NCERT Solutions Class 12 समकालीन विश्व राजनीति Chapter-9 वैश्वीकरण

NCERT Solutions Class 12 समकालीन विश्व राजनीति Chapter-9 वैश्वीकरण 

NCERT Solutions Class 12  समकालीन विश्व राजनीति  12 वीं कक्षा से Chapter 9 वैश्वीकरण के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी समकालीन विश्व राजनीति  के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 12 समकालीन विश्व राजनीति Chapter-9 वैश्वीकरण



कक्षा 12

Chapter-9

प्रश्नावली ( उत्तर सहित)

1. वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन सही है?

(क) वैश्वीकरण सिर्फ आर्थिक परिघटना है। (ख) वैश्वीकरण की शुरुआत 1991 में हुई।

(ग) वैश्वीकरण और पश्चिमीकरण समान है। (घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।

उत्तर (घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।

2. वैश्वीकरण के प्रभाव के बारे में कौन-सा कथन सही है?

(क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।

(ख) सभी देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव समान रहा है।

(ग) वैश्वीकरण का असर सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित है।

(घ) वैश्वीकरण से अनिवार्यतया सांस्कृतिक समरूपता आती है।

उत्तर (क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।

3. वैश्वीकरपा के कारणों के बारे में कौन-सा कथन सही है?

(क) वैश्वीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।

(ख) जनता का एक खास समुदाय वैश्वीकरण का कारण है।

(ग) वैश्वीकरण का जन्म संयुक्त राज्य अमरीका में हुआ।

(घ) वैश्वीकरण का एकमात्र कारण आर्थिक धरातल पर पारस्परिक निर्भरता है।

उत्तर (क) वैश्वीकरण का एक महत्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।

4. वैश्वीकरण के बारे कौन-सा कथन सही है?

(क) वैश्वीकरण का संबंध सिर्फ वस्तुओं की आवाजाही से है।

(ख) वैश्वीकरण में मूल्यों का संघर्ष नहीं होता।

(ग) वैश्वीकरण के अंग के रूप में सेवाओं का महत्त्व गौण है।

(घ) वैश्वीकरण का संबंध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।

उत्तर (घ) वैश्वीकरण का संबंध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।

5. वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन ग़लत है?

(क) वैश्वीकरण के समर्थकों का तर्क है कि इससे आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी।

(ख) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे आर्थिक असमानता और ज्यादा बढ़ेगी।

(ग) वैश्वीकरण के पैरोकारों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।

(घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।

उत्तर (घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरुपता आएगी।

6. विश्वव्यापी 'पारस्परिक जुड़ाव' क्या है? इसके कौन-कौन से घटक हैं?

उत्तर विश्व-व्यापी 'पारस्परिक जुड़ाव' का अर्थ- विश्वव्यापी 'पारस्परिक जुड़ाव', वैश्वीकरण का आधार और उसकी प्रमुख विशेषता है। इसका अर्थ है कि सारे संसार के लोग आपस में एक-दूसरे से जुड़ गए हैं, एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं, एक-दूसरे पर निर्भर हैं और अब इन्हें एक-दूसरे के साथ मिलकर ही रहना है तथा मिलकर ही अपनी गतिविधियों का संचालन करना है। विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव का अर्थ है मानव समाज में इस भावना का विकास होना कि सारे संसार के लोग वे चाहे किसी भी देश या क्षेत्र में रहते हों आपस में एक ही परिवार के सदस्य हैं और उन्हें एक-दूसरे से सहयोग करके ही जीवन व्यतीत करना है।

विश्वव्यापी आपसी जुड़ाव के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं-

(i) संचार तथा परिवहन के शीघ्रगामी साधन जिन से व्यक्तियों, वस्तुओं, सेवाओं तथा पूँजी के प्रवाह में गति आई है और पारस्परिक जुड़ाव संभव हुआ।

(ii) सूचना प्रसारण के साधन जैसे कि टी.वी., इंटरनेट, कंप्यूटर आदि जिनके कारण संसार के लोग प्रत्येक घटना के बारे में सूचित रहते है और आपस में जुड़े महसूस करते हैं।

(iii) सामान्य अर्थव्यवस्था अर्थात् बाजार पर आधारित अर्थव्यवस्था जो अब सभी देशों ने अपना ली है।

(iv) विश्वव्यापी समस्याओं जैसे कि आतंकवाद, एड्स की बीमारी, प्राकृतिक आपदाएँ जैसे समुद्री तुफान, भूकंप आदि जिनका समाधान कोई देश अपने अकेले के प्रयासों से नहीं कर सकता और उन्हें एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है।

7. वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान है?

