NCERT Solutions Class 11 जीव विज्ञान Chapter-12 (खनिज पोषण)

NCERT Solutions Class 11 जीव विज्ञान Chapter-12 (खनिज पोषण)

NCERT Solutions Class 11 (जीव विज्ञान ) 11 वीं कक्षा से Chapter-12 (खनिज पोषण) के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए।
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी (जीव विज्ञान ) के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 11 जीव विज्ञान Chapter-12 (खनिज पोषण)


एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

Class 11 (जीव विज्ञान )

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

पाठ-12 (खनिज पोषण)

अभ्यास के अ न्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

पौधों में उत्तरजीविता के लिए उपस्थित सभी तत्त्वों की अनिवार्यता नहीं है। टिप्पणी कीजिए।

उत्तर :

खनिज तत्त्व जो मृदा में उपस्थित होते हैं वे पौधों में जड़ों द्वारा जल के साथ अवशोषित कर लिए जाते हैं, परन्तु सभी तत्त्व आवश्यक तत्त्व हों ऐसा नहीं है। जो तत्त्व मृदा में अधिक मात्रा में उपस्थित होते हैं उनका अवशोषण भी अधिक हो जाता है; जैसे—सिलीनियम की मात्रा अधिक होने पर पौधों द्वारा इसका अधिक अवशोषण हो जाता है जो असल में उनके लिए आवश्यक नहीं है। लगभग 60 से अधिक तत्त्व पौधों में मिलते हैं परन्तु बहुत थोड़े-से ही आवश्यक तत्त्व होते हैं। अतः आवश्यक तत्त्व वे हैं जो सीधे पादप उपापचयी क्रियाओं में सम्मिलित होते हैं।\

प्रश्न 2.

जल संवर्धन में खनिज पोषण हेतु जल और पोषक लवणों की शुद्धता जरूरी क्यों है?

उत्तर :

अशुद्ध जल में अनेक खनिज घुले हो सकते हैं। इसी प्रकार लवणों में भी अशुद्धता मिलती है। यदि जल संवर्धन में अशुद्ध जल व लवणों का प्रयोग होता है तो ये पौधे की वृद्धि में बाधा उत्पन्न करते हैं। अत: जल संवर्धन में शुद्ध जल तथा ज्ञात आवश्यक तत्त्वों का ही खनिज पोषण विलयन प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3.

उदाहरण के साथ व्याख्या करें-वृहत पोषक तत्त्व, सूक्ष्म पोषक तत्त्व, हितकारी पोषक तत्त्व, आविष तत्व तथा अनिवार्य तत्त्व।

उत्तर :

1. वृहत पोषक तत्त्व (Macro Nutrients) :

वे तत्त्व जिनकी पौधों को अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है वृहत पोषक तत्त्व (macro nutrient) कहलाते हैं; जैसे—N, B S, Ca, Mg आदि। पादप ऊतक में इनकी सान्द्रता 1-10 mg/L शुष्क मात्रा में होती है।

2. सूक्ष्म पोषक तत्त्व (Micro Nutrients) :

वे तत्त्व जिनकी आवश्यकता पौधों को बहुत कम मात्रा में होती है, सूक्ष्म पोषक तत्त्व कहलाते हैं। जैसे—Mn, Cu, Fe, Mo, Zn, B, Cl, Ni आदि। इनकी सान्द्रता पादप ऊतक में 0.1/mg/L शुष्क मात्रा में होती है।

3. हितकारी पोषक तत्त्व (Beneficial Nutrients) :

वे तत्त्व जिनकी उच्च पादपों में बड़े तथा सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के अतिरिक्त आवश्यकता होती है, हितकारी पोषक तत्त्व कहलाते हैं; जैसे-Na, Si, Co, se आदि।

4. आविष तत्त्व (Toxic Elements) :

वे खनिज तत्त्व जो पौधों के लिए हानिकारक होते हैं या जिस सान्द्रता में वे पादप ऊतक के शुष्क भार को 10 प्रतिशत तक घटा सकते हैं, आविष तत्त्व कहलाते हैं।

5. अनिवार्य तत्त्व (Essential Elements) :

वे तत्त्व जो पौधे की उपापचयी क्रियाओं में सीधे तौर पर सम्मिलित होते हैं और उनकी कमी से पौधों में निश्चित लक्षण दिखाई देते हैं, अनिवार्य तत्त्व कहलाते हैं।

प्रश्न 4.

