NCERT Solutions Class 9 स्पर्श Chapter-6 (काका कालेलकर - कीचड़ का काव्य)

NCERT Solutions Class 9 स्पर्श Chapter-6 (काका कालेलकर - कीचड़ का काव्य)


NCERT Solutions Class 9 स्पर्श 9 वीं कक्षा से Chapter-6 (काका कालेलकर - कीचड़ का काव्य) के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी स्पर्श के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 9 स्पर्श Chapter-6 (काका कालेलकर - कीचड़ का काव्य)
एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

Class 9 स्पर्श

पाठ-6 (काका कालेलकर - कीचड़ का काव्य)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

पाठ-6 (काका कालेलकर - कीचड़ का काव्य)

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-


प्रश्न 1.

रंग की शोभा ने क्या कर दिया?

उत्तर-

लाल रंग की शोभा ने कमाल कर दिया।


प्रश्न 2.

बादल किसकी तरह हो गए थे?

उत्तर-

बादल सफ़ेद रंग की पूनी (रुई की बत्ती) की तरह हो गए थे।


प्रश्न 3.

लोग किन-किन चीज़ों का वर्णन करते हैं?

उत्तर-

लोग आकाश, पृथ्वी तथा सरोवरों का वर्णन करते हैं।


प्रश्न 4.

कीचड़ से क्या होता है?

उत्तर-

लोग कीचड़ को मलिनता का प्रतीक मानते हैं। उनका मानना है कि कीचड़ शरीर को गंदा और कपड़ों को मैला करता है।


प्रश्न 5.

कीचड़ जैसा रंग कौन पसंद करते हैं?

उत्तर-

कीचड़ जैसे रंग विज्ञ कलाकार, चित्रकार, मूर्तिकार और छायाकार (फोटोग्राफर) पसंद करते हैं।


प्रश्न 6.

नदी के किनारे कीचड़ सब सुंदर दिखता है?

उत्तर-

नदी के किनारे कीचड़ सूखकर टेढ़े-मेढ़े टुकड़ों में बँटने पर तथा दूर-दूर तक फैला समतल और चिकना कीचड़ सुंदर लगता है।


प्रश्न 7.

कीचड़ कहाँ सुंदर लगता है?

उत्तर-

नदी के किनारे मीलों तक फैला हुआ समतल और चिकना कीचड़ बहुत सुंदर प्रतीत होता है।


प्रश्न 8.

‘पंक’ और ‘पंकज’ शब्द में क्या अंतर है?

उत्तर-

‘पंक’ का अर्थ कीचड़ (मलिनता का प्रतीक) तथा ‘पंकज’ का अर्थ कमल (सौंदर्य का प्रतीक) है। ‘पंक’ शब्द मन में जहाँ घृणा भाव जगाता है, वहीं पंकज आह्लाद का भाव।


लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ( 25-30 शब्दों में) लिखिए-


प्रश्न 1.

कीचड़ के प्रति किसी को सहानुभूति क्यों नहीं होती?

उत्तर-

कीचड़ के प्रति किसी को भी सहानुभूति नहीं होती। कारण यह है कि लोग इसे गंदा मानते हैं। वे न तो इसे छूना पसंद करते हैं, न इसके छींटों से अपने कपड़े खराब करना पसंद करते हैं। यदि पंक कपड़ों पर लग जाए तो हमें कपड़े को, मैला मान लेते हैं।


प्रश्न 2.

जमीन ठोस होने पर उस पर किनके पदचिह्न अंकित होते हैं?

उत्तर-

जब जमीन गीली होती है तो पानी के निकट रहने वाले बगुले तथा अन्य छोटे-बड़े पक्षियों के पदचिह्न अंकित हो जाते हैं। यही ज़मीन जब ठोस हो जाती है तो उस पर गाय, बैल, भैंस, पाड़े, भेड़-बकरियों के पदचिह्न अंकित हो जाते हैं।


प्रश्न 3.

मनुष्य को क्या भान होता जिससे वह कीचड़ का तिरस्कार न करता?

