NCERT Solutions Class 8 रुचिरा Chapter-14 (आर्यभटः)

NCERT Solutions Class 8 रुचिरा Chapter-14 (आर्यभटः)

Solutions Class 8 रुचिरा Chapter-14 (आर्यभटः)NCERT Solutions Class 8  रुचिरा 8 वीं कक्षा से Chapter-14 (आर्यभटः) के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी रुचिरा के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।

एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

Class 8 रुचिरा

पाठ-14 (आर्यभटः)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर 

पाठ-14 (आर्यभटः)

अभ्यासः (Exercise)

प्रश्न 1.

एकपदेन उत्तरत-(एक पद में उत्तर दीजिए-)

(क) सूर्यः कस्यां दिशायाम् उदेति? ………………………………..

(ख) आर्यभटस्य वेधशाला कुत्र आसीत्? ………………………………..

(ग) महान् गणितज्ञः ज्योतिर्विच्च कः अस्ति? ………………………………..

(घ) आर्यभटेन कः ग्रन्थः रचित:? ………………………………..

(ङ) अस्माकं प्रथमोपग्रहस्य नाम किम् अस्ति? ………………………………..

उत्तरम्:

(क) पूर्वदिशायाम् (पूर्वस्याम्)

(ख) उपपाटलिपुत्रम् (पाटलिपुत्रे)

(ग) आर्यभट: (घ) आर्यभटीयम्

(ङ) आर्यभटः


प्रश्न 2.

पूर्णवाक्येन उत्तरत-(पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए-)

(क) कः सुस्थापित: सिद्धांत? ………………………………..

(ख) चन्द्रग्रहणं कथं भवति? ………………………………..

(ग) सूर्यग्रहणं कथं दृश्यते? ………………………………..

(घ) आर्यभटस्य विरोधः किमर्थमभवत्? ………………………………..

(ङ) प्रथमोपग्रहस्य नाम आर्यभटः इति कथं कृतम्? ………………………………..

उत्तरम्:

(क) सूर्याचलः पृथिवी च चला या स्वकीये अक्षे घूर्णति इति सम्प्रतं सुस्थापित: सिद्धान्तः।

(ख) सूर्य परितः भ्रमन्त्याः पृथिव्याः चन्द्रस्य परिक्रमापथेन संयोगाद् ग्रहणं भवति।

(ग) पुथ्वीसूर्ययोः मध्ये समागतस्य चन्द्रस्य छायापातेन सूर्यग्रहणं दृश्यते।।

(घ) समाजे नूतनानां विचाराणां स्वीकारणे प्राय: सामान्यजना: काठिन्यमनुभवन्ति।

(ङ) आधुनिकैः वैज्ञानिकैः तस्मिन्, तस्य च सिद्धान्ते समादरः प्रकटितः। अस्मादेव कारणाद् अस्माकं प्रथमोपग्रहस्य नाम आर्यभट इति कृतम्।


प्रश्न 3.

रेखांकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए-)

(क) सूर्यः पश्चिमायां दिशायाम् अस्तं गच्छति।

(ख) पृथिवी स्थिरा वर्तते इति परम्परया प्रचलिता रूढिः।

(ग) आर्यभटस्य योगदानं गणितज्योतिषा संबद्धः वर्तते।

(घ) समाजे नूतनविचाराणाम् स्वीकरणे प्रायः सामान्यजनाः काठिन्यमनुभवन्ति।

(ङ) पृथ्वीसूर्ययो: मध्ये चन्द्रस्य छाया पातेन सूर्य ग्रहणं भवति?

उत्तरम्:

(क) सूर्य कस्याम् दिशायाम् अस्तं गच्छति?

(ख) पृथिवी स्थिरा वर्तते इति कयो प्रचलिता रूढि:?

(ग) आर्यभटस्य योगदान केन संबद्धः वर्तन्ते?

(घ) समाजे नूतनविचाराणाम् स्वीकरणे प्रायः के काठिन्यमनुभवन्ति?

(ङ) कयो: मध्ये चन्द्रस्य छाया पातेन सूर्य ग्रहण भवति?


प्रश्न 4.

