के समय की घटना है। इस युद्ध में संयुक्त राज्य अमरीका ने पाकिस्तान की सहायता हेतु तथा भारत को चेतावनी देने के तौर पर अपना जंगी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में लेकर खड़ा कर दिया। क्या अमरीका की विचारधारा पाकिस्तान की शासन व्यवस्था से मेल खाती थी। भारत सोवियत गुट का भी सदस्य नहीं था। भारत के लिए बड़े संकट की घड़ी थी। इस समय सोवियत संघ ने भारत की सहायता की और अमरीका को चेतावनी देते हुए अपना जंगी बेड़ा अमरिकी बेड़े के पीछे ला खड़ा किया। अमरीका को चुप रहना पड़ा। क्या भारत की विचारधारा साम्यवादी प्रणाली से मेल खाती थी वास्तव में दानों महाशक्तियाँ हर क्षेत्र में और हर कदम पर एक-दूसरे को परास्त करके अपनी शक्ति का प्रदर्शन करती थीं और स्वयं को संसार में प्रथम स्थान पर स्थापित करना चाहती थीं। इस प्रकार शीतयुद्ध शक्ति के लिए संघर्ष था।/

8. शीतयुद्ध के दौरान भारत की अमरीका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी? क्या आप मानते हैं कि इस

उत्तर भारत ने आरंभ से ही गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनी विदेश नीति का एक आधारभूत तत्व माना और इसी के तहत उसने संयुक्त राज्य अमरीका तथा सोवियत संघ दोनों के साथ ही मित्रता के संबंध बनाए रखने की नीति अपनाई। भारत दोनों में से किसी भी सैनिक गठबंधन में शामिल नहीं हुआ और अपने को दोनों से तटस्थ रखा। भारत ने मुद्दों के आधार पर दोनों देशों . की गतिविधियों को प्रशंसा या आलोचना की, किसी गुटबंदी या पक्षपात के आधार पर नहीं।

शीतयुद्ध के दौरान भारत द्वारा अपनाई गई तटस्थता की नीति के लाग – भारत द्वारा अपनाई गई तटस्थता की नीति ने भारत के हितों को निश्चित रूप से आगे बढ़ाया। निम्नलिखित तथ्यों से इस बात की पुष्टि होती है-

(1) भारत दोनों शक्तियों से मैत्री संबंध रखने के कारण दोनों ही देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त कर सका और अपने सामाजिक आर्थिक विकास की ओर ध्यान दे सका।

(ii) दोनों महाशक्तियों से मित्रता होने के कारण उसे शीतयुद्ध के कारण किसी भी शक्ति संगठन से या उसके किसी सदस्य से किसी शत्रुता तथा आक्रमण की चिन्ता न रही। युद्ध के भय की चिन्ता से मुक्त होकर वह अपने सामाजिक-आर्थिक विकास की ओर अधिक ध्यान दे सका।

(iii) भारत अपनी विदेश नीति का निर्माण तथा संचालन स्वतंत्रापूर्वक बिना किसी बाह्य दबाव के करना चाहता था। इस उद्देश्य की प्राप्ति किसी सैनिक संगठन गठबंधन में सम्मिलित हुए बिना ही हो सकती थी। यदि वह किसी गुटं में सम्मिलित होता तो उसे उसका पिछलग्गू बनना पड़ता और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में स्वतंत्र निर्णय लेने और स्वतंत्रतापूर्वक भागीदारी नहीं कर पाता।

(iv) गुट-निरपेक्षता की नीति के कारण भारत दोनों ही गुटों के द्वार सद्भावना की दृष्टि से देखा जाने लगा और इसने कई देशों के आपसी विवादों में मध्यस्थ की भूमिका निभाई।

(७) स्वतंत्रता की प्राप्ति के समय भारत की सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक दशा बड़ी शोचनीय थी और उसे गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी, अस्त-व्यस्त अर्थव्यवस्था, भुखमरी, कृषि का पिछड़ापन, उद्योगों की कनी आदि की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। इस समय उसकी प्राथमिकता अपने सामाजिक-विकास की थी। इसमें इस नीति ने बड़ी सहायता की।