उत्तर वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का योगदान-वैश्वीकरण की धारणा तथा विकास में सबसे अधिक योगदान प्रोद्यौगिकी का है क्योंकि इसने ही सारे संसार के लोगों का पारस्परिक जुड़ाव किया है और विभिन्न देशों तथा क्षेत्रों को आमने-सामने ला खड़ा किया है, उनकी आपसी निर्भरता को बढ़ाया है और साथ ही उन्हें यह महसूस करने पर बाध्य किया है कि वे सब एक ही परिवार के सदस्य हैं। निम्नलिखित तथ्य इस कथन की पुष्टि करते हैं।

(i) प्रौद्योगिकी की प्रगति ने सारे संसार में लोगों, वस्तुओं, पूँजी और विचारों के प्रवाह में आश्चर्यजनक वृद्धि की है। इनकी गतिशीलता'बहुत तेज हुई है।

(ii) प्रौद्योगिकी की प्रगति के कारण आज संसार के किसी भी भाग में बैठा व्यक्ति हजारों-लाखों मील की दूरी पर घटने वाली घटनाओं से तुरंत ही परिचित हो जाता है और ऐसा महसूस करने लगता है कि वह उसी स्थान पर मौजूद है और उसके आसपास ही घटना घट रही है।

(iii) टी.वी. पर दिखाए जाने वाले लाइव-टैलीकास्ट (Live Telecast) से व्यक्ति हजारों मील दूर घटने वाली घटनाओं तथा मैच आदि के बारे में यह महसूस करता है कि वह उस घटना या मैच को प्रत्यक्ष रूप से उसी स्थान पर बैठा देख रहा है और समय तथा स्थान की दूरी प्राय समाप्त हो गई है।

(iv) प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति के कारण अपने घर में बैठा व्यक्ति सारे संसार से जुड़ा हुआ महसूस करता है। वह घर बैठा ही विदेशों से व्यापार करता है, धन का भुगतान करता है, आपस में बात-चीत करता है. यहाँ तक कि सम्मेलनों तथा बैठकों में भागीदारी भी करता है।

(v) प्रौद्योगिकी विभिन्न देशों की संस्कृतियों को टी.वी. तथा इंटरनेट के माध्यम से अंत: क्रिया करने में भूमिका निभाती और वे एक दूसरे को ऐसे प्रभावित करने लगी है जैसे लोग प्रत्यक्ष रूप से, आमने-सामने आकर बातचीत करके प्रभावित होते हैं। अतः वैश्वीकरण के प्रसार में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान प्रौद्योगिकी का है।

8. वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें?

उत्तर वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका- विकासशील देशों में भारत भी आता है और इन देशों में वैश्वीकरण के कारण राज्य की परंपरागत भूमिका बदलने लगी है। इन देशों में राज्य की बदलती भूमिका की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) राज्य को अपनी अर्थव्यवस्था का निर्धारण करने की क्षमता में बहुत कमी आई है क्योंकि आज सभी देशों में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था, मुक्तव्यापार, खुली प्रतियोगिता आदि को अपनाया गया है। अत: इस दृष्टि से राज्य की भूमिका में बदलाव आया है।

(ii) राज्य द्वारा आयात-निर्यात के कड़े नियम बनाने तथा उन्हें लागू करने की भूमिका में परिवर्तन आया है क्योंकि वैश्वीकरण में व्यक्तियों, वस्तुओं, पूँजी तथा विचारों के मुक्त, तीव्र प्रवाह की धारणा आधार भूत है। अत: परमिट, पासपोर्ट, लाइसेंस आदि की बाध्यताएँ कम हुई हैं और राज्य की इस दृष्टि से भूमिका कम हुई है।

(iii) आज विकासशील देशों में भी सामाजिक कल्याण, सामाजिक सुरक्षा आदि की प्राथमिकताएँ वाजार द्वारा निश्चित होती हैं। सरकार ने इस क्षेत्र में अपनी गतिविधियों को सीमित किया है।

(iv) वैश्वीकरण के वातावरण में राज्यों की अपनी निर्भरता बढ़ी है। इसने राज्यों की स्वेच्छापूर्वक राष्ट्रीय तथा विदेश नीति के निध - रिण की शक्ति को भी कम किया है और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की नीतियों तथा निर्णयों को मानने के लिए बाध्य किया है।

(v) वैश्वीकरण ने राज्य की प्रभुसत्ता तथा राष्ट्रीय सीमाओं पर उसके नियंत्रण को प्रभावित किया है। राज्य अपने नागरिकों पर भी कड़ा नियंत्रण रखने में उतना ताकतवर नहीं रहे हैं।

9. वैश्वीकरण की आर्थिक परिणतियाँ क्या हुई हैं? इस संदर्भ में वैश्वीकरण ने भारत पर कैसे प्रभाव डाला है?