मजूषातः पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-(मंजूषा से पदों को लेकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)


नौकाम्,               पृथिवी,              तदा,              चला,               अस्तं

(क) सूर्यः पूर्वदिशायाम् उदेति पश्चिमदिशियां च ………………………. गच्छति।

(ख) सूर्यः अचल: पृथिवी च ……………………….

(ग) ………………………. स्वकीये अक्षे घूर्णति।

(घ) यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरुध्यते ………………………. चन्द्रग्रहणं भवति।

(ङ) नौकायाम् उपविष्टः मानवः ………………………. स्थिरामनुभवति।

उत्तरम्:

(क) सूर्यः पूर्वदिशायाम् उदेति पश्चिमदिशियां च अस्तं गच्छति।

(ख) सूर्यः अचल: पृथिवी च चला।

(ग) पृथिवी स्वकीये अक्षे घूर्णति।

(घ) यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरुध्यते तदा चन्द्रग्रहणं भवति।

(ङ) नौकायाम् उपविष्टः मानवः नौकां स्थिरामनुभवति।


प्रश्न 5.

सन्धिविच्छेदं कुरुत-(सन्धि-विच्छेद कीजिए-)

ग्रन्थोऽयम् ………………. + ……………….

सूर्याचलः ………………. + ……………….

तथैव ………………. + ……………….

कालातिगामिनी ………………. + ……………….

प्रथमोपग्रहस्य ………………. + ……………….

उत्तरम्:

ग्रन्थोऽयम् = ग्रन्थः + अयम्

सूर्याचलः = सूर्य + अचलः

तथैव = तथा + एवं

कालातिगामिनी = काल + अतिगामिनी

प्रथमोपग्रहस्य = प्रथम + उपग्रहस्य


प्रश्न 6.

(अ) अधोलिखितपदानां विपरीतार्थकपदानि लिखत

(निम्नलिखित पदों के विपरीतार्थक पद लिखिए-)

उद्यः ……………………….

अचलः ……………………….

अन्धकारः ……………………….

स्थिरः ……………………….

समादर: ……………………….

आकाशस्य……………………….

उत्तरम्:

उदयः – अस्तः

अचलः – गतिशीलः ( चलः )

अन्धकारः – प्रकाशः

स्थिरः – गतिशीलः

समादरः – निरादरः ( उपहासः)

आकाशस्य – पातालास्य


(आ) अधोलिखितपदानां समानार्थकपदानि पाठात् चित्वा लिखत-(निम्नलिखित पदों के समानार्थक पद पाठ से चुनकर लिखिए-)

संसारे ……………………….

इदानीम् ……………………….

वसुन्धरा ……………………….

समीपम् ……………………….

गणनम् ……………………….

राक्षसौ ……………………….

उत्तरम्:

संसारे – लोके

इदानीम् – साम्प्रतम्

वसुन्धरा – पृथिवी

समीपम् – निकषा गणनम् – आकलनम्

राक्षसौ – दानवौ


प्रश्न 7.

अधोलिखितानि पदानि आधृत्य वाक्यानि रचयत-(निम्नलिखित पदों के आधार पर वाक्यों की रचना कीजिए-)

साम्प्रतम्। – ……………………….

निकषा – ……………………….

परितः – ……………………….

उपविष्ट: – ……………………….

कर्मभूमिः – ……………………….

वैज्ञानिकः – ……………………….

उत्तरम्:

साम्प्रतं छात्राः कक्षायाम् पठन्ति।

जलम् निकषा जीवाः गच्छन्ति।

बालाः गृहम् परितः भ्रमन्ति।

मार्गे उपविष्टः बालकः रोदति।।

संसारः एव जीवानां कर्मभूमिः वर्तते।

आर्यभटः भारतस्य प्राचीन: वैज्ञानिकः आसीत्।


अतिरिक्त-अभ्यासः

प्रश्न 1.

पाठांशम् पठत प्रश्नान् च उत्तरत-(पाठांश पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए-)

पूर्वदिशायाम् उदेति सूर्यः पश्चिमदिशायां च अस्तं गच्छति इति दृश्यते हि लोके। परं न अनेन अवबोध्यमस्ति यत्सूर्यो गतिशीलः इति। सूर्योऽचलः पृथिवी च चला या स्वकीये अक्षे घूर्णति इति साम्प्रतं सुस्थापितः सिद्धान्तः। सिद्धान्तोऽयं प्राथम्येन येन प्रवर्तितः, स आसीत् महान् गणितज्ञः ज्योतिर्विच्च आर्यभटः। पृथिवी स्थिरा वर्तते इति परम्परया प्रचलिता रूढिः तेन प्रत्यादिष्टा।

I. एकपदेन उत्तरत-(एक पद में उत्तर दीजिए-)

1. सूर्यः कस्याम् दिशायाम् उदेति? ……………………….

