NCERT Solutions Class 12 समकालीन विश्व राजनीति Chapter-7 समकालीन विश्व सुरक्षा

NCERT Solutions Class 12  समकालीन विश्व राजनीति Chapter-7 समकालीन विश्व सुरक्षा 

NCERT Solutions Class 12  समकालीन विश्व राजनीति  12 वीं कक्षा से Chapter 7 समकालीन विश्व सुरक्षा    के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी समकालीन विश्व राजनीति  के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 12  समकालीन विश्व राजनीति Chapter-7 समकालीन विश्व सुरक्षा


कक्षा 12

Chapter-7

प्रश्नावली (उत्तर सहित)

1. निम्नलिखित पदों को उनके अर्थ से मिलाएँ

(1) विश्वास बहाली के उपाय (कॉन्फिडेंस   (क) कुछ खास हथियारों के इस्तेमाल से परहेज

बिल्डिंग मेजर्स - CRMs)

(2) अस्त्र-नियंत्रण                                    (ख) राष्ट्रों के बीच सुरक्षा-मामलों पर सूचनाओं के

                                                                आदान-प्रदान की नियमित प्रक्रिया

(3) गठबंधन                                           (ग) सैन्य हमले की स्थिति से निबटने अथवा उसके अपरोध

                                                                 के लिए कुछ राष्ट्रों का आपस में मेल करना।

(4) निरस्त्रीकरण                                        (घ) हथियारों के निर्माण अथवा उनको हासिल करने पर अंकुश

उत्तर (1) विश्वास बहाली के उपाय (कॉन्फिडेंस     (ख) राष्ट्रों के बीच सुरक्षा-मामलों पर, सूचनाओं के आदान प्रदान

बिल्डिंग मेजर्स - CEMs)                                      की नियमित प्रक्रिया

(2) असा-नियंत्रण                                              (घ) हथियारों के निर्माण अथवा उनको हासिल करने पर अंकुश

(3) गठबंधन                                                     (ग) सैन्य हमले की स्थिति से निबटने अथवा उसके अपरोध के

                                                                        लिए कुछ राष्ट्रो का आपस में मेल करना।

(4) निरस्त्रीकरण                                              (क) कुछ खास हथियारों के इस्तेमाल से परहेन

2. निम्नलिखित में से किसको आप सुरक्षा का परंपरागत सरोकार/सुरक्षा का अपारंपरिक सरोकार/'खतरे की स्थिति नहीं' का दर्जा देंगे

(क) चिकनगुनिया/डेंगू बुखार का प्रसार

(ख) पड़ोसी देश से कामगारों की आमद

(ग) पड़ोसी राज्य से कामगारों की आमद

(घ) अपने इलाके को राष्ट्र बनाने की मांग करने वाले समूह का उदय

(ङ) अपने इलाके को अधिक स्वायत्तता दिए जाने की मांग करने वाले समूह का उदय।

(च) देश की सशस्त्र सेना को आलोचनात्मक नज़र से देखने वाला अखबार।

उत्तर (क) सुरक्षा का अपारंपरिक सरोकार।

(ख) सुरक्षा का पारंपरिक सरोकार।

(ग) खतरे की स्थिति नहीं।

(घ) सुरक्षा का अपारंपरिक सरोकार।

(ङ) खतरे की स्थिति नहीं।

(च) सुरक्षा का पारंपरिक सरोकार।

3. परंपरागत और अपारंपरिक सुरक्षा में क्या अंतर है? गठबंधनों का निर्माण करना और उनको बनाये रखना इनमें से किस कोटि में आता है?

उत्तर सुरक्षा की विभिन्न धारणाओं को दो कोटियों में रखा जाता है-(i) सुरक्षा की पारंपरिक धारणा और (ii) सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा। दोनों में निम्न प्रमुख अन्तर हैं-


पारंपरिक सुरक्षा की धारणाअपारंपरिक सुरक्षा की धारणा
 1. पारंपरिक धारणा का संबंध मुख्यत: बाहरी सुरक्षा (exter -
सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा न केवल सैन्य खतरों से nal security)
से होता है।यह सुरक्षा मुख्यतः राष्ट्र की संबंध रखती है बल्कि इसमें
मानवीय अस्तित्व पर चोट सुरक्षा की धारणा से संबंधित होती है।
1. सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा न केवल सैन्य खतरों की संबंध रखती है
बल्कि इसमें मानवीय अस्तित्व पर चोट करने वाले अन्य व्यापक खतरों और आशंकाओं को भी शामिल किया जाता है। इस अवधारणा में सरकार इस बात के लिए विवश होती है कि वह किन-किन चीजों को सुरक्षा करे, किन खतरों से उन चीजों की सुरक्षा करें और सुरक्षा करने के लिए कौन-से तरीके अपनाए।

2 सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में सैन्य खतरे को किसी देश
 के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक समझा जाता है।
  2. सुरक्षा को पारंपरिक धारणा में भू-क्षेत्रों और संस्थाओं सहित राज्यों को संदर्भ माना जाता है लेकिन सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा में संदर्भो का दायरा बड़ा होता है अर्थात्इ\ समें सिर्फ राज्य ही नहीं व्यक्तियों और संप्रदायों या कहें कि संपूर्ण मानवता की सुरक्षा की जरूरत होती है। इसी कारण सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा को मानवता की| सुरक्षा अथवा विश्व सुरक्षा कहा जाता है।
3. बाहरी सुरक्षा के खतरे का स्रोत कोई दूसरा देश (मुल्क)होता है। वह देश सैन्य आक्रमण की धमकी देकर संप्रभुता,
स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता जैसे किसी देश के केन्द्रीय
मूल्यों (सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चिंताओं के विषयों) के लिए 
खतरा उत्पन्न करता है।
 3. इस धारणा में मानवता की रक्षा का विचार जनता जनार्दन 
 की सुरक्षा को राज्यों की सुरक्षा से बढ़कर (अधिक महत्त्वपूर्ण) माना जाता है। मानवता की सुरक्षा और राज्य की सुरक्षा एक-दूसरे के पूरक होने चाहिए।
और प्रायः होते भी हैं लेकिन सुरक्षित राज्य का नतलब हमेशा सुरक्षित | जनता नहीं होता। नागरिकों को विदेशी हमलों से बचाना भले ही उनकी सुरक्षा की जरूरी शर्त हो लेकिन इतने भरको पर्यापा नहीं माना जा सकता।
4. बाहरी आक्रमण होने पर न केवल उस देश की सेना बल्कि
आम नागरिकों के जीवन को भी खतरा होता है।

  4. अपारंपरिक धारणा के अनुसार मानवता को विदेशी सेना के

हाथों मारे जाने के साथ साथ स्वयं अपनी ही सरकारों के

हाथों से बचाना भी उतना जरूरी है। विद्वानों के विचारानुसार

सच्चाई यह है कि पिछले 100 वर्षों में जितने लोग विदेशी 

सेना के हाथों मारे गए उससे कहीं ज्यादा लोग खुद अपनी

ही सरकारों के हाथों जाते रहे।

5. बुनियादी तौर पर बाहरी खतरे या आक्रमण से निबटने के  5. अपारंपरिक सुरक्षा सरोकार की धारणा के अनुसार
यथासंभव अपनी हानि को कम-से-कम (जान और माल और
 मानव अधिकारों पर चिंताजनक प्रहार।

4. तीसरी दुनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने मौजूद खतरों में क्या अंतर है?

