NCERT Solutions Class 11 Geography in Hindi (भूगोल) Chapter - 5 (खनिज एवं शैल)

NCERT Solutions Class 11 Geography in Hindi (भूगोल) Chapter - 5 (खनिज एवं शैल) 

NCERT Solutions Class 11 भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत 11 वीं कक्षा से Chapter-5 (खनिज एवं शैल) के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 11 Geography in Hindi (भूगोल) Chapter - 5 (खनिज एवं शैल)


एनसीईआरटी प्रश्न-उत्त

Class 11 भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

पाठ-5 (खनिज एवं शैल)

1. बहुवैकल्पिक प्रश्न

प्रश्न (i) निम्न में से कौन ग्रेनाइट के दो प्रमुख घटक हैं?

(क) लौह एवं निकिल ।

(ख) सिलिका एवं ऐलुमिनियम

(ग) लौह एवं चाँदी ।

(घ) लौह ऑक्साइड एवं पोटैशियम

उत्तर- (ग) लौह एवं चाँदी।।

प्रश्न (ii) निम्न में से कौन-सा कायान्तरित शैलों का प्रमुख लक्षण है?

(क) परिवर्तनीय

(ख) क्रिस्टलीय

(ग) शान्त

(घ) पत्रण

उत्तर- (क) परिवर्तनीय।

प्रश्न (iii) निम्न में से कौन-सा एकमात्र तत्त्व वाला खनिज नहीं है?

(क) स्वर्ण

(ख) माइका ।

(ग) चाँदी

(घ) ग्रेफाइट

उत्तर- (घ) ग्रेफाइट।

प्रश्न (iv) निम्न में से कौन-सा कठोरतम खनिज है?

(क) टोपाज

(ख) क्वार्ट्ज

(ग) हीरा

(घ) फेल्सफर

उत्तर- (ग) हीरा

प्रश्न (v) निम्न में से कौन-सी शैल अवसादी नहीं है?

(क) टायलाइट

(ख) ब्रेशिया

(ग) बोरॅक्स

(घ) संगमरमर

उत्तर- (घ) संगमरमर।।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न (i) शैल से आप क्या समझते हैं? शैल के तीन प्रमुख वर्गों के नाम बताइए।

उत्तर- भूपृष्ठ की रचना जिन तत्त्वों से हुई है उन्हें शैल या चट्टान कहते हैं। शैलें अनेक खनिज पदार्थों एवं लवणों का मिश्रण हैं। आर्थर होम्स के शब्दों में, “शैलें विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थों का संयोग होती हैं। कुछ शैलें एक ही खनिज के योग से बनी हैं, जबकि अधिकांश का निर्माण एक से अधिक खनिजों के योग से हुआ है।”

भूपटल पर पाई जाने वाली शैलों को उनकी संरचना एवं गुणों के आधार पर निम्नलिखित वर्गों में विभक्त किया जाता है

  1. आग्नेय या प्राथमिक शैल,
  2. परतदार या अवसादी शैल,
  3. रूपान्तरित या कायान्तरित शैल।

प्रश्न (ii) आग्नेय शैल क्या है? आग्नेय शैल के निर्माण की पद्धति एवं उनके लक्षण बताएँ।।

उत्तर- आग्नेय’ शब्द लैटिन भाषा के ‘इग्नियस’ शब्द का हिन्दी रूपान्तर है, जिसका अर्थ होता है। ‘अग्नि’। परन्तु अग्नि से इन शैलों का कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है। वारसेस्टर के अनुसार, “जो चट्टानें द्रव पदार्थों के ठण्डे होने से ठोस अवस्था में बदल गई हैं, वे आग्नेय शैल कहलाती हैं।” भूपृष्ठ पर मिलने वाली शैलों में आग्नेय शैलें प्राचीनतम हैं। इन शैलों को प्राथमिक शैल भी कहा जाता है, क्योंकि अन्य शैलों को जन्म इन्हीं के द्वारा होता है।

भूगर्भ का तरल एवं तप्त मैग्मा, भूतल पर पहुँचकर ठण्डा होने से रवेदार कणों के रूप में जमकर आग्नेय शैल का रूप धारण कर लेता है। पृथ्वी पर जिस समय आग्नेय चट्टानों की रचना हुई, उस समय धरातल पर जीव-जन्तु नहीं थे, इसलिए इनमें जीवाश्म नहीं पाए जाते। परतविहीन कणों का मिलना इन शैलों का मुख्य लक्षण है। इसीलिए ये शैल अत्यन्त कठोर होती हैं और इन पर अपक्षयं एवं अपरदन को सबसे कम प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न (iii) अवसादी शैल का क्या अर्थ है? अवसादी शैल के निर्माण की पद्धति बताएँ।

उत्तर- अवसादी या परतदार शैल का अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द सेडीमेण्ट्री है जो ग्रीक भाषा के सेडीमेण्टम (Sedimentum) शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ नीचे बैठना (Settling Down) है। चूंकि इन शैलों का निर्माण मुख्यत: सागरों में अवसादों या तलछट के क्रमानुसार परतों से नीचे बैठने या निक्षेपित होने से होता है; अतः इन्हें परतदार, अवसादी या तलछटी शैल या चट्टान कहते हैं। वारसेस्टर के अनुसार, अवसादी शैलों की रचना प्राचीन चट्टानों के टुकड़ों एवं खनिज के एकत्रीकरण एवं संगठित होने के फलस्वरूप हुई है। अतः अवसादी चट्टानों की निर्माण पद्धति चट्टानों के आच्छादनकारी कारकों का परिणाम है जिसमें विखण्डित पदार्थ का बाह्म कारकों द्वारा संवहन एवं संचयन होता है। यही संचित पदार्थ परतों के रूप में चट्टानों में बदल जाता है।

प्रश्न (iv) शैली चक्र के अनुसार प्रमुख प्रकार की शैलों के मध्य क्या सम्बन्ध होता है?

उत्तर- शैली चक्र के अनुसार प्रमुख प्रकार की चट्टानें एक-दूसरे से निर्माण प्रक्रिया के अन्तर्गत सम्बन्धित होती हैं। शैली चक्र में पुरानी चट्टानें अपक्षय व अपरदन के कारकों द्वारा या आन्तरिक शक्ति के कारण परिवर्तित होकर नवीन रूप लेती रहती हैं। वास्तव में आग्नेय चट्टानें जिन्हें प्राथमिक चट्टानें कहते हैं से ही अन्य चट्टानों का निर्माण होता है। अतः सम्पूर्ण शैली चक्र इस चट्टान से ही संचालित होता है। 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिएप्रश्न (1) खनिज’ शब्द को परिभाषित करें एवं प्रमुख प्रकार के खनिजों के नाम लिखें। उत्तर-भूपर्पटी पर पाए जाने वाले तत्त्व प्रायः अलग-अलग नहीं मिलते, बल्कि सामान्यतः ये दूसरे तत्त्वों के साथ मिलाकर विभिन्न पदार्थों का निर्माण करते हैं। इन पदार्थों को खनिज कहा जाता है। दूसरे शब्दों, में खनिज एक ऐसा प्राकृतिक, अकार्बनिक तत्त्व है जिसमें एक क्रमबद्ध परमाणविक संरचना, निश्चित रासायनिक संघटन तथा भौतिक गुण-धर्म पाए जाते हैं। प्रमुख खनिज निम्नलिखित है

  • फेलस्पार-इसमें सिलिका, ऑक्सीजन, सोडियम, पोटैशियम, कैल्सियम, ऐलुमिनियम आदि तत्त्व सम्मिलित हैं। चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है।
  • क्वार्टज-इसमें सिलिका होता है। यह ग्रेनाइट का प्रमुख घटक है। यह एक कठोर एवं अघुलनशील खनिज है। इसका उपयोग रेडियो और राडार में होता है।
  • पाइरॉक्सीन—इसमें कैल्सियम, मैग्नेशियम, आयरन और सिलिका सम्मिलित हैं। यह सामान्यतया उल्का पिण्ड में पाया जाता है।
  • एम्फीबोल-इसमें पृथ्वी के भूपृष्ठ का 70% भाग निर्मित हुआ है। इसका उपयोग एस्बेस्टस । उद्योग में होता है।
  • माइका-इसमें पोटैशियम, ऐलुमिनियम, मैग्नेशियम, लौह, सिलिका आदि सम्मिलित हैं। माइका का उपयोग विद्युत उपकरणों में किया जाता है। इनके अतिरिक्त क्लोराइट, कैलसाइट, मैग्नेटाइट आदि अन्य प्रमुख खनिज हैं।

प्रश्न (ii) भूपृष्ठीय शैलों में प्रमुख प्रकार की शैलों की प्रकृति एवं उनकी उत्पत्ति की पद्धति का वर्णन करें। आप उनमें अन्तर स्थापित कैसे करेंगे?