2. महान् गणितज्ञ: ज्योतिर्विद् च कः आसीत? ……………………….

3. कः अचलः अस्ति?……………………….

4. स्वकीये अक्षे का घूर्णति? ……………………….


II. पूर्णवाक्येन उत्तरत-(पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए-)।

1. का प्रचलिता रूढिः आर्यभटेन प्रत्यादिष्टा? ……………………….

2. कः सिद्धान्तः सर्वप्रथमम् तेन प्रवर्तितः? ……………………….


III. भाषिकार्यम्- (भाषा-कार्य-)

प्रश्न 1.

‘पृथिवी स्थिरा वर्तते’ इति वाक्ये

(i) वर्तते’ क्रियापदस्य कः कर्ता? (पृथिवी, स्थिरा) ……………………….

(ii) किं विशेषण पदम् अत्र प्रयुक्तम्? ……………………….

(iii) अस्ति’ इति क्रियापदस्य कः पर्याय अत्र प्रयुक्तः? ……………………….


प्रश्न 2.

विलोमपदं चित्वा लिखत

(i) पूर्वदिशायाम्। ……………………….

(ii) चलः ……………………….


प्रश्न 3.

सन्धिः विच्छेदः वा क्रियताम्

(i) प्रति+आदिष्टा = ……………………….

(ii) सूर्योऽचलः ………………………. + ……………………….


प्रश्न 4.

उपसर्गम् निर्दिशत

(i) प्रचलिता – ……………………….

(ii) अवबोध्यम् – ……………………….

उत्तरम्:

I.

1. पूर्वदिशायाम्

2. आर्यभटः

3. सूर्यः

4. पृथिवी


II.

1. पृथिवी स्थिरा वर्तते इति प्रचलित रूढि: आर्यभटेन प्रत्यादिष्टा।

2. सूर्यः अचलः पृथिवी च चला इति सिद्धान्तः सर्वप्रथमम् आर्यभटेन प्रवर्तितः।


III.

1. (i) पृथिवी

(ii) स्थिरा

(iii) वर्तते 2.

(i) पश्चिमदिशायाम्

(ii) अचलः

3. (i) प्रत्यादिष्टा

(ii) सूर्यः+अचल:

4. (i) प्र।

(ii) अव


प्रश्न 2.

मञ्जूषाः सहायतया अनुच्छेदपूर्ति कुरुत-(मञ्जूषा की सहायता से अनुच्छेद पूरा कीजिए-)

समाजे ………………………. विचाराणां स्वीकारे प्रायः सामान्यजना: ………………………. अनुभवन्ति। भारतीयज्योमित:शास्त्रे तथैव आर्यभटस्यापि ………………………. अभवत्। तस्य ………………………. उपेक्षिताः। स पण्डितम्मन्यानाम् । ………………………. जातः। ………………………. वैज्ञानिकैः तस्य सिद्धान्ते समादरः प्रकटितः।


उपहासपात्रम्,              विरोधः,              नूतनानाम्,              आधुनिकैः,              काठिन्यम्,               सिद्धान्ताः

उत्तरम्:

नूतनानाम्, काठिन्यम्, विरोधः, सिद्धान्ताः, उपहासपात्रम्, आधुनिकैः


प्रश्न 3.

शब्दार्थान् मेलयत-(शब्दों का अर्थ से मिलान कीजिए-)

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उत्तरम्:

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प्रश्न 4.

अधोदातानां पदानाम् लिङ्गम् विभक्तिं वचनं च लिखत-(निम्नलिखित पदों के लिंग, विभक्ति व वचन लिखिए-)

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उत्तरम्:

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प्रश्न 5.

सन्धिः विच्छेदः वा क्रियताम्-(सन्धि अथवा विच्छेद कीजिए-)

1. तथैव = ………………………… + ……………………….

2. इति + अस्मिन् = ……………………………….

3. सिद्धान्तोऽयम् = ………………………… + ……………………….