उत्तर-

मनुष्य को यह भान नहीं है कि उसका पेट भरने वाला सारा अन्न इसी कीचड़ में से उत्पन्न होता है। यदि उसे । इस तथ्य को भान होता तो वह कदापि कीचड़ का तिरस्कार न करता।


प्रश्न 4.

पहाड़ लुप्त कर देने वाले कीचड़ की क्या विशेषत है?

उत्तर-

पहाड़ लुप्त कर देने वाले कीचड़ की विशेषता यह है कि वह मीलों दूर तक फैला हुआ और सनातन है। जिधर देखो, उधर कीचड़ ही कीचड़ दिखता है। यह कीचड़ मही नदी के मुँह के आगे की ओर असीमित मात्रा में है।


(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-


प्रश्न 1.

कीचड़ की रंग किन-किन लोगों को खुश करता है?

उत्तर-

कीचड़ का रंग श्रेष्ठ कलाकारों, चित्रकारों, मूर्तिकारों और छायाकारों (फोटोग्राफरों) को खुश करता है। वे भट्टी में पकाए गए बर्तनों पर यही रंग करना पसंद करते हैं। छायाकार भी जब फोटो खींचते हैं तो एकाध जगह पर कीचड़-जैसा रंग देना पसंद करते हैं। वे इसे वार्मटोन अर्थात् पक्के रंग की झलक या ऊष्मा की झलक कहकर खुश होते हैं। इनके अतिरिक्त आम लोग अपने घरों की दीवारों पर, पुस्तकों के गत्तों पर और कीमती कपड़ों पर यही रंग देखना चाहते हैं।


प्रश्न 2.

कीचड़ सूखकर किस प्रकार के दृश्य उपस्थित करता है?

उत्तर-

सूखने के बाद जब कीचड़ टुकड़ों में बँट जाता है, तब सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है। ज्यादा गरमी के कारण इन टुकड़ों पर बहुत-सी दरारें पड़ जाती हैं। ये सूखकर जब टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं तो ये सुखाए हुए नारियल जैसे लगते हैं। गीले कीचड़ पर पक्षियों के पदचिह्नों के अंकन से दूर-दूर तक बने चिह्न मध्य एशिया के मार्ग जैसे लगते हैं। इसके अलावा दो मदमस्त पाड़ों के लड़ने से भारतीय महिषकुल युद्ध का अंकन हो जाता है।


प्रश्न 3.

सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य किन स्थानों पर दिखाई देता है?

उत्तर-

सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य नदी के किनारे पर दिखाई देता है। कीचड़ का पृष्ठ भाग सूखने पर उस पर बगुले और अन्य छोटे-बड़े पक्षी विहार करने लगते हैं। उनका यह विहार बहुत सुंदर प्रतीत होता है। कुछ अधिक सूखने पर उस पर गायें, बैल, भैंसें, पाड़े, भेड़े, बकरियाँ भी चहलकदमी करने लगती हैं। भैंसों के पाड़े तो सींग से सींग भिड़ाकर भयंकर युद्ध करते हैं। तब कीचड़ जगह-जगह से उखड़ जाती है। उस समय का सौंदर्य देखते ही बनता है।


प्रश्न 4.

कवियों की धारणा को लेखक ने युक्तिशुन्य क्यों कहा है?

उत्तर-

लेखक ने कवियों की धारणा को युक्तिशून्य इसलिए कहा है क्योंकि वे बाह्य सौंदर्य को महत्त्व देते हैं, जबकि वे आंतरिक सुंदरता और इसकी उपयोगिता की उपेक्षा करते हैं। ये लोग कमल, वासुदेव, हीरा और मोती के सौंदर्य पर आह्लादित होते हैं, परंतु इनके उत्पत्ति के स्रोतों क्रमशः कीचड, वसुदेव, कोयला और सीप की उपेक्षा कर कहते हैं कि हमें इनके स्रोतों से सरोकार नहीं। उनकी ऐसी धारणा युक्तिशून्य ही तो है।


(ग) निम्नलिखित की आशय स्पष्ट कीजिए-


प्रश्न 1.

