NCERT Solutions Class 12 समकालीन विश्व राजनीति Chapter- 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

NCERT Solutions Class 12 समकालीन विश्व राजनीति Chapter- 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन 

NCERT Solutions Class 12  समकालीन विश्व राजनीति  12 वीं कक्षा से Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन    के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी समकालीन विश्व राजनीति  के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 12 समकालीन विश्व राजनीति Chapter- 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन


कक्षा 12

Chapter-8

प्रश्नावली ( उत्तर सहित)

1. पर्यावरण के प्रति बढ़ते सरोकारों का क्या कारण है? निम्नलिखित में सबसे बेहतर विकल्प चुनें।

(क) विकसित देश प्रकृति की रक्षा को लेकर चिंतित हैं।

(ख) पर्यावरण की सुरक्षा मूलवासी लोगों और प्राकृतिक पर्यावासों के लिए जरूरी है।

(ग) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान ख़तरे की हद तक पहुँच गया

(घ) इनमें से कोई नहीं।

उत्तर (ग) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान खतरे को हद तक पहुंच गया है।

2. निम्नलिखित कथनों में प्रत्येक के आगे सही या गलत का चिह्न लगायें। ये कथन पृथ्वी-सम्मेलन के बारे में हैं -

(क) इसमें 170 देश, हजारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भाग लिया।

(ख) यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्वावधान में हुआ।

(ग) वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों ने पहली बार राजनीतिक धरातल पर ठोस आकार ग्रहण किया।

(घ) यह महासम्मेलनी बैठक थी।

उत्तर (क) सही, (ख) सही, (ग) सही, (घ) गलत

3. "विश्व की साझी विरासत' के बारे में निम्नलिखित में कौन-से कथन सही हैं?

(क) धरती का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष को "विश्व की सांझी विरासत' माना जाता है।

(ख) 'विश्व की सांझी विरासत' किसी राज्य के संप्रभु क्षेत्राधिकार में नहीं आते।

(ग) “विश्व की सांझी विरासत' के प्रबंधन के सवाल पर उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच मतभेद है।

(घ) उत्तरी गोलार्ध के देश 'विश्व की सांझी विरासत' को बचाने के लिए दक्षिणी गोलार्ध के देशों से कहीं ज्यादा चिंतित हैं।

उत्तर (क) सही

(ख) सही,

(ग) सहो,

(घ) गलत

4. रियो सम्मेलन के क्या परिणाम हुए?

उत्तर रियो सम्मेलन अथवा धरती सम्मेलन के परिणामः रियो सम्मेलन 1992 में ब्राजील के नगर रियो डी जिनेरियो में हुआ था। इसमें धरती पर फैलने वाले प्रदूषण अथवा पर्यावरण को प्रदूपित करने वाले कारकों और उनको रोकने के उपायों पर विस्तार से चर्चा हुई। इसमें 170 देशों ने भाग लिया था। सम्मेलन के मुख्य परिणाम निम्नलिखित थे-

(i) इस सम्मेलन में यह निश्चय किया गया कि पर्यावरण के संरक्षण को समस्या बड़ी गम्भीर है और विश्वव्यापी है तथा इसका निदान भी तुरंत किया जाना आवश्यक है।

(ii) इसमें यह दृष्टिकोण स्वीकार किया गया कि पर्यावरण को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी सभी देशों की साझी है। इसे रोकने का उत्तरदायित्व केवल विकसित देशों का नहीं।

(iii) यह निश्चित हुभा कि विकास की प्रक्रिया के लिए कुछ तौर तरीके, कुछ नियम निश्चित किए जाएँ और विकसित देशों को अपनी विकास गतिविधियों पर रोक लगानी चाहिए क्योंकि उन्होंने विकसित देश की स्थिति प्राप्त कर ली है।

(iv) यह भी निश्चित किया गया कि विकासशील देशों को ऐसे तौर-तरीके अपनाने चाहिएँ जिनसे टिकाऊ विकास (Sustainable development) की प्राप्ति हो। टिकाऊ विकास से अभिप्राय ऐसा विकास है जिसके कारण पर्यावरण तथा प्राकृतिक साधनों को ऐसी शति न पहुँचे कि वह इस सन्तति तथा आने वाली संतानों के लिए संकट पैदा करें। अत: इसमें टिकाऊ विकास कीधारणा पर जोर दिया गया।

(v) इस सम्मेलन ने पर्यावरण के संरक्षण के लिए सभी देशों की साझी जिम्मेवारी परंतु अलग-अलग भूमिका के सिद्धांत को अपनाया। यह स्वीकार किया गया कि इस संधि को स्वीकार करने वाले देश पर्यावरण के संरक्षण में अपनी क्षमता के आधार पर योगदान करेंगे।

5. "विश्व की साझी विरासत' का क्या अर्थ है? इसका दोहन और प्रदूषण कैसे होता है?