पौधों में कम-से-कम पाँच अपर्याप्तता के लक्षण दें। उन्हें वर्णित करें और खनिजों की कमी से उनका सहसम्बन्ध बनाएँ।

उत्तर :

1. क्लोरोसिस (Chlorosis) :

क्लोरोफिल का ह्रास होता है जिससे पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं। यह N, K, S, Mg, Fe, Mn, Zn तथा Co आदि की कमी से होता है।

2. नेकरोसिस (Necrosis) :

ऊतक की कोशिकाओं का क्षय होता है। इसके कारण दिखाई देने वाले लक्षण हैं-ब्लाइट, रॉट, पत्ती पर धब्बे आदि। यह लक्षण Ca, Mg, Cu, K आदि की कमी से होता है।

3. कोशिका विभाजन का निरोधी (Supression of Cell Division) :

पौधे की वृद्धि कम होने से पौधे बौने रह जाते हैं। यह लक्षण N, S, K, Mo आदि की कमी से होता है।

4. विकृति (Malformation) :

रंगहीनता, विभज्योतक ऊतकों के संगठन में कमी, विकृति आदि अन्त में मृत्यु का कारण बनते हैं। यह बोरोन की कमी का लक्षण है।

5. पुष्पन में देरी (Delay in Flowering) :

N, S, Mo आदि के कम सान्द्रता से कुछ पौधों में पुष्पन कुछ समय के लिए टल जाता है।

प्रश्न 5.

अगर एक पौधे में एक से ज्यादा तत्त्वों की कमी के लक्षण प्रकट हो रहे हैं तो प्रायोगिक तौर पर आप कैसे पता करेंगे कि अपर्याप्त खनिज तत्त्व कौन-से हैं ?

उत्तर :

ऐसे पौधों को विभिन्न जल संवर्धन में उगाते हैं। प्रत्येक तत्त्व की कमी का लक्षण अलग-अलग पता चल जाता है जिससे तुलना करके दिए गए पौधों में पोषक तत्त्व की कमी का पता किया जा सकता है।

प्रश्न 6.

कुछ निश्चित पौधों में अपर्याप्तता लक्षण सबसे पहले नवजात भाग में क्यों पैदा होता है, जबकि कुछ अन्य में परिपक्व अंगों में?

उत्तर :

पोषक तत्त्वों की कमी से पौधों में कुछ आकारिकीय बदलाव (morphological change) आते हैं। ये परिवर्तन अपर्याप्तता को प्रदर्शित करते हैं। ये विभिन्न तत्त्वों के अनुसार अलग-अलग होते हैं। अपर्याप्तता के लक्षण पोषक तत्वों की गतिशीलता पर निर्भर करते हैं। ये लक्षण कुछ पौधों के नवजात भागों में या पुराने ऊतकों में पहले प्रकट होते हैं। पादप में जहाँ तत्त्व सक्रियता से गतिशील रहते हैं तथा तरुण विकासशील ऊतकों में नियतित होते हैं, वहाँ अपर्याप्तता के लक्षण पुराने ऊतकों में पहले प्रकट होते हैं; जैसे-N, K, Mg अपर्याप्तता के लक्षण सर्वप्रथम जीर्णमान पत्तियों में प्रकट होते हैं। पुरानी पत्तियों में ये तत्त्व विभिन्न जैव अणुओं के विखण्डित होने से उपलब्ध होते हैं और नई पत्तियों तक गतिशील होते हैं। जब तत्त्व अगतिशील होते हैं और वयस्क अंगों से बाहर अभिगमित नहीं होते तो अपर्याप्तता लक्षण नई पत्तियों में प्रकट होते हैं; जैसे-कैल्सियम, सल्फर आसानी से स्थानान्तरित नहीं होते। अपर्याप्तता लक्षणों को पहचानने के लिए पौधे के विभिन्न भागों में प्रकट होने वाले लक्षणों का अध्ययन मान्य तालिका के अनुसार करना होता है।

प्रश्न 7.

पौधों के द्वारा खनिजों का अवशोषण कैसे होता है?