उत्तर वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव-वैश्वीकरण ने देशों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को आर्थिक क्षेत्र में भी प्रभावित किया है। इसके अच्छे प्रभाव भी पड़े हैं और बुरे भी सकारात्मक आर्थिक प्रभाव- वैश्वीकरण के अच्छे आर्थिक प्रभाव निम्नलिखित हैं-

(i).वैश्वीकरण से विभिन्न देशों के बीच आर्थिक प्रवाह तेज हुआ हैं इस आर्थिक प्रवाह को तेज़ी में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का भी हाथ है। इससे देशों के आर्थिक विकास में सहायता मिलती है।

(ii) वैश्वीकरण के कारण वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह में भी वृद्धि हुई है जिससे देशों में व्यापारिक गतिविधियाँ तेज भी हुई हैं, अधिक भी हुई है और इससे आर्थिक विकास को गति मिलती है।

(iii) पूँजी के प्रवाह के कारण विकसित देशों के लोग विकासशील देशों में अपनी पूँजी का निवेश करने लगे हैं ताकि उससे अधिक व्याज मिल सके। इससे विकासशील देशों की आर्थिक विकास की वृद्धि होती है और उन्हें अपने सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु विदेशी पूँजी प्राप्त हो जाती है।

(iv) वैश्वीकरण में क्योंकि समान व्यापारिक तथा श्रम नियम अपनाए जाने की व्यवस्था की जा रही है, इससे आशा की जाती है कि सभी देशों का संतुलित आर्थिक विकास होगा।  वैश्वीकरण के नकारात्मक आर्थिक प्रभाव- वैश्वीकरण के नकारात्मक आर्थिक परिणाम भी हैं। प्रमुख आर्थिक नकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं-

(i) वैश्वीकरण ने सभी देशों में पूँजीवादी व्यवस्था को बढ़ावा दिया है और बाजार मूलक अर्थव्यवस्था अपनाई गई है। इससे अमीरों की संख्या कम और गरीबों की संख्या अधिक होती जा रही है। अर्थात् अमीर और अधिक अमीर तथा गरीब और अधिक गरीब होते जा रहे हैं।

(ii) वैश्वीकरण के अंतर्गत राज्य ने समाजकल्याण, सामाजिक न्याय तथा सामाजिक सुरक्षा से संबंधित गतिविधियों से भी हाथ खींच लिया है। इससे सरकारी सहायता तथा संरक्षण पर आश्रित रहने वाले लोगों की दशा और अधिक शोचनीय होती जा रही है।

(iii) अंतर्राष्ट्रीय वित्त संस्थाएँ ऐसे तौर तरीके प्रयोग करती हैं जिनसे विकसित देशों के आर्थिक हितों को बढ़ावा मिले, उनकी सुरक्षा हो। गरीब देशों के आर्थिक हितों की अनदेखी की जा रही है जिसके कारण विकासशील देशों में वैश्वीकरण के प्रति विरोथ बढ़ा है और इन देशों में तनाव की स्थिति बढ़ती जा रही है।

(iv) बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने गरीब तथा तीसरी दुनिया के देशों के काम-धंधों पर चोट को है और छोटे-छोटे व्यापारी इन बड़ी कंपनियों का मुकाबला न कर सकने के कारण बेरोजगार होते जा रहे हैं।

वैश्वीकरण का भारत पर प्रभाव- 1991 में वित्तीय संकट से उबरने और आर्थिक वृद्धि की ऊँची दर हासिल करने की इच्छा से भारत में आर्थिक सुधारों को योजना शुरू की गई। इस योजना के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों पर आयद बाधाएँ हटाई गईं। इन क्षेत्रों में व्यापार और विदेशी निवेश भी शामिल थे। यह कहना जल्दबाजी होगी कि भारत के लिए यह सब कितना अच्छा सावित हुआ है क्योंकि अतिम कसौटी ऊँची वृद्धि-दर नहीं बल्कि इस बात को सुनिश्चित करना है कि आर्थिक बढ़वार के फायदों में सबका साझा हो ताकि हर कोई खुशहाल बने।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भारत में भी वैश्वीकरण के प्रभाव टीक नहीं रहे हैं। गरीबी और अमीरी के बीच की खाई बढ़ी है। आर्थिक असमानता दिखाई पड़ती है। महँगाई, बेरोजगारी आदि बढ़ी है।

10, क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिनता बढ़ रही है?

उत्तर (i) हम इस कथन से सहमत नहीं है कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिन्नता बढ़ रही है। वस्तुत: इससे दुनिया के विभिन्न भाग सांस्कृतिक दृष्टि से एक-दूसरे के नजदीक आ रहे हैं। हम अपने देश का ही उदाहरण लेते हैं। हम जो कुछ खाते-पीते पहनते हैं अथवा सोचते हैं-सब पर इसका असर नजर आता है। हम जिन बातों को अपनी पसंद कहते हैं वे बातें भी वैश्वीकरण के असर में तय होती हैं।

(ii) वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों को देखते हुए इस भय को बल मिला है कि यह प्रक्रिया विश्व की संस्कृतियों को खतरा पहुँचाएगी वैश्वीकरण से यह होता है क्योंकि वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता ले आता है। सांस्कृतिक समरूपता का यह अर्थ नहीं कि किसी विश्व-संस्कृति का उदय हो रहा है। विश्व-संस्कृति के नाम पर दरअसल शेष विश्व पर पश्चिमी संस्कृति लादी जा रही है।