उत्तर- चट्टान एक या एक से अधिक खनिजों का मिश्रण है। भूपृष्ठ, शैल या चट्टानों के संयोग द्वारा ही निर्मित है। भूपृष्ठ पर सामान्यतया निम्नलिखित तीन प्रकार की चट्टानें मिलती हैं—(1) आग्नेय चट्टान, (2) अवसादी या परतदार चट्टान, (3) रूपान्तरित चट्टान। इन तीनों प्रकार की चट्टानों की प्रकृति एवं उत्पत्ति पद्धति को शैली चक्र के माध्यम से भली प्रकार समझा जा सकता है।

चट्टानों की उत्पत्ति-भूपृष्ठ के नीचे सभी चट्टानें तरल अवस्था में हैं, जिसे मैग्मा कहते हैं। जब मैग्मा आन्तरिक भाग में ठण्डा होता है या लावा के रूप में भूपृष्ठ के बाहर आकर ठण्डा होता है तो आग्नेय चट्टानों की उत्पत्ति होती है। जब बाह्य आग्नेय चट्टानों पर अपक्षय एवं अपरदने दोनों कारक अपना प्रभाव डालते हैं तो ठोस पदार्थ खण्डित होकर शैल चूर्ण में परिवर्तित होता है। इस पदार्थ को अपरदन के कारक अन्यत्र स्थान पर परिवहित करके अनेक परतों के रूप में निक्षेपित करने से परतदार चट्टानों की उत्पत्ति होती है। अत्यधिक ताप एवं दबाव के कारण जब परतदार एवं आग्नेय चट्टानों का रूप परिवर्तित होने लगती है तब कायान्तरित चट्टानों का निर्माण होता है (चित्र 5.1)। शैली चक्र द्वारा आग्नेय, परतदार एवं कायान्तरित तीनों प्रकार की चट्टानों की उत्पत्ति पद्धति और भी स्पष्ट होती है।

Solutions Class 11 Geography in Hindi (भूगोल) Chapter - 5 (खनिज एवं शैल)

विभिन्न प्रकार की चट्टानों की प्रकृति एवं अन्तर

1. आग्नेय चट्टान-आग्नेय चट्टानें कलेर, रवेदार एवं अप्रवेश्य होती हैं। इनमें जीवाश्म नहीं पाए जाते हैं।

2. परतदार चट्टान-परतदार चट्टानें कोमल, प्रवेश्य, जीवाश्मयुक्त होती हैं। इनमें कणों के स्थान पर | परत पाई जाती हैं।

3. कायान्तरित चट्टान-ये चट्टानें कठोर होती हैं। टूटने पर इनके कण बिखर जाते हैं। इनकी उत्पत्ति धरातल से हजारों मीटर की गहराई पर होती है। ये चट्टानें विभिन्न रंगों वाली होती हैं।

प्रश्न (iii) कायान्तरित शैल क्या है? इनके प्रकार एवं निर्माण की पद्धति का वर्णन करें।

उत्तर- कायान्तरित का अर्थ हैं—रूप में परिवर्तन; अत: ऐसी आग्नेय एवं परतदार चट्टानें जिनका धरातल के नीचे ताप या दाब वृद्धि के कारण रूप बदल जाता है, कायान्तरित शैलें कहलाती हैं। इस प्रकार कायान्तरित चट्टानों का निर्माण पूर्व चट्टान के आयतन, दाब व तापमान में परिवर्तन के कारण होता है। उदाहरण के लिए, आग्नेय और तलछटी शैलों का उष्मा, संपीडन और विलियन द्वारा परिवर्तन होता है। संगमरमर, स्लेट और ग्रेफाइट इसी के द्वारा उत्पन्न कायान्तरित चट्टानें हैं। इन चट्टानों के रूप, रंग और। आकार में इतना परितर्वन हो जाता है कि इनके मूल रूप की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

कायान्तरित चट्टानों के प्रकार

कायान्तरित चट्टानें रूप-परिवर्तन के परिणामस्वरूप निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं

1. गतिक कायान्तरित शैल-जब मूल चट्टान अत्यधिक दाब के कारण रूपान्तरित हो जाती है तो उसे गति कायान्तरित शैल कहते हैं। इस प्रकार से निर्मित कायान्तरित शैलों में ग्रेनाइट से नाईस तथा मिट्टी से शैल, शिष्ट आदि प्रमुख चट्टानें हैं।

2. तापीय कायान्तरित शैल-जब भूपर्पटी में अत्यधिक उष्मा के प्रभाव से अवसादी अथवा आग्नेय चट्टानों के खनिजों में रवों का पुनर्निर्माण या रूप परिवर्तन होता है तो उसे तापीय कायान्तरित शैल कहते हैं। इसे स्पर्श रूपान्तरित शैल भी कहते हैं। इस रूपान्तरण से चूना-पत्थर संगमरमर में, बालू क्वार्ट्जाइट में तथा चिकनी मिट्टी स्लेट में और कोयला ग्रेफाइट में बदल जाता

3. क्षेत्रीय/प्रादेशिक कायान्तरित शैल-इस स्थिति में बहुत गहराई पर ताप में हुई वृद्धि और भूसंचरण का दाब एक साथ मिलकर किसी बड़े क्षेत्र पर एक साथ कार्य करता है तो पूरे क्षेत्र की चट्टानों का रूपान्तरण हो जाता है। इसी से क्षेत्रीय अथवा प्रादेशिक कायान्तरित शैल बनती हैं।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. “चट्टानें अधिकतर विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थों का संयोग होती हैं।” यह कथन है|

(क) टॉर एवं मार्टिन का

(ख) सर आर्थर होम्स का।

(ग) कुमारी सैम्पुल का

(घ) गुटेनबर्ग का

उत्तर- (ख) सर आर्थर होम्स का।

प्रश्न 2. कायान्तरण या रूप-परिवर्तन के कारण हैं

(क) तापमान

(ख) सम्पीडन एवं दबाव

(ग) घोलन-शक्ति

(घ) ये सभी

उत्तर- (घ) ये सभी।

प्रश्न 3. जिप्सम है|

(क) अवसादी चट्टाने

(ख) आग्नेय चट्टान

(ग) रूपान्तरित चट्टान

(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर- (क) अवसादी चट्टान।।

प्रश्न 4. बेसाल्ट है

(क) अवसादी चट्टान

(ख) आग्नेय चट्टान

(ग) कायान्तरित चट्टान

(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर- (ख) आग्नेय चट्टान।

प्रश्न 5. निम्नांकित में से कौन-सी चट्टान कायान्तरित नहीं है?

(क) ग्रेनाइट

(ख) नीस

(ग) शिस्ट (घ) संगमरमर

उत्तर- (क) ग्रेनाइट।

प्रश्न 6. सम्पीडन एवं दबाव किन शैलों के निर्माण में सहायक होते हैं?

या पृथ्वी के आन्तरिक भाग में कौन-सी चट्टान अधिक गर्मी व दबाव से बनी है?

(क) अवसादी शैलों के

(ख) आग्नेय शैलों के

(ग) कायान्तरित शैलों के

(घ) इनमें से किसी के भी नहीं

उत्तर- (ग) कायान्तरित शैलों के।

प्रश्न 7. निम्नलिखित में से कौन एक कायान्तरित चट्टान है?

(क) बालुका पत्थर

(ख) बेसाल्ट

(ग) संगमरमर

(घ) ग्रेनाइट

उत्तर- (ग) संगमरमर। ।

प्रश्न 8. निम्नलिखित में से कौन आग्नेय चट्टान है?

(क) बालुका पत्थर

(ख) स्लेट

(ग) बेसाल्ट

(घ) शैल

उत्तर- (ग) बेसाल्ट।

प्रश्न 9. निम्नलिखित में से कौन-सी कायान्तरित शैल है?

(क) ग्रेनाइट

(ख) शैल

(ग) चूना-पत्थर

(घ) स्लेट

उत्तर- (घ) स्लेट।।

प्रश्न 10. निम्नलिखित में से कौन-सी आग्नेय चट्टान है?