उत्तर :

खनिज तत्त्वों का अवशोषण खनिज तत्त्वों का अवशोषण दो प्रकार से होता है

1.”ऐपोप्लास्ट पथ (Apoplast Pathway) :

कोशिकाओं के बाह्य स्थान में तीव्र गति से आयन का अन्तर्ग्रहण, निष्क्रिय अवशोषण होता है। आयनों की निष्क्रिय गति साधारणतया आयन चैनलों के द्वारा होती है। ये ट्रांस झिल्ली प्रोटीन होते हैं और चयनात्मक छिद्रों का कार्य करते हैं।

2. सिमप्लास्ट पथ (Symplast Pathway) :

कोशिकाओं के आन्तरिक स्थान में आयन धीमी गति से अन्तर्ग्रहण किए जाते हैं। आयनों के प्रवेश और निष्कासन में उपापचयी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह सक्रिय अवशोषण होता है। कोशिका में आयनों की गति को अन्तर्वाह (influx) तथा कोशिका से बाहर आयन की गति को बहिर्वाह (efflux) कहते हैं।

प्रश्न 8.

राइजोबियम के द्वारा वातावरणीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण के लिए क्या शर्ते हैं तथा N2 स्थिरीकरण में इनकी क्या भूमिका है?

उत्तर :

वायुमण्डलीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण की शर्ते

  1. नाइट्रोजिनेस एन्जाइम (Nitrogenase enzyme)
  2. लेग्हीमोग्लोबीन (Leghaemoglibin, Ib)
  3.  ATP
  4. अनॉक्सी वातावरण।

मुख्यतया मटर कुल के पौधों की जड़ों में ग्रन्थिकाएँ पाई जाती हैं। इनमें राइजोबियम (Rhizobiure) जीवाणु पाया जाता है। ग्रन्थिकाओं में नाइट्रोजिनेस (nitrogenase) एन्जाइम एवं लेग्हीमोग्लोबीन (leghaemoglobin) आदि सभी जैव-रासायनिक संघटक पाए जाते हैं। नाइट्रोजिनेस एन्जाइम वातावरणीय नाइट्रोजन को अमोनिया में बदलने के लिए उत्प्रेरित करता है। नाइट्रोजिनेस एन्जाइम की सक्रियता के लिए अनॉक्सी वातावरण आवश्यक होता है। लेग्हीमोग्लोबीन ऑक्सीजन से नाइट्रोजिनेस एन्जाइम की सुरक्षा करता है। अमोनिया संश्लेषण के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। एक अमोनिया अणु को 8 ATP ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा की आपूर्ति पोषक कोशिकाओं के ऑक्सी श्वसन से होती है। अमोनिया ऐमीनो अम्ल में ऐमीनो समूह के रूप में सम्मिलित हो जाती है।

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प्रश्न 9.

मूल ग्रन्थिका के निर्माण हेतु कौन-कौन से चरण भागीदार हैं?

उत्तर :

मूल ग्रन्थिका निर्माण पोषक पौधों (सामान्यतया मटर कुल के पौधे) की जड़ एवं राइजोबियम में पारस्परिक प्रक्रिया के कारण ग्रन्थिकाओं का निर्माण निम्नलिखित चरणों में होता है

  1.  राइजोबियम जीवाणु बहुगुणित होकर जड़ के चारों ओर एकत्र होकर मूलरोम एवं मूलीय त्वचा से जुड़ जाते हैं। जीवाणु संक्रमण के कारण जीवाणु मूलरोम से होकर वल्कुट (cortex) में पहुँच जाते हैं। वल्कुट में जीवाणुओं के कारण कोशिकाओं का विशिष्टीकरण नाइट्रोजन स्थिरीकरण कोशिकाओं के रूप में होने लगता है। इस प्रकार ग्रन्थिकाओं (nodules) का निर्माण हो जाता है। ग्रन्थिकाओं के जीवाणुओं का पोषक पादप से पोषक तत्वों के आदान-प्रदान हेतु संवहनी सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।
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प्रश्न 10.