(iii) कुछ लोगों का तर्क है कि वर्गर अथवा नीली जीन्स की लोकप्रियता का नजदीकी रिश्ता अमरीकी जीवनशैली के गहरे प्रभाव से है क्योंकि राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभुत्वशाली संस्कृति कम ताकतवर समाजों पर अपनी छाप छोड़ती है और संसार वैसा ही दीखता है जैसा ताकतवर संस्कृति इसे बनाना चाहती है। जो यह तर्क देते हैं कि वे अक्सर दुनिया के 'मैक्डोनॉल्डीकरण' की तरफ इशारा करते हैं। उनका मानना है कि विभिन्न संस्कृतियाँ अब अपने को प्रभुत्वशाली अमरीकी ढर्रे पर ढालने लगी हैं। चूँकि इससे पूरे विश्व की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर धीरे-धीरे खत्म होती है इसलिए यह केवल गरीब देशों के लिए ही नहीं बल्कि समूची मानवता के लिए खतरनाक है।

(iv) इसके साथ-साथ यह मान लेना एक भूल है कि वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव सिर्फ नकारात्मक हैं। संस्कृति कोई जड़ वस्तु नहीं होती, हर संस्कृति हर समय बाहरी प्रभावों को स्वीकार करती रहती है। कुछ बाहरी प्रभाव नकारात्मक होते हैं क्योंकि इससे हमारी पसंदों में कमी आती है। कभी-कभी बाहरी प्रभावों से हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ता है तो कभी इनसे परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना संस्कृति का परिष्कार होता है। बर्गर मसाला-डोसा का विकल्प नहीं है इसलिए बर्गर से वस्तुतः कोई खतरा नहीं है। इससे हुआ मान इतना है कि हमारे भोजन की पसंद में एक चीज़ और शामिल हो गई है।

(v) दूसरी तरफ, नीली जीन्स भी हथकरघा पर बुने खादी के कुर्ते के साथ खूब चलती है। यहाँ हम बाहरी प्रभाव से एक अनूटी बात देखते हैं कि नीली जीन्स के ऊपर खादी का कुर्ता पहना जा रहा है। मजेदार बात तो यह है कि इस अनूठे पहनावे को अब उसी देश को निर्यात किया जा रहा है जिसने हमें नीली जीन्स दी है। जीन्स के ऊपर कुर्ता पहने अमरिकियों को देखना अब संभव है।

(vi) सांस्कृतिक समरूपता वैश्वीकरण का अगर एक पक्ष है तो इप्सी प्रक्रिया से ठीक इसका उल्टा प्रभाव भी पैदा हुआ है। वैश्वीकरण से हर संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होती जा रही है। इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण कहते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि संस्कृतियों के मेलजोल में उनकी ताकत का सवाल गौण है परंतु इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि सांस्कृतिक प्रभाव एकतरफा नहीं होता।

11. वैश्वीकरण ने भारत को कैसे प्रभावित किया है और भारत कैसे वैश्वीकरण को प्रभावित कर रहा है?

उत्तर भारत पर वैश्वीकरण का प्रभाव पूँजी, वस्तु, विचार और लोगों की आवाजाही का भारतीय इतिहास कई सदियों का है। औपनिवेशिक दौर में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी मंसूबों के परिणामस्वरूप भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यातक तथा बने-बनाये सामानों का आयातक देश था। आजादी हासिल करने के बाद, ब्रिटेन के साथ अपने इन अनुभवों से सबक लेते हुए हमने फैसला किया कि दूसरे पर निर्भर रहने के बजाय खुद सामान बनवाया जाए। हमने यह भी फैसला किया कि दूसरे देशों को निर्यात को अनुमति नहीं होगी ताकि हमारे अपने उत्पादक चीजो को बनाना सीख सकें। इस 'संरक्षणवाद' से कुछ नयी दिक्कतें पैदा हुई। कुछ क्षेत्रों में तरक्को हुई तो कुछ जरूरी क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, आवास और प्राथमिक शिक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिय गया जितने के वे हकदार थे। भारत में आर्थिक वृद्धि की दर धीमी रही।

भारत में वैश्वीकरण को अपनाना-1991 में नई आर्थिक नीति के अंतर्गत भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण को अपना लिया। अनेक देशों की तरह भारत में भी संरक्षण को नीति को त्याग दिया गया। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की स्थापना, विदेशी पूँजी के निवेश का स्वागत किया गया। विदेशी प्रौद्योगिकी और कुछ विशेषज्ञों की सेवाएँ ली जा रही हैं। दूसरी ओर भारत ने औद्यागिक संरक्षण की नीति को त्याग दिया है। जब अधिकांश वस्तुओं के आयात के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य नहीं हैं भारत स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जोड़ रहा है। भारत का निर्यात बढ़ रहा है लेकिन साथ ही अनेक वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही है। लाखों लोग बेरोजगार हैं। कुछ लोग जो पहले धनी धे वे अधिक धनी हो रहे हैं और गरीबों की संख्या बढ़ रही है। भारत में वैश्वीकरण का प्रतिरोध- वैश्वीकरण बड़ा बहस-तलब का मुद्दा है और पूरी दुनिया में इसकी आलोचना हो रही है। भारत में वैश्वीकरण के आलोचक कई तर्क देते हैं।