(क) ग्रेनाइट

(ख) चूना-पत्थर

(ग) शैल

(घ) स्लेट

उत्तर- (क) ग्रेनाइट।

प्रश्न 11. निम्नलिखित में से कौन-सी कायान्तरित चट्टान है?

(क) बेसाल्ट

(ख) क्वार्ट्जाइट

(ग) ग्रेनाइट

(घ) बालुका पत्थर

उत्तर- (ख) क्वार्ट्जाइट।

प्रश्न 12. रूपान्तरण क्रिया की सरल ऊर्जा है

(क) चट्टानों का विघटन

(ख) चट्टानों का वियोजन

(ग) चट्टानों का रूप परिवर्तन

(घ) चट्टानों की स्थिति में परिवर्तन

उत्तर- (ग) चट्टानों का रूप परिवर्तन।

प्रश्न 13. निम्नलिखित में से कौन परतदार चट्टान है?

(क) संगमरमर

(ख) स्लेट

(ग) चूने का पत्थर

(घ) बेसाल्ट

उत्तर- (ग) चूने का पत्थर।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. शैल या चट्टान से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- भूपटल पर पाये जाने वाले वे समस्त पदार्थ जो धातुएँ नहीं हैं, चाहे वे चीका मिट्टी की तरह मुलायम हों या ग्रेनाइट की भाँति कठोर हों, चट्टान कहलाते हैं।

प्रश्न 2. आग्नेय चट्टानें कैसे बनती हैं?

उत्तर- पृथ्वी के भीतरी भागों से आन्तरिक क्रिया द्वारा पृथ्वी के ऊपरी धरातल पर जब पिघला हुआ पदार्थ ठोस रूप धारण करता है, तो आग्नेय चट्टानें बनती हैं।

प्रश्न 3. कायान्तरित या रूपान्तरित चट्टानें किन्हें कहते हैं?

उत्तर- जिन चट्टानों में दबाव, गर्मी एवं रासायनिक क्रियाओं द्वारा उनकी बनावट, रूप तथा खनिजों का पूरी तरह कायापलट हो जाता है, उन्हें कायान्तरित या रूपान्तरित चट्टानें कहते हैं।

प्रश्न 4. कायान्तरित या रूपान्तरित शैलों का निर्माण कैसे होता है?

उत्तर- कायान्तरित या रूपान्तरित शैलों का निर्माण आग्नेय तथा अवसादी शैलों पर अत्यधिक दबाव तथा अधिक तापमानों के प्रभाव से उनके रूपान्तर द्वारा होता है।

प्रश्न 5. अवसादी शैलें कैसे बनती हैं?

उत्तर- अपक्षय और अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा धरातल, झीलों, सागरों एवं महासागरों में लगातार मलबा जमा होता रहता है। यह मलबा परतों के रूप में जमा होता रहता है। इस प्रकार लगातार मलबे की परत के ऊपर परत जमा होती रहती है। ऊपरी दबाव के कारण नीचे वाली परतें कुछ कठोर हो जाती हैं। ये परतें ही कठोर होकर अवसादी शैलें बन जाती हैं।

प्रश्न 6. आग्नेय शैलों की दो विशेषताएँ बताइए।

उत्तर- आग्नेय शैलों की दो विशेषताएँ निम्नवत् हैं

  • ये अत्यन्त कठोर होती हैं; अतः इनमें जल प्रवेश नहीं कर सकता।
  • इन शैलों का निर्माण ज्वालामुखी से निकले गर्म एवं तप्त मैग्मा द्वारा होता है।

प्रश्न 7. प्रमुख कायान्तरित चट्टानों के नाम लिखिए।

उत्तर- प्रमुख कायान्तरित चट्टानें हैं—स्लेट, ग्रेफाइट, संगमरमर, हीरा, नीस आदि।

प्रश्न 8. पातालीय आग्नेय चट्टानें क्या हैं? उदाहरण देकर बताइए।

उत्तर- भूगर्भ का जो मैग्मा धरातल पर न आकर भीतरी भागों में बहुत अधिक गहराई पर ठण्डा होकर जम जाता है और उससे जो चट्टानें बनती हैं, वे पातालीय चट्टानें कहलाती हैं; जैसे-ग्रेनाइट और ग्रैबो।।

प्रश्न 9. कायान्तरित एवं आग्नेय चट्टानों के चार-चार उदाहरण दीजिए।

उत्तर- कायान्तरित चट्टानें—(1) स्लेट, (2) नीस, (3) हीरा तथा (4) संगमरमर। | आग्नेय चट्टानें-(1) गैब्रो, (2) बेसाल्ट, (3) ग्रेनाइट तथा (4) सिल।।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. स्पष्ट कीजिए-चट्टानें खनिजों का समूह हैं।

उत्तर- कुछ चट्टानें एक ही खनिज से निर्मित होती हैं; जैसे—बलुआ पत्थर, चूना-पत्थर, संगमरमर आदि, किन्तु कुछ चट्टानें एक से अधिक खनिजों के सम्मिश्रण से बनी होती हैं; जैसे—ग्रेनाइट, स्फटिक, फेल्सफर और अभ्रक, जो तीन या चार खनिजों से मिलकर बनते हैं। कुछ अन्य अनेक प्रकार की धातु एवं अधातु खनिजों के जटिल मिश्रण से भी बनती हैं; जैसे-ऐलुमिना, कांग्लोमरेट, लिमोनाइट अयस्क आदि। भूवैज्ञानिकों द्वारा अब तक लगभग 2,000 खनिजों का पता लगाया जा चुका है, किन्तु भूपटल के निर्माण में इनमें से केवल 20 खनिज ही महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। खनिज विशेष प्रकार के गुणों वाला मूल-तत्त्वों का रासायनिक यौगिक (Chemical Compound) होता है। अभी तक 115 मूल तत्त्वों के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकी है, किन्तु भू-पृष्ठ के निर्माण में इसमें से केवल 8 ही प्रमुख माने गये हैं। इस प्रकार भू-पृष्ठ का 98.59 प्रतिशत भाग केवल 8 खनिजों ऑक्सीजन (46.8), सिलिकन (27.7), ऐलुमिनियम (8.13), लोहा (5.0), कैल्सियम (3.63), सोडियम (2.83), पोटैशियम (2.49) और मैग्नीशियम (2.09) प्रतिशत से निर्मित है। पृथ्वी के शेष 1.41 प्रतिशत भाग की रचना टाइटैनियम, हाइड्रोजन फॉस्फोरस, कार्बन, मैंगनीज, गन्धक, बोरियम, क्लोरीन, सोना, चाँदी, ताँबा, पारा, सीसा आदि शेष सभी तत्त्वों से हुई है। इस प्रकार चट्टानें खनिजों का समूह हैं।

प्रश्न 2. शैलों के तापीय और गत्यात्मक कायान्तरण का अन्तर बताइए।

उत्तर- शैलों का तापीय कायान्तरण ज्वालामुखी क्रिया के द्वारा होता है। ज्वालामुखी क्रिया के दौरान उष्ण मैग्मा के मार्ग में पड़ने वाली शैलें अत्यधिक ताप के कारण परिवर्तित हो जाती हैं। इसे तापीय कायान्तरण कहते हैं। इसके विपरीत, गत्यात्मक कायान्तरण का कारण भूगर्भ की पर्वत निर्माणकारी हलचलें हैं। इन हलचलों के कारण शैलों में गतिशीलता उत्पन्न होती है। परिणामतः वे काफी गहराई पर पहुँच जाती हैं। अत्यधिक दबाव, भिंचाव तथा उष्णता के कारण उमें कायान्तरण होता है।

प्रश्न 3. रूपान्तरण के मुख्य प्रकार बताइए।

उत्तर- रूपान्तरण के प्रभाव-क्षेत्र एवं उसके अभिकर्ताओं के अनुसार प्रमुख प्रकार निम्नवत् हैं–

1. संस्पर्शीय रूपान्तरण अथवा तापीय रूपान्तरण-जब तप्त मैग्मा के सम्पर्क में आकर शैल का रूप बदल जाता है तो उसे संस्पर्शीय या तापीय रूपान्तरण कहते हैं। भूगर्भ में बैथोलिथ सिल, डाइक आदि का निर्माण मैग्मा क्षेत्रों के निकटवर्ती भागों में शैलों के रूपान्तरण द्वारा इसी प्रकार : होता है। बलुआ-पत्थर से क्वार्ट्ज़ाइट और चूना पत्थर से संगमरमर इसी प्रकार बनी रूपान्तरित शैलें हैं।

2. प्रादेशिक रूपान्तरण-जब रूपान्तरण की क्रिया अत्यधिक ताप एवं दबाव के कारण एक विस्तृत क्षेत्र में घटित होती है तो उसे प्रादेशिक रूपान्तरण कहते हैं। ऐसा रूपान्तरण प्रायः नवीन | पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है। यहाँ संगमरमर, स्लेट, सिस्ट, क्वार्ट्जाइट, नीस आदि रूपान्तरित शैलें व्यापक स्तर पर मिलती हैं।

प्रश्न 4. शैलों को वर्गीकृत कीजिए।

या शैल या चट्टान कितने प्रकार की होती हैं?