निम्नलिखित कथनों में कौन सही है? अगर गलत हैं तो उन्हें सही कीजिए

(क) बोरोन की अपर्याप्तता से स्थूलकाय अक्ष बनता है।

(ख) कोशिका में उपस्थित प्रत्येक खनिज तत्त्व उसके लिए अनिवार्य है।

(ग) नाइट्रोजन पोषक तत्त्व के रूप में पौधे में अत्यधिक अचल है।

(घ) सूक्ष्म पोषकों की अनिवार्यता निश्चित करना अत्यन्त ही आसान है; क्योंकि ये बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में लिए जाते हैं।

उत्तर :

(क)

सत्य कथन।

(ख)

असत्य कथन। 105 खनिज तत्त्वों में से लगभग 60 तत्त्व विभिन्न पौधों में पाए गए हैं। इनमें से 17 खनिज तत्त्व ही अनिवार्य होते हैं।

(ग)

असत्य कथन। नाइट्रोजन अत्यधिक गतिमान पोषक खनिज तत्त्व है।

(घ)

असत्य कथन। सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की अनिवार्यता निश्चित करना अत्यन्त कठिन कार्य होता है। क्योंकि ये अति सूक्ष्म मात्रा में प्रयोग किए जाते हैं। सामान्यतया पोषक लवणों में अशुद्धता के कारण इनकी. अनिवार्यता स्थापित करना कठिन होता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.

धान का ‘खैरा रोग किस तत्त्व की कमी के कारण होता है?

(क) कैल्सियम

(ख) मैग्नीशियम

(ग) मॉल्ब्डेनम

(घ) जिंक

उत्तर :

(घ) जिंक

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

नाइट्रोजन स्थिरीकरण (nitrogen fixation) क्या है?

उत्तर :

वायु में उपस्थित नाइट्रोजन को अमोनिया में बदलने की प्रक्रिया।

प्रश्न 2.

नाइट्रीकरण (nitrification) क्या है ?

उत्तर :

अमोनिया पहले नाइट्रोसोमोनास यो नाइटोकोकस जीवाणु द्वारा नाइट्राइट में बदल दी जाती है। तथा नाइट्राइट को नाइट्रोबैक्टर की सहायता से नाइट्रेट में बदल दिया जाता है ये प्रक्रियाएँ नाइट्रीकरण कहलाती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

हाइड्रोपोनिक्स पर टिप्पणी लिखिए। या जलसंवर्धन क्या है? परिभाषित कीजिए।

उत्तर :

पौधों में विभिन्न तत्वों की क्या उपयोगिता है, इसका अध्ययन मृदाविहीन संवर्धन (soilless culture) अथवा विलयन संवर्धन (solution culture) विधि द्वारा किया जाता है। इस प्रक्रिया को हाइड्रोपोनिक्स (hydroponics) कहते हैं। मृदाविहीन संवर्धन इस सिद्धान्त पर आधारित है कि वे सभी अनिवार्य खनिज पदार्थ जो पौधे मृदा से जड़ों द्वारा अवशोषित करते हैं उनके विलयन में पौधों को उगाया जाता है। यह पोषक विलयन (nutrient solution) कहलाता है। जिस पोषक विलयन में सभी अनिवार्य खनिज पदार्थ उपस्थित हों उसे सामान्य पोषक विलयन (normal nutrient solution) कहते हैं। सामान्य पोषक विलयन (normal nutrient solution) में निम्नलिखित परिस्थितियाँ आवश्यक हैं

  1. इसमें सभी अनिवार्य खनिज घुलनशील अवस्था में हों।
  2. विलयन काफी तनु (dilute) हो तथा समय-समय पर उसे बदलते रहना चाहिए।
  3. विलयन सन्तुलित हो जिससे अनिवार्य आयन का प्रचूषण हो सके।
  4. विलयन को सदैव हवा मिलती रहे, क्योंकि प्रचूषण के लिए श्वसन ऊर्जा आवश्यक है।
  5. विलयन का pH आवश्यकतानुसार हो।

प्रश्न 2.

पौधों में बोरोन व कॉपर की कमी से उत्पन्न लक्षणों के बारे में लिखिए।

उत्तर :

1. बोरोन (Boron) :

यह ({ BO }_{ 3}^{ 3-})  अथवा B4{ O }_{ 7}^{ 2- }आयनों के रूप में अवशोषित होता है। इसकी अनिवार्यता Ca 2+ को ग्रहण तथा उपयोग करने, झिल्ली की कार्यशीलता व पराग अंकुरण, कोशिका दीर्घाकरण, कोशिका विभेदन एवं कार्बोहाइड्रेट के स्थानान्तरण में होती है। पौधों में इसकी कमी से प्ररोहशीर्ष की मृत्यु होने लगती है, पुष्पन रुक जाता है, पत्तियों के शिखर काले पड़ने लगते हैं, विभिन्न अंगों की वृद्धि रुक जाती है।