(i) वामपंथी राजनीतिक रुझान रखने वालों का तर्क है कि मौजूदा वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूँजीवाद की एक खास अवस्था है जो धनिकों को और ज्यादा धनी (तथा इनकी संख्या में कमी) और गरीब को और ज्यादा गरीब बनाती है।

(ii) राज्य के कमजोर होने से गरीबों के हित की रक्षा करने की उसकी क्षमता में कमी आती है। वैश्वीकरण के दक्षिणपंथी आलोचक इसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभावों को लेकर चिन्तित हैं। राजनीतिक अर्थों में उन्हें राज्य के कमजोर होने की चिन्ता है। वे चाहते हैं कि कम-से-कन कुछ क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता और 'संरक्षणवाद' का दौर फिर कायम हो। सांस्कृतिक संदर्भ में इनकी चिन्ता है कि परंपरागत संस्कृति की हानि होगी और लोग अपने सदियों पुराने जीवन-मूल्य तथा तौर तरीकों से हाथ धो बैठेंगे।

वैश्वीकरण के प्रतिरोध को लेकर भारत के अनुभव-

(i) सामाजिक आंदोलनों से लोगों को अपने आस-पड़ोस की दुनिया को समझने में मदद मिलती है। लोगों को अपनी समस्याओं के हल तलाशने में भी सामाजिक आंदोलनों से मदद मिलती है। भारत में वैश्वीकरण के खिलाफ बामपंथी तेवर की आवाजें जैसे मंचों से भी। औद्योगिक श्रमिक और किसानों के संगठनों ने बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रवेश का विरोध किया है। कुछ वनस्पतियों मसलन 'नीम' को अमरीकी और यूरोपीय फर्मा ने पेटेण्ट कराने के प्रयास किए। इसका भी कड़ा विरोध हुआ।

(ii) वैश्वीकरण का विरोध राजनीति के दक्षिणपंथी खेमों से भी हुआ है। यह खेमा विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों का विरोध कर रहा है जिसमें केबल नेटवर्क के जरिए उपलब्ध कराए जा रहे विदेशी टी.वी. चैनलों से लेकर वैलेण्टाइन डे मनाने तथा स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राओं की पश्चिमी पोशाकों के लिए बढ़ती अभिरूचि तक का विरोध शामिल है।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1 वैश्वीकरण से आपका क्या तात्पर्य है?

उत्तर एक अवधारणा के रूप में वैश्वीकरण की बुनियादी बात है-प्रवाह। प्रवाह कई प्रकार के हो सकते हैं: विश्व के एक भाग के विचारों का दूसरे भाग में पहुँचना, पूँजी का एक से ज्यादा जगहों पर जाना, वस्तुओं का कई-कई देशों में पहुँचना और उनका व्यापार तथा बेहतर आजीविका की तलाश में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आवाजाही। यहाँ सबसे जरूरी बात है-विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव जो ऐसे प्रवाहों की निरन्तरता से पैदा हुआ है और कायम भी है।

प्रश्न 2 प्रौद्योगिकी की उन्नति का प्रभाव किन तीन क्षेत्रों पर पड़ा?

उत्तर (i) विचारों का प्रवाह

(ii) पूँजी का प्रवाह

(iii) वस्तुओं और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवाजाही की सरलता।

प्रश्न 3 बहुराष्ट्रीय निगम किसे कहते हैं?

उत्तर वह कंपनी जो एक से अधिक देशों में एक साथ अपनी आर्थिक गतिविधियाँ चलाती है, उन्हें बहुराष्ट्रीय निगम कहा जाता है।

प्रश्न 4 वैश्वीकरण के कालांश में राज्य के दो प्रमुख कार्य कौन-कौन से हैं?

उत्तर. (i) कानून और व्यवस्था बनाए रखना।

(ii) अपने देश के भू-क्षेत्र तथा नागरिकों की सुरक्षा करना।

प्रश्न 5 संरक्षणवाद से आपका क्या तात्पर्य है?

उत्तर वह विचारधारा जो उदारीकरण का विराध करती है तथा देशी उद्योगों एवं उत्पादित वस्तुओं को विदेशी मालों की प्रतियोगिता से बचाने के लिए चुंगी, तटकर आदि का पक्ष लेती है, उसे संरक्षणवाद कहते हैं।

प्रश्न : भारत में नई आर्थिक नीति की शुरूआत कब हुई थी?

उत्तर 1991 में।

प्रश्न 7 विश्व व्यापार संगठन क्या है?