(vi) भारत उस समय एक पिछड़ा हुआ राष्ट्र था। किसी भी गुट से वह समानता के आधार पर आचरण करने की स्थिति में न होता बल्कि उस गुट के एक साधारण सदस्य की भूमिका निभाता और उसकी स्थिति गौण ही रहती।

(vit) भारत ने जो विकास तथा प्रगति की है, तकनीक में जो प्रसिद्धि प्राप्त की है उसमें उसकी स्वतंत्र विदेश नीति का भी काफी योगदान है।

(vii) भारत एक महान देश है और उसमें नेतृत्व की क्षमता भी है। दोनों गुटों से अलग रहकर ही वह इस प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकता था जो उसने गुट-निरपेक्ष आंदोलन की स्थापना तथा विकास में भूमिका निभाकर किया। आज भारत की गुट-निरपेक्ष देशों में सम्मानजनक स्थिति है और वह उसके संस्थापकों तथा नेताओं में से एक है।

9. गुट-निरपेक्ष आंदोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा। जब शीतयुद्ध अपने शिखर पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुँचाई?

उत्तर जव शीतयुद्ध अपने शिखर पर था तब गुटनिरपेक्ष आंदोलन के विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में काफी मदद पहुँचाई। शीतयुद्ध के कारण विश्व दो प्रतिद्वंद्वी गुटों में बँट गया था। इसी संदर्भ में गुटनिरपेक्षता ने एशिया. अफ्रीका और लातिनी अमरीका के नव-स्वतंत्र देशों को एक तीसरा विकल्प दिया। यह विकल्प था-दोनों महाशक्तियों के गुटों से अलग रहने का। गुटनिरपेक्ष आंदोलन को जड़ में यूगोस्लाविया के जोसेफ ब्रोंज टीटो, भारत के जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के गमाल अब्दुलं नासिर को दोस्ती थी इन तीनों ने सन् 1956 में एक सफल बैठक की। इंडोनेशिया के सुकणों और घाना के वामे एनक्र्मा ने इनका जोरदार समर्थन किया। ये पाँच नेता गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक बने। प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन सन् 1961 में बेलग्रेड में हुआ।

यह सम्मेलन कम-से-कम तीन बातों की परिणति था-

(1) धर्म पाँचों संस्थापक देशों के बीच सहयोग,

(2) प्रतियुद्ध के प्रसार और इसके बढ़ते हुए दायरे को रोकना,

(3) नव-स्वतंदेशों को निर्गुट आंदोलन में शामिल करना।

जैसे जैसे गुटनिरपेक्ष आदोलन एक लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में बढ़ता गया वैसे-वैसे इसमें विभिन्न राजनीतिक प्रणाली और अलग अलग हितों के देश शामिल होते गए। इससे गुटनिरपेक्ष आंदोलन के मूल स्वरूप में बदलाव आया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन महाशक्तियों के गुटों में शामिल न होने का आंदोलन है/ महाशक्तियों के गुटों से अलग रहने की इस नीति का आशय यह नहीं है कि इस आंदोलन से संबंधित देश द्वारा अपने को अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अलग-थलग रखा जाता है या तटस्थता का पालन किया जाता है। गुटनिरपेक्षता का अर्थ पृथकतावाद नहीं है। पृथकतावाद का अर्थ होता है अपने को अंतर्राष्ट्रीय मामलों से अलग रखना। 1787 में अमरीका में स्वतंत्रता की लड़ाई हुई थी। इसके बाद से पहले विश्व युद्ध की शुरुआत तक अमरीका ने अपने को अंतर्राष्ट्रीय मामलों से पृथक रखा। उसने पृथकतावाद की विदेश-नीति अपनाई थी। इसके उलट गुटनिरपेक्ष देशों ने जिसमें भारत भी सम्मिलित है, शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रतिद्वंदी गुटों के बीच मध्यस्थता में सक्रिय भूमिका निभाई। गुटनिरपेक्ष देशों की ताकत की जड़ उनकी आपसी एकता और महाशक्तियों द्वारा अपने-अपने खेमे में शामिल करने को पुरजोर कोशिशों के बावजूद ऐसे किसी खेमे में शामिल न होने के उनके संकल्प में है।