2. ताँबा (Copper) :

यह क्यूप्रिंक आयन (Cu 2+) के रूप में अवशोषित होता है। यह पादपों के समग्र उपापचय के लिए अनिवार्य होता है। लौह की तरह यह भी रेडॉक्स प्रतिक्रिया से जुड़े विशेष एन्जाइमों के साथ संलग्न रहता है तथा यह भी विपरीत दिशा में Cu+ से Cu 2+ में ऑक्सीकृत होता है। नींबू प्रजाति के पौधों में इसकी कमी से शीर्षारंभी रोग (dieback disease) तथा धान एवं लेग्यूम पौधों में रीक्लेमेशन रोग (reclamation disease) उत्पन्न हो जाता है। नई पत्तियों पर ऊतकक्षयी क्षेत्र बनने लगते हैं।

प्रश्न 3.

पौधे में लोहा और मैंगनीज की भूमिका का वर्णन कीजिए।

उत्तर :

1. लोहा (Iron) :

पादप लोहे को फेरिक आयन (Fe 3+) के रूप में लेते हैं। पौधों को इसकी अनिवार्यता किसी अन्य सूक्ष्ममात्रिक तत्त्व की अपेक्षा अधिक मात्रा में होती है। यह फेरेडॉक्सिन तथा साइटोक्रोम जैसे प्रोटीन का भाग है जो कि इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण में संलग्न रहता है। इसका इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण के समय Fe 2+ से Fe 3+ के रूप में विपरीत ऑक्सीकरण होता है। यह कैटेलैज एन्जाइम को सक्रिय कर देता है और पर्णहरित के निर्माण के लिए अनिवार्य होता है। लौह की कमी से पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं, शिराएँ गहरे रंग की होने लगती हैं तथा पत्तियों में हरिमहीनता उत्पन्न होने लगती है, हरितलवक का निर्माण धीमी गति से होने लगता है।

2. मैंगनीज (Manganese) :

यह मैंगनस आयन (Mn 2+) के रूप में अवशोषित किया जाता है। यह प्रकाश-संश्लेषण, श्वसन तथा नाइट्रोजन उपापचय के अनेक एंजाइमों को सक्रिय कर देता है। मैंगनीज का प्रमुख कार्य प्रकाश-संश्लेषण के दौरान जल के अणुओं को विखण्डित कर ऑक्सीजन को उत्सर्जित करना है। इसकी कमी के लक्षण सर्वप्रथम पुरानी पत्तियों में प्रकट होते हैं। पत्तियों में अन्तराशिरीय हरिमहीनता उत्पन्न हो जाती है। पत्तियों पर मृत ऊतकक्षयी क्षेत्र बनने लगते हैं।

प्रश्न 4.

‘खनिज तत्त्वों की कमी को दूर करना शीर्षक पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर :

अधिकांश मृदाओं में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम इत्यादि खनिज तत्त्वों की कमी रहती है। जिसके कारण पौधों को भी इसकी उचित मात्रा प्राप्त नहीं हो पाती है। इन तत्त्वों की कमी को पूरा करने के लिए हमें मृदा में खाद या उर्वरक मिश्रित करने की आवश्यकता होती है। कुछ प्रमुख खादों; जैसे-गोबर की खाद, कम्पोस्ट इत्यादि को मृदा में मिश्रित करना उत्तम रहता है। उर्वरक के रूप में हम मृदा में अमोनियम सल्फेट, अमोनियम नाइट्रेट, सुपर फॉस्फेट, अस्थि चूर्ण इत्यादि मिश्रित कर सकते हैं। ये उर्वरक क्रमशः नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम इत्यादि तत्त्वों की पूर्ति मृदा में करते हैं। इस प्रकार से हम खनिज तत्त्वों की कमी को दूर कर सकते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

खनिज पोषण से आप क्या समझते हैं? पादप पोषण में कैल्सियम, पोटैशियम एवं नाइट्रोजन के महत्त्व की विवेचना कीजिए। या दीर्घ मात्रा पोषक तत्त्व एवं लघु मात्रा पोषक तत्त्व क्या हैं? टिप्पणी कीजिए। या खनिज अवशोषण का उल्लेख संक्षेप में कीजिए। या ‘खनिज लवणों का अन्तर्ग्रहण’ पर टिप्पणी लिखिए। या खनिज तत्वों के कार्य बताइए। या सूक्ष्म पोषक तत्वों का वर्णन कीजिए। या पौधों के पोषण में पोटैशियम तथा नाइट्रोजन तत्त्वों के विशेष कार्यों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर :

खनिज तत्त्व और खनिज पोषण

हरे पौधों को स्वपोषित (autotrophic) कहते हैं। प्रकृति में केवल हरे पेड़-पौधों में ही यह गुण पाया जाता है कि वे अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। ये पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड  (CO2)(वायु से) तथा जल (H2O)(भूमि से) की सहायता से ऊर्जायुक्त कार्बनिक पदार्थ, मुख्यतः कार्बोहाइड्रेट्स (C6 H12O6) का निर्माण करते हैं। प्रायः सभी पौधे जल व अकार्बनिक तत्त्वों को भूमि से प्राप्त करते हैं। अकार्बनिक तत्त्व भूमि में खनिजों (minerals) के रूप में उपस्थित रहते हैं। इन्हें खनिज तत्त्व या पोषक तत्त्व (mineral elements or nutrient elements) तथा इनके पोषण को खनिज पोषण (mineral nutrition) कहते हैं।

बड़े एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्व

केवल कुछ ही तत्त्वे पौधों की वृद्धि एवं उपापचय के लिए नितान्त रूप से अनिवार्य माने गए हैं। उनको उनकी आवश्यक मात्रा के आधार पर दो व्यापक श्रेणियों में बाँटा गया है

1. बड़े पोषक तत्त्व (Macro nutrients) :

बड़े पोषक तत्वों को सामान्यतः पादप के शुष्क पदार्थ का 1 से 10 मिग्रा/लीटर की सान्द्रता से विद्यमान होना चाहिए। इस श्रेणी में आने वाले तत्त्व हैं—कार्बन (C), हाइड्रोजन (H), ऑक्सीजन (O), फॉस्फोरस (F), सल्फर (S), पोटैशियम (K), कैल्सियम (Ca) और मैग्नीशियम (Mg)। इनमें से कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन मुख्यतया CO2 , एवं H2Oसे प्राप्त होते हैं, जबकि दूसरे मृदा से खनिज के रूप में अवशोषित किए जाते हैं।

2. सूक्ष्म पोषक तत्त्व (Micro nutrients) :

पौधों को सूक्ष्म पोषक तत्त्वों अथवा लेशमात्रिक तत्त्वों की अनिवार्यता अत्यन्त सूक्ष्म मात्रा में होती है 0.1 मिग्रा/लीटर शुष्क भार के बराबर या उससे कम)। इनके अन्तर्गत लौह (Fe), मैंगनीज (Mg), ताँबा (Cu), मॉलिब्डेनम (Mo), जिंक (Zn), बोरोन (B), क्लोरीन (C) और निकिल (Ni) सम्मिलित हैं।

कैल्सियम

पादप कैल्सियम को मृदा से कैल्सियम आयनों (Ca 2+) के रूप में अवशोषित करते हैं। इसकी आवश्यकता विभज्योतक तथा विभेदित होते हुए ऊतकों को अधिक होती है। कोशिका विभाजन के दौरान कोशिका भित्ति के संश्लेषण में भी इसका उपयोग होता है। विशेष रूप से मध्य पट्टिका में कैल्सियम पेक्ट्रेट के रूप में इसकी अनिवार्यता समसूत्री विभाजन में तर्क निर्माण के दौरान भी होती है। यह पुरानी पत्तियों में एकत्रित हो जाता है। यह कोशिका झिल्लियों की सामान्य क्रियाओं में शामिल होता है। यह कुछ एन्जाइमों को सक्रिय करता है तथा उपापचय के नियन्त्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसकी कमी से हरितलवक ठीक से कार्य नहीं करता है। पुष्पों का विकास ठीक से नहीं हो पाता है, वे शीघ्र ही गिर जाते हैं पत्तियों में हरिमहीनता (chlorosis) उत्पन्न हो जाती है।