उत्तर विश्व व्यापार संगठन: एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन जो विभिन्न देशों के बीच व्यापार को प्रोन्नत करने के लिए गठित किया गया है। इसका उद्देश्य बिना किसी भेदभाव के समान रूप से खुले तौर पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना है।

प्रश्न 8 पर्यावरण से जुड़े अंतर्राष्ट्रीय संगठन का नाम लिखिये।

उत्तर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) नामक अंतर्राष्ट्रीय संगठन पर्यावरण से जुड़ा हुआ है।

प्रश्न 9 संरक्षणवाद द्वारा पैदा हुई किसी एक समस्या का उल्लेख कीजिये।

उत्तर संरक्षणवाद: यह वह विचारधारा है जो उदारीकरण एवं वैश्वीकरण का विरोध करती है तथा देशी उद्योगों एवं उत्पादित वस्तुओं के विदेशी मालों की प्रतियोगिता से बचाने के लिए चुंगी, तटकर आदि का पक्ष लेती है।

प्रश्न 10 डब्ल्यू. एस. एफ. क्या है?

उत्तर यह वैश्वीकरण का विरोध करने वाला पर्यावरणविदों, मजदूरों, युवा और महिला कार्यकर्ताओं का एक विश्व-व्यापी मंच है।

प्रश्न 11 वैश्विक रणनीति में अभी सबसे महत्वपूर्ण संसाधन कौन-सा

उत्तर प्रौद्योगिकी।

प्रश्न12 राष्ट्रतर कम्पनियाँ तीसरी दुनिया को किस प्रकार गरीब करती जा रही हैं?

उत्तर राष्ट्रेतर कम्पनियाँ तीसरी दुनिया को गरीब से गरीब बना रही हैं। 20 वीं शताब्दी में संसार में इन कम्पनियों की संख्या 11000 थी जो अपनी 8200 कम्पनियों द्वारा काम कर रही थीं। प्रति वर्ष ये कमनियाँ तीसरी दुनिया से 50 से 100 बिलियन डॉलर प्राप्त करती हैं। कम्पनियाँ तीसरी दुनिया के देशों में उत्पादन पर नियंत्रण करती हैं तथा बहुत-सा कच्चा माल या तो अपने देशों में सस्ते दामों पर ले जाती हैं या विकासशील देशों में ही बना कर वहीं से निर्यात करके लाभ उठाती हैं। इस विदेशी विनिमय से विकासशील देशों की वास्तविक हानि 1967-75 के बीच 18.5 अरब डालर हो थी।

प्रश्न13 पर्यावरणीय क्षरण (निम्नीकरण) के संबंध में किन्हीं चार मुद्दों का वर्णन कीजिए।

उत्तर पर्यावरणीय निम्नकरणीय (क्षरण) से संबंधित अनेक मुद्दे हैं। इनमें से कुछ का उल्लेख नीचे प्रस्तुत है:

(i) कृषि-योग भूमि का मुद्दा: दुनिया भर में कृषि योग्य भूमि में अब कोई बड़ोत्तरी नहीं हो रही जबकि मौजूदा उपजाऊ जमीन के एक बड़े हिस्से की उपजाऊ शक्ति (उर्वरता) का. हो रही है। कृषि के लिए सिंचाई जल का अभाव है। इससे खाद्य उत्पादन में कमी आ रही है। चरागाहों के चारे खत्म होने को हैं और मत्स्य-भंडार घट रहा है।

(ii) जल आपूर्ति का मुद्दा: विश्व भर में जलाशयों की जलराशि बड़ी तेजी से कम हुई है। उनमें प्रदूषण बढ़ा है। संयुक्त राष्ट्र की विश्व विकास रिपोर्ट (2006) के अनुसार विकासशील देशों की एक अरब बीस करोड़ जनता को स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं होता और यहाँ की दो अरब साठ करोड़ आबादी साफ सफाई की सुविधा से वंचित है। इसी कारण से 30 लाख से अधिकबच्चे प्रत्येक वर्ष मौत के शिकार होते हैं।

( iii) प्राकृतिक वन आदि के मुद्दः प्राकृतिक वन जलवायु को संतुलित रखने में सहायता करते हैं। इनसे जलचक्र भी संतुलित बना रहता है और इन्हीं वनों में धरती की जैव-विविधता का भंडार भरा रहता है परंतु ऐसे वनों की कटाई हो रही है और लोग स्थापित हो रहे हैं। जैव-विविधता की हानि जारी है और इसका कारण है उन पर्यावरणों का विध्वंस जो जैव-प्रजातियों के मामले में समृद्ध हैं।

(iv) वायुमंडल में ओजोन गैस का मुद्दा: धरती के ऊपरी वायुमंडल में ओजोन गैस की मात्रा में निरंतर कमी हो रही है। इसे ओजोन परत में छेद होना भी कहते हैं। इससे परिस्थितिक तंत्र और मनुष्य के स्वास्थ्य पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है।

(v) समुद्रतटीय क्षेत्रों में प्रदूषण का मुद्दाः संपूर्ण संसार में समुद्रतटीय क्षेत्रों का प्रदूषण भी बढ़ रहा है। यद्यपि समुद्र का मध्यवर्ती भाग अब भी अपेक्षाकृत स्वच्छ है परंतु इराका तटवर्ती जल जमीनी क्रियाकलापों से प्रदूषित हो रहा है। पूरे विश्व में समुद्रतटीय क्षेत्रों में मनुष्यों की सघन बसावट जारी है और इस प्रवृत्ति पर अंकुश न लगा तो समुद्री पर्यावरण की गुणवत्ता में भारी गिरावट आएगी।

प्रश्न14 कुछ अर्थशास्त्री आर्थिक वैश्वीकरण को विश्व का पुनः औपनिवेशीकरण क्यों मानते हैं?