गुटनिरपेक्षता का अर्थ तटस्थता का धर्म निभाना भी नहीं है। तटस्थता का अर्थ होता है मुख्यतः युद्ध में शामिल न होने की नीति का पालन करना। तटस्थता की नीति का पालन करने वाले देश के लिए यह जरूरी नहीं कि वह युद्ध को समाप्त करने में मदद करे। ऐसे देश युद्ध में संलग्न नहीं होते और न ही युद्ध के सही-गलत के बारे में उनका कोई पक्ष होता है। दरअसल कई कारणों से गुटनिरपेक्ष देश, जिसमें भारत भी शामिल है, युद्ध में भी शामिल हुए हैं। इन देशों ने दूसरे देशों के बीच युद्ध को होने से टालने के लिए काम किया है और हो रहे युद्ध के अंत के लिए प्रयास किए हैं।

10.गुट-निरपेक्ष आंदोलन अब अप्रासंगिक हो गया है। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें।

उत्तर गुटनिरपेक्ष आन्दोलन आज भी प्रासंगिक है। बल्कि वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद से विश्व एक ध्रुवीय बन गया है। न ने सुझाव दिया कि गुटबंदी समाप्त होने की वजह से गुट निरपेक्ष आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य पूरा हो गया है। अत: अब गुट निरपेक्ष आंदोलन को जो-77 के समूह में शामिल हो जाना चाहिए। फरवरी, 1992 के पहले सप्ताह में गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों का सम्मेलन निकोसिया में हुआ जिसमें बदली परिस्थितियों में इस आंदोलन की भावी भूमिका पर विचार हुआ। 1992 में इंडोनेशिया में दसवें शिखर सम्मेलन में अधिकतर सदस्यों ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को जारी रखने पर जोर दिया और इसके उद्देश्य में परिवर्तन करने को कहा। निम्नलिखित कारणों से गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता आज भी है।

(i) गुटनिरपेक्ष आंदोलन अमरीका, यूरोप तथा जापान जैसे पूँजीवादी देशों से उनकी रक्षा के लिए आवश्यक है।

(ii) नवोदित राष्ट्रों का संगठन होने के कारण इसकी प्रासंगिकता आज भी है। इन राष्ट्रों का आर्थिक और राजनीतिक विकास भी "परस्पर सहयोग पर निर्भर है।

(iii)-गुटनिरपेक्ष आंदोलन के माध्यम से निशस्त्रीकरण की आवाज उठाई जा रही है जो गुटनिरपेक्ष देशों को सुरक्षा प्रदान करती है।

(iv) अधिकतर गुट निरपेक्ष देश विकासशील या अविकसित हैं। सभी की आर्थिक समस्याएँ समान हैं। अतः आपसी सहयोग से ही आर्थिक उन्नति की जा सकती है।

(v) पांमान महाशकिा अमरीका के प्रभाव से मुक्त रहने के लिए निर्गुट राष्ट्रों का आपसी सहयोग और भी अधिक आवश्यक है।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1 शीतयुद्ध क्या था?

उत्तर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ, अमरीका के बाद दूसरी बड़ी ताकत बनकर उभरा। हालाँकि युद्ध के दौरान सोवियत संघ, अमरीका और ब्रिटेन, तीनों ने मिलकर फासीवादी ताकतों को हराया था. परंतु युद्ध के बाद उनमें टकराव और तनाव उभरने लगे संबंध बिगड़ने लगे। इसी टकराव एवं तनावपूर्ण स्थिति को शीतयुद्ध के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 2 शीतयुद्ध विचारधारा के स्तर पर भी एक वास्तविक संघर्ष था, कैसे?

उत्तर विचारधारा का संघर्ष इस चीज को लेकर था कि पूरी दुनिया में राजनीतिक आर्थिक तथा सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का सबसे बेहतर सिद्धान्त कौन-सा है। पश्चिमी गटबंधन का नेतृत्व अमरीका कर रहा था और यह समूह उदारवादी लोकतंत्र तथा पूंजीवाद का समर्थक था। पूर्वी गठबंधन का नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था और इस समूह की प्रतिबद्धता समाजवाद तथा साम्यवाद को लेकर थी।

प्रश्न 3 मित्र-गाष्ट्रों को नेतृत्व कौन कर रहा था?