उत्तर विश्व की साझी विरासत का अर्थः उन संसाधनों को जिन पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार होता है, उसे सांझी संपदा कहा जाता है। यह सांझा चूल्हा, सांझा चरागाह, साझा मैदान, साँझा कुआँ या नदी कुछ भी हो सकता है। इसी तरह विश्व के कुछ हिस्से और क्षेत्र किसी एक देश के संप्रभु क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं। इसीलिए उनका प्रबंधन साझे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाता है। इन्हें 'वैश्विक संपदा' या 'मानवता की सांझी विरासत' कहा जाता है। इसमें पृथ्वी का वायुमोडल, अंटार्कटिका, समुद्री सराइ और बाहरी अंतरिक्ष शामिल हैं। दोहन और प्रदूषण वैश्विक संपदा' को सुरक्षा के सवाल पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कायम करना टेढ़ी खीर है। इस दिशा में कुछ महत्त्वपूर्ण समझौते जैसे अंटार्कटिका संधि (1959), माट्रियल न्यायाचार अथवा प्रोटोकॉल (1987) और अंटार्कटिक पर्यावरणीय न्यायाचार अथवा प्रोटोकॉल (1991) हो चुके हैं। पारिस्थितिकी से जुड़े इर मसले के साथ एक बड़ी समस्या यह जुड़ी है कि अपुष्ट वैज्ञानिक साक्ष्यों और समय-सीमा को लेकर नतभेद पैदा होते हैं। ऐसे में एक सर्व-सामान्य पर्यावरणीय एजेंडे पर सहमति कायम करना मुश्किल होता है। इस अर्थ में 1980 के दशक के मध्य में अंटार्कटिक के ऊपर ओजोन परत में छेद की खोज एक आँख खोल देने वाली घटना है।

टीक इसी तरह वैश्विक संपदा के रूप में बाहरी अंतरिक्ष के इतिहास से भी पता चलता है कि इस क्षेत्र के प्रबंधन पर उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के बीच मौजूद असमानता का असर पड़ा है। धरती के वायुमंडल और समुद्री सतह के समान यहाँ भी महत्त्वपूर्ण मसला प्रौद्योगिकी और औद्योगिक विकास का है। यह एक ज़रूरी बात है क्योंकि बाहरी अंतरिक्ष में जो दोहन कार्य  रहे हैं उनके फायदे न तो मौजूद पीढ़ी में सबके लिए बराबर हैं और न आगे की पीढ़ियों के लिए।

6. “साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ' से क्या अभिप्राय है? हम इस विचार को कैसे लागू कर सकते हैं?

उत्तर साझी जिम्मेदारी लेकिन अलग-अलग भूमिकाएँः 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो स्थान पर पर्यावरण संबंधी समस्याओं पर विचार करने और उनका समाधान ढूँढ़ने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ जिसे धरती सम्मेलन (Earth Summit) कहा जाता है। इसमें 170 देशों ने भाग लिया जो इस बात का सबूत है कि पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने की समस्या बड़ी गंभीर है और विश्व के देश भी इस पर गंभीरता से विचार करते हैं। इस सम्मेलन में पर्यावरण की रक्षा संबंधी उपायों पर विचार करते समय दो विचार उभर कर आए। संसार के उत्तरी गोलार्ध के देश जो मुख्य रूप से विकसित देशों की श्रेणी में आते थे उन्होंने विचार प्रकट किया कि पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए सारे संसार की जिम्मेदारी है और इसके उपायों में सभी देशो को समान रूप से भूमिका निभानी चाहिए। इसके लिए विकास कार्यों पर कुछ प्रतिबंध लगाना आवश्यक था। यूरोप के विकसित देश चाहते थे कि क्योंकि पर्यावरण सारे संसार की साझी संपदा है अत: उसकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व हम सब पर है और इसमें सबको समान रूप से भागीदारी करनी चाहिए। इसके लिए सब देशों पर विकास प्रक्रिया संबंधित जो प्रतिबंध लगाए जाएं वे समान रूप से सब पर लागू हों। दक्षिणी गोलार्ध के देशों ने अपना दृष्टिकोण इसके विपरीत प्रकट किया। इस ओर मुख्य रूप से तीसरी दुनिया के विकासशील देश थे जिनमें भारत भी सम्मिलित है। इसका कहना था कि विकसित देशों ने विकास प्रक्रिया के दौरान पर्यावरण को प्रदूषित किया है। अत: इसके लिए विकसित देश ही जिम्मेदार हैं। पर्यावरण को क्षति विकसित देशों में पहुँचाई है इसलिए उन्हें ही इसके लिए उत्तरदायी ठहराया जाए और इसकी क्षतिपूर्ति भी उन्हें ही करनी चाहिए। विकासशील देशों में तो विकास प्रक्रिया अच्छी तरह आरंभ भी नहीं हुई है। उन्हें पर्यावरण प्रदूषण के लिए जिम्मेवार नहीं माना जा सकता और न ही उन पर किसी प्रकार का प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। पर्यावरण के संरक्षण को ध्यान में रखकर जो भी प्रतिबंध लगाए जाएँ उन पर निर्णय करने से पहले विकासशील देशों की सामाजिक-आर्थिक विकास की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है। अंत में यह निर्णय लिया गया कि पर्यावरण की रक्षा की जिम्मेदारी सब देशों की साझी है कंचल विकसित देशों की नहीं परंतु उसके बचाव के प्रयासों में सभी देशों की अलग-अलग भूमिका होगी और विकास प्रक्रिया के जो भी तौर-तरीके निश्चित किए जायेंगे, विकासशील देशों की आवश्यकताओं को देखते हुए उन्हें उनमें छुट दी जाएगी।

"साझी जिगोदारी परंतु भूमिका अलग-अलग" के सिद्धांत को भी वास्तव में राज्यों के आपसी सहयोग से ही लागू किया जा सकता है। जब विकसित और विकासशील देश दृढ़ सकंल्प कर लें उन्होंने ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं अपनानी जिससे पर्यावरण दूषित हो तभी इसकी सुरक्षा हो सकती है। यदि विकासशील देश भी संसाधनों का वरहमी से प्रयोग करके प्रकृति का दोहन करके विकास करें तो भी पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। अत: पर्यावरण प्रदूषण को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग ही रोक सकता है।

7. वैश्विक पर्याव की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे 1990 के दशक से विभिन देशों के प्राथमिक सरोकार क्यों बन गए हैं?