नदी किनारे अंकित पदचिह्न और सींगों के चिह्नों से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख में लिखा हो ऐसा भास होता है।

उत्तर-

लेखक कहता है-नदी किनारे फैली कीचड़ जब सूखकर ठोस हो जाती है, तो उस पर भैंसों के पाडे आपस में खूब क्रीड़ा युद्ध करते हैं। वे सींग से सींग भिड़ाकर लड़ते हैं तथा अपने पैरों और सींगों से कीचड़ को खोद डालते हैं। उसे खुदी हुई कीचड़ को देखकर ऐसे लगता है मानो यहाँ भैंसों के कुल का कोई महाभारत लड़ा गया हो।


प्रश्न 2.

“आप वासुदेव की पूजा करते हैं इसलिए वसुदेव को तो नहीं पूजते, हीरे का भारी मूल्य देते हैं किंतु कोयले या पत्थर की नहीं देते और मोती को कंठ में बाँधकर फिरते हैं किंतु उसकी मातुश्री को गले में नहीं बाँधते!” कम-से कम इस विषय पर कवियों के साथ तो चर्चा न करना ही उत्तम!

उत्तर-

आशय- कविगण सौंदर्य और उपयोगिता के आधार पर वस्तुओं को ही महत्त्व देते हैं। वे यह बाह्य सौंदर्य ही देखते हैं, आंतरिक नहीं। ये वस्तुएँ कहाँ से पैदा हुई है, उनके स्रोत से उनका कोई मतलब नहीं। वे कहते हैं कि पंकज, वासुदेव, हीरा और मोती की प्रशंसा तो ठीक है पर इनके उत्पत्ति स्रोत कीचड़, वसुदेव, कोयला और सीप की प्रशंसा क्यों करें। लेखक का मानना है कि बाह्य सौंदर्य के द्रष्टा इन कवियों से इस बात को करना ही बेकार है।


भाषा अध्ययन


प्रश्न 1.

निम्नलिखित शब्दों के तीन-तीन पर्यायवाची शब्द लिखिए-

Solutions Class 9 स्पर्श Chapter-6 (काका कालेलकर - कीचड़ का काव्य)

उत्तर-

Solutions Class 9 स्पर्श Chapter-6 (काका कालेलकर - कीचड़ का काव्य)

प्रश्न 2.

निम्नलिखित वाक्यों मैं कारकों को रेखांकित कर उनके नाम भी लिखिए-

  1. कीचड़ का नाम लेते ही सब बिगड़ जाता है। …………
  2. क्या कीचड़ का वर्णन कभी किसी ने किया है। ………….
  3. हमारा अन्न कीचड़ से ही पैदा होता है। ……………
  4. पदचिह्न उस पर अंकित होते हैं। …………..
  5. आप वासुदेव की पूजा करते हैं। …………….

उत्तर-

  1. का – संबंध कारक
  2. का – संबंध कारक, ने—कर्ताकारक
  3. हमारा – संबंध कारक से-करण कारक
  4. पर – अधिकरण कारक
  5. की – संबंधकारक


प्रश्न 3.

निम्नलिखित शब्दों की बनावट को ध्यान से देखिए और इनका पाठ से भिन्न किसी नए प्रसंग में वाक्य प्रयोग कीजिए-

  1. आकर्षक
  2. यथार्थ
  3. तटस्थता
  4. कलाभिज्ञ
  5. पदचिह्न
  6. अंकित
  7. तृप्ति
  8. सनातन
  9. लुप्त
  10. जाग्रत
  11. घृणास्पद
  12. युक्तिशून्य
  13. वृत्ति