4. उप+ईक्षिताः = ………………………… + ……………………….

5. पुनरपि = ………………………… + ……………………….

उत्तरम्:

1. तथा + एव

2. इत्यास्मिन्

3. सिद्धान्तः + अयम्।

4. उपेक्षिताः

5. पुनः + अपि प्रश्न


प्रश्न 6.

उदाहरणानुसारं पदपरिचयं ददत-(उदाहरणों के अनुसार पदों का परिचय दीजिए-)

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उत्तरम्:

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प्रश्न 7.

‘मति’ शब्दस्य रूपाणि पूरयत-(‘मति’ शब्द के रूप पूरे कीजिए-)

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उत्तरम्:

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बहुविकल्पीयप्रश्नाः

प्रश्न 1.

प्रदत्त-विकलेभ्यः उचितपदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-(दिए गए विकल्पों से उचित पद चुनकर रिक्त स्थान भरिए-)

1. अस्माकम् प्रथमोपग्रहस्य नाम ………………………. अस्ति। (आर्यभटम् / आर्यभटीयम् / आर्यभट:)

2. नौकायाम् उपविष्टः जनः ………………………. स्थिराम् अनुभवति। (नदीम् / पृथिवीम् / नौकाम्)

3. ग्रहणे सूर्यचन्द्रपृथिवी इति त्रीणि एवं ……………………….। (कारणम् / कारणाः / कारणानि)

4. पृथ्वीसूर्ययोः मध्ये समागतस्य चन्द्रस्य छायापातेन ………………………. भवति। (सूर्यग्रहणम् / चन्द्रग्रहणम् / काठिन्यम्)

5. आर्यभटस्य ………………………. पाटलिपुत्रं निकषा आसीत्। (गोशाला / पाठशाला / वेधशाला)

6. तेन आर्यभटीयम् इति ………………………. रचितः। (उपग्रहः / ग्रन्थः । सिद्धान्त:)

7. आर्यभट: ………………………. ज्योतिर्विद् गणितज्ञः च आसीत्। (महान / महानः / महान्)

उत्तरम्:

1. आर्यभटः,

2. नौकाम्,

3. कारणानि,

4. सूर्यग्रहणम्,

5. वेधशाला,

6. ग्रन्थः,

7. महान्।


प्रश्न 2.

उचितं पदं चित्वा रेखाङ्कितपदम् आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(उचित पद चुनकर रेखांकित पद के आधार पर प्रश्न-निर्माण कीजिए-)

1. सूर्यः पश्चिदिशायाम् अस्तं गच्छति? (कस्मिन् / काम् कस्याम्)

2. मानवः पृथिवीं स्थिराम् अनुभवति। (कम् / काम् / किम्)

3. गणितज्योतिषशास्त्रे संख्यानाम् आकलनं महत्त्वम् आदधाति। (केषाम् / कासाम् / कस्याः)

4. यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशा: अवरुध्यते तदा चन्द्रग्रहणं भवति। (कः / का / किम्)

5. आर्यभटस्य योगदानं गणित-ज्योतिषा सम्बद्धं वर्तते। (कया / केन / किम्)

उत्तरम्:

1. सूर्यः कस्यां दिशायाम् अस्तं गच्छति?

2. मानवः काम् स्थिराम् अनुभवति?

3. गणितज्योतिषशास्त्रे कासाम् आकलनम् महत्त्वम् आदधाति?

4. यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरुध्यते तदा किम् भवति?

5. आर्यभटस्य योगदान केन सम्बद्ध वर्तते?


प्रश्न 3.

शब्दस्य अथवा धातोः उचितरूपं चित्वा रिक्तस्थाने लिखत–(शब्द अथवा धातु का उचित रूप चुनकर रिक्तस्थान में लिखिए-)

(क)

1. गति-तृतीया एकवचनम्। ………………………. (गतिना / गत्या / गतिम्)

2. अस्मद्-द्वितीया एकवचनम् ………………………. (मम् / मम / माम्)

3. परम्परा-षष्ठी एकवचनम् ………………………. (परम्परस्य / परम्परायाः / परम्परया)

4. सूर्यग्रहण-प्रथमा एकवचनम् ………………………. (सूर्यग्रहण / सूर्यग्रहणः / सूर्यग्रहणम्)