उत्तर (i) पर्यावरण से जुड़े सरोकारों का लंबा इतिहास है लेकिन आर्थिक विकास के कारण पर्यावरण पर होने वाले असर की चिंता\ ने 1960 के दशक के बाद से राजनीतिक चरित्र ग्रहण किया। वैश्विक मामलों से सराकार रखने वाले एक विद्वत् समूह 'क्लब ऑफ रोम' में 1972 में 'लिमिट्स टू ग्रोथ' शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित को। यह पुस्तक दुनिया की बढ़ती जनसंख्या के आलोक में प्राकृतिक संसाधनों के विनाश के अंदेशे को बड़ी खूबी से बताती है।

(ii) दुनिया भर में कृषि योग्य भूमि में अब कोई बढ़ोत्तरी नहीं हो रही जबकि मौजूदा उपजाऊ जमीन के एक बड़े हिस्से की उर्वरता कम हो रही है।

(iii) चरागाहों के चारे खत्म होने को हैं। मत्स्य-भंडार घट रहा है।

(iv) जलाशयों की जलराशि बड़ी तेजी से कम हुई है। उसमें प्रदूषण बढ़ा है। इससे खाद्य उत्पादन में कमी आ रही है।

(v) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) सहित अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं पर सम्मेलन करायं और इस विषय पर अध्ययन को बढ़ावा देना शुरू किया। इस प्रयास का उद्देश्य पर्यावरण की समस्याओं पर ज्यादा कारगर और सुलझी हुई पहलकदमियों की शुरुआत करना था। तभी से पर्यावरण वैश्विक राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण मसला बन गया।

8. पृथ्वी को बचाने के लिए जरूरी है कि विभिन्न देश सुलह और सहकार की नीति अपनाएँ। पर्यावरण के सवाल पर उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच जारी वार्ताओं की रोशनी में इस कथन की पुष्टि करें।

उत्तर पृथ्वी को बचाने के लिए विभिन्न देश सुलह और सहकार को नीति अपनाएँ क्योंकि पृथ्वी का संबंध किसी एक देश से नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व और मानव जाति से है पर्यावरण के प्रश्न पर उत्तरी गोलार्द्ध के देश यानि विकसित देश, दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों यानि विकासशील देशों को बरायर के हिस्सा बनाना चाहते हैं। यद्यपि कुछ समय के लिए विश्व के तीन बड़े विकासशील देशों जिनमें चीन, ब्राजील और भारत भी शामिल हैं, को इस उत्तरदायित्व से छूट दे दी गई और उनके तर्क को मान लिया गया है कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामलों में मुख्यत वे देश जिम्मेदार हैं जिनके यहाँ औद्योगीकरण हो गया है। 2005 के जून महीने में ग्रुप-आठ देशों की बैठक हुई। इस बैठक में भारत ने याद दिलाया कि विकासशील देशों को प्रति व्यक्ति ग्रीन हाउस गैस की उत्सर्जन दर विकसित देशों की तुलना में नाममात्र है। सांझी परंतु, अलग-अलग जिम्मेदारों के सिद्धान्त के अनुरुप भारत का विचार है कि उत्सर्जन दर में कमी करने को सबसे अधिक जिम्मेदारी विकसित देशों की है क्योंकि इन देशों ने एक लंबी अवधि से बहुत अधिक उत्सर्जन किया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु परिवर्तन से संबंधित बुनियादी नियमाचार (UNFCCC) के अनुरुप भारत पर्यावरण से जुड़े अंतर्राष्ट्रीय मसलों में अधिकतर ऐतिहासिक उत्तरदायित्व का तर्क रखना है। इस तर्क के अनुसार ग्रीन गैसों के रिसाव की ऐतिहासिक और मौजूदा जबावदेही ज्यादातर विकसित देशों की है। इसमें जोर देकर कहा गया है कि विकासशील देशों की पहली और अपरिहार्य प्राथमिकता आर्थिक एवं सामाजिक विकास की है।

हाल में संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार (UNFCCC) के अंतर्गत चर्चा चली कि तेजी से औद्योगिक होते देश (जैसे, ब्राजील, चीन और भारत) नियमाचार की बाध्यताओं का पालन करते हुए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करे। भारत इस बात के खिलाफ है। उसका मानना है कि यह बात इस नियमाचार की मूल भावना के खिलाफ है। जो भी हो, सभी देशों को आपसी सुलह और समझ कायम करके अपने ग्रह पृथ्वी को बचाना है। सदस्यों में मतभेद हों परंतु पृथ्वी तथा उसके वायुमंडल को बचाने के लिए एकजुट होने के प्रयास करने ही होंगे।