उत्तर- भू-पटल पर पाई जाने वाली शैलों को उनकी संरचना एवं गुणों के आधार पर निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जा सकता है

1. आग्नेय या प्राथमिक शैल-यह शैल पृथ्वी के तरल मैग्मा के शीतल होने से सर्वप्रथम निर्मित हुई थी, इसलिए इसे प्राथमिक शैल कहते है।

2. परतदार या अवसादी शैल-जल भागों में अवसादों एवं जीवावशेषों के जमाव से निर्मित शैलें अवसादी शैलें कहलाती हैं। इनका निर्माण विभिन्न अपरदन कारकों जल, वायु, हिमानी आदि से होता है।

3. रूपान्तरित या कायान्तरित शैल-दाब एवं ताप के कारण अवसादी या आग्नेय शैलों के रूप परिवर्तन के फलस्वरूप कायान्तरित शैलों का निर्माण होता है।

प्रश्न 5. आग्नेय शैलों का रासायनिक संरचना के आधार पर वर्गीकरण कीजिए।

उत्तर- रासायनिक संरचना के आधार पर आग्नेयशैलों का वर्गीकरण-आग्नेय शैलों की संरचना में सिलिका प्रमुख घटक होता है। सिलिका की मात्रा के आधार पर इन्हें निम्नलिखित चार भागों में बाँटा गया हैं

  • अधिसिलिका या अम्लप्रधान चट्टानें–इनका उदाहरण ग्रेनाइट और आब्सीडियन चट्टानें हैं। जिनमें सिलिका की मात्रा 65% से अधिक होती है। इन चट्टानों का रंग हल्का होता है।
  • मध्यसिलिका चट्टानें-डायोराइट और एण्डोजाइट इसी प्रकार की चट्टानें हैं जिनमें सिलिका की मात्रा 55% से 65% तक होती है।
  • अल्पसिलिका या बेसिक चट्टानें-इनमें सिलिका 45% से 55% तक पाया जाता है। इनका रंग गहरा होता है। बेसाल्ट और गैब्रो इनके उदाहरण हैं।
  • अत्यल्प सिलिका या बेसिक चट्टानें-इनमें सिलिका की मात्रा 45% से भी कम होती है। पेरिडोटाइट इसी प्रकार की चट्टान है जो बहुत भारी होती है।

प्रश्न 6. कायान्तरित शैलों की मुख्य विशेषता एवं आर्थिक महत्त्व बताइए।

उत्तर- कायान्तरित शैलों की विशेषताएँ

कायान्तरित शैलों में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं

  • इन चट्टानों में रवे तो पाए जाते हैं, परन्तु परतों का प्रायः अभाव पाया जाता है। शैलों का कायान्तरण हो जाने के फलस्वरूप उनके जीवाश्म नष्ट हो जाते हैं।
  • ये शैलें संगठित तथा कठोर होती हैं: अतः इन पर ऋतु-अपक्षय एवं अपरदन की क्रियाओं का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • ये शैलें अरन्ध्र होती हैं, अतः इनमें जल प्रवेश नहीं कर पाता। इनका अपरदन तथा अपक्षये भी कठिनाई से होता है।
  • यद्यपि इन शैलों का निर्माण आग्नेय तथा परतदार शैलों के रूप-परिवर्तन से होता है, फिर भी इनमें मूल चट्टान का कोई लक्षण नहीं पाया जाता है।

कायान्तरित शैलों का आर्थिक महत्त्व

कायान्तरित शैलें आर्थिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती हैं। इन्हीं शैलों में सोना, हीरा, संगमरमर, चाँदी, ग्रेफाइट तथा चुम्बकीय लोहा जैसे मूल्यवान खनिज पाए जाते हैं, जिनका उपयोग उद्योगों तथा भवन-निर्माण के लिए किया जाता है। सोना, चाँदी तथा हीरा बहुमूल्य खनिज हैं। इन शैलों में गन्धक-मिश्रित जल के स्रोत पाए जाते हैं, जिनमें स्नान करने से त्वचा के रोग नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 7. प्रमुख कायान्तरित शैल एवं उनके मौलिक रूपों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-  प्रमुख कायान्तरित शैलें तथा उनके मौलिक रूप

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प्रश्न 8. खनिज एवं चट्टान में अन्तर बताइए।

उत्तर- खनिज एवं चट्टान में अन्तर

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प्रश्न 9. रूपान्तरित एवं अवसादी शैलों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- -रूपान्तरित एवं अवसादी शैलों में अन्तर

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प्रश्न 10. फोलिएशन (Foliation) एवं लिनिएशन (Lineation) में भेद कीजिए।

उत्तर- फोलिएशन (पत्रण)—जब रूपान्तरित शैल के कण कुछ परत के रूप में समान्तर अवस्था में पाए। जाते हैं तो इस प्रकार की कायान्तरित शैलों की बनावट फोलिएशन या पत्रण कहलाती है।

लिनिएशन—यह भी रूपान्तरित चट्टानों की एक विशेष बनावट है जिसके अन्तर्गत खनिजों के कण लम्बे, पतले तथा पेन्सिल के रूप में पाए जाते हैं।

प्रश्न 11. खनिजों का सामान्य वर्गीकरण कीजिए।

उत्तर- सामान्यतः खनिजों का वर्गीकरण धात्विक खनिज एवं अधात्विक खनिजों के रूप में किया जाता है

(क) धात्विक खनिज-इनमें धातु तत्त्वों की प्रधानता होती है। इन्हें तीन वर्गों में विभक्त किया जाता है

  1. बहुमूल्य धातु खनिज-स्वर्ण, चाँदी, प्लेटिनम आदि।
  2. लौह धातु खनिज-लौह एवं स्टील के निर्माण के लिए प्रयुक्त खनिज; जैसे—मैंगनीज आदि।
  3. अलौहिक धातु खनिज-इनमें ताम्र, सीसा, जिंक, टिन, ऐलुमिनियम आदि धातुएँ सम्मिलित हैं।

(ख) अधात्विक खनिज-इसमें धातु के अंश उपस्थित नहीं होते हैं। गन्धक, फॉस्फेट तथा नाइट्रेट आदि अधात्विक खनिज के मुख्य उदाहरण हैं। सीमेण्ट अधात्विक खनिजों का मिश्रित पदार्थ है।

प्रश्न 12. निर्माण पद्धति के आधार पर अवसादी चट्टानों के तीन मुख्य प्रकार उदाहरण सहित बताइए।

उत्तर- निर्माण पद्धति के आधार पर अवसादी शैलों के तीन मुख्य वर्ग निम्नलिखित हैं

  • यांत्रिकी रूप से निर्मित-उदाहरणार्थ; बालुकाश्म, पिण्डशिला, चूना प्रस्तर, शैल विमृदा आदि।
  • कार्बनिक रूप से निर्मित-उदाहरणार्थ, गीजराइट, खड़िया, चूना-पत्थर, कोयला आदि।
  • रासायनिक रूप से निर्मित-उदाहरणार्थ; श्रृंगार प्रस्तर, चूना-पत्थर, हेलाइट, पोटाश आदि।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. खनिज को परिभाषित कीजिए तथा भौतिक विशेषताओं और स्वभाव के आधार पर खनिजों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।

उत्तर- खनिज की परिभाषा

पृथ्वी से प्राप्त वे पदार्थ जिनकी साधारणतः एक विशेष प्रकार की रासायनिक संरचना होती है तथा जिसमें विशेष रासायनिक और भौतिक गुण पाए जाते हैं, उन्हें खनिज कहते हैं। खनिज प्राय: दो या दो से अधिक पदार्थों के मिश्रण से बनते हैं, परन्तु कुछ खनिज ऐसे भी हैं जो केवल एक ही पदार्थ से बनते हैं। जैसे–सल्फर, ग्रेफाइट, सोना आदि।।