उत्तर-

  1. आकर्षक : मसूरी स्थित कैंपरी फाल बहुत आकर्षक है।
  2. यथार्थ : गरीबों की समस्याएँ हल यथार्थ रूप में नहीं की जा सकती हैं।
  3. तटस्थता : अंपायर की तटस्थता से मैच का आनंद बढ़ गया।
  4. कलाभिज्ञ : इस पेंटिंग का मूल्य कोई कलाभिज्ञ ही लगा सकता है।
  5. पदचिह्न : हमें महापुरुषों के पदचिह्नों पर चलना चाहिए।
  6. अंकित : शहीद देशभक्तों के नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित किए गए।
  7. तृप्ति : गरीब रूखा-सूखा खाकर भी तृप्ति की अनुभूति करते हैं।
  8. सनातन : दीन-दुखियों की मदद करना भारत की सनातन परंपरा है।
  9. लुप्त : वन्य जीवों की अनेक प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर हैं।
  10. जाग्रत : गुलाब का नाम लेते ही मन में सौंदर्य भाव जाग्रत हो उठा।
  11. घृणास्पद : अपने घृणास्पद व्यवहार के कारण आतंकी अलग-थलग पड़ गए।
  12. युक्तिशून्य : सुमन, तुम्हें तो ऐसी युक्तिशून्य बातें नहीं करनी चाहिए।
  13. वृत्ति : स्वार्थी वृत्ति वालों को लोग पसंद नहीं करते हैं।


प्रश्न 4.

नीचे दी गई संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग करते हुए कोई अन्य वाक्य बनाइए-

  1. देखते-देखते वहाँ के बादल श्वेत पूनी जैसे हो गए।
  2. कीचड़ देखना हो तो सीधे खंभात पहुँचना चाहिए।
  3. हमारा अन्न कीचड़ में से ही पैदा होता है।

उत्तर-

  1. देखते-देखते घटना स्थल पर बहुत से लोग एकत्र हो गए।
  2. हमें घायलों की मदद के लिए शीघ्र पहुँचना चाहिए।
  3. सत्संग से ही सद्गुण पैदा होता है।


प्रश्न 5.

न, नहीं, मत का सही प्रयोग रिक्त स्थानों पर कीजिए-

  1. तुम घर ……………… जाओ।
  2. मोहन कल ………………. आएगा।
  3. उसे ………………. जाने क्या हो गया है?
  4. डाँटो ………………… प्यार से कहो।
  5. मैं वहाँ कभी ………………… जाऊँगा।
  6. ………………… वह बोला ………………… मैं।

उत्तर-

  1. तुम घर मत जाओ।
  2. मोहन कल नहीं आएगा।
  3. उसे न जाने क्या हो गया है?
  4. डाँटो मत, प्यार से कहो।
  5. मैं वहाँ कभी नहीं जाऊँगा।
  6. न वह बोला न मैं।

योग्यता-विस्तार


प्रश्न 1.

विद्यार्थी सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य देखें तथा अपने अनुभवों को लिखें।

उत्तर-

सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य देखकर विद्यार्थी अपना अनुभव स्वयं लिखें।


प्रश्न 2.

कीचड़ में पैदा होने वाली फ़सलों के नाम लिखिए।

उत्तर-

कीचड़ में पैदा होने वाली मुख्य फ़सलें हैं-धान, केला, पटसन, जूट, कपास।


प्रश्न 3.

भारत के मानचित्र में दिखाएँ कि धान की फ़सल प्रमुख रूप से किन-किन प्रांतों में उपजाई जाती है?

उत्तर-

प्रश्न 4.

क्या कीचड़ ‘गंदगी’ है? इस विषय पर अपनी कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।

उत्तर-

“क्या कीचड़ गंदगी है?” विषय पर छात्र स्वयं परिचर्चा का आयोजन करें।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर


प्रश्न 1.

लेखक को कौन-सी दिशा का सौंदर्य अच्छा लग रहा था? यह सौंदर्य जल्दी ही क्यों समाप्त हो गया?

उत्तर-

लेखक को उत्तर दिशा का सौंदर्य अच्छा लग रहा था। उस समय सूर्योदय से पूर्व की लाली उत्तर दिशा में छाई थी। यह सौंदर्य जल्दी ही समाप्त हो गया क्योंकि सूर्योदय होने से आसमान की लालिमा गायब हो चुकी थी।


प्रश्न 2.