उत्तर तीसरी दुनिया के देशों एवं विकसित देशों की जनता के मौजूद खतरों में अन्तर को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-

तीसरी दुनिया से हमारा अभिप्राय जापान को छोड़कर संपूर्ण एशियाई, अफ्रीकी और लेटिन अमरीकी देशों से है। इन देशों के सामने विकसित देशों की जनता के सामने आने वाले मौजूदा खतरों में बड़ा अंतर है। विकसित देशों से हमारा अभिप्राय प्रथम दुनिया और द्वितीय दुनिया के देशों से है। प्रथम दुनिया के देशों में संयुक्त राज्य अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और पश्चिमी यूरोप के अधिकांश देश आते हैं जबकि दूसरी दुनिया में प्रायः पूर्व सोवियत संघ (अब रूस), और अधिकतर पूर्वी यूरोप के देश शामिल किए जाते हैं।

तीसरी दुनिया के देशों के सामने बाह्य सुरक्षा का खतरा तो है ही लेकिन उनके सामने आंतरिक खतरे भी बहुत हैं। बाहरी खतरों में उनके समक्ष बड़ो शक्तियों के वर्चस्व का खतरा होता है। वे देश उन्हें अपने सैन्य वर्चस्व, राजनैतिक विचारधारा के वर्चस्व और आर्थिक सहायता सशर्त देने के वर्चस्व से डराते रहते हैं। प्रायः बड़ी शक्तियाँ उनके पड़ोसी देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके या मनमानी कठपुतली सरकारें बनाकर उनसे मनमाने तरीके से तीसरी दुनिया के देशों के लिए खतरे पैदा करते रहते हैं। अपरोक्ष रूप से वह आतंकवाद को बढ़ावा देकर या मनमानी कीमतों पर प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति या अपने हित के लिए ही उदारीकरण, मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण, सशर्त निवेश आदि के द्वारा आंतरिक आर्थिक खतरे जैसे कीमतों की बढ़ोत्तरी, बेरोजगारी में वृद्धि, निर्धनता, आर्थिक विषमता को प्रोत्साहन देकर, उन्हें निम्न जीवन स्तर की तरफ अप्रत्यक्ष रूप से धकेलकर नए-नए खतरे पैदा करते हैं।

तीसरी दुनिया के सामने आतंकवाद, एड्स, बर्ड फ्लू और अन्य महामारियाँ भी खतरा बनकर आती हैं। इन देशों में प्राय: संकीर्ण भावनाओं के कारण पारस्परिक घृणा उत्पन्न होती रहती है। जैसे धार्मिक उन्माद, जाति भेद-भाव पर आधारित आंतरिक दंगों का खतरा, महिलाओं और बच्चों का निरंतर बढ़ता हुआ यौवन और अन्य तरह का शोषण, भाषावाद, क्षेत्रवाद आदि से भी इन देशों में खतरा उत्पन्न होता रहता है। कई बार बड़ी शक्तियों द्वारा इन देशों में सांस्कृतिक शोषण और पाश्चात्य सांस्कृतिक मूल्यों  बढ़ावा दिया जाता है जिनके कारण उनकी पहचान और संस्कृति खतरे में आ सकती है।

जहाँ तक विकसित राष्ट्रों का प्रश्न है। उनके सामने अपने परमाणु बमों के वर्चस्व को बनाए रखना और विश्व की अन्य शक्तियों को नई परमाणु शक्ति बनने से रोकना है। दूसरी और पहली दुनिया के देश चाहते हैं कि नाटो बना रहे लेकिन वार्सा जैसा कोई सैन्य संगठन भूतपूर्व साम्यवादी देश पुनः न गठित होने पाए।

विकसित देश यह भी चाहते हैं कि सभी देश मुक्त व्यापार, उदारीकरण और वैश्वीकरण को अपनाएँ, सभी तेल उत्पादक राष्ट्र उन्हें उनकी इच्छानुसार ठीक-ठाक कीमतों पर निरंतर तेल की सप्लाई करते रहें और उनके प्रभाव में रहें। विकसित देश यह चाहते हैं कि आतंकवाद अथवा तथाकथित इस्लामिक धर्माधता के पक्षधर आतंकवादियों से निपटने के लिए न केवल वो सभी परस्पर सहयोग करें बल्कि तीसरी दुनिया के सभी देश भी उनके साथ रहें। विकसित देश चाहते हैं कि एड्स, बर्ड फ्लू जैसी सभी नई नहामारियों को रोकने में किसी भी प्रकार की ढिलाई नहीं हो और कोई भी राष्ट्र रासायनिक हथियार, जैविक हथियार न बनाए और संयुक्त राष्ट्र संघ में भी केवल पाँच स्थायी शक्तियों की विशेष स्थिति बनी रहे। अन्तर्राष्ट्रीय मंच या क्षेत्रीय संगठन अथवा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष या विश्व बैंक उनके मार्गदर्शन के अनुसार राष्ट्रों को ऋण दें ताकि उनके बहुराष्ट्रीय निगमों का वर्चस्व और एकाधिकार विश्व स्तर पर बना रहे।

5. आतंकवाद सुरक्षा के लिए परंपरागत खतरे की श्रेणी में आता है या अपरंपरागत?