5. पृथिवी-षष्ठी एकवचनम् ………………………. (पृथिव्या / पृथिवस्य / पृथिव्याः)

उत्तरम्:

1. गत्या,

2. माम,

3. परम्परायाः,

4. सूर्यग्रहणम्,

5. पृथिव्याः


(ख)

1. अनु+भू-लङ प्रथम पुरुषः, बहुवचनम्- ………………………. (अनुभूवन् / अनुभवन्तिस्म / अन्वभवन्)

2. अस्ल ट्-उत्तम पुरुषः, बहुवचनम्- ………………………. (स्म / स्मः/ सम:)

3. कृ-विधिलिङ-उत्तम पुरुषः ………………………. (कुर्याम् / कुर्याम / कुर्यान:)

4. वृत्-लट्-प्रथम पुरुषः ………………………. (वर्ते / वर्तते / वर्तसे)

5. रच्–लङ-उत्तम पुरुषः ………………………. (अरचत् / अरचयत् / अरचयम्)

उत्तरम्:

1. अन्वभवन्,

2. स्मः,

3. कुर्याम,

4. वर्तते,

5. अरचयम


पाठ का परिचय (Introduction of the Lesson)

भारतवर्ष की अमूल्य निधि है- ज्ञान-विज्ञान की सुदीर्घ परम्परा। इस परम्परा को सम्पोषित करने वाले प्रबुद्ध मनीषियों में अग्रगण्य थे-आर्यभट। दशमलव पद्धति का प्रयोग सबसे पहले आर्यभट ने किया, जिसके कारण गणित को एक नई दिशा मिली। इन्हें एवं इनके प्रवर्तित सिद्धान्तों को तत्कालीन रूढ़िवादियों का विरोध झेलना पड़ा। वस्तुत: गणित को विज्ञान बनाने वाले तथा गणितीय गणना पद्धति के द्वारा आकाशीय पिण्डों की गति का प्रवर्तन करने वाले ये (आर्यभट) प्रथम आचार्य थे। आचार्य आर्यभट के इसी वैदुष्य का उद्घाटन प्रस्तुत पाठ में है।

पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ

(क) पूर्वदिशायाम् उदेति सूर्यः पश्चिमदिशायां च अस्तं गच्छति इति दृश्यते हि लोके। परं न अनेन अवबोध्यमस्ति यत्सूर्यो गतिशील इति। सूर्योऽचलः पृथिवी च चला या स्वकीये अक्षे घूर्णति इति साम्प्रतं सुस्थापितः सिद्धान्तः। सिद्धान्तोऽयं प्राथम्येन येन प्रवर्तितः, स आसीत् महान् गणितज्ञः ज्योतिर्विच्च आर्यभटः। पृथिवी स्थिरा वर्तते इति परम्परया प्रचलिता रूढिः तेन प्रत्यादिष्टा। तेन उदाहृतं यद् गतिशीलायां नौकायाम् उपविष्टः मानवः नौकां स्थिरामनुभवति, अन्यान् च पदार्थान् गतिशीलान् अवगच्छति। एवमेव गतिशीलायां पृथिव्याम् अवस्थितः मानवः पृथिवीं स्थिरामनुभवति सूर्यादिग्रहान् च गतिशीलान् वेत्ति।

शब्दार्थ : उदेति-उदय होता है। अस्तं गच्छति-अस्त हो जाता है। लोके-संसार में। अवबोध्यम्-समझने योग्य, जानने योग्य, जानना चाहिए। अचलः-स्थिर, गतिहीन। चला-अस्थिर, गतिशील। स्वकीये-अपने। अक्षे- धुरी पर। घूर्णति-घूमती है। साम्प्रतम्-इस समय। सुस्थापितः- भली-भाँति स्थापित। प्राथम्येन-सर्वप्रथम प्रवर्तितः-प्रारम्भ किया गया। ज्योतिर्विद्-ज्योतिषी। प्रचलिता-चलने वाली। रूढिः-प्रचलित प्रथा, रिवाज। प्रत्यादिष्टा-खण्डन किया। उदाहृतम्-उदाहरण दिया। उपविष्ट:-बैठा हुआ। अवगच्छति-समझता है। वेत्ति-जानता है।