‘कीचड़ का काव्य’ पाठ में लेखक ने किस यथार्थ का उल्लेख किया है?

उत्तर-

‘कीचड़ का काव्य’ पाठ में लेखक ने कीचड़ के प्रति लोगों की सोच संबंधी यथार्थ का उल्लेख किया है। लोगों का मानना है कि कीचड़ उनके शरीर और कपड़ों को गंदा करता है। लोग न कीचड़ में पैर डालना पसंद करते हैं और न शरीर से कीचड़ को छूना देना चाहते हैं।


प्रश्न 3.

सूख जाने पर कीचड़ किस तरह का दिखाई पड़ता है?

उत्तर-

अधिक गरमी से कीचड़ जब सूख जाता है तो उसमें दरारें पड़ जाती हैं। इससे वह टुकड़ों में बँट जाता है। टेढ़ी-मेढ़ी इन दरारों के कारण सूखे कीचड़ का आकार भी टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है। उनका यह रूप सुखाए खोपरे जैसा लगता है।


प्रश्न 4.

गीले कीचड़ पर पक्षियों के पंजों का चिह्न कीचड़ की सौंदर्य वृधि किस तरह कर देता है?

उत्तर-

नदी के किनारे मीलों दूर तक फैले कीचड़ के कुछ सूख जाने पर बगुले और अन्य पक्षी जब चलते हैं तो उनके तीन नाखून और अँगूठा पीछे अंकित हो जाता है। यही क्रम दूर-दूर तक फैले कीचड़ पर देखा जा सकता है जो कीचड़ की सौंदर्य वृद्धि करता है।


प्रश्न 5.

कर्दमलेख में किसका इतिहास लिखा जाता है और कैसे?

उत्तर-

थोड़ा सूखे कीचड़ पर जब दो पाडे मदमस्त होकर लड़ते हैं तो उनके कर्दमलेख में महिषकुल के पूरे भारतीय युद्ध का इतिहास लिख जाता है। ये पाड़े कीचड़ में सींग रगड़-रगड़कर लड़ते हैं। इससे उनकी सींगों और खुर के निशान कीचड़ पर चित्रित हो जाते हैं।


प्रश्न 6.

लेखक ने कवियों की किस वृत्ति पर व्यंग्य किया है? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

लेखक ने कवियों की उस युक्तिशून्य वृत्ति पर व्यंग्य किया है जिसके कारण वे ‘पंक’ शब्द से घृणा करते हैं, परंतु उसी पंक में उगने वाले ‘पंकज’ शब्द का प्रयोग कवि अपने काव्य में करते हैं और आह्लादित होते हैं।


प्रश्न 7.

लेखक काका कालेलकर कवियों की किस वृत्ति को तर्कहीन मानते हैं? कीचड़ का काव्य पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर-

कवि अपनी बात का समर्थन करते हुए पंक और पंकज के संबंध में वासुदेव और वसुदेव, हीरा और कोयला, मोती और उसकी जननी सीप का उदाहरण देते हैं। लेखक काका कालेलकर उनकी इस मुक्तिशून्य वृत्ति को तर्कहीन मानते हैं।


प्रश्न 8.

मनुष्य कीचड़ का तिरस्कार करना कब बंद कर देगा? कीचड़ का काव्य पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर-

मनुष्य कीचड़ का नाम लेते ही उसके प्रति तिरस्कार का भाव प्रकट करने लगता है। वह कीचड़ से दूरी बनाए रखता है। परंतु उसे इसका ध्यान नहीं रहता कि उसको पोषणदायी अनाज उसी कीचड़ से उगता है। इस बात का ज्ञान होते ही वह कीचड़ का तिरस्कार करना बंद कर देगा।


प्रश्न 9.

खंभात का कीचड़ गंगा तथा अन्य नदियों के किनारे जाने वाले कीचड़ से किस तरह भिन्न है?