उत्तर मित्र-राष्ट्रों का नेतृत्व अमरीका, सोवियत संघ, ब्रिटेन और फ्रांस कर रहे थे।

प्रश्न 4 1945 में अमरीका द्वारा जापान के किन शहरों पर परमाणु बम गिराया गया था?

उत्तर हिरोशिमा और नागासाकी पर।

प्रश्न 5 नाटो की स्थापना कब हुई थी?

उत्तर अप्रैल 1949 में।

प्रश्न 6 वारसा संधि की स्थापना कब हुई थी और इसका मुख्य काम क्या था?

उत्तर वारसा संधि 1955 में हुई और इसका मुख्य काम नाटो में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करना था।

प्रश्न 7 मार्शल प्लान क्या था?

उत्तर मार्शल प्लान पश्चिमी यूरोप के पुनर्निमाण में अमरीका की सहायता को कहा जाता है।

प्रश्न 8 पहला गुटनिरपेक्ष सम्मेलन कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर पहला गुटनिरपेक्ष सम्मेलन 1961 में बेलग्रेड में हुआ था।

प्रश्न 9 सुकर्णो कहाँ के नेता थे?

उत्तर वे इंडोनेशिया के प्रथम राष्ट्रपति थे।

प्रश्न 10 गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के तौर पर शीतयुद्ध के दौरान भारत ने किन दो स्तरों पर अपनी भूमिका निभाई?

उत्तर (i) एक स्तर पर भारत ने सजग और सचेत रूप से अपने को दोनों महाशक्तियों के गुटों से पृथक रखा।

(ii) भारत ने उपनिवेशों के चंगुल से मुक्त हुए नव-स्वतंत्र देशों के महाशक्तियों के खेमे में जाने का जोरदार विरोध किया।

प्रश्न11 शीतयुद्ध के किन्हीं पांच प्रमुख लक्षणों को लिखिए।

उत्तर शीतयुद्ध के पांच प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं:-

(1) शीतयुद्ध अमरीका और सोवियत संघ नामक दो महाशक्तियों के बीच वर्चस्व की प्राप्ति का संघर्ष था।

(ii) शीतयुद्ध के दौरान विश्व दो गुटों में बंटा हुआ था-अमरिकन गुट या पाश्चमी गुट तथा सोवियत संघ गुट या साम्यवादी गुट अमरिकन गुट मुख्य रूप से उदारवादी लोकतंत्र तथा पूँजीवाद का समर्थक था जबकि सोवियत साम्यवादी गुट समाजवादी अर्थव्यवस्था तथा साम्यवादी दल की तानाशाही का समर्थक था। परंतु यह आवश्यक नहीं था कि गुट का प्रत्यक सहयोगी राष्ट्र उस गुट से संबंधित विचारधारा से सहमत हो और उस पर चलने वाला हो। इससे स्पष्ट है कि यह दो सिद्धांतों के बीच संघर्ष नहीं था।

(iii) दोनों महाशक्तियों ने अपने सैनिक संगठन बनाए हुए थे जो अपने गुट के सदस्य देश की रक्षा का आश्वासन देते थे।

(iv) शीतयुद्ध में दोनों महाशक्तियाँ एशिया, अफ्रीका और दक्षिणी अमरीका के नव स्वतंत्र राष्ट्रों को अपने गुट में सम्मिलित करने के लिए निरंतर प्रयास करती रहती थीं और इन देशों को अपनी सुरक्षा तथा सामाजिक आर्थिक विकास के लिए सैनिक सहायता वित्तीय सहायता, ऋण तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सहायता का लालच देती रहती थीं।

(v) शीतयुद्ध में प्रचार का महत्त्व था, यह वाक्युद्ध था। दोनों महाशक्तियाँ व्यापक प्रचार, गुप्तचरी, सैनिक हस्तक्षेप, सैनिक संधि यों तथा प्रादेशिक संगठनों की स्थापना आदि के द्वारा अपनी स्थिति को मजबूत बनाने में लगी रहती थी।