उत्तर आतंकवाद सुरक्षा के लिए अपरंपरागत श्रेणी में आता है। आतंकवाद का आशय राजनीतिक खून-खराबे से है जो जान-बूझकर और बिना किसी मुरौव्वत के नागरिकों को अपना निशाना बनाता है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद एक से ज्यादा देशों में व्याप्त है और उसके निशाने पर कई देशों के नागरिक हैं। कोई राजनीतिक संदर्भ या स्थिति नापसंद हो तो आतंकवादी समूह उसे बल-प्रयोग से अथवा बल-प्रयोग की धमकी देकर बदलना चाहते हैं। जनमानस को आंतकित करने के लिए नागरिकों को निशाना बनाया जाता है और आतंकवाद नागरिकों के असंतोष का इस्तेमाल राष्ट्रीय सरकारों अथवा संघर्ष में शामिल अन्य पक्ष के खिलाफ करता है।

आतंकवादियों का मकसद ही आतंक फैलाना है अत: वे असैनिक स्थानों अर्थात् आम लोगों को अपनी दहशतगर्दी का निशाना बनाते हैं। इससे एक तो आतंकवादी अपना आतंक फैलाकर आम जनता तथा विश्व बिरादरी का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब होते हैं तो दूसरी ओर उन्हें प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ता। आम लोग आसानी से उनके शिकार बन जाते हैं। आतंकवाद के चिर-परिचित उदाहरण है विमान अपहरण अथवा भीड़ भरी जगहों पर बम लगाना। सन् 2001 में 11 सितम्बर को

अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादियों ने हमला बोला। इस घटना के बाद से दूसरे देश और वहाँ की सरकारें आतंकवाद पर ध्यान देने लगी हैं। गुजरे वक्त में आतंकवाद की अधिकांश घटनाएँ मध्यपूर्व यूरोप, लातिनी अमरीका और दक्षिण एशिया में हुई।

6. सुरक्षा के परंपरागत दृष्टिकोण के हिसाब से बताएं कि अगर किसी राष्ट्र पर खतरा मंडरा रहा हो तो उसके सामने क्या विकल्प होते हैं?

उत्तर अधिकतर हमारा सामना सुरक्षा को पारंपरिक अर्थात् राष्ट्रीय सुरक्षा की धारणा से होता है। सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणा में सैन्य खतरे को किसी देश के लिए सबसे अधिक खतरनाक माना जाता है। इस खतरे का स्रोत कोई दूसरा देश होता है जो सैन्य हमले की धमकी देकर संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता जैसे किसी देश के केन्द्रीय मूल्यों के लिए खतरा पैदा करता है। सैन्य कार्यवाही से आम नागरिकों के जीवन को भी खतरा होता है। अगर किसी राष्ट्र पर खतरा मंडरा रहा हो तो बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास में तीन विकल्प होते हैं-आत्मसमर्पण करना तथा दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किए मान लेना अधवा युद्ध से होने वाले नाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहमकर हमला करने से बाज आए या युद्ध ठग जाए तो अपनी रक्षा करना ताकि हमलावर देश अपने मकसद में कामयाब न हो सके और पीछे हट जाए अथवा हमलावर को पराजित कर देना।

युद्ध में कोई सरकार भले ही आत्मसमर्पण कर दे परन्तु वह इसे अपने देश की नीति के रूप में कभी प्रचारित नहीं करना चाहेगी। इस कारण, सुरक्षा-नीति का संबंध युद्ध की आशंका को रोकने में होता है जिसे 'अवरोध' कहा जाता है और युद्ध को सीमित रखने अथवा उसको समाप्त करने से होता है जिसे 'रक्षा' कहा जाता है।

7. 'शक्ति-संतुलन' क्या है? कोई देश इसे कैसे कायम करता है?

उत्तर परंपरागत सुरक्षा-नीति का एक तत्व और है। इसे शक्ति-संतुलन कहा जाता है। कोई देश अपने अडास-पड़ोस में देखने पर पाता है कि कुछ मुल्क छोटे हैं तो कुछ बड़े। इससे इशार मिल जाता है कि भविष्य में किस देश से उसे खतरा हो सकता है।

उदाहरण के लिए कोई पड़ोसी देश संभव है यह न कहे कि वह हमले की तैयारी में लगा है। हमले का कोई प्रकट कारण भी नहीं जान पड़ता हो। फिर भी यह देखकर कि कोई देश बहुत ताकतवर है यह मापा जा सकता है कि भविष्य में वह हमलावर हो सकता है। इस वजह से हर सरकार दूसरे देश से अपने शकिा-संतुलन को लेकर बहुत संवेदनशील रहती है। कोई सरकार दूसरे देशों से शक्ति-संतुलन का पलड़ा अपने पक्ष में बैठाने के लिए जी-तोड़ कोशिश करती है। जो देश नजदीक हों, जिनके साथ अनबन हो या जिन देशों के साथ अतीत में लड़ाई हो चुकी हो उसके साथ शक्ति-संतुलन को अपने पक्ष में करने पर खासतौर पर जोर दिया जाता है। शक्ति-संतुलन बनाये रखने की यह कोशिश ज्यादातर अपनी सैन्य-शक्ति बढ़ाने की होती है लेकिन आर्थिक और प्रौद्योगिकी की शक्ति भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सैन्य-शक्ति का यही आधार है।

8. सैन्य गठबंधन के क्या उद्देश्य होते हैं? किसी ऐसे सैन्य गठबंधन का नाम बताएँ जो अभी मौजूद है। इस गठबंधन के उद्देश्य भी बताएँ?

उत्तर सैन्य गठबंधन के उद्देश्य: गठबंधन बनाना पारंपरिक सुरक्षा नीति का एक तत्व है। गठबंधन में कई देश शामिल होते हैं और सैन्य हमले को रोकने अथवा उससे रक्षा करने के लिए कदम उठाते हैं। अधिकांश गठबंधनों को लिखित संधि से एक औपचारिक आकार प्राप्त होता है और ऐसे गठबंधनों को यह बात बिल्कुल स्पष्ट रहती है कि खतरा किस से है। किसी देश अथवा गठबंध न की तुलना में अपनी ताकत का असर बढ़ाने के लिए देश गठबंधन बनाते हैं। गठबंधन राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं। नाटो (NATO) एक बहुत शक्तिशाली गठबंधन है जो आज भी मौजूद है। इस गठबंधन के उद्देश्य संयुक्त राज्य अमरीका के नेतृत्व में सभी अमरीकी और पश्चिमी यूरोपीय देशों की सामूहिक सैन्य सुरक्षा को बनाए रखना और पश्चिमी देशों के सैन्य,वैचारिक, सांस्कृतिक और आर्थिक वर्चस्व को बनाए रखना है। यह किसी भी अपने मित्र देश या उन देशों को जो उन्हें तेल इत्यादि प्राकृतिक संसाधन प्रदान करते हैं उन्हें अपने राजनैतिक और आर्थिक हितों के अनुकूल बनाए रखने के लिए अपनी मनपसंद सरकार और राजनैतिक व्यवस्था बनाए रखने के भी इच्छुक हैं। वे किसी अन्य देश को वहाँ अपनी सत्ता स्थापित करने या राजनैतिक व्यवस्था को उनके प्रतिकूल बनाने की इजाजत किसी कीमत पर नहीं देना चाहते। गठबंधन राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं और राष्ट्रीय हितों के बदलने पर गठबंधन भी बदल जाते हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमरीका ने सन् 1980 के दशक में सोवियत संघ के खिलाफ इस्लामी उग्रवादियों को समर्थन दिया लेकिन आसामा बि- लादेन के नेतृत्व में अल-कायदा नामक समूह के आतंकवादियों ने जब ।। सितंबर, 2001 के दिन उस पर हमला किया तो उसने इस्लामी उग्रवादियों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया।