9. विभिन्न देशों के सामने सबसे गंभीर चुनौती वैश्विक पर्यावरण को आगे कोई नुकसान पहुँचाए बगैर आर्थिक विकास करने की है। यह कैसे हो सकता है? कुछ उदाहरणों के साथ समझाएँ।

उत्तर पर्यावरण हानि की चुनौतियों से निबटने के लिए सरकारों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो पेशकदमी की है हम उसके बारे में जान चुके हैं लेकिन इन चुनौतियों के मद्देनजर कुछ महत्त्वपूर्ण पेशकदमियाँ सरकारों की तरफ से नहीं बल्कि विश्व के विभिन्न भागों में सक्रिय पर्यावरण के प्रति सचेत कार्यकर्ताओं ने की हैं। इन कार्यकर्ताओं में कुछ तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और अधिकांश स्थानीय स्तर पर सक्रिय हैं।

पर्यावरण आन्दोलनः आज पूरे विश्व में पर्यावरण आंदोलन सबसे ज्यादा जीवंत, विविधतापूर्ण तथा ताकतवर सामाजिक आदोलनों में शुमार किए जाते हैं। सामाजिक चेतना के दायरे में ही राजनीतिक कार्यवाही के नये रूप जन्म लेते हैं, उन्हें खोजा जाता है। इन आंदोलनों से नए विचार निकलते हैं। इन आंदोलनों में हमें दृष्टि दी है कि वैयक्तिक और सामूहिक जीवन के लिए आगे के दिनों में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। यहाँ कुछ उदाहरणों की चर्चा की जा रही है जिससे पता चलता है कि मौजूदा पर्यावरण आंदोलनों की एक मुख्य विशेषता उनकी विविधता है।

पर्यावरण संरक्षण एवं विभिन्न देश

(i) दक्षिणी देशों मसलन मैक्सिको, चिली, ब्राजील, मलेशिया, इंडोनेशिया, महादेशीय अफ्रीका और भारत के बन आंदोलनों पर बहुत दबाव है। तीन दशकों से पर्यावरण को लेकर सक्रियता का दौर जारी है। इसके बावजूद तीसरी दुनिया के विभिन्न देशों में वनों की कटाई खतरनाक गति से जारी है। पिछले दशक में विश्व के बचे-खुचे विशालतम वनों का विनाश बढ़ा है।

(ii) खनिज-उद्योग पृथ्वी पर मौजूद सबसे प्रभावशाली उद्योगों में से एक है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में उदारीकरण के कारण दक्षिणी गोलार्द्ध के अनेक देशों की अर्थव्यवस्था बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए खुल चुकी है। खनिज उद्योग धरती के भीतर मौजूद संसाध नों को बाहर निकालता है, रसायनों का भरपूर उपयोग करता है; भूमि और जलमार्गों को प्रदूषित करता है। स्थानीय वनस्पतियों का विनाश करता है और इसके कारण जन-समुदायों को विस्थापित होना पड़ता है। कई बातों के साथ इन कारणों से विश्व के विभिन्न भागों में खनिज-उद्योग की आलोचना और विरोध हुआ है।

उदाहरण

(i) फिलीपिन्स एक अच्छी मिसाल है जहाँ कई समूहों और संगठनों ने एक साथ मिलकर एक ऑस्ट्रेलियाई बहुराष्ट्रीय कंपनी 'वेस्टर्न माइनिंग कारपोरेशन' के खिलाफ अभियान चलाया। इस कंपनी का विरोध खुद इसके स्वदेश यानी ऑस्ट्रेलिया में हुआ। इस विरोध के पोछे परमाण्विक शक्ति के मुखालफत की भावनाएँ काम कर रही हैं। ऑस्ट्रेलिया में इस कंपनी का विरोध आस्ट्रेलियाई आदिवासियों के बुनियादी अधिकारों की पैरोकारी के कारण भी किया जा रहा है।

(ii) कुछ आंदोलन बड़े बाँधों के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। अब बाँध विरोधी आंदोलन को नदियों को बचाने के आंदोलनों के रूप में देखने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है क्योंकि ऐसे आंदोलन में नदियों और नदी-घाटियों के ज्यादा टिकाऊ तथा न्यायसंगत प्रबंध न की बात उठायी जाती है। सन् 1980 के दशक के शुरुआती और मध्यवर्ती वर्षों में विश्व का पहला बाँध-विरोधी आंदोलन दक्षिणी गोलार्द्ध में चला। आस्ट्रेलिया में चला यह आंदोलन फ्रैंकलिन नदी तथा इसके परिवर्ती वन को बचाने का आंदोलन था। यह वन और विजनपन की पैरोकारी करने वाला आंदोलन तो था ही, बाँध-विरोधी आंदोलन भी था।

(iii) फिलहान दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में तुर्की से लेकर थाईलैंड और दक्षिण अफ्रीका तक तथा इंडोनेशिया से लेकर चीन तक बड़े बाँधों को बनाने की होड़ लगी है। भारत में बाँध-विरोधी और नदी-हितैषी कुछ अग्रणी आदोलन चल रहे हैं। इन आंदोलनों में नर्मदा आंदोलन सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। यह बात ध्यान देने की है कि भारत में बाँध विरोधी तथा पर्यावरण-बचाव के अन्य आंदोलन एक अर्थ में समानधर्मी हैं क्योंकि ये अहिंसा पर आधारित हैं।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1 'पर्यावरण' से आपका क्या तात्पर्य है?.