प्रश्न 12 गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सार तत्व की व्याख्या कीजिए।

उत्तर गुटनिरपेक्ष आंदोलन का सार तत्व निम्नलिखित है:

(i) गुटनिरपेक्ष आंदोलन का सार तत्व साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद का विरोध करना है। यदि विश्व में साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का अन्त हुआ है तो उसका श्रेय गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को जाता है। इस आंदोलन से नव-उपनिवेशवाद को क्षति पहुँची है।

(ii) गुटनिरपेक्ष आंदोलन के कारण नीति-भेद, रंगभेद. नस्ल-भेद और शयोनिज्म (स्वयं को अन्य से श्रेष्ठ मानने की प्रवृत्ति) आदि को भी हानि हुई है। गुटनिरपेक्ष देशों में इन अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के विरुद्ध समय-रागय पर आवाज उठाई गयी है।

(iii) युद्धों को टालने तथा विश्व में शांति, सुरक्षा स्थापित करने में भी गुटनिरपेक्षता की सराहनीय भूमिका रही है। गुटनिरपेक्षता के कारण ही आक्रमणकारी नीतियों को क्षति पहुँची है।

(iv) गुटनिरपेक्ष आंदोलनों ने अपने भिन्न-भिन्न मंचों पर विदेशी आक्रमण, कब्जे, आधिपत्य के साथ-साथ बड़ी-बड़ी शक्तियों के हस्तक्षेप व उनमें गुटबन्दी की भी निन्दा की है।

प्रश्न 13 महाशक्तियों को छोटे देशों के साथ सैनिक गुट बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी?

उत्तर प्रायः अनेक लोग यह प्रश्न करते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद महाशक्तियों ने छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन क्यों बनाए रखा? उन्हें ऐसा करने की क्या आवश्यकता थी? दोनों ही महाशक्तियां अपने परमाणु हधियारों और अपनी स्थायी सेना के कारण इतनी ताकतवर थीं कि एशिया तथा अफ्रीका और यहाँ तक कि यूरोप के अधिकांश छोटे देशों की साझी शक्ति का भी उनसे कोई मुकाबला नहीं था। परन्तु छोटे देश कई कारणों से महाशक्तियों के लिए बड़े ही थे। सर्वप्रथम तो छोटे देश महत्त्वपूर्ण संसाधनों (जैसे तेल और खनिज) की प्राप्ति के स्त्रोत थे। दूसरा कारण भू-क्षेत्र था जिससे यहाँ से महाशक्तियाँ अपने हथियार और सेना का संचालन कर सकें। तीसरा कारण सैनिक ठिकाना या जहाँ से महाशक्तियाँ एक-दूसरे की जासूसी कर सकती थीं और चौथा कारण आर्थिक सहायता था जिसमें गठबंधन में शामिल बहुत से छोटे छोटे देश सैन्य-खर्च वहन करने में मददगार हो सकते थे। ये ऐसे कारण थे जो छोटे देशों को महाशक्तियों के लिए आवश्यक बना देते थे। इसके अतिरिक्त विचारधारा के कारण भी ये देश महत्वपूर्ण थे। गुटों के शामिल देशों की निष्ठा से यह संकेत मिलता था कि महाशक्तियाँ विचारों का पारस्परिक युद्ध भी जीत रही हैं। गुट में शामिल हो रहे देशों के आधार पर वे सोच सकती थीं कि उदारवादी लोकतंत्र और पूँजीवाद, समाजवाद और साम्यवाद से कहीं बेहतर है अथवा समाजवाद और साम्यवाद, उदारवादी लोकतंत्र और पूँजीवाद की अपेक्षा बेहतर है।