भौतिक विशेषताएँ

  1. क्रिस्टल-खनिजों के कणों का ब्राह्यरूप अणुओं की आन्तरिक व्यवस्था द्वारा निश्चित होता है। खनिजों के कण घनाकार, अष्ट्भुजाकार या षट्भुजाकार भी हो सकते हैं।
  2. विदलन-खनिजों में विदलन प्रकृति दिशा द्वारा निश्चित होती है। खनिज एक या अनेक दिशाओं में एक-दूसरे से कोई भी कोण बनाकर टूट सकते हैं।
  3. विभंजन-खनिजों के अणुओं की आन्तरिक व्यवस्था अत्यन्त जटिल होती है। इसलिए इनमें विभाजन अनियमित होता है।
  4. चमक-प्रत्येक खनिज की अपनी चमक होती है; जैसे—मेटैलिक, रेशमी, ग्लॉसी आदि।
  5. रंग-खनिजों के रंग उनकी परमाणविक संरचना से तथा कुछ में अशुद्धियों के कारण निर्धारित होते हैं। मैलाकाइट, एजुराइट, कैल्सोपाइराट आदि परमाणविक संरचना के तथा अशुद्धियों के कारण क्वार्ट्ज का रंग श्वेत, हरा, लाल व पीला होना इसके मुख्य उदाहरण हैं।
  6. धारियाँ-खनिजों में विभिन्न रंगों के मिश्रण के कारण धारियाँ होती हैं।
  7. पारदर्शिता-खनिजों में पारदर्शिता के कारण प्रकाश की किरणें आर-पार हो जाती हैं। कुछ खनिज अपारदर्शी भी होते हैं।
  8. संरचना-प्रत्येक खनिज की संरचना भिन्न-भिन्न होती है, इसका निर्धारण क्रिस्टल की व्यवस्था पर निर्भर होता है।
  9. कठोरता-खनिज कठोर एवं कोमल दोनों प्रकार के होते हैं, किन्तु अधिकांश खनिज कठोर ही होते हैं।

प्रश्न 2. शैल या चट्टान से आप क्या समझते हैं? चट्टानों का वर्गीकरण कीजिए तथा उनका आर्थिक महत्त्व बताइए।

या परतदार या अवसादी चट्टानों की उत्पत्ति, विशेषताओं एवं आर्थिक महत्त्व की विवेचना कीजिए।

या शैलों को वर्गीकृत कीजिए तथा आग्नेय शैलों की विशेषताएँ एवं आर्थिक महत्त्व बताइए।

या अवसादी शैलों का वर्गीकरण कीजिए एवं प्रत्येक की विशेषताएँ बताइए।

या आग्नेय शैलों की उत्पत्ति, विशेषताओं एवं आर्थिक महत्त्व की विवेचना कीजिए।

उत्तर- शैल या चट्टान का अर्थ एवं परिभाषा

सामान्य रूप से भूतल की रचना जिन पदार्थों से हुई है, उन्हें चट्टान या शैल के नाम से पुकारते हैं। चट्टानें अनेक खनिज पदार्थों का सम्मिश्रण होती हैं। खनिज पदार्थों का यह सम्मिश्रण रासायनिक तत्त्वों का योग होता है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में 115 मूल तत्त्वों की खोज कर ली गयी है। उपर्युक्त तत्त्वों में धरातलीय संरचना का लगभग 98% भाग केवल आठ तत्त्वों-ऑक्सीजन, सिलिकन, ऐलुमिनियम, लोहा, कैल्सियम, सोडियम, पोटैशियम एवं मैग्नीशियम द्वारा निर्मित है। शेष 2% भाग 98 तत्त्वों के योग से बना है। इसके अतिरिक्त प्रकृति द्वारा प्रदत्त अन्य तत्त्वे भी धरातलीय निर्माण में सहायक हुए हैं।

‘चट्टान’ शब्द का शाब्दिक अर्थ किसी दृढ़ एवं कठोर स्थलखण्ड से लिया जाता है, परन्तु भूतल की ऊपरी पपड़ी में मिले हुए सभी पदार्थ, चाहे वे ग्रेनाइट की भाँति कठोर हों या चीका की भाँति कोमल, चट्टान कहलाते हैं। आर्थर होम्स का मत है कि “शैल अथवा चट्टानों का अधिकतम भाग खनिज पदार्थों कां सम्मिश्रण होता है।” खनिज पदार्थों के सम्मिश्रण चाहे चीका के समान कोमल हों या क्वार्ट्जाइट के समान ठोस या बालू के समान ढीले तथा मोटे कण वाले हों, सभी चट्टान कहलाते हैं। इस आधार पर चट्टान की परिभाषा इन शब्दों में व्यक्त की जा सकती है-“चट्टान अपनी भौतिक स्थिति का वह पिण्ड है जिसके द्वारा धरातल का ठोस रूप परिणत हुआ है।” वास्तव में भूपटल के निर्माण में सहयोग देने वाले सभी तत्त्व शैल या चट्टान कहलाते हैं।

चट्टानों का वर्गीकरण

सामान्य रूप से चट्टानों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  • आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks),
  • अवसादी या परतदार चट्टानें (Sedimentary Rocks) एवं
  • कायान्तरित या रूपान्तरित चट्टानें (Metamorphic Rocks)।

1. आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks)-‘आग्नेय’ शब्द लैटिन भाषा के Igneous शब्द का रूपान्तरण है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘अग्नि’ से होता है। भूगोलवेत्ताओं का विचार है कि प्रारम्भ में सम्पूर्ण पृथ्वी आग की तपता हुआ एक गोला थी, जो धीरे-धीरे ठण्डी होकर द्रव अवस्था में परिणत हुई है। द्रव अवस्था से ठोस तथा इस ठोस अवस्था से अधिकांशत: आग्नेय चट्टानें बनी हैं। वारसेस्टर नामक भूगोलवेत्ता का कथन है कि “द्रव अवस्था वाली चट्टानें जब ठण्डी होकर ठोस अवस्था में परिवर्तित हुईं, वे ही आग्नेय चट्टानें बनीं।” जब भूगर्भ का गर्म एवं द्रवित लावा । ज्वालामुखी क्रिया द्वारा धरातल पर फैलने से ठण्डा होकर ठोस बनने लगा, तभी आग्नेय चट्टानों को निर्माण हुआ। ज्वालामुखी क्रिया द्वारा इन चट्टानों का निर्माण आज भी होता रहता है, क्योंकि ये प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अन्य चट्टानों को भी जन्म देती हैं।

आग्नेय चट्टानों की विशेषताएँ–

  1. इन चट्टानों का निर्माण ज्वालामुखी से निकले गर्म एवं तप्त मैग्मा द्वारा होता है।
  2. ये अत्यन्त कठोर होती हैं और इनमें जल प्रवेश नहीं कर सकता। जल का इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ती है, परन्तु ये विखण्डन के कारण टूट जाती हैं।
  3. इन चट्टानों के रवे बड़े ही महीन होते हैं। इन रवों को कोई आकार तथा क्रम नहीं होता।
  4. इन चट्टानों का स्वरूप कभी गोलाकार स्थिति में नहीं मिलता है।
  5. ये चट्टानें सघन होती हैं। इनमें परतों का अस्तित्व देखने को भी नहीं मिलता, परन्तु ज्वालामुखी उद्गार के क्रमशः होते रहने से परतों की भ्रान्ति हो सकती है। इन चट्टानों के वर्गाकार जोड़ों पर ही ऋतु-अपक्षय का प्रभाव पड़ता है।
  6. इन चट्टानों में जीवावशेष (Fossils) नहीं पाये जाते हैं, क्योंकि तप्त एवं तरल लावा इन्हें | नष्ट कर देता है। यह इन शैलों की सबसे बड़ी विशेषता है।
  7. आग्नेय चट्टानों में अनेक खनिज पाये जाते हैं।

आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण- विश्व में प्राचीनतम आग्नेय चट्टानों की आयु लगभग 15 अरब वर्ष ऑकी गयी है। इस प्रकार की चट्टानें प्रायद्वीपीय भारत में अधिक पायी जाती हैं। राजस्थान का अरावली पर्वत, छोटा नागपुर की गुम्बदनुमा पहाड़ियाँ, राजमहल की श्रेणी और रॉची का पठार इस प्रकार की चट्टानों के बने हैं। अजन्ता की गुफाएँ इन्हीं चट्टानों को काटकर बनाई गयी हैं। स्थिति के अनुसार आग्नेय चट्टानों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा गया है(अ) आभ्यन्तरिक या आन्तरिक आग्नेय चट्टानें (Intrusive Rocks) एवं (ब) बाह्य आग्नेय चट्टानें (Extrusive Rocks)।