9. पर्यावरण के तेजी से हो रहे नुकसान से देशों की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। क्या आप इस कथन से सहमत है? उदाहरण देते हुए अपने तर्कों की पुष्टि करें।

उत्तर पर्यावरण के तेजी से हो रहे नुकसान से देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। हम इस कथन से पूर्णतः सहमत हैं अपने निर्णय की पुष्टि में हम निम्न तर्क दे सकते हैं

(i) विश्व की आबादी निरंतर बढ़ रही है। वह सात सौ करोड़ के आंकड़े को पहले ही पार कर चुकी है। इस विशाल मानव समूह वे लिए निवास स्थान, रोजगार के लिए नए-नए कारखानों के निर्माण के लिए भूमि-स्थल, जल संसाधनों का अभाव अभी से महसूस किया जा रहा है। विश्व के अनेक देशों और क्षेत्रों में वनों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण और प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है जिससे मानव को भावी पीढ़ियों के लिए भयंकर खतरा पैदा होता जा रहा है।

(ii) जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के कारण मानव स्वरूप, सामान्य जीवन और शांत वातावरण के लिए खतरा पैदा हो गया है। समुद्रों में विकसित और औद्योगिक राष्ट्रों द्वारा निरंतर फेंके जाने वाला कूड़ा जल में रहने वाले जीवों के जीवन के लिए खतरा बना चुका है। अनेक राष्ट्रों को समुद्रों से मानव भोजन मिलता है और अनेक समुदाय के लोगों को रोजी-रोटी भी समुद्र से मिलती है। समुद्र से अनेक खनिज संपदा और उपयोगी पदार्थ प्राप्त किए जाते हैं जो औद्योगिक और यातायात विकास के लिए बहुत आवश्यक हैं।

10. देशों के सामने फिलहाल जो खतरे मौजूद हैं उनमें परमाण्विक हथियार का सुरक्षा अथवा अपरोध के लिए बड़ा सीमित उपयोग रह गया है। इस कथन का विस्तार करें।

उत्तर सुरक्षा की परंपरागत धारणा में स्वीकार किया जाता है कि हिंसा का यथासंभव सीमित इस्तेमाल होना चाहिए। आज लगभग पूरा विश्व मानता है कि किसी देश को युद्ध उचित कारणों अर्थात् आत्म-रक्षा अथवा दूसरों को जनसंहार से बचाने के लिए ही करना चाहिए। किसी युद्ध में युद्ध साधनों का सीमित इस्तेमाल होना चाहिए। सेना को उतने ही बल का प्रयोग करना चाहिए जितना आत्मरक्षा के लिए जरूरी हो और उससे एक सीमा तक ही हिंसा का सहारा लेना चाहिए। बल प्रयोग तभी किया जाए जब बाको उपाय असफल हो गए हों। सुरक्षा की परंपरागत धारणा इस संभावना से इंकार नहीं करती कि देशों के बीच किसी न किसी रूप में सहयोग हो। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है-निरस्त्रीकरण, अस्त्र-नियंत्रण तथा विश्वास की बहाली।

(i) निरस्त्रीकरणाः (Disarmament) : निरस्त्रीकरण की माँग होती है कि सभी राज्य चाहे उनका आकार, ताकत और प्रभाव कुछ भी हो, कुछ खास किस्म के हथियारों के निर्माण से बाज आएँ। उदाहरण के लिए, 1972 की जैविक हथियार संधि (वॉयोलॉजिकल वीपन्स कन्वेंशन, Bwc) तथा 1992 की रासायनिक हथियार संधि (केमिकल वीपन्स कन्वेंशन CWC) में ऐसे हथियारों को बनाना और रखना प्रतिबंधित कर दिया गया है। पहली संधि पर 100 से ज्यादा देशों ने हस्ताक्षर किए हैं और इनमें से 14 को छोड़कर शेष ने दूसरी संधि पर भी हस्ताक्षर किए। इन दोनों संधियों पर दस्तखत करने वालों में सभी महाशक्तियाँ शामिल हैं। लेकिन महाशक्तियाँ-अमरीका तथा सोवियत संघ सामूहिक संहार के अस्त्र यानी परमाण्विक हथियार का विकल्प नहीं छोड़ना चाहती थीं इसलिए दोनों ने अस्त्र-नियंत्रण का सहारा लिया।

(ii) अस्व नियंत्रण (Arms Control) : अस्त्र नियंत्रण के अंतर्गत हथियारों को विकसित करने अथवा उनको हासिल करने के संबंध में कुछ कागद-कानूनों का पालन करना पड़ता है। सन् 1972 की एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि (ABM) ने अमरीका और सोवियत संघ को वैलेस्टिक मिसाइलों को रक्षा-कवच के रूप में इस्तेमाल करने से रोका। ऐसे प्रक्षेपास्त्रों से हमले की शुरुआत की जा सकती थी। संधि में दोनों देशों को सीमित संख्या में ऐसी रक्षा-प्रणाली तैनात करने की अनुमति. थी लेकिन इस संधि ने दोनों देशों को ऐसी रक्षा-प्रणाली के व्यापक उत्पादन से रोक दिया।

(iii) विश्वास को वहाली (Restoring Confidence): सुरक्षा को पारंपरिक धारणा में यह बात भी स्वीकार की गई है कि विश्वास बहाली के उपायों से देशों के बीच हिंसाचार कम किया जा सकता है। विश्वास बहाली की प्रक्रिया में सैन्य टकराव और प्रतिद्वन्द्वितावाले देश सूचनाओं तथा विचारों के नियमित आदान प्रदान का फैसला करते हैं। दो देश एक-दूसरे को अपने फौजी मकसद तथा एक हद तक अपनी सैन्य योजनाओं के बारे में बताते हैं। ऐसा करके ये देश अपने प्रतिद्वन्द्वी को इस बात का आश्वासन देते हैं कि उनकी तरफ से औचक हमले की योजना नहीं बनायी जा रही। देश एक-दूसरे को यह भी बताते हैं कि उनके पास किस तरह के सैन्य-बल हैं। वे यह भी बता सकते हैं कि इन बलों को कहाँ तैनात किया जा रहा है। संक्षेप में कहें तो विश्वास बहाली की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि प्रतिद्वन्द्वी देश किसी गलतफहमी या गफलत में पड़कर जंग के लिए आमादा न हो जाएँ।

