NCERT Solutions Class 9 भारत और समकालीन विश्व - I Chapter-8 (पहनावे का सामाजिक इतिहास)

NCERT Solutions Class 9 भारत और समकालीन विश्व - I Chapter-8 (पहनावे का सामाजिक इतिहास)

NCERT Solutions Class 9 भारत और समकालीन विश्व - I  9 वीं कक्षा से Chapter-8 (पहनावे का सामाजिक इतिहास) के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी भारत और समकालीन विश्व - I के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 9 भारत और समकालीन विश्व - I Chapter-8 (पहनावे का सामाजिक इतिहास)
एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

Class 9 भारत और समकालीन विश्व - I

पाठ-8 (पहनावे का सामाजिक इतिहास)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

पाठ-8 (पहनावे का सामाजिक इतिहास)

प्रश्न 1. अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के क्या कारण थे?

उत्तर- 

अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्रियों में कई नाटकीय बदलाव आए। ऐसा निम्नलिखित कारणों से था:

(1) तंग लिबास पहनने से युवतियों में कई बीमारियाँ तथा विरूपता आने लगी थीं।

(2) कार्सेट पहनने से रक्त प्रवाह अवरुद्ध होता था जिससे मांसपेशियां अविकसित रह जाती थी।

(3) यूरोपीय स्कूलों में नए पाठ्यक्रम में जिम्नास्टिक जैसे खेलों को भी शामिल किया गया। जिसके लिए नए तरह के पहनावे की जरूरत थी।

(4) लम्बे स्कर्ट कूड़ा बटोरते हुए चलते थे तथा बीमारी का प्रमुख कारण थे।

(5) अधिकांश वस्त्र फ्लेक्स, लिनेन या ऊन के बने होते थे, जिन्हें साफ करना एक मुश्किल कार्य था।


प्रश्न2. फ्रांस में सम्प्चुअरी कानून क्या थे?

उत्तर-

लगभग 1294 से लेकर 1789 ईसवी तक फ्रांस के लोगों से ऐसी आशा की जाती थी कि वे पोशाक के विषय में प्रचलित विशेष कानूनों का पालन करें, जिन्हें सम्प्चुअरी कानून कहा जाता था। सम्प्चुअरी कानून के द्वारा समाज को श्रेष्ठ तथा हीन वर्गों में विभाजित किया गया। इन वर्गों के व्यवहारों को इस कानून के द्वारा नियंत्रित करने का प्रयास किया गया। इसके द्वारा उन्हें कुछ खास तरह का खाना-खाने, कपड़ों का प्रयोग करने तथा कुछ विशेष क्षेत्रों में शिकार खेलने पर प्रतिबंधित किया गया।


प्रश्न3. यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच कोई दो तर्क बताइए?

उत्तर- 

यूरोपीय पोशाक संहिता, भारतीय पोशाक संहिता से कई मायने में भिन्न थी। दो प्रमुख फर्क नीचे दिए गए हैं:

(क) पगड़ी/हैट का प्रयोग: भारतीय लोग अपने सिर पर पगड़ी पहनते थे। यह उन्हें गर्मी से तो बचाती ही थी साथ ही यह सम्मान एवं आदर का सूचक है। ये लोग इसे अपने सिर से भी नहीं उतारते थे। इसके उलट, यूरोपीय पोशाक संहिता के तहत लोगों का यह अनिवार्य कर्तव्य था कि वे अपने से श्रेष्ठ व्यक्ति अथवा राजा के सामने उपस्थित होते समय, सम्मान प्रदर्शित करने के लिए अपने सिर से हैट उतारें।

(ख) जूते: भारतीय लोग सम्मान प्रकट करने एवं धूल और गंदगी से बचाने के लिए धार्मिक स्थलों, घरों तथा वरिष्ठ लोगों के यहाँ या राज दरबार में जूते उतार कर प्रवेश करते थे। यहाँ तक कि भारत में उन यूरोपीय लोगों के लिए भी यह अनिवार्य था। दूसरी ओर जूते पहनकर कोर्ट में या कार्यालय में जाना यूरोपीय संस्कृति में एक आम तथा स्वीकार्य व्यवहार था।


प्रश्न4. 1805 में अंग्रेज अफसर बेजमिन हाइन ने बंगलोर में बनने वाली चीजों की एक सूची बनाई थी। जिसमें निम्नलिखित उत्पाद भी शामिल थे:

(क) अलग-अलग किस्म और नाम वाले जनाना कपड़े।

(ख) मोटी छींट।

(ग) मखमल।

(घ) रेशमी कपड़े।

बताइए कि बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों में इनमें से कौन-कौन से किस्म के कपड़े प्रयोग से बाहर चले गए होंगे और क्यों?

उत्तर-

बीसवीं सदी के आरंभिक दशकों में भारतीयों द्वारा विभिन्न प्रकार के कपड़ों का प्रयोग परंपराओं एवं रीतियों, आर्थिक संपन्नता, जाति एवं वर्ग के नियम और विशेषकर क्षेत्रीय प्रयोग के कपड़े जैसे कई घटकों पर निर्भर करते थे। विभिन्न ग्रहों एवं नामों वाले ज़नाना कपड़े. मोटे छींट, मखमल और रेशमी कपड़ों के प्रयोग पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की वाणिज्यिक नीति का व्यापक प्रभाव पड़ा। यह कंपनी इन कपड़ों का बड़ी मात्रा में निर्यात किया करती थी। निर्यात वस्तु होने के में महँगे हो गए। इससे सामान्य भारतीयों द्वारा इन कपड़ों का इस्तेमाल कम हो गया। दूसरा कारण भारतीयों पर पश्चिमी कपड़ों का प्रभाव था। कुछ धनी लोगों ने कोट, पैंट सूट आदि पहनना शुरु कर दिया था। इससे मोटे छीट, मखमल और रेशमी कपड़ों आदि के प्रयोग में कमी आ गई।


प्रश्न5. उन्नीसवीं सदी के भारत में औरतें परंपरागत कपड़े क्यों पहनती रही जबकि पुरुष पश्चिमी कपड़े पहनने लगे थे इससे समाज में औरतों की स्थिति के बारे में क्या पता चलता है?