(अ) आभ्यन्तरिक या आन्तरिक आग्नेय चट्टानें (Intrusive Rocks)-जब गर्म एवं तप्त लावा अत्यधिक ताप एवं एकत्रित गैस के माध्यम से भूगर्भ की चट्टानों को तोड़कर ऊपर आने का प्रयास करता है तो लावे का अधिकांश भाग भूगर्भ में नीचे की परतों में ही रह जाता है। यह लावा वहीं ठण्डा होकर आग्नेय चट्टानों में परिवर्तित हो जाता है, जिन्हें आभ्यन्तरिक या आन्तरिक चट्टानें कहते हैं। लावे के शीतल होने की अवधि के आधार पर इन चट्टानों को निम्नलिखित उप-विभागों में बाँटा जा सकता है

(i) पातालीय आग्नेय चट्टानें (Plutonic lgneous Rocks)-जब भूगर्भ का गर्म एवं तप्त लावा बाहर न निकलकर अन्दर ही अन्दर जमकर ठोस हो जाता है, तो पातालीय आग्नेय शैल का निर्माण होता है। इनमें मोटे रवे पाये जाते हैं। ग्रेनाइट शैल इसका प्रमुख उदाहरण है।

(ii) अर्द्ध-पातालीय आग्नेय चट्टानें (Hypabyssal-Igneous Rocks)-इन्हें मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें या अधिवितलीय आग्नेय चट्टानें भी कहते हैं। जब भूगर्भ का गर्म एवं तप्त लावा पृथ्वी की ऊपरी पपड़ी पर आने में असमर्थ रहता है तथा मार्ग में पड़ने वाली सन्धियों एवं दरारों में पहुँचकर जम जाता है, तब यही लावा बाद में ठण्डा होकर चट्टानों को रूप धारण कर लेता है। इन्हें अर्द्ध-पातालीय आग्नेय चट्टानों के नाम से पुकारते हैं। इनमें रवे छोटे आकार के होते हैं। लैकोलिथ, लैपोलिथ, फैकोलिथ, सिल, डाइक आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

(ब) बाह्य आग्नेय चट्टानें (Extrusive Igneous Rocks)-जब भूगर्भ का तप्त एवं तरल लावा किसी कारणवश ज्वालामुखी उद्गार द्वारा धरातल के ऊपर ठोस रूप में जम जाता है। तो वह चट्टान का रूप धारण कर लेता है। इससे जिन चट्टानों का निर्माण होता है, उन्हें बाह्य आग्नेय चट्टानें कहते हैं। इनमें रवे नहीं होते। गैब्रो तथा बेसाल्ट ऐसी ही शैलें हैं।

आग्नेय चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)-आग्नेय चट्टानों में विभिन्न प्रकार के खनिज पाये जाते हैं। अधिकांश खनिज व धातु-अयस्क इसी प्रकार की चट्टानों में पाये जाते हैं। लौह-अयस्क,सोना, चाँदी, सीसा, जस्ता, ताँबा, मैंगनीज आदि महत्त्वपूर्ण धातु खनिज आग्नेय चट्टानों में पाये जाते हैं।

ग्रेनाइट जैसी कठोर चट्टानों का उपयोग भवन-निर्माण में व उसके सजाने में किया जाता है। भारत के छोटा नागपुर, ब्राजील का मध्य पठारी भाग, संयुक्त राज्य अमेरिका व कनाडा के लोरेंशियन शील्ड के भागों में आग्नेय चट्टानों में अधिकांश खनिज पाये जाते हैं।

2. अवसादी या परतदार चट्टानें (Sedimentary Rocks)-भूतल के 75% भाग पर अवसादी या परतदार चट्टानों का विस्तार है, शेष 25% भाग में आग्नेय एवं कायान्तरित चट्टानें विस्तृत हैं। इन चट्टानों का निर्माण अवसादों के एकत्रीकरण से हुआ है। अपक्षय एवं अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा धरातल, झीलों, सागरों एवं महासागरों में लगातार मलबा (Debris) जमा होता रहता है। यह मलबा परतों के रूप में जमा होता रहता है। इस प्रकार लगातार मलबे की परत के ऊपर परत जमा होती रहती है। अत: ऊपरी दबाव के कारण नीचे वाली परतें कुछ कठोर हो जाती हैं। इन परतों के विषय में पी० जी० वारसेस्टर ने कहा है कि ‘अवसादी चट्टानों का अर्थ होता है–धरातलीय चट्टानों के टूटे मलबे तथा खनिज पदार्थ किसी स्थान पर एकत्र होते रहते हैं, जो धीरे-धीरे एक परत का रूप ले लेते हैं।” यही परतें कठोर होकर पंरतदार शैलें बन जाती हैं। इन चट्टानों में कणों के जमने का क्रम भी एक निश्चित गति से होता है। पहले मोटे कण जमा होते हैं तथा बाद में उनके ऊपर छोटे-छोटे कण जमा होते जाते हैं तथा इनके ऊपर एक महीन एवं बारीक कणों की परत जमा हो जाती है। इस प्रकार कणों का जमाव अपरदन के साधनों के ऊपर निर्भर करता है। बाद में ये चट्टानें संगठित हो जाती हैं। अवसादों के जल-क्षेत्रों में जमाव के कारण इन चट्टानों में जीवाश्म पाये जाते हैं। आरम्भिक अवस्था में इन चट्टानों का निर्माण समतल भूमि एवं जल-क्षेत्रों में होता है, परन्तु कालान्तर में इन्हीं चट्टानों द्वारा ऊँचे-ऊँचे वलित पर्वतों का निर्माण भी ‘होता है। इन चट्टानों को जोड़ने वाले मुख्य तत्त्व कैलसाइट, लौह-मिश्रण तथा सिलिका आदि हैं। भारत में इनके क्षेत्र गंगा, यमुना, सतलुज, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, ताप्ती, महानदी, दामोदर, कृष्णा, गोदावरी आदि नदी-घाटियाँ हैं।

अवसादी चट्टानों की विशेषताएँ—अवसादी चट्टानों में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं

  1. अवसादी चट्टानों में जीवावशेष पाये जाते हैं। इन अवशेषों से इन चट्टानों के समय तथा स्थान का भूतकालीन परिचय प्राप्त हो जाता है।
  2. ये चट्टानें कोमल तथा रवेविहीन होती हैं।
  3. इन चट्टानों की निर्माण-प्रक्रिया में छोटे-बड़े सभी प्रकार के कणों का योग होता है, जिससे इनके आकार में भी भिन्नता रहती है।
  4. इन चट्टानों में परतें पायी जाती हैं जो स्तरों के रूप में एक-दूसरी पर समतल रूप में फैल जाती हैं।
  5. सागरीय जल में बनने वाली चट्टानों में धाराओं तथा लहरों के चिह्न स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होते हैं।
  6. इन चट्टानों को चाकू अथवा किसी लोहे की छड़ से खुरचने पर धारियाँ स्पष्ट रूप से बन जाती हैं। इन खुरचे हुए पदार्थों के विश्लेषण से पता चलता है कि इसमें विभिन्न खनिज पदार्थों का मिश्रण होता है।
  7. ये चट्टानें सरन्ध्र अर्थात् प्रवेश्य होती हैं। जल इन चट्टानों में शीघ्रता से प्रवेश कर जाता है।
  8. नदियों की बाढ़ द्वारा लाई गयी कांप मिट्टी पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो उष्णता के कारण इनमें दरारें पड़ जाती हैं। इसे पंक-फटन कहते हैं।
  9. परतदार चट्टानों में जोड़ तथा सन्धियाँ पायी जाती हैं।
  10. कोयला, पेट्रोल, जिप्सम, डोलोमाइट व नमक जैसे खनिज अवसादी शैलों में ही पाये जाते हैं।
  11. कृषि-कार्य, सिंचाई के साधनों का विकास करने तथा भवन निर्माण में अवसादी शैलों का अधिक महत्त्व है।

अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण—(क) निर्माण में प्रयुक्त साधन के अनुसार अवसादी शैलों का वर्गीकरण-अवसादी चट्टानों की निर्माण-प्रक्रिया के साधनों या, कारकों के आधार पर इन्हें ‘निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