उत्तर पर्यावरण से तात्पर्य आस-पास की परिस्थिति या परिवेश जिसमें मनुष्य रहता है और वस्तुएँ मिलती हैं तथा उनका विकास होता है। पर्यावरण में प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों प्रकार के तत्वों का समावेश होता है।

प्रश्न 2 विश्व की सांझी विरासत से क्या तात्पर्य है?

उत्तर वह प्राकृतिक प्रदेश या भू-भाग अथवा संपदा जिन पर सारी मानव जाति या विश्व का अधिकार हो। उदाहरण के लिए अंटार्कटिका और पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्र, बाह्य अंतरिक्ष आदि।

प्रश्न 3. पृथ्वी सम्मेलन कब हुआ था?

उत्तर 1992 में।

प्रश्न 4. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति से जुड़े तीन मसलों को लिखिए।

उत्तर (i) जंगल के प्रश्न पर राजनीति,

(ii) पानी के प्रश्न पर राजनीति,

(iii) वायुमंडलीय मसले पर राजनीति।

प्रश्न 5 अंटार्कटिका की दो प्रभावशाली प्राकृतिक उपलब्धियों को लिखिए।

उत्तर (i) विश्व के निर्जन क्षेत्र का 26 प्रतिशत भाग अर्थात लगभग एक करोड़ 40 लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र,

(ii) धरती पर विद्यमान स्वच्छ जल का 70 प्रतिशत भाग यहीं मौजूद है।

प्रश्न 6 रियो सम्मेलन की सिफारिशों को किस नाम से जाना जाता है?

उत्तर रियो सम्मेलन की सिफारिशों को 'एजेंडा-21' के नाम से जाना जाता है। यह सम्मेलन 1992 में संयुक्त राष्ट संघ के पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केंद्रित होते हुए ब्राजील के रियो-डी-जनेरियो में हुआ था।

प्रश्न 7 भारत और चीन को क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से छूट क्यों दी गई है?

उत्तर भारत और चीन को क्योटो प्रोटोकॉल को बाध्यताओं से इसलिए छूट दी गई क्योंकि औद्योगीकरण के दौर में ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन के गागले में इनका कुछ खास योगदान नहीं था। औद्योगीकरण के दौर को मौजूदा (वर्तमान) वैश्विक तापवृद्धि और जलवायु परिवर्तन का जिम्मेदार माना जाता है।

प्रश्न 8 'साझी विरासत' किसे कहते हैं? इसके कोई दो उदाहरण दीजिए।

उत्तर साझी विरासत का अभिप्राय : विश्व के कुछ हिस्से और क्षेत्र जिन पर किसी एक देश का सम्प्रभु क्षेत्राधिकार नहीं है।

IL उदाहरण : (i) पृथ्वी का वायुमंडल, (ii) अंटार्कटिका महाद्वीप

प्रश्न 9 भारत में वन संपदा एवं वृक्षों के हितों में चलाए जा रहे आंदोलन का क्या नाम है?

उत्तर चिपको आंदोलना

प्रश्न10 मूलवासियों की प्रमुख माँगें क्या हैं? संक्षेप में समझाइए।

उत्तर मूलवासियों की प्रमुख माँग निम्नलिखित हैं-

(i) अपनी-अपनी सरकारों से इन की मांग है कि इन्हें राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत मूलवासी कौम के रूप में मान्यता प्रदान की जाए।

(ii) उनकी यह भी मांग है कि उन्हें अन्य जातियों तथा वर्गों के साथ समानता का दर्जा प्रदान किया जाए।

(iii) मूल वासियों का कहना है कि सरकार उन्हें अपनी अलग पहचान बनाए रखने वाले वर्ग के रूप में मान्यता दे और उन्हें अपनी संस्कृति, अपने रीति-रिवाजों को बनाए रखने तथा उनकी सुरक्षा के अधिकार दे।

(iv) मूलवासियों का कहना है कि वे अपने देश में, अपने स्थान पर अनन्त काल से रहते आए हैं और उस स्थान पर इनका अधिकार माना जाना चाहिए अर्थात् उन्हें इस स्थान का स्वामी और उस स्थान के उत्पाद पर उनका अधिकार माना जाना चाहिए। सरकार उनकी भूमि को अधिगृहित करने और उन्हें विस्थापित करने का कार्य न करे।

(v) उनको यह भी मांग है कि विकास और नगरीकरण के नाम पर उन्हें अपने मूलनिवासों से विस्थापित करने का प्रयास न किया जाए। आज मूल वासियों की समस्याओं और उनके अधिकारों की मांगों को भी विश्व-राजनीति के मुद्दों में स्थान दिया गया है।

प्रश्न11 उन कारकों की विवेचना कीजिए जिनको देखते हुए पर्यावरण की समस्या विश्व राजनीति के विभिन्न मुद्दों में से एक गंभीर मुद्दा बना है।

उत्तर निम्नलिखित कारकों को देखते हुए पर्यावरण की समस्या विश्व राजनीति के विभिन्न मुद्दों में से एक गंभीर मुद्दा बना है-

(i) उपजाऊ भूमि की कमी से तथा उसकी उत्पादकर्ता शक्ति में कमी के कारण खाद्यान्नों की विश्वव्यापी समस्या उत्पन्न हुई है।