आज विभिन्न देशों के समाने अनेक तरह के खतरे मौजूद हैं। इन खतरों को टालने अथवा इनका दमन करने के सैन्य या परमाण्विक विकल्प बहुत सीमित हैं। आज विभिन्न देशों के पास परमाणु हथियार हैं या उन्हें बनाने की क्षमता है। ऐसी स्थिति में एक देश का परमाण्विक हमला उसे उल्टा पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में एक देश समाप्त हो सकता है पर दूसरा भी बच नहीं सकता। आज के खतरों से निपटने में सैन्य बल उपयुक्त नहीं है। उदाहरण के लिए अमरीका का इराक और अफगानिस्तान पर हमला किसी समस्या को सुलझा नहीं पाया और वह खतरा आज भी मौजूद है।

निष्कर्षः कुल मिलाकर देखा जाए तो सुरक्षा की परंपरागत धारणा मुख्य रूप से सैन्य बल के प्रयोग अथवा सैन्य बल के प्रयोग की आशंका से संबद्ध है। सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में माना जाता है कि सैन्य बल से सुरक्षा को खतरा पहुँचता है और सैन्य बल से ही सुरक्षा को बरकरार रखा जा सकता है।

11. भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए किस किस्म की सुरक्षा को वरीयता दी जानी चाहिए - पारंपरिक या अपारंपरिक? अपने तर्क की पुष्टि में आप कौन-से उदाहरण देंगे?

उत्तर भारत को पारंपरिक (सैन्य) और अपारंपरिक खतरों का सामना करना पड़ा है। ये खतरे सीमा के अंदर से भी उभरे एवं बाहर से भी। भारत की सुरक्षा नीति के चार बड़े घटक हैं और अलग-अलग समय में इन्हीं घटकों के हेर-फेर से सुरक्षा की रणनीति बनायी हुई है।

1. प्रथम घटक-सुरक्षा नीति का पहला घटक सैन्य क्षमता को मजबूत करना रहा है क्योंकि भारत पर पड़ोसी देशों के हमले होते रहे हैं। पाकिस्तान ने 1947-48, 1965, 1971 तथा 1999 में एवं चीन ने सन् 1962 में भारत पर हमला किया। दक्षिण एशियाई इलाके में भारत के चारों ओर परमाणु हथियारों से लैस देश हैं। ऐसे में भारत के परमाणु परीक्षण करने के फैसले (1998) को उचित ठहराते हुए भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का तर्क दिया था।

2 दूसरा घटक-भारत की सुरक्षा नीति का दूसरा घटक अपने सुरक्षा हितों को बचाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय नियमों और संस्थाओं को सुदृढ़ करना है। भारत ने अपनी सुरक्षा की रणनीति में यह सिद्धांत भी अपनाया है कि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, संस्थाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों व नियमों को मजबूत बनाने में योगदान करे क्योंकि इनकी मजबूती से देशों की बाहरी सुरक्षा मजबूत होती है। भारत ने निउपनिवेशीकरण (decolonisation) का समर्थन किया है; सभी राष्ट्रों की राष्ट्रीय स्वतंत्रता को उनका जन्मसिद्ध धिकार माना है और साम्राज्यवाद का विरोध किया है। यदि संयुक्त राष्ट्र संघ मजबूत होता है तो किसी देश को पड़ोसी देश पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं हो सकती। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों के समाधान में संयुक्त राष्ट्रसंघ को अंतिम तथा सबसे अधिक उचित मंच माने जाने पर जोर दिया है। भारत ने इस बात पर जोर दिया है कि सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयों का सम्मान करना उनका मानवीय दायित्व है। भारत ने हथियारों के अप्रसार के संबंध में एक सार्वभौम और विना भेदभाव वाली नीति चलाने की पहल कदनी की जिसमें हर देश को सामूहिक संहार के हथियारों ('परमाणु, जैविक, रासायनिक) से संबद्ध बराबर के अधिकार और दायित्व हों। भारत ने नव-अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की माँग उठायीं और सबसे बड़ी बात यह कि दो महाशक्तियों की खेमेबाजी से अलग उसने गुटनिरपेक्षता के रूप में विश्व-शांति का तीसरा विकल्प सामने रखा। भारत उन 160 देशों में शामिल है जिन्होंने 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए हैं। क्योटो प्रोटोकॉल में वैश्विक तापवृद्धि पर काबू रखने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के संबंध में दिशा-निर्देश बताए गए हैं। सहयोगमूलक सुरक्षा की पहलकदमियों के समर्थन में भारत ने अपनी सेना संयुक्त राष्ट्र संघ के शांतिबहाली के मिशनों में भेजी है।

3. तीसरा घतक भारत की सुरक्षा रणनीति का तीसरा घटक है देश की अंदरूनी सुरक्षा समस्याओं से निबटने की तैयारी। नागालैंड, मिजोरम, पंजाब और कश्मीर जैसे क्षेत्रों से कई उग्रवादी समूहों ने समय-समय पर इन प्रांतों को भारत से अलगाने की कोशिश की। भारत ने राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था का पालन किया है। यह व्यवस्था विभिन्न समुदाय और जन-समूहों को अपनी शिकायतों को खुलकर रखने और सत्ता में भागीदारी करने का मौका देती है।

4. चौथा घटक-भारत में अर्थव्यवस्था को इस तरह विकसित करने के प्रयास किए गए हैं कि बहुसंख्यक नागरिकों को गरीबी और अभाव से निजात मिले तथा नागरिकों के बीच आर्थिक असमानता ज्यादा न हो। ये प्रयास ज्यादा सफल नहीं हुए हैं। हमारा देश अब भी गरीब है और असमानताएँ मौजूद हैं। फिर मी. लोकतांत्रिक राजनीति में ऐसे अवसर उपलब्ध हैं कि गरीब और वंचित नागरिक अपनी आवाज उठा सकें। लोकतांत्रिक रीति से निर्वाचित सरकार के ऊपर दबाव होता है कि वह आर्थिक संवृद्धि को मानवीय विकास का सहगामी बनाए। इस प्रकार, लोकतंत्र सिर्फ राजनीतिक आदर्श नहीं है; लोकतांत्रिक शासन जनता को ज्यादा सुरक्षा मुहैया कराने का साधन भी है।