उत्तर. (i) वामपंथी अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि मौजूदा वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूंजीवाद की एक खास अवस्था है जो धनिकों को और ज्यादा धनी (तथा इनकी संख्या में कमी) और गरीब को और ज्यादा गरीब बनाती है। इस व्यवस्था में राज्य का न्यूनतम हस्तक्षेप रहने के कारण गरीबों के हित संकट में पड़ गए हैं।

(ii) दक्षिणपंथी अर्थशास्त्री इसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभावों को लेकर चिन्तित हैं। राजनीतिक अर्थों में उन्हें राज्य के कमजोर और धीरे-धीरे अमरीकी औपनिवेशीकरण की स्थिति बनने की चिन्ता है। वे चाहते हैं कि कम से कम कुछ क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता और 'संरक्षणवाद' का दौर (केंद्रीय अर्थव्यवस्था) फिर से कायम हो। सांस्कृतिक संदर्भ में इनकी चिन्ता है कि परंपरागत संस्कृति की हानि होगी और लोग अपने सदियों पुराने जीवन-मूल्य तथा तौर तरीकों से हाथ धो देंगे।

प्रश्न15 भारत ने भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया में क्या भूमिका निभाई हैं? वर्णन कीजिए।

उत्तर भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया में भारत की भूमिका- विश्व में गूगण्डलीकरण प्रक्रिया 1980 से ही आरंभ बताई जाती है। इस प्रक्रिया में भारत ने भी योगदान किया है जो निम्नलिखित है-

(i) भारत ने 1980 के बाद से ही सूचना प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन दिया है जिसने भूमण्डलीकरण के विकास में भूमिका निभाई है। सूचना तकनीक और संचार माध्यमों के फैलाव और तीनगामी साधनों ने सारे संसार को समीप ला दिया है।

(ii) भारत ने 1990 के बाद अपनी अर्थव्यवस्था में परिवर्तन किया और आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई। भारत ने विश्व की अर्थव्यवस्था तथा विश्व मार्किट को मान्यता देकर अपनी अर्थव्यवस्था को मार्किट अर्थव्यवस्था पर आधारित किया और उसे विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ प्रतियोगी बनाने का प्रयास किया।

(iii) भारत ने व्यापारनीति में परिवर्तन किया और आयात-निर्यात पर लगे प्रतिबंधों और परमिट व्यवस्था को समाप्त या ढीला किया।

(iv) भारत ने अपनी औद्योगिकी नीति में भी सुधार किया, जिसमें उदारीकरण की प्रक्रिया आरंभ की और निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया।

(v) भारत ने मुद्रा परिवर्तन दरों में सुधार किया और विश्व मार्किट के आधार पर रुपये का अवमूल्यन किया।

(vi) भारत में निजी बैंकों को खोलने की नीति अपनाई गई और बहुत-से विदेशी बैंकों ने अपने बैंक भारत में स्थापित किए।

(vii) भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को व्यापारिक गतिविधियाँ चलाने की छूट दी गई जिसके कारण कितनी ही विदेशी कंपनियाँ भारत में व्यापारिक गतिविधियों में कार्यरत हैं।

(viii) भारत ने इनके अतिरिक्त और भी कई कदम उठाए जिन्होंने भूमण्डलीकरण को प्रोत्साहन दिया और इसके साथ ही वे भूमण्डलीकरण के कारण आवश्यक समझे गए जैसे कि बीमा, संचार आदि के क्षेत्र विदेशी कंपनियों के लिए खोले गए हैं।

(ix) भारत में कितनी ही विदेशी कंपनियों ने अपने कॉल सेंटर (Call Center) खोले हुए हैं और इन विदेशी कंपनियों में इन काल

सैंटरों के माध्यम से कितने ही भारतवासी कार्यरत हैं तथा रोजगार पाए हुए हैं।

(x) भारत ने कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए हुए हैं जो वैश्वीकरण के प्रमुख तत्त्वों में एक है। इससे दो देशों के बीच वस्तुओं की आवाजाही आसान होती है, आपसी व्यापार बढ़ता है और इसके साथ आपसी सहयोग भी।

भारत में वैश्वीकरण का विरोध-भारत ने वैश्वीकरण के विकास में योगदान किया है परंतु इसके साथ ही भारत में इसका विरोध भी हुआ है। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-

(i) भारत के वामपंथी दल वैश्वीकरण का विरोध करते हैं और पूंजीवादी के प्रसारण तथा विस्तार का एक साधन मानते हैं।

(ii) वामपंथी दल विदेशी निवेश का भारत की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा मानते हैं और उन पर 49% से अधिक निवेश की स्वीकृति दिए जाने के विरोधी है।