(i) जल-निर्मित (जलज) चट्टानें-अवसादी शैलों के निर्माण में जल का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। पृथ्वीतल पर अधिकांश अवसादी चट्टानें जल द्वारा ही निर्मित हुई हैं। इनमें भी सबसे अधिक योगदान नदियों का रहा है। इन चट्टानों का निर्माण जलीय क्षेत्रों में होता है; अतः इन्हें जलज चट्टानें भी कहते हैं। जल द्वारा निर्मित अवसादी चट्टानों को निम्नलिखित तीन उपविभागों में बाँटा जा सकता है—(अ) नदीकृत चट्टानें, (ब) समुद्रकृत चट्टानें तथा (स) झीलकृत चट्टानें।

(ii) वायु-निर्मित चट्टानें-उष्ण एवं शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्रों की चट्टानों में यान्त्रिक अपक्षय तथा अपघटन जारी रहता है। इसलिए बहुत-सा मलबा चूर्ण एवं कणों के आकार में बिखरा पड़ा रहता है। वायु इस मलबे को समय-समय पर विभिन्न स्थानों पर लगातार परतों के रूप में जमा करती रहती है। बाद में इस जमा हुए मलबे से अवसादी चट्टानों का निर्माण हो जाता है। लोयस के जमाव इसी प्रकार होते हैं।

(iii) हिमानी-निर्मित चट्टानें-उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में हिमानियाँ अपरदन एवं निक्षेपण की क्रियाएँ करती हैं। निक्षेपण की क्रिया से हिमानीकृत जो अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है, उन्हें ‘हिमोढ़’ अथवा ‘मोरेन’ कहा जाता है।

(ख) निर्माण प्रक्रिया के अनुसार अवसादी शैलों का वर्गीकरण-निर्माण-प्रक्रिया के अनुसार अवसादी शैलों का वर्गीकरण निम्नवत् है–

(i) बलकृत या यन्त्रीकृत अवसादी शैलें-अपरदन के साधनों; जैसे–बहते हुए जल, हिम, पवन, लहरों के द्वारा विभिन्न आकारों में अवसाद जमा किये जाते हैं। इन अवसादों से शैलें बनती हैं। कणों की मोटाई के आधार पर चीका मिट्टी (सूक्ष्म कण), बलुआ पत्थर (मध्यम कण) तथा कांग्लोमरेट या गोलाश्म बलकृत अवसादी शैलों के उदाहरण हैं।

(ii) जैविक तत्त्वों से निर्मित चट्टानें-वनस्पतियों, जीव-जन्तुओं आदि के अवशेष भूतल में दब जाने से काफी समय बाद कार्बनिक चट्टानों के रूप में परिणत हो जाते हैं। दबाव की क्रिया के फलस्वरूप ये कठोर रूप धारण कर लेते हैं। इस क्रिया में निर्मित चट्टानों में कोयला, मूंगे की चट्टान, चूने का पत्थर एवं पीट आदि का , महत्त्वपूर्ण स्थान है।

(iii) रासायनिक तत्त्वों से निर्मित चट्टानें-इन चट्टानों का निर्माण चूने एवं जीव-जन्तुओं के अवशेषों का जल में घुलकर होने से हुआ है। अधिकांशतः इन चट्टानों के जमाव समुद्री भागों में मिलते हैं। जब चट्टानों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैसें प्रवेश करती हैं तो वे चट्टानों के रासायनिक संगठन को परिवर्तित कर देती हैं। खड़िया, सेलखड़ी, डोलोमाइट, जिप्सम, नमक आदि इसी प्रकार की चट्टानें हैं। इन चट्टानों पर अपक्षय की क्रियाओं का प्रभाव शीघ्रता से पड़ता है।

अवसादी चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)-अवसादी चट्टाने अनेक प्रकार से उपयोगी हैं। वर्तमान में सभी देशों में नदियों द्वारा निर्मित समतल अवसादी मैदान, बालू के महीन जमाव के लोयस के मैदान आदि विश्व के सबसे उपजाऊ एवं सघन क्रियाकलाप एवं सघन बसाव के प्रदेश हैं। विश्व की सभ्यता के विकास का निर्माण इन्हीं उपजाऊ एवं सघन मैदानों में किया जाता रहा है। बलुआ पत्थर, चूने के पत्थर आदि का उपयोग भवन-निर्माण में किया जाता है। चूना एवं डोलोमाइट व अन्य मिट्टियाँ इस्पात उद्योग में काम आती हैं। अवसादी चट्टानों से प्राप्त चूने के पत्थर का उपयोग सीमेण्ट बनाने में किया जाता है। सीमेण्ट उद्योग आज विश्व के प्रमुख उद्योगों में गिना जाता है।

जिप्सम का उपयोग विविध प्रकार के उद्योगों—चीनी मिट्टी के बर्तन, सीमेण्ट आदि में किया जाता है।

अनेक प्रकार के क्षार, रसायन, पोटाश एवं नमक जो कि अवसादी चट्टानों से प्राप्त होते हैं— विभिन्न रासायनिक उद्योगों के आधार हैं। कोयला एवं खनिज तेल भी अवसादी चट्टानों से प्राप्त होते हैं। ये शक्ति के प्रमुख स्रोत हैं। आज का औद्योगिक विकास कोयले के कारण ही सम्भव हो सका है।

3. कायान्तरित चट्टानें (Metamorphic Rocks)–इन्हें रूपान्तरित चट्टानों के नाम से भी पुकारा जाता है। अंग्रेजी भाषा का मेटामोरफिक’ शब्द मेटा एवं मार्फे शब्दों के सम्मिलन से बना है। अतः मेटा का अर्थ परिवर्तन तथा मार्फे का अर्थ रूप से है अर्थात् ”जिन चट्टानों में दबाव, गर्मी एवं रासायनिक क्रियाओं द्वारा उनकी बनावट, रूप तथा खनिजों का पूर्णरूपेण कायापलट हो जाता है, कायान्तरित चट्टानें कहलाती हैं।” विश्व के प्राय: सभी प्राचीन पठारों पर कायान्तरित चट्टानें मिलती हैं। भारत में ऐसी चट्टानें दक्षिण के प्रायद्वीप, दक्षिण अफ्रीका के पठारे और दक्षिणी अमेरिका के ब्राजील के पठार, उत्तरी कनाडा, स्कैण्डेनेविया, अरब, उत्तरी रूस और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पठार पर पायी जाती हैं।

चट्टानों का कायान्तरण भौतिक तथा रासायनिक दोनों ही क्रियाओं से सम्पन्न होता है। इसमें चट्टान एवं खनिज का रूप पूरी तरह से परिवर्तित हो जाता है। इन चट्टानों में भूगर्भ के ताप, दबाव, जलवाष्प, भूकम्प आदि कारणों से उनके मूल गुणों में परिवर्तन आ जाता है। रूप-परिवर्तन के बाद इनकी प्रारम्भिक स्थिति भी नहीं बतायी जा सकती। मूल चट्टान के रूपान्तरण से उसके रूप, रंग,

आकार तथा गुण आदि में पूर्ण परिवर्तन हो जाता है तथा वह अपने प्रारम्भिक रूप को खो देती है, जिससे मूल चट्टान में कठोरता आ जाती है। कभी-कभी एक ही चट्टान कई रूप धारण कर लेती है। चूना-पत्थर के रूपान्तरण से संगमरमर नामक पत्थर को निर्माण होता है। यह रूपान्तरण आग्नेय एवं अवसादी, दोनों ही चट्टानों का हो सकता है।

कायान्तरण अथवा रूप-परिवर्तन के कारण—चट्टानों का कायान्तरण निम्नलिखित कारणों के फलस्वरूप होता है–

1. तापमान-कायान्तरण का एक प्रमुख कारण तापक्रम है। भूगर्भ का अत्यधिक तापमान ज्वालामुखी उद्गार एवं पर्वत निर्माणकारी हलचलों को जन्म देता है जिससे चट्टानों का रूप-परिवर्तन हो जाता है।

2. सम्पीडन एवं दबाव-कायान्तरण में महाद्वीपों पर पर्वत–निर्माणकारी बलों एवं भूकम्प आदि से चट्टानों पर भारी दबाव पड़ता है जिससे चट्टानें टूटती ही नहीं, बल्कि उनका रूपान्तरण अथवा कायान्तरण हो जाता है।