प्रश्न14 गुट-निरपेक्षता और तटस्थता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर जब भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति को अपनाया एवं स्वयं को गुट निरपेक्ष बताया तो अमरीका आदि राष्ट्रों ने इसे तटस्थता की नीति कहा। कुछ राजनीतिज्ञों ने इसे अवसरवादी नीति का भी नाम दिया। परंतु गुट-निरपेक्षता तटस्थता नहीं है। 1960 में जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र संघ के संवाददाताओं को स्पष्ट करते हुए कहा था कि गुट-निरपेक्षता का यह अर्थ नहीं कि अंतर्राष्ट्रीय मामलों से हमारा कुछ लेना-देना नहीं है और हम उनके बारे में चुप्पी साधे रहेंगे। बल्कि गुट-निरपेक्षता का अर्थ है कि हम न किसी सैनिक गठबंधन में सम्मिलित होंगे और न ही किसी गुटबंदी में भागीदारी करेंगे। हम प्रत्येक मामले पर अंधाधुंध, बिना सोचे किसी एक गुट का साथ देने की अपेक्षा खुले मन से उस पर विचार करेंगे, उसके अच्छे-बुरे परिणामों - को ध्यान में रखकर अपने विचार प्रकट करेंगे। गुट-निरपेक्षता और तटस्थता में निम्नलिखित प्रमुख अंतर हैं-

(i) 'तटस्थता' शब्द का प्रयोग केवल युद्ध की स्थिति में होता है जबकि 'गुट-निरपेक्षता' का प्रयोग मुख्य रूप से शांति के समय में और युद्ध के समय ही होता है।

(ii) 'तटस्थता' शब्द का प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय कानून में होता है जबकि 'गुट-निरपेक्षता' का प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में किया जाता है।

(ii) 'तटस्थता' युद्ध में भाग नहीं लेने की शर्त से संबंध रखती है, जबकि 'गुट-निरपेक्षता' समझौतों, शक्ति गुटों के बीच संघर्षों के तनाव में भाग न लेने से संबंध रखती है।

(iv) तटस्थता' नकारात्मक है। तटस्थ देश युद्ध में लिप्त किसी भी पक्ष का समर्थन या आलोचना नहीं करता, बल्कि चुपचाप देखता है। परंतु 'गुट निरपेक्षता' सकारात्मक है और गुट निरपेक्ष देश आक्रमणकारी या अत्याचारी देश के विरुद्ध आवाज उठाता है और अच्छे कार्यो के लिये उसी देश की प्रशंसा भी कर सकता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

सही उत्तर पर (√ ) का चिन्ह लगाइए-

प्रश्न 1 1962 में किस देश ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी?

(क) अमरीका

(ख) सोवियत संघ

(ग) भारत

(घ) फ्रांस

प्रश्न 2 शीतयुद्ध का चरम बिन्दु क्या था?

(क) क्यूबा मिसाइल संकट 

(ख) प्रथम विश्व युद्ध 

(ग) द्वितीय विश्व युद्ध

(घ) इनमें से कोई नहीं।

प्रश्न 3: निम्नलिखित में कौन गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक देश नहीं है?

(क) भारत

(ख) इंडोनेशिया

(ग) म्यांमार

(घ) मिस्र

प्रश्न 4 नाटो की स्थापना कब हुई थी?

(क) 1949

(ख) 1950

(ग) 1951

(घ) 1948

प्रश्न 5 'बे ऑफ पिग्स' आक्रमण किस देश के विरूद्ध किया गया था?

(क) क्यूबा

(ख) फ्रांस

(ग) जर्मनी

(घ) इटली

प्रश्न 6 बलिन की दीवार को कब गिराया गया था?

(क) 1985

(ख) 1989

(ग) 1991

(घ) 1994

प्रश्न 7 सोवियत संघ का विघटन किस वर्ष हुआ?

(क) 1985

(ख) 1989

(ग) 1990

(घ) 1991

प्रश्न 8 प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन कहाँ हुआ था?

(क) न्यूयार्क

(ख) मास्को

(ग) बेलग्रेड

(घ) मैंचेस्टर

प्रश्न 9 वामे एनक्रूमा कहाँ के नेता थे?

(क) क्यूबा

(ख) मित्र

(ग) इंडोनेशिया'

(घ) घाना

प्रश्न10 किस वर्ष बर्लिन की दीवार खड़ी की गई थी?

(क) 1961

(ख) 1962

(ग) 1967

(घ) 1970

उत्तर :1.(ख)     2.(क)     3.(ग)    4.(क)    5.(क)   6.(ख)    7.(घ)    8.(ग)    9.(घ)  10.(क)  


 एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 समकालीन विश्व राजनीत