सरलार्थ : संसार में यह दिखाई देता है कि सूर्य पूर्व दिशा में उदय होता है और पश्चिम दिशा में अस्त होता है परन्तु इससे यह नहीं जाना जाता है कि सूर्य गतिशील है। सूर्य अचल है और पृथ्वी चलायमान है। जो अपनी धुरी पर घूमती है यह इस समय भली-भाँति स्थापित सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त को सर्वप्रथम जिन्होंने प्रारम्भ किया, वह महान् गणित के ज्ञाता और ज्योतिषी आर्यभट थे। पृथ्वी स्थिर है, परम्परा से चली आ रही इस प्रथा (धारणा) का उन्होंने खण्डन किया। उन्होंने उदाहरण दिया कि चलती हुई नाव में बैठा हुआ मनुष्य नाव को रुकी हुई अनुभव करता है और दूसरे पदार्थों (वस्तुओं) को गतिशील समझता है। इसी तरह ही गति युक्त पृथ्वी पर स्थित मनुष्य पृथ्वी को स्थिर अनुभव करता है और सूर्य आदि ग्रहों को गतिशील जानता है।

(ख) 476 तमे ख्रिस्ताब्दे (षट्सप्तत्यधिकचतुःशततमे वर्षे) आर्यभटः जन्म लब्धवानिति तेनैव विरचिते ‘आर्यभटीयम्’ इत्यस्मिन् ग्रन्थे उल्लिखितम्। ग्रन्थोऽयं तेन त्रयोविंशतितमे वयसि विरचितः। ऐतिहासिकस्रोतोभिः ज्ञायते यत् पाटलिपुत्रं निकषा आर्यभटस्य वेधशाला आसीत्। अनेन इदम् अनुमीयते यत् तस्य कर्मभूमिः पाटलिपुत्रमेव आसीत्।

शब्दार्थ : ख्रिस्ताब्दे-ईस्वी में। षट्सप्ततिः-छिहत्तर। लब्धवान्-लिया। विरचिते-रचे हुए। इत्यस्मिन्-(इति+ अस्मिन्) इस (में)। उल्लिखितम्-उल्लेख किया है। वयसि-आयु में, अवस्था में। विरचितः-रचा है। स्रोतोभिः-स्रोतों से। ज्ञायते-जाना जाता है। निकषा-निकट। वेधशाला-ग्रह, नक्षत्रों को जानने की प्रयोगशाला। अनुमीयते-अनुमान किया है। कर्मभूमिः-कर्म क्षेत्र। आसीत्-थी।

सरलार्थ : सन् 476वें ईस्वीय वर्ष में (चार सौ छिहत्तरवें वर्ष में) आर्यभट ने जन्म लिया, यह उन्होंने अपने द्वारा ही लिखे ‘आर्यभटीयम्’ नामक इस ग्रन्थ में उल्लेख किया है। यह ग्रन्थ उन्होंने तेईसवें वर्ष की आयु में रचा था। ऐतिहासिक स्रोतों से जाना जाता है (पता चलता है) कि पाटलिपुत्र (पटना) के निकट आर्यभट की नक्षत्रों को जानने की प्रयोगशाला थी। इससे यह अनुमान किया जाता है कि उनका कार्यक्षेत्र पाटलिपुत्र (पटना) ही था।

(ग) आर्यभटस्य योगदानं गणितज्योतिषा सम्बद्धं वर्तते यत्र संख्यानाम् आकलनं महत्त्वम् आदधाति। आर्यभटः फलितज्योतिषशास्त्रे न विश्वसिति स्म। गणितीयपद्धत्या कृतम् आकलनमाधृत्य एव तेन प्रतिपादितं यद् ग्रहणे राहुकेतुनामको दानवौ नास्ति कारणम्। तत्र तु सूर्यचन्द्रपृथिवी इति त्रीणि एव कारणानि। सूर्य परितः भ्रमन्त्याः पृथिव्याः, चन्द्रस्य परिक्रमापथेन संयोगाद् ग्रहणं भवति। यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरुध्यते तदा चन्द्रग्रहणं भवति। तथैव पृथ्वीसूर्ययोः मध्ये समागतस्य चन्द्रस्य छायापातेन सूर्यग्रहणं दृश्यते।