उत्तर-

खंभात में यही नदी के आसपास पाया जाने वाला असीमित दूरी तक फैला है। जहाँ तक दृष्टि जाती है, बस कीचड़ ही कीचड़ नज़र आता है। इस कीचड़ में हाथी तो क्या पहाड़ भी डूब जाएँगे जबकि गंगा एवं अन्य नदियों के किनारे इती ज्यादा मात्रा में कीचड़ नहीं है।


प्रश्न 10.

‘कीचड़ का काव्य पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

‘कीचड़ का काव्य’ पाठ का उद्देश्य यह है कि मनुष्य कीचड़ को हेय समझकर उसका तिरस्कार न करे। वह इस बात को हमेशा ध्यान में रखे उसे पोषण देने वाला अन्न कीचड़ में ही पैदा होता है। कीचड़ घृणा की वस्तु नहीं हो सकती है। अतः कीचड़ को हेय न मानकर श्रद्धेय मानना चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर


प्रश्न 1.

‘कीचड़ का काव्य’ पाठ में वर्णित सुबह का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर-

‘कीचड़ का काव्य’ पाठ में वर्णित सुबह अन्य दिनों की सुबह जैसे ही थी। उसमें कुछ विशेष आकर्षण न था परंतु उत्तर दिशा में छाई लालिमा का सौंदर्य अद्भुत था। उस दिशा में लाल रंग कुछ ज्यादा ही आकर्षक लग रहा था। पूरब की दिशा में अब तक कोई विशेष रंग न था। उत्तर दिशा में छाया यह सौंदर्य अधिक समय तक न टिक सका। देखते ही देखते लालिमा भी क्षीण होती गई। वहाँ के बादलों का रंग रूई की पूनी जैसा सफ़ेद हो गया और प्रतिदिन की भाँति दिन शुरू हो चुका था।


प्रश्न 2.

लेखक काका कालेलकर की दृष्टि कीचड़ के प्रति अन्य लेखकों से किस तरह भिन्न है? पठित पाठ के आलोक में लिखिए।

उत्तर-

लेखक काका कालेलकर कीचड़ की महत्ता अच्छी तरह समझते हैं। उन्हें अच्छी तरह भान है कि जीवन का आधार अन्न इसी कीचड़ में पैदा होता है। यदि कीचड़ न हो तो प्राणियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। वे कीचड़ में भी सौंदर्य देखते हैं। वे भिन्न उदाहरणों से कीचड़ के रंग की लोकप्रियता के बारे में बताते हैं। लेखक को सूखे कीचड़ में सुखाए। खोपरों का सौंदर्य और पक्षियों से बने पदचिह्नों का सौंदर्य अद्भुत लगता है जबकि कवियों को पंक घृणित एवं हेय लगता है। इस प्रकार कीचड़ के प्रति उसकी दृष्टि कवियों से भिन्न है।


प्रश्न 3.

आप कीचड़ के प्रति क्या सोचते हैं? आप उसे हेय समझते हैं या श्रद्धेय लिखिए।

उत्तर-

कीचड़ के संबंध में मेरे विचार काका कालेलकर जैसे ही हैं। मुझे कीचड़ की महत्ता का ज्ञान है। मुझे यह भी पता चल चुका है कि कीचड़ में हमारा भोजन अन्न उगता है। इसके बिना भूखों मरने की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। मैं कीचड़ के गंदेपन पर नहीं बल्कि उसकी उपयोगिता और सौंदर्य पर विचार करता हूँ। इसके अलावा पंक के बिना पंकज (कमल) कहाँ होता। यदि कीचड़ न होता तो हम उसके सौंदर्य से ही वंचित न रहते अपितु पक्षियों और जीव जंतुओं के चलने से कीचड़ पर चित्रित अद्भुत चित्र को भी देखने से वंचित रह जाते। इन कारणों से मैं कीचड़ को श्रद्धेय समझता हूँ।

एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 9 स्पर्श पीडीएफ