(ii) औद्योगीकरण के कारण जलाशयों की जल राशि कम हुई है। विश्व विकास रिपोर्ट 2006 के अनुसार विकासशील देशों की एक अरब बीस करोड़ जनता को पीने के लिए शुद्ध जल उपलब्ध नहीं होता।

(iii) जल प्रदूषण के कारण मत्स्य-भण्डार कम हुए हैं। समुद्र का जल जलजीवों के लिए जीवन दायक न रहकर जान लेवा साबित होने लगा है। परिणाम स्वरूप समुद्र किनार लोगों के लिए जिनका मुख्य व्यवसाय मछली पकडना है, जीवन यापन करना कठिन हुआ है और अब कई तटों पर रहने वाले लोग दूसरे स्थानों पर पलायन करने लगे हैं।

(iv) वनो की अंधाधुंध कटाई ने जलवायु को प्रभावित किया है, प्रकृति की जैव-विविधता (bio-diversity) को असंतुलित किया है।

(v) वायुमण्डल में ओजोन की परत में छेद होने लगा है जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि होती जा रही है जिससे पहाड़ों पर जमी बर्फ अधिक पिघलने लगी है, समुद्रतल ऊँचा उठने लगा है और इसके कारण कई देशों के जलमग्न होने की संभावना

(vi) प्राकृतिक साधनों तथा खनिज पदार्थों के भण्डार समाप्त होते जा हैं जो आने वाली संतति के लिए भी एक खतरा है।

(vii) भूमि की मात्रा सीमित है परंतु जनसंख्या में वृद्धि हुई है और विकास की होड़ में अनावश्यक उत्पादन होता है तथा फालतू पदार्थ (waste) की मात्रा बढ़ती जा रही है। बहुत से देश अपने waste को समुद्रों में फेंकने लगे हैं जिससे बहुत सी विश्वव्यापी समस्याएँ बढ़ी है। समुद्री तटों पर प्रदूषण बढ़ा है जिसने पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डाला है।

प्रश्न 12 पर्यावरण के संरक्षण संबंधी किन्हीं पांच सुझावों का वर्णन कीजिए।

उत्तर पर्यावरण के संरक्षण संबंधी सुझाव- वर्तमान में लगभग सभी देशों ने स्वावलम्बनात्मक या पोषणकारी विकास को अवधारणा को अपने राजनीतिक मुद्दों में सम्मिलित कर लिया है और संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ पर्यावरण के संरक्षण में प्रयत्नशील हो चुकी हैं। पर्यावरण के संरक्षण के लिए निानलिखित पाँच सुझाव इस प्रकार से हैं।

(i) जनसंख्या पर नियंत्रण- पर्यावरण तथा विकास आदि का सीधा संबंध जनसंख्या से भी है। बढ़ती हुई जनसंख्या भी पर्यावरण के दूषित होने का एक बहुत बड़ा कारण है। यदि जनसंख्या पर नियंत्रण पा लिया जाए और इसकी वृद्धि कम हो जाए तो प्राकृतिक संसाधनों की खपत कम होगी और धरती की धारक शक्ति पर दबाव कम हो जाएगा। परिवहन वाहन, कल-कारखाने, खेती-बाड़ी सभी कुछ तो जनसंख्या के अनुसार घटता-बढ़ता है। इसलिए आवश्यक है कि छोटे परिवारों को प्रोत्साहन दिया जाए। अधिक जनसंख्या के कारण गरीबी बढ़ती है। गंदी बस्तियाँ बढ़ती हैं पानी और खाद्यान्नों की कमी महसूस होती है और इसका पर्यावरण को दूषित बनाने में हाथ होता है। यदि जनसंख्या संतुलित मात्रा में बढ़ेगी तो विकास भी संतुलित मात्रा में हो होगा और पर्यावरण का संतुलन बना रहेगा।

(ii) आवश्यकताओं में कमी करना- लोगों को अपनी आवश्यकताओं में कमी करनी चाहिए। यह तभी संभव है जब व्यक्ति अपनी इच्छाओं को फैलने न दे, उन्हें अपनी आर्थिक दशा के अनुरूप रखे और कृत्रिम जीवन स्तर की ओर आकर्षित न हो। पूर्वी विचारधारा के अनुसार 'सादा जीवन तथा उच्च विचार' का आदर्श अपनाया जाना चाहिए। व्यक्ति की वास्तविक आवश्यकताएँ कम होती हैं और कृत्रिम आवश्यकताएँ अधिक होती हैं। यदि उत्पादन आवश्यकताओं के अनुसार हो तो पर्यावरण के संरक्षण को समस्या काफी मात्रा में कम हो जाती है। भौतिकवादी दृष्टिकोण के बजाए दृष्टिकोण को अपनाने से मन और आत्मा की शुद्धि में व्यक्ति लगने लगता है और कृत्रिम इच्छाओं तथा ऐश्वर्यपूर्ण जीवन का त्याग करने लगता है। ऐसे व्यक्तियों के समाज में सभी वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में मिल जाती है।