उत्तर- 

19वीं सदी के भारत में सिर्फ उन्हीं उच्च वर्गीय भारतीयों ने पश्चिमी कपड़े पहनना आरंभ किया जो अंग्रेजों के संपर्क में आए थे। साधारण भारतीय समुदाय इस काल में परंपरागत भारतीय वस्त्रों को ही पहनता था। महिलाएँ इस काल में भी परंपरागत वस्त्र ही पहनती थी। इसका मूल कारण महिलाओं का इस काल में पश्चिमी समुदायों से प्रत्यक्ष संपर्क का अभाव था।

दूसरे उच्च वर्गीय भारतीय महिलाओं ने पश्चिमी पोशाकों को अपनाने के स्थान पर भारतीय वस्त्रों को ही नवीन शैलियों में पहनना शुरू किया। इस काल में महिलाओं की सामाजिक स्थिति घरेलू जिम्मेदारियों के निर्वहन तक ही सीमित थी। लेकिन उच्चवर्गीय महिलाएँ शिक्षित होने के साथ-साथ राजनीति तथा समाज सेवा जैसे महत्वपूर्ण कार्यों से जुड़ी हुई थी।


प्रश्न6. विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि ‘महात्मा गांधी राजद्रोही मिडिल टेम्पल वकील’ से ज्यादा कुछ नहीं है और ‘अर्घ नगे फकीर का दिखावा’ कर रहे है। चर्चिल ने यह वक्तव्य क्यों लिया और इससे महात्मा गांधी की पोशाक की प्रतीकात्मक शक्ति के बारे में क्या पता चलता है?

उत्तर- 

जब महात्मा गांधी गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए लंदन पहुंचे तो उस समय उन्होंने खादी का संक्षिप्त वस्त्र पहन रखा था। यह लंदन की मिलों में बने वस्त्र का विरोध प्रकट करने का उनका अपना तरीका था। यह गरीबी और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का भी प्रतीक था। ऐसे ही मौके पर चर्चिल ने गांधी जी को अधनंगा फकीर कहा था। उनकी इस तरह की पुस्तक एक साथ कई बातों की ओर इशारा करती है।

पहला, यह ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीयों के शोषण का सूचक है, जैसे कि महात्मा गाँधी के वक्तव्य से भी जाहिर होता है। जब उनसे यह पूछा गया कि उनके वस्त्र छोटे क्यों हैं तो उन्होंने कहा “जार्ज पंचम् से मिलने जा रहा हूँ उसके शरीर पर पर्याप्त पोशाक है जिससे हम दोनों का गुजारा चल सकता है।”

दूसरा, यह आम लोगों की स्थिति को प्रदर्शित करता था।

तीसरा, यह आत्मनिर्भरता का सूचक था। अत: गाँधी जी की पोशाक का न केवल देश की जनता बल्कि ब्रिटिश सरकार के भविष्य के लिए भी बहुत बड़ा प्रतीकात्मक महत्व था।


प्रश्न7. समूचे राष्ट्र को खादी पहनने का गांधी जी का सपना भारतीय जनता के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित क्यों रहा?

उत्तर- 

महात्मा गांधी के लिए खादी शुद्धता, सादगी और गरीबी का प्रतीक था। महात्मा गाँधी का स्वप्न था कि देशवासी खादी पहनें। उन्होंने अनुभव किया कि खादी वर्ग भेद, धार्मिक भेदों को कम करेगी और देश का धन देश में ही रहेगा। लेकिन क्या उनके कदम पर चलना सबके लिए संभव था। यहाँ कुछ उदाहरण हैं जो महात्मा गांधी के खादी के स्वप्न के विषय में प्रतिक्रिया दर्शाते हैं:

(क) कुछ का कहना था कि घर में छोटी धोती पहन कर बैठे रहना बड़ा कठिन है।

(ख) मोतीलाल नेहरू ने अपने महंगे वस्त्र छोड़ दिए जो पश्चिमी पहचान के थे और भारतीय धोती-कुर्ता को अपनी परन्तु वे महीन और उम्दा होते थे।

(ग) कुछ दलित नेताओं ने महात्मा गाँधी का अनुसरण नहीं किया। इसमें संदेह नहीं कि बहुत से दलित नेताओं ने पश्चिमी ढंग को अपनाया। उदाहरण के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने पश्चिमी वस्त्र कभी भी नहीं छोड़े।

(घ) कुछ लोगों ने खादी कभी भी नहीं पहनी क्योंकि यह महंगी थी।

(ड) सरोजनी नायडू एवं कमला नेहरू जैसी राष्ट्रवादी महिलाओं ने भी हाथ से बुने मोटे कपड़े के स्थान पर रंगीन कपड़ों का उपयोग जारी रखा।

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