12. नीचे दिए गए कार्टून समझे। कार्टून में युद्ध और आतंकवाद का जो संबंध दिखाया गया है उसके पक्ष या विपक्ष में एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर ऊपर दिए गए कार्टून को समझने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते

हैं कि आजकल युद्ध और आतंकवाद में परस्पर गहरा संबंध हो गया

है। एक ओर युद्ध आतंकवाद को कुचलने के लिए शुरू किया गया

दिखाया गया है या उसका पैमाना विशाल होता हुआ दिखाया गया है

तो दूसरी ओर आतंकवाद विश्व के अनेक भागों में छोटे-छोटे क्षेत्रों

या भौगोलिक इकाइयों में है, वह युद्ध के भय से सोया हुआ है लेकिन

अंत में वह भी मानव के विनाश के लिए एक महत्त्वपूर्ण और प्रबल

कारक है। इस कार्टून के पक्ष और विपक्ष में टिप्पणी निम्नलिखित है-

(क) पक्ष में तर्कः दिए गए कार्टून के रूप में यह कहा जा सकता है कि युद्ध को प्रायः मानव विनाश के लिए बहुत बड़ा खतरा माना जाता रहा है। यह खतरा परंपरागत है। जबसे मानव पैदा हुआ है तभी से उसे युद्ध करना पड़ रहा है। यह युद्ध मानव को अपने राज्य या देश या धर्म या संसाधनों की रक्षा और अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए लड़ना पड़ा। युद्ध के पक्षधर देश यह मानते हैं कि आतंकवाद को कुचलने के लिए सभी राष्ट्र एक हो जाएँ तथा वे तब तक युद्ध का मोर्चा खोले रहें जब तक आतंकवाद समाप्त नहीं हो जाता।

(ख) विपक्ष में तर्क: आतंकवाद मानव या विश्व सुरक्षा के लिए एक नया खतरा है। यद्यपि आतंकवाद आदिकाल से चल रहा है, लेकिन वह आतंकवाद बहुत सीमित क्षेत्र तक था। जो व्यक्ति या समाज शक्ति के सिद्धांत में विश्वास करते हुए यह मानता था कि शक्ति ही ठीक है (Mign is right) वह कमजोर व्यक्ति, समुदाय या राज्य को निकल जाता था। उसे व्यक्तिगत या क्षेत्रीय स्तर पर संघर्ष या लड़ाई लड़नी होती थी। उस समय लड़ाई या युद्ध का प्रभाव सीमित होता था। आज आतंकवाद न केवल एक देश  लिए वरन् संपूर्ण विश्वजाति के लिए खतरा बन गया है।

आतंकवादी अपनी विचारधारा राजनैतिक या धार्मिक सिद्धांत और शिक्षाएँ अथवा प्राथमिकताएँ थोपने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। वे हथियारों का सहारा लेकर निर्दोष लोगों के मस्तिष्क और मन पर अपना प्रभाव जबरदस्ती डालकर उन्हें अपनी टोली में खींचते हैं और उन्हें प्रशिक्षण देते हैं और फिर छोटे बम या मानव बम अथवा संभव हो तो अधिक शक्तिशाली बम प्रयोग करने के लिए भेजते रहते हैं। धन लूटना, आतंक के भय का प्रचार-प्रसार करना. मीडिया का सहारा लेकर अपनी विचारधारा को प्रसारित करना, बड़ी-बड़ी शक्तियों या सरकारों के विरुद्ध गुरिल्ल अथवा खुले चुनौतीपूर्ण युद्धों या संघर्षों को जारी करना सर्वत्र भय के साथ-साथ प्रतिरक्षा के लिए सरकारों को गहरे जाल बिछाकर रखना या बड़ी संख्या में आंतरिक सुरक्षा का इंतजाम करने के लिए वित्रश करना। युद्ध का तो एक समय होता है लेकिन विश्व के वर्तमान आतंकवाद के शुरू होने और अंत होने का समय अभी तो दृष्टिगचर नहीं हो रहा है। इससे प्रायः निर्दोष महिलाएं, बच्चे, वयोवृद्ध लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं। संक्षेप में यह कार्टून यह दिखाता है कि युद्ध की जड़ में एक अहम् कारण आतंकवाद है जो मानव सुरक्षा के लिए एक नया सरोकार बनाए हुए

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1 समकालीन विश्व से आपका क्या तात्पर्य है?

उत्तर सामान्यत: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की दुनिया को समकालीन विश्व कहा जाता है।

प्रश्न 2 पारंपरिक सुरक्षा की अवधारणा के अनुसार राष्ट्र के लिए सर्वाधिक खतरनाक क्या होता है?

उत्तर सैन्य आक्रमणा

प्रश्न 3 एक राष्ट्र के केन्द्रीय मूल्य क्या होते हैं? .

उत्तर प्रभुसत्ता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना एक राष्ट्र के केन्द्रीय मूल्य होते हैं।

प्रश्न 4 शक्ति संतुलन से आपका क्या तात्पर्य है?

उत्तर आपात स्थिति को ध्यान में रखते हुए युद्ध की स्थिति आने पर अपने संभावित शत्रु से टक्कर लेने के लिए पहले ही अन्य राष्ट्रों का सहयोग प्राप्त करके उसे अपने पक्ष में बनाए रखना शक्ति संतुलन कहलाता है ताकि शत्रु को ईंट का जवाब पत्थर से दिया जा सके।

प्रश्न 5 'गठबंधन' से आपका क्या तात्पर्य है?

उत्तर यह प्रारम्भिक सुरक्षा नीति का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है गठबंधन में अनेक देश शामिल होते हैं और वह सैन्य आक्रमण को रोकने या उससे रक्षा करने के लिए उचित कदम उठाते हैं।

प्रश्न 6 1950 के दशक में फ्रांस को अपने किस उपनिवेश से युद्ध लड़ना पड़ा?

उत्तर वियतनाम से

प्रश्न 7 एशिमा और अफ्रीका के नौ स्वतंत्र देशों के समक्ष कौन-सी दो तत्व की सुरक्षा की चुनौतियाँ थीं?

उत्तर (1) अपने पड़ोसी देशों से सैन्य आक्रमण की आशंका। (ii) अंदरूनी सैन्य संघर्ष।

प्रश्न 8 एशिया तथा अफ्रीका के देशों में प्राय: संघर्ष के क्या कारण बने?