(iii) वन संरक्षण- प्रत्येक समाज में वनों का होना आवश्यक है। अनुमान लगाया जाता है कि भूमि के एक-तिहाई भाग में वन या जंगल होने चाहिए इनसे प्राकृतिक छवि बनी रहती है, प्राकृतिक सौंदर्य व्यक्ति के जीवन को आनंदमय रखता है और इसके साथ ही नदियों व झीलों का बहाव ठीक रहता है. देश में बाढ़ की संभावनाएँ कम हो जाती हैं, भूमि बंजर नहीं होने जाती। ईंधन के लिए वनों का अंधाधुंध कटाव रोका जाना चाहिए। इसके साथ ही साज-सज्जा हेतु बनाए जाने वाले फर्नीचर के लिए लकड़ी का अंधाधुंध प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। जहाँ बन प्रदेश काफी कम हैं, वहाँ बंजर भूमि को वनों में बदलने के प्रयल किए जाने चाहिए। क्नों के संरक्षण से वन्य जीव-जंतुओं का संरक्षण भी सुनिश्चित हो जाता है। प्रकृति ने जो भी भूमि पर दिया है वह संतुलित रूप से दिया है। वन्य पशुओं का होना ही इस संतुलन का अंग है। पशु-पक्षी हमारे लिए खतरनाक भी होते हैं और लाभदायक भी। बहुत से पक्षी ऐसे होते हैं जो कीड़े-मकोड़ों को खाते हैं और इस प्रकार कृषि उत्पादन में हमारी सहायता करते हैं। वनों के संरक्षण से वन्य जीवों की लुप्त होती नस्लें भी लुप्त होने से रुक जाएंगी और पर्यावरण तथा प्रकृति का संरक्षण भी होगा।

(iv) साफ सुथरी तथा प्रदूषणरहित तकनीक के आधार पर औद्योगीकरण- पर्यावरण की रक्षा के लिए विकास कार्यों को या औद्योगीकरण को पूर्ण रूप से बंद करने की आवश्यकता नहीं है, परंतु उद्योगों के संचालन में साफ-सुथरी तकनीक का प्रयोग करके प्रदूषण को रोका जा सकता है। कारखानों से निकलने वाले जहरीले तथा गंदै रिसाव को सीधा नदी-नालों में फेंके जाने की बजाए पहले उसे शुद्ध किया जा सकता है। शुद्ध करने के बाद इसे दोबारा प्रयोग भी किया जा सकता है। इससे प्रदूषण भी काम होगा और जल की कमी से भी छुटकारा मिलेगा। गंदे पानी से जो कीटाणु पैदा होते हैं. वह कम होंगे। प्रदूषण निरोधक उपकरण (Pollution Control Gadgets) का प्रयोग कारखानों, गाड़ियों, रेलवे इंजनों आदि में किए जाने से वायु प्रदूषण रोका जा सकता है। कोयला व डीजल से चलने वाले कारखानों को विद्युत तथा सौर द्वारा चलाए जाने से पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है। प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों को नगरों से दूर स्थापित किए जाने की योजना बनाई जा सकती है। दिल्ली में सभी वाहनों के लिए यह प्रमाणपत्र अपने आप रखना अनिवार्य है कि प्रदूषण मुक्त हैं। रेलवे में बिजली के इंजनों के अधि क-से अधिक प्रयोग पर जोर दिया जा रहा है. आज भारत में सभी राज्यों में पर्यावरण पर निगरानी रखने और प्रदूषण को रोकने के लिए विशेष विभाग स्थापित किए गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने हजारों करखानों को गंदे तथा जहरीले पानी का रिसाव वाहर न फैकने के आदेश दिए हैं और उन्हें पानी को शुद्ध करने के यंत्र (Treatment Plants) लगाने का निर्देश दिया है

अन्यथा उन्हें बंद करने का निर्देश है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयत्न पर्यावरण की समस्या किसी एक देश या महाद्वीप तक सीमित नहीं है। यह तो समस्त संसार की समस्या है और इसे रोकने में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रयता आवश्यक है। संयुक्त राष्ट्र की कई संस्थाएँ इस बारे में प्रयलशील भी हैं। बहुत से देश अपना कचरा समुद्र में फैकते हैं। जिससे समुद्र का जल प्रदूषित होता है, समुद्री तट की छवि खराब होती है और समुद्र जीव-जंतुओं का जीवन खतरे में पड़ता है। उन्हें ऐसा करने से रोका जाना चाहिए। राष्ट्रों द्वारा किए जा रहे अणु परीक्षणों पर रोक लगाई जानी चाहिए।

प्रश्न 13 पर्यावरण आंदोलनों के कुछ उदाहरणों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर पर्यावरण आंदोलनों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित है-

(i) विश्व के दक्षिणी देशों जैसे भारत, मैक्सिको, चिली, ब्राजील, मलेशिया, इण्डोनेशिया तथा अफ्रीका के कई देशों में वन आंदोलन पर काफी दबाव है और इन देशों की जनता धनों की कटाई को रोकने के लिए आंदोलन करती रही हैं भारत में चिपको आंदोलन इसका उदाहरण है। इतना होते हुए भी विकासशील तथा अविकसित देशों में वनों की अंधाधुंध कटाई फिर भी जारी है। देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में लकड़ी की बड़ी आवश्यकता होती है और नगरीकरण की प्रक्रिया में वन क्षेत्रों को निवास क्षेत्र में बदलने के लिए भी वनों की कटाई करनी पड़ती है।