3. घोलन शक्ति-सामान्यतया जल सभी पदार्थों को अपने में घोलने की शक्ति रखता है, परन्तु जब इस जल में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें मिलती हैं तो इसकी घुलन-शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। वर्षा का जल इसका प्रमुख उदाहरण है। वर्षा का जल चट्टानों के साथ मिलकर रासायनिक अपरदन का कार्य करता है जिससे वह चट्टानों को अपने में घोल लेता है। इससे चट्टानों की संरचना में रासायनिक रूपान्तरण हो जाता है।

इस प्रकार आग्नेय चट्टानें शिस्ट में, शैल स्लेट में, ग्रेनाइट नीस में, बलुआ पत्थर क्वार्ट्जाइट में, बिटुमिनस एन्थ्रेसाइट में तथा चूना-पत्थर संगमरमर में रूपान्तरित हो जाती हैं। कायान्तरित चट्टानों की विशेषताएँ—कायान्तरित चट्टानों में अग्रलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं

  • ये चट्टानें संगठित हो जाने से कठोर हो जाती हैं; अतः इन पर अपक्षय एवं अपरदन क्रियाओं का प्रभाव बहुत ही कम पड़ता है।
  • इन चट्टानों की संरचना अरन्ध्र होती है; अतः इनमें जल प्रवेश नहीं कर सकता।
  • ये चट्टानें रवेदार होती हैं, परन्तु इनमें परतें नहीं पायी जातीं।
  • कायान्तरण की क्रिया के कारण इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाये जाते हैं।
  • कायान्तरण आग्नेय एवं अवसादी चट्टानों का होता है, परन्तु बाद में इनमें मूल अर्थात् प्रारम्भिक चट्टान की कोई लक्षण नहीं पाया जाता।
  • इन चट्टानों में सोना, हीरा, संगमरमर, चाँदी आदि बहुमूल्य खनिज पाये जाते हैं।

कायान्तरित चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)-कायान्तरित चट्टानों में अनेक प्रकार के महत्त्वपूर्ण धातु खनिज पाये जाते हैं जो मानव के लिए अनेक प्रकार से उपयोगी हैं। अधिकांश बहुमूल्य खनिज (संगमरमर, सोना, चाँदी और हीरा) कायान्तरित चट्टानों से ही प्राप्त होते हैं। संगमरमर, जो एक प्रमुख कायान्तरित चट्टान है, भवन निर्माण में प्रयोग होता है। विश्वप्रसिद्ध ताजमहल एवं अनेक महत्त्वपूर्ण मन्दिर इसी प्रकार की चट्टान (संगमरमर) से निर्मित हैं। एन्थेसाइट कोयला, ग्रेनाइट एवं हीरा भी बहु-उपयोगी कायान्तरित चट्टानें हैं। अभ्रक जैसे खनिज भी बार-बार अवसादी चट्टानों के कायान्तरण होने से बनते हैं। कठोर क्वार्ट्जाइट का निर्माण भी अवसादी चट्टान के कायान्तरण से हुआ है एवं इसका उपयोग सुरक्षा एवं अन्य विशेष धातु उद्योग में अधिक होता है।

चट्टानों का आर्थिक महत्त्व

चट्टानें मानवीय जीवन के लिए अति महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी होती हैं। मानव को लगभग 2,000 वस्तुएँ चट्टानों एवं इनके माध्यम से प्राप्त होती हैं। पर्वत निर्माणकारी घटनाएँ, भूकम्प आदि विस्तृत वन क्षेत्रों को मिट्टी में दबा देती हैं, कालान्तर में ये कोयले में परिणत हो जाते हैं। कोयले की निर्माण प्रक्रिया में भी चट्टानों का अधिक हाथ रहता है। इमारती पत्थर, औद्योगिक खनिज-लोहा, कोयला एवं खनिज तेल तथा कीमती धातुएँ–सोना, चाँदी, टिन आदि इन्हीं चट्टानों से प्राप्त होती हैं। समस्त पृथ्वी की ऊपरी पपड़ी जिस पर मानव एवं जीव-जगत बसा हुआ है, चट्टानों के बारीक चूर्ण से ही निर्मित हुई है। चट्टानों के आर्थिक महत्त्व को निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है–

1. कृषि के क्षेत्र में-उपजाऊ मिट्टी कृषि का आधार है। उपजाऊ मिट्टी के निर्माण में शैलों का विशेष महत्त्व रहता है। शैल चूर्ण जमकर ही उपजाऊ मिट्टी को जन्म देते हैं। अन्न, फल, शाक, भाजी, कपास, गन्ना, रबड़, नारियल, चाय, कहवा तथा गरम मसाले सभी मिट्टी में ही उगाये जाते हैं।

2. चरागाहों के क्षेत्र में-हरी घास के विस्तृत क्षेत्र चरागाह कहलाते हैं। हरी घास पशुओं को पौष्टिक चारा उपलब्ध कराती है। चरागाह पशुपालन के आदर्श क्षेत्र माने जाते हैं। हरी घास शैलों में ही उगा करती है; अत: पशुचारण और पशुपालन में भी शैलों की उपयोगिता अद्वितीय मानी गयी है।

3. भवन-निर्माण के क्षेत्र में-पत्श्रर भवन-निर्माण की प्रमुख सामग्री है। स्लेट, चूना-पत्थर, बलुआ पत्थर तथा संगमरमर भवन-निर्माण में सहयोग देते हैं। भवन-निर्माण का सस्ता और टिकाऊ मसाला चट्टानों से प्राप्त पदार्थों से ही बनाया जाता है। संगमरमर तथा ग्रेनाइट पत्थर भवनों को सुन्दर तथा भव्य स्वरूप प्रदान करते हैं।

4. खनिज उत्पादन के क्षेत्र में-खनिज पदार्थों का जन्म भूगर्भ में शैलों द्वारा ही होता है। शैलें सोना,चाँदी, ताँबा, लोहा, कोयला, मैंगनीज तथा अभ्रक आदि उपयोगी खनिजों को जन्म देकर जहाँ मानव के कल्याण की राह खोलती हैं, वहीं कोयला तथा खनिज तेल देकर ऊर्जा तथा तापमान के स्रोत बन जाती हैं।

5. उद्योगों को कच्चे माल प्रदान करने के क्षेत्र में- कृषिगत उपजों, वन्य पदार्थों तथा खनिज पदार्थों पर अनेक उद्योग-धन्धे निर्भर होते हैं। चट्टानें एक ओर तो उद्योगों को कच्चे माल देकर उनका पोषण करती हैं और दूसरी ओर शक्ति के साधनों की आपूर्ति करके उन्हें ऊर्जा तथा चालक-शक्ति प्रदान करती हैं। राष्ट्र का आर्थिक विकास जहाँ उद्योग-धन्धों पर निर्भर है, वहीं उद्योग-धन्धों का विकास शैलों से प्राप्त कच्चे मालों पर निर्भर करता है।

6. मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के क्षेत्र में- शैलें मानव को उसकी तीनों प्रथमिक आवश्यकताओं-भोजन, वस्त्र और मकान की आपूर्ति कराती हैं। मानव के पोषण में शैलों की विशेष सहयोग रहता है।

7. पेयजल स्रोतों के रूप में- पृथ्वी पर मानव के लिए पेयजल भूस्तरीय जल के अतिरिक्त भूगर्भीय जल भी होता है। भूगर्भीय जल चट्टानों में स्वस्थ और सुरक्षित रहता है। भूस्तरीय जल नदियों, झरनों और झीलों के रूप में तथा भूगर्भीय जल हैण्डपम्पों, पम्पसेटों तथा नलकूपों के द्वारा प्राप्त होता है।

8. मानवीय सभ्यता के गणक के रूप में-मानव सभ्यता का ज्ञान प्रदान कराने में चट्टानों का विशेष , योगदान रहता है। पृथ्वी की आयु व आन्तरिक संरचना चट्टानों की निर्माण-प्रक्रिया को आधार मानकर ही ज्ञात की जाती है।

शैलों की रचना तथा निर्माण प्रक्रिया के अध्ययन से भूविज्ञान तथा भूगर्भ विज्ञान के अध्ययन में बहुत सहायता मिलती है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि शैलें मानव के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती हैं तथा उसे अधिक सुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराती हैं। वर्तमान विश्व का सम्पूर्ण औद्योगिक ढाँचा तथा प्रौद्योगिकी तन्त्र शैलों से ही अनुप्रमाणित है।

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