(iii) यह भी समझा कि बहुराष्ट्रीय निगमों के आने से भारत के छोटे और मध्यम दर्जे के व्यापारियों के काम धंधे नष्ट होते जा रहे हैं और उन्हें बड़ी कंपनियों के सामने टिकना कठिन होता जा रहा है।

(iv) भारत के दक्षिण पंथी दलों तथा वर्गों का भी यह कहना है कि वैश्वीकरण ने भारतीय संस्कृति पर बुरा प्रभाव डाला है और भारतीय संस्कृति का पाश्चात्यकरण होता जा रहा है। अब भारत में वैलेन्टाइन डे (Valentine Day) जैसे दिवस मनाए जा रहे हैं जो भारतीय संस्कृति से मेल नहीं खाते। इस दिन का बड़े पैमाने पर शिव सैनिकों तथा बजरंग दल के सदस्यों द्वारा विरोध किया जाता है, इसमें हिंसात्मक घटनाएँ भी घटती हैं।

(v) दक्षिण पाथी संगठन तथा कुछ समाज सेवी संस्थाएँ भारत में टी.वी. पर विदेशी चैनलों के प्रसारण पर रोक लगाए जाने की माँग कर रहे हैं। उनका कहना है कि विदेशी चैनल विदेशी संस्कृति का अधिक प्रसारण करते हैं और कई बार भारत में अश्लील समझे जाने वाले दृश्यों का खुला प्रसारण करते हैं जिनसे भारतीय युवा पीढ़ी पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

(vi) भारत में भी अन्य विकासशील देशों की तरह यह विचार जोर पकड़ने लगा है कि विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से विकसित पाश्चात्य देश अपने हितों की सुरक्षा करना चाहते हैं और गरीब, पिछड़े तथा विकासशील देशों के हितों की ओर ध्यान नहीं देते और उन्हें गरीबी से मुक्ति पाने का अवसर नहीं देना चाहते, उनके उचित अधिकारों से भी उन्हें वंचित करना चाहते हैं।

इसका एक उदाहरण हैं कि कुछ दिन पहले अमरीका ने नीम को पेटेंट कराने का प्रयास किया। नीम का पेड़ भारत में कदम-कदम पर पाया जाता है और ग्रामीण जीवन में तो इसे दातुन के रूप में प्रयोग किया जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

सही उत्तर पर (1) का चिन्ह लगाइए-

प्रश्न 1 वैश्वीकरण के संबंध में 'प्रवाह' शब्द का क्या अर्थ है?

(क) दुनिया के एक भाग के विचारों का दूसरे भागों में पहुँचना

(ख) पूँजी का एक से अधिक स्थानों पर जाना

(ग) वस्तुओं का कई-कई मुल्कों में पहुँचना

(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2 निम्नलिखित में कौन-सा कथन सत्य है?

(क) वैश्वीकरण एक आर्थिक परिघटना है

(ख) वैश्वीकरण एक सांस्कृतिक परिघटना है

(ग) वैश्वीकरण का प्रभाव बहुत विषम रहा है

(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3 निम्नलिखित में कौन वैश्वीकरण के लिए जिम्मेदार है?

(क) खेती

(ख) प्रौद्योगिकी

(ग) संचार

(घ) इनमें से कोई नहीं।

प्रश्न 4. प्रौद्योगिकी में हुई तरक्की के कारण क्या संभव हो पाया है?

(क) विचारों का विश्व में आदान प्रदान

(ख) पूँजी का विश्व में आदान प्रदान

(ग) लोगों की दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आवाजाही (घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5 वैश्वीकरण को वजह से राज्य की क्षमता में

(क) बढ़ोतरी होती है

(ख) कमी आती है

(ग) बहुत व्यापक वृद्धि होती है।

(घ) कोई परिवर्तन नहीं होता है।

प्रश्न 6 जिस प्रक्रिया को आर्थिक वैश्वीकरण कहा जाता है उसमें विश्व के विभिन्न मुल्कों के बीच आर्थिक प्रवाह

(क) तेल हो जाता है।

(ख) धीमा हो जाता है।

(ग) बेहद तेज हो जाता है

(घ) इनमें से कोई नहीं।

प्रश्न निम्नलिखित में क्या 0सत्य है?

(क) वैश्वीकरण का सांस्कृतिक प्रभाव नकारात्मक ज्यादा है।

(ख) वैश्वीकरण से गरीब देशों के लोग एकदम धनी बन जाएंगे।

(ग) वैश्वीकरण से धनी देशों को संपूर्ण विश्व पर आधिपत्य हो जाएगा।

(घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 8 भारत में आर्थिक-सुधारों की योजनाओं को कब आरंभ किया गया?

(क) 1989

(ख) 1990

(क)1991

(घ) 1992


उत्तर 1.(घ)  2.(घ)   3.(ख)    4.(घ)   5.(ख)    6.(क)   7.(क)    8.(क)   


 एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 समकालीन विश्व राजनीत