(ii) बहुत से देशों में खनिज-उद्योगों का विरोध हुआ है। प्रत्येक देश में खनिज उद्योग सबसे बड़ा उद्योग माना जाता है क्योंकि इसके आधार पर और कई उद्योग चलते हैं। परंतु इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। खनिज पदार्थों को प्राप्त करने के लिए रसायनों का प्रयोग किया जाता है जिस से जलमार्ग प्रदूषित होते हैं, वनस्पति पर बुरा प्रभाव पड़ता है और लोगों को भी अपने मूल स्थानों से विस्थापित होना पड़ता है। फिलीपीन्स में लोगों ने इसका विरोध किया और एक आस्ट्रेलियाई बहुराष्ट्रीय कंपनी वेर्स्टन माइनिंग कारपोरेशन (Western Mining Corportation) के विरुद्ध आंदोलन किया। आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों अर्थात् आस्ट्रेलिया के आदिवासियों ने भी यह विरोध किया।

(iii) कई देशों में नदियों पर बनाए जाने वाले बाँधी और डैम बनाने की योजनाओं का विरोध किया गया। भारत में नर्मदा बचाओ आंदोलन इसका उदाहरण है। बाँध-विरोधी आंदोलनों का उद्देश्य नदियों को बचाने से भी संबंधित है। 1980 के दशक में आस्ट्रेलिया में बाँध-विरोधी आंदोलन हुआ और फ्रैंकलिन नदी पर बाँध बनाने का विरोध किया गया। इसका उद्देश्य नदी के साथ-साथ इसके आस-पास के वन्य क्षेत्रों को नष्ट होने से बचाना था।

(ii) भारत में बहुत से गैर-राजनीतिक संगठन हैं जो केवल पर्यावरण सुरक्षा के मुद्दों को उठाते हैं और इसके लिए जनमत तैयार करते हैं तथा आंदोलन चाहते हैं। समाजसेवी भी अपने को इसी उद्देश्य के लिए समर्पित किए हुए हैं। ये संगठन तथा पर्यावरणवादी पर्यावरण से संबंधित विषयों का गहन अध्ययन करते हैं, सरकार तथा निजी संस्थाओं के उन कार्यों पर विचार करते है जो पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाले हों, विरोध करते हैं और आवश्यक हो तो उनके रोके जाने के लिए न्यायिक याचिका भी दायर करते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न

सही उत्तर पर (1) का चिन्ह लगाइए:

प्रश्न 1 निम्नलिखित में कौन-सा कथन सत्य है? वर्तमान में

(क) पूरे विश्व में कृषि योग्य भूमि में अब किसी प्रकार कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही है

(ख) उपलब्ध उपजाऊ भूमि के एक बड़े भाग की उर्वकता कम हो रही है

(ग) चारागाहों के चारे समाप्त होने को हैं

(च) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2 संयुक्त राष्ट्रसंघ की विश्व विकास रिपोर्ट (2006) के अनुसार विकासशील मुल्कों की कितनी जनता को स्वच्छ जल नहीं मिल पा रहा है?

(क) लगभग एक अरब बीस करोड़ (ख) एक करोड़ (ग) तीस करोड़

(घ) एक सौ करोड़।

प्रश्न 3 धरती की उपरी वायुमंडल में किस गैस की मात्रा में निरंतर कमी हो रही है?

(क) आक्सीजन

(ख) ओजोन

(ग) हाइड्रोजन

(घ) नाइट्रोजन।

प्रश्न 4 “लिमिट्स टू ग्रोथ' नामक पुस्तक को किस संस्था ने प्रकाशित किया था?

(क) क्लब ऑफ रोम (ख) लंदन क्लव

(ग) क्लब ऑफ पेरिस (घ) मैनचेस्टर क्लब।

प्रश्न 5 1992 में संयुक्त राष्ट्रसंघ का पर्यावरण तथा विकास के मसले पर केन्द्रित सम्मेलन कहाँ हुआ था?

(क) लंदन

(ख) कोलकाता

(ग) न्यूयार्क

(घ) रियो डी जनेरियो।

प्रश्न 6 विश्व के निर्जन इलाके का कितना प्रतिशत भाग अटलांटिक महादेशीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है?

(क) 20 प्रतिशत

(ख) 23 प्रतिशत

(ग) 26 प्रतिशत

(घ) 27 प्रतिशत।

प्रश्न 7 अंटाकर्टिक इलाकों पर किस देश ने अपने संप्रभु अधिकार का वैधानिक दावा किया?

(क) ब्रिटेन

(ख) नार्व

(ग) अर्जेन्टीना

(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 8: निम्नलिखित में कौन-सी गैस वैश्विक तापवृद्धि के लिए जिम्मेदार है?

(क) कार्बन डाइ ऑक्साइड (ख) मीथेन

(ग) हाइड्रोफ्लोरो कार्बन (घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 9 भारत ने क्योटो प्रोटोकाल (1997) पर कब हस्ताक्षर किया?

(क) 1999

(ख) 2000

(ग) 2002

(घ) 2007

प्रश्न 10 उर्जा संरक्षण अधिनियम कब पारित हुआ?

(क) 2000

(ख) 2001

(ग) 2002

(घ) 2003


उत्तर 1.(घ)   2.(क)   3.(ख)    4.(क)    5.(घ)    6.(ग)    7.(घ)     8.(घ)    9.(ग)    10.(ख)


 एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 समकालीन विश्व राजनीत