उत्तर (i)सीमा विवाद।

(ii) भू-क्षेत्र को छुड़वाना या हड़प लेना।

(iii) आबादी पर नियंत्रण के मामले

(iv)  राष्ट्र के अंदर उठने वाले अलगाववादी आदोलनों को प्रोत्साहन देना।

प्रश्न 9 अपारंपरिक सुरक्षा की धारणा के तीन तत्वों को लिखिए।

उत्तर (i)  किन चीजों की सुरक्षा की जाती है।

(ii) किन खतरों से सुरक्षा की जाती है।

(iii) सुरक्षा के तरीके क्या होंगे।

प्रश्न 10 तीन प्रबल अंतर्राष्ट्रीय समस्याएँ क्या-क्या हैं?

उत्तर (i) अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद।

(ii) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्याप्त भयंकर महामारियाँ।

(iii) शरणार्थी समस्या।

प्रश्न11 सुरक्षा से जुड़े केन्द्रीय मूल्यों (या चीजों) का उल्लेख कीजिए।

उत्तर आदमी जब भी अपने घर से बाहर कदम निकालता है तो उसके अस्तित्व अथवा जीवनयापन के तरीकों को किसी न किसी अर्थ में खतरा जरूर होता है। यदि हमने खतरे का इतना व्यापक अर्थ लिया तो फिर विश्व में हर घड़ी और हर जगह सुरक्षा के ही सवाल नजर आयेंगे।

इसी कारण जो लोग सुरक्षा विषयक अध्ययन करते हैं उनका कहना है कि केवल उन चीजों को 'सुरक्षा से जुड़ी चीजों का विषय बनाया जाए जिनसे जीवन के केन्द्रीय मूल्यों' को खतरा हो। तो फिर सवाल उठता है कि किसके केन्द्रीय मूल्य? क्या पूरे देश के 'केन्द्रीय मूल्य'? आम स्त्री-पुरुषों के केन्द्रीय मूल्य? क्या नागरिकों की नुमाइंदगी करने वाली सरकार हमेशा केन्द्रीय मूल्यों' का वही अर्थ ग्रहण करती है जो कोई साधारण नागरिक?

प्रश्ना2 किसी सरकार के समक्ष युद्ध की स्थिति में जो तीन विकल्प होते हैं उनका कीजिए।

उत्तर बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में तीन विकल्प होते हैं-

(i) युद्ध छिड़ने पर स्थिति को देखते हुए शत्रु के सामने हथियार डालना या आत्मसमर्पण करना।

(ii) विरोधी पक्ष की बात को बिना युद्ध किए ही मान लेना।

(iii) विरोधी पक्ष को डराने के लिए ऐसे संकेत देना यदि वह युद्ध छेड़ेगा अथवा बंद नहीं करेगा तो वह (सरकार) अपने सहयोगियों अथवा कदमों से ऐसे विनाशकारी कदम उठाएगी। जिन्हें सुनकर हमलावर बाज आए अथवा युद्ध थम जाए तो अपनी रक्षा कसे के लिए ऐसे हथियारों का प्रयोग करता कि शत्रु तुरंत पीछे हट जाए या पराजित हो जाए।

प्रश्न13 परंपरागत सुरक्षा और गैर-परंपरागत सुरक्षा में अंतर है? गठबंधनों का निर्माण करना और उन्हें बनाए रखना इनमें से किस कोटि में आता है?

उत्तर परंपरागत तथा गैर-परंपरागत सुरक्षा में अंतर; सुरक्षा की परंपरागत धारणा और गैर परंपरागत धारणा में यह अंतर है कि परंपरागत धारणा के अंतर्गत सुरक्षा की आवश्यकता राज्य के लिए समझी जाती है। राज्य की प्रभुसत्ता, स्वतंत्रता, प्रादेशिक अखण्डता को होने वाले खतरों से मुक्ति के प्रयास किए जाते हैं। इसके अंतर्गत युद्ध, बाहरी आक्रमण, गृहयुद्ध तथा आंतरिक गड़बड़ को ही सुरक्षा के खतरे माना जाता है। परन्तु गैर-परंपरागत सुरक्षा की धारणा के अंतर्गत सुरक्षा की आवश्यकता व्यक्ति तथा मानव समाज तथा विश्व के लिए समझी जाती है और भूख, बीमारी, अभाव, बेकारी, बेरोजगारी, निर्धनता, जातीय भेदभाव, महामारियों, समुद्री, तूफान, बाढ़, सूखा आदि को इसके खतरे नाना जाता है।

गठबंधन बनाने और उसे बनाए रखने के कार्यों को परंपरागत सुरक्षा की कोटि में रखा जाता है क्योंकि इसके द्वारा युद्धों तथा बाहरी आक्रमण के खतरों को रोके जाने के प्रयास किए जाते हैं।

प्रश्न14 परंपरागत सुरक्षा तथा सहयोग में क्या संबंध है?

उत्तर परंपरागत सुरक्षा तथा सहयोग में निम्नलिखित संबंध हैं-

(i) अधिकतर हमारा सामना सुरक्षा की पारंपरिक अर्थात् राष्ट्रीय सुरक्षा की धारणा से होता है। सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणा में सैन्य खतरे को किसी देश के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। इस खतरे का स्रोत कोई दूसरा मुल्क होता है जो सैन्य हमले की धमकी देकर संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता जैसे किसी देश के केन्द्रीय मूल्यों के लिए खतरा पैदा करता है। सैन्य कार्यवाही से आम नागरिकों के जीवन को भी खतरा होता है।

(ii) शायद ही कभी ऐसा होता हो कि किसी युद्ध में सिर्फ सैनिक घायल हो अथवा मारे जायें। आम स्त्री-पुरुषों को भी युद्ध में हानि उठानी पड़ती है। अक्सर निहत्थे और आग औरत-मर्दो को जंग का निशाना बनाया जाता है, उनका और उनकी सरकार का हौंसला तोड़ने की कोशिश होती है।

(iii) बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में तीन विकल्प होते हैं: आत्मसमर्पण करना तथा दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किए मान लेना अथवा युद्ध से होने वाले नाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहमकर हमला करने से बाज आए या युद्ध ठन जाए तो अपनी रक्षा करना त कि हमलावर देश अपने मकसद में कामयाब न हो सके और पीछे हट जाए अथवा हमलावर को पराजित कर देना।

प्रश्न15 पर्यावरण में तेजी से हास से देशों की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। इस कथन की पुष्टि करते हुए तर्क दें।