शब्दार्थ : योगदानम्-सहयोग। सम्बद्धम्-सम्बन्धित। आकलनं-गणना। आदधाति-रखता है। विश्वसिति स्म-विश्वास करता था। गणितीयपद्धत्या-गणित की पद्धति (तरीके) से। आकलनम्-गणना। आधृत्य-आधारित करके। प्रतिपादितम्-वर्णन किया गया। परितः-चारों ओर। भ्रमन्त्याः -घूमने वाली की, घूमती हुई की। परिक्रमापथेन-घूमने के मार्ग से। छायापातेन-छाया पड़ने से। अवरुध्यते-रुक जाता है। तथैव-वैसे ही। समागतस्य-आए हुए (के)।

सरलार्थ : आर्यभट का योगदान (सहयोग) गणितज्योतिष से सम्बन्ध रखता है जहाँ संख्याओं की गणना महत्त्व रखती है। आर्यभट फलित ज्योतिषशास्त्र में विश्वास नहीं करते थे। गणित शास्त्र की पद्धति (तरीके) से किए गए आकलन (गणना) पर आधारित करके ही उन्होंने कहा (प्रतिपादित किया) कि ग्रहण (लगने) में राहु और केतु नामक राक्षस कारण नहीं हैं। वहाँ पर सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी ये तीनों ही कारण हैं। सूर्य के चारों ओर घूमती हुई पृथ्वी का चन्द्रमा के घूमने के मार्ग के संयोग (कारण) से ग्रहण होता है। जब पृथ्वी की छाया पड़ने से चन्द्रमा का प्रकाश रुक जाता है तब चन्द्रग्रहण होता है। वैसे ही पृथ्वी और सूर्य के बीच में आए हुए चन्द्रमा की परछाई से सूर्यग्रहण दिखाई पड़ता है (देता है)।

(घ) समाजे नूतनानां विचाराणां स्वीकारेण प्रायः सामान्यजनाः काठिन्यमनुभवन्ति। भारतीयज्योतिःशास्त्रे तथैव आर्यभटस्यापि विरोधः अभवत्। तस्य सिद्धान्ताः उपेक्षिताः। स पण्डितम्मन्यानाम् उपहासपात्रं जातः। पुनरपि तस्य दृष्टिः कालातिगामिनी दृष्टा। आधुनिकैः वैज्ञानिकैः तस्मिन्, तस्य च सिद्धान्ते समादरः प्रकटितः। अस्मादेव कारणाद् अस्माकं प्रथमोपग्रहस्य नाम आर्यभट इति कृतम्। वस्तुतः भारतीयायाः गणितपरम्परायाः अथ च विज्ञानपरम्परायाः असौ एकः शिखरपुरुषः आसीत्।

शब्दार्थ : नूतनानाम्-नए (के)। स्वीकारेण-स्वीकार करने (मानने) में। काठिन्यम्-कठिनाई (को)। उपेक्षिताः-उपेक्षित (अनसुने) कर दिए गए। पण्डितम्मन्यानाम्-स्वयं को भारी विद्वान् मानने वालों का। उपहासपात्रम्-हँसी के पात्र। दृष्टिः-विचारधारा। कालातिगामिनी-समय को लाँघने वाली। समादरः-सम्मान। प्रकटितः-व्यक्त किया। वस्तुतः-वास्तव में। शिखर पुरुषः-सर्वोच्च व्यक्ति।

सरलार्थ : समाज में नए विचारों को स्वीकार करने (मानने) में अधिकतर सामान्य लोग कठिनाई को अनुभव करते हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में वैसे ही आर्यभट का विरोध हुआ। उनके सिद्धान्त अनसुने कर दिए गए (नहीं माने गए)। वह स्वयं को भारी विद्वान मानने वालों की हँसी का पात्र (विषय) बन गए। फिर भी उनकी दृष्टि (विचारधारा) समय को लाँघने वाली देखी गई (दिखाई पड़ी)। किन्तु आधुनिक वैज्ञानिकों ने उनमें, और उनके सिद्धान्त में आदर (विश्वास) प्रकट किया। इसी कारण से हमारे पहले उपग्रह का नाम आर्यभट रखा गया।

वास्तव में भारत की गणित परम्परा के और विज्ञान की परम्परा के वह एक शिखर पुरुष (सर्वोच्च व्यक्ति ) थे।

एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 8 रुचिरा पीडीएफ