पोटैशियम

पादपों द्वारा इसका अवशोषण पोटैशियम आयन (K+) के रूप में होता है। इसकी पौधों के विभज्योतक ऊतकों, कलिकाओं, पर्यों, मूलशीर्षों में अधिक मात्रा की जरूरत होती है। पोटैशियम कोशिकाओं में धनायन-ऋणायन सन्तुलन का निर्धारण करने में सहायक होता है। साथ ही यह प्रोटीन संश्लेषण, रन्ध्रों के खुलने और बन्द होने, एन्जाइम सक्रियता और कोशिकाओं को स्फीत अवस्था में बनाए रखने में शामिल होता है। इसकी कमी से पौधा बौना (dwarf) हो जाता है कोशिकाओं में टूट-फूट की मरम्मत नहीं हो पाती है, पत्तियों पर अनेक पीले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं तथा तने पीले एवं कमजोर हो जाते हैं।”

नाइट्रोजन

इस तत्त्व की अनिवार्यता पौधों में सर्वाधिक मात्रा में होती है। पौधे अपनी जड़ों द्वारा इसका अवशोषण मुख्यत: { NO }_{ 3}^{ - }के रूप में करते हैं लेकिन कुछ मात्रा  NO2 , अथवा  NH4 , के रूप में भी ली जाती है। इसकी अनिवार्यता पौधों के सभी भागों विशेषत: विभज्योतक ऊतकों एवं सक्रिय उपापचयी कोशिकाओं में होती है। नाइट्रोजन प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्लों, विटामिन और हॉर्मोन का एक मुख्य संघटक है। पौधों में इसकी कमी से वृद्धि रुक जाती है, पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं, पत्तियाँ अधिक छोटी एवं मोटी हो जाती हैं। तथा पुष्पों का विकास नहीं हो पाता है।

प्रश्न 2.

दीर्घपोषक तत्त्वों एवं लघुपोषक तत्वों में क्या अन्तर है? सल्फर, पोटैशियम, मैग्नीशियप एवं जिंक तत्त्वों की कमी से उत्पन्न लक्षणों का वर्णन कीजिए।” या सल्फर, पोटैशियम, मैग्नीशियम एवं जिंक तत्त्वों की कमी से उत्पन्न लक्षणों का वर्णन कीजिए। [संकेत–दीर्घ पोषक तत्वों एवं लघु पोषक तत्त्वों में अन्तर के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें।]

उत्तर :

1. गन्धक (Sulphur) :

पादप गन्धक को सल्फेट ({ SO }_{ 4}^{ 2- }) के रूप में लेते हैं। यह सिस्टीन (Cysteine) व मेथियोनीन (methionine) नामक अमीनो अम्लों में पाया जाता है तथा अनेक विटामिनों (थायमीन, बायोटीन, कोएन्जाइम ए) एवं फेरेडॉक्सिन का मुख्य संघटक है। युवा पत्तियों में गन्धक की कमी हरिमहीनता उत्पन्न करती है, पत्तियों में एन्थोसायनिन का संचय होने लगती है, पत्तियों की वृद्धि रुक जाती है तथा पौधे बौने रह जाते हैं।

2. मैग्नीशियम (Magnesium) :

यह पादपों द्वारा द्वियोजी मैग्नीशियम (Mg2+) आयन के रूप में अवशोषित होता है। यह प्रकाश-संश्लेषण तथा श्वसन क्रिया के एंजाइमों को सक्रियता प्रदान करता है। तथा DNA एवं RNA के संश्लेषण में भी शामिल होता है। यह क्लोरोफिल की वलय संरचना का संघटक है और राइबोसोम के आकार को बनाए रखने में सहायक है। इसकी कमी से पत्तियों में हरिमहीनता आ जाती है जो बाद में तरुण पत्तियों में भी दिखाई देती है, पत्तियों में एन्थोसायनिन की। मात्रा बढ़ जाती है, पौधे के विभिन्न भागों में ऊतकक्षयी धब्बे बन जाते हैं।

3. जिंक (Zinc) :

पादप जिंक को, जिंक आयन (Zn2+)के रूप में लेते हैं। यह विविध एंजाइमों को विशेषत: कार्बोक्सीलेस को सक्रिय करता है। इसकी अनिवार्यता ऑक्सिन संश्लेषण में भी होती है। इसकी कमी से पत्तियाँ विकृत होने लगती हैं। इनके शीर्ष पर हरिमहीनता के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। पौधों में पुष्पन ठीक से नहीं हो पाता है।

4. पोटैशियम (Potassium) :

[संकेत–कृपया दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 में देखें।

एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 11 जीव विज्ञान