उत्तर पर्यावरण का तेजी से हास: विकास की होड़ में मानव ने प्राकृतिक साधनों का बड़ी बेरहमी से दोहन किया है, प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ा है, वन्य भूमि के प्राकृतिक अनुपात को बदला है, मिट्टी को दूषित किया है, जल को प्रदूषित किया है,

वायु में प्रदूषण फैलाया है, ओजोन की परत को पतला करने में भूमिका निभाई है और विश्व के तापमान में वृद्धि की है। पर्यावरण को तेजी से क्षति पहुंची है।

क्षतिग्रस्त पर्यावरण से सुरक्षा को खतरे: पर्यावरण की तेज क्षति से देशों की सुरक्षा को गंभीर खतरे पैदा हो गए हैं। ये खतरे गैर-परंपरागत सुरक्षा से संबंधित हैं जो कि निम्नलिखित हैं-

1. पर्यावरण की क्षति के कारण अब भूकंप, समुद्री तूफान, सुनामी आदि की घटनाएँ बढ़ी हैं क्योंकि पर्यावरण की क्षति ने प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ दिया है। इनसे लाखों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है और असुरक्षा का वातावरण बढ़ा है।

2. जंगलों को अंधाधुंध कराई से बाढ़ के खतरे बढ़े हैं जिससे मानवजीवन अधिक नष्ट होने लगा है।

3. खनिज पदार्थों के भण्डार बड़ी तेजी से समाप्ति की ओर बढ़ रहे हैं जिस से आने वाली पीढ़ियों के लिए उनके बचे रहने की संभावना कम होती जा रही है।

4. जल प्रदूषण के कारण पीने के शुद्ध जल की प्राप्ति कठिन हो गई है, वायु प्रदूषण के कारण साँस लेने के लिए शुद्ध हवा नहीं मिलती। इससे व्यक्ति की आयु सीमा पर प्रभाव पड़ने की संभावना है और औसत आयु घट सकती है।

5. पर्यावरण की क्षति के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हुई है और नदियों तथा समुद्रों का जल स्तर बढ़ता जा रहा है। यदि स्थिति ऐसी ही रही तो कुछ वर्षों में बहुत से देश समुद्र में समा जाएंगे। इस प्रकार पर्यावरण का तेजी से होता हुआ नुकसान किसी एक देश या क्षेत्र की सुरक्षा को खतरा पैदा नहीं करता बल्कि सभी देशों, सारे विश्व की सुरक्षा के लिए गंभीर संकट पैदा करता है।

प्रश्न16 सुरक्षा और निःशस्त्रीकरण में क्या संबंध है? निःशस्त्रीकरण के लिए भारत ने क्या भूमिका निभाई है?

उत्तर निःशस्त्रीकरण का अर्थः निःशस्त्रीकरण का शाब्दिक अर्थ तो सभी प्रकार के शस्त्रों के उत्पादन की समाप्ति है, परंतु इसका वास्तविक तथा व्यावहारिक अर्थ है विश्व-शांति और सुरक्षा के लिए विशेष प्रकार के या सभी शस्त्रों के उत्पादन में कमी या समाप्ति करना। अर्थात् दो या दो से अधिक राज्यों द्वारा आपसी समझौते या स्वेच्छा से अपने शस्त्रों में कमी करना, उन्हें सीमित मात्रा में रखना अथवा उसके उत्पादन को समाप्त करने का कदम निःशस्त्रीकरण होता है।

निःशस्त्रीकरण और सुरक्षा में संबंधः सुरक्षा और निःशस्त्रीकरण में गहरा संबंध है। जब देशों में अधिक से अधिक हथियार रखने की होड़ लग जाती है तो यह प्रक्रिया बाहरी सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाती है। विश्व के दो विरोधी गुटों में बँट जाने से अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति इतनी विस्फोटक हो गई थी कि तीसरा विश्वयुद्ध कभी भी छिड़ सकता था और यदि तीसरा युद्ध होता या हो जाए तो वह परमाणु युद्ध होगा और वह मानव जाति और मानव उपलब्धियों को पूर्णतः नष्ट कर देगा। संसार ने 1944 में हीरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों का विनाश देख लिया था और आज भी उनका प्रभाव वहाँ के लोगों पर है।

यह महसूस किया गया कि यदि निःशस्त्रीकरण को लागू नहीं किया गया तो हम प्रलय की ओर जाएँगे। यह भी महसूस किया गया कि परमाणु शस्त्रों से सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकती और परमाणु शस्त्रों से युद्ध कदापि नहीं लड़े जा सकते। परमाणु शस्त्रों का होना भय, आतंक, अविश्वास, अनिश्चय तथा खतरों में वृद्धि ही करता है। राज्यों में लगी शस्त्रों को होड़ विश्व-शांति और सुरक्षा को एक खतरा है आज प्रत्येक राज्य परमाणु शक्ति के आधार पर सैन्य शस्त्रों के निर्माण करने पर विचार करता है। शस्वीकरण का कार्य अधिकतर राज्यों द्वारा अपने आर्थिक व सामाजिक विकास को आवश्यकता की अनदेखा करके भी किया जाता है। बड़ी शक्तियों के अतिरिक्त कुछ अन्य देशों ने भी परमाणु बम बना लिया है। बेशक प्रत्येक राज्य परमाणु शवित का प्रयोग शांति के लिए करने का दावा करता है, परंतु इस बात से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि शस्त्रों की इस दौड़ में विभिन्न देशों में परस्पर अविश्वास तथा भय का वातावरण पैदा होता है और विश्व शांति तथा सुरक्षा को खतरा दिखाई देता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए नि:शस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण के लिए बहुत से प्रयत्न किए गए।

भारत द्वारा नि:शस्त्रीकरण के लिए प्रयल: भारत ने नि:शस्त्रीकरण में शुरू से ही अपना विश्वास रखा है और इसका समर्थन किया है।

1. भारत ने प्रत्येक मंच पर चाहे वह राष्ट्रीय स्तर का था या क्षेत्रीय संगठन द्वारा आयोजित था या अंतर्राष्ट्रीय स्तर का था, उसमें निःशस्त्रीकरण का समर्थन किया है

2 भारत ने विश्वशाति, गुटनिरपेक्षता, पारस्परिक सहयोग तथा आपसी बातचीत द्वारा राष्ट्रों के विवादों को निबटाने की नीति अपनाई है और युद्धों को विनाशकारी तथा सकारात्मक साधन माना है। यह तथ्य नि:शस्त्रीकरण का समर्थन करता है।


 एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 समकालीन विश्व राजनीत