NCERT Solutions Class 11 Geography in Hindi Chapter 7– (प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ)

NCERT Solutions Class 11 Geography in Hindi Chapter 7– (प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ)

NCERT Solutions Class 11 (भारत भौतिक पर्यावरण ) 11 वीं कक्षा से Chapter- 7 (प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ) के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी (भारत भौतिक पर्यावरण ) के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 11 Geography in Hindi Chapter 7– (प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ)


एनसीईआरटी प्रश्न-उत्त

Class 11 (भारत भौतिक पर्यावरण)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

पाठ-7 (प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ)

प्रश्न 1. नीचे दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर का चयन करें

(i) इनमें से भारत के किस राज्य में बाढ़ अधिक आती है?

(क) बिहार

(ख) पश्चिम बंगाल

(ग) असम

(घ) उत्तर प्रदेश

उत्तर-(ग) असम।

(ii) उत्तराखण्ड के किस जिले में मालपा भू-स्खलन आपदा घटित हुई थी?

(क) बागेश्वर

(ख) चम्पावत

(ग) अल्मोड़ा

(घ) पिथौरागढ़

उत्तर-(घ) पिथौरागढ़।

(iii) इनमें से कौन-से राज्य में सर्दी के महीनों में बाढ़ आती है?

(क) असम

(ख) पश्चिम बंगाल

(ग) केरल

(घ) तमिलनाडु

उत्तर-(घ) तमिलनाडु।।

(iv) इनमें से किस नदी में मजौली नदीय दीप स्थित है?

(क) गंगा

(ख) ब्रह्मपुत्र

(ग) गोदावरी

(घ) सिन्धु

उत्तर-(ख) ब्रह्मपुत्र।

(v) बर्फानी तूफान किस तरह की प्राकृतिक आपदा है?

(क) वायुमण्डलीय

(ख) जलीय ।

(ख) जलीय

(ग) भौमिकी

(घ) जीवमण्डलीय

उत्तर-(क) वायुमण्डलीय।।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30 से कम शब्दों में दें

(i) संकट किस दशा में आपदा बन जाता है?

उत्तर-संकट उस दशा में आपदा बन जाता है जब वह आकस्मिक उत्पन्न होता है। ऐसी दशा में मनुष्य उसका सामना करने के लिए तैयार नहीं होता तथा इसके नियन्त्रण हेतु भी पूर्व प्रबन्धीय तैयारी नहीं की जाती है।

(ii) हिमालय और भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में अधिक भूकम्प क्यों आते हैं?

उत्तर-हिमालय और भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में भूकम्प अधिक आते हैं, क्योंकि भारतीय भू-प्लेट उत्तर तथा पूर्व की ओर खिसक रही है तथा यूरेशियन भू-प्लेट से टकराकर इसमें अधिक ऊर्जा एकत्र हो जाती है। यही ऊर्जा इस क्षेत्र से विवर्तनिकता (हलचल) उत्पन्न कर भूकम्प का कारण बनती है। |

(iii) उष्ण कटिबन्धीय तूफान की उत्पत्ति के लिए कौन-सी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं?

उत्तर-उष्ण कटिबन्धीय तूफान की उत्पत्ति के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों को अनुकूल माना जाता है

  1. पर्याप्त एवं सतत उष्ण व आर्द्र वायु की उपलब्धता जिससे बड़ी मात्रा में गुप्त ऊष्मा निर्मुक्त हो।
  2. तीव्र कोरियोलिस बल जो केन्द्र के निम्न वायुदाब को भरने न दे।’
  3. क्षोभमण्डल में अस्थिरता जिससे स्थानीय स्तर पर निम्न वायुदाब क्षेत्र बन जाते हैं।
  4. शक्तिशाली उच्च दाबवेज (Wedge) की अनुपस्थिति, जो आई व गुप्त ऊष्मायुक्त वायु के ऊध्र्वाधर बहाव को अवरुद्ध करे।

(iv) पूर्वी भारत की बाढ़ पश्चिमी भारत की बाढ़ से अलग कैसे होती है?

उत्तर-पूर्वी भारत में बाढ़ प्रतिवर्ष आती है तथा भारी नुकसान पहुँचाती है। पश्चिमी भारत में बाढ़ कभी-कभी और अचानक आती है। पश्चिमी भारत में पंजाब, हरियाणा, गुजरात राज्यों में प्रवाहित होने वाली नदियों के जलस्तर में जब वृद्धि हो जाती है तो बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। राजस्थान में कभी आकस्मिक तीव्र वर्षा के फलस्वरूप बाढ़ आ जाती है।

(v) पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे ज्यादा क्यों पड़ते हैं?

उत्तर-पश्चिमी और मध्य भारत जिसमें मुख्यत: राजस्थान का पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश का अधिकांश भाग तथा महाराष्ट्र के पूर्वी भाग आते हैं जो सूखे से अधिक प्रभावित रहते हैं। इस भाग में अत्यधिक कम वर्षा एवं मानसून के समय पर न आने के कारण सूखे की विपत्ति बार-बार उत्पन्न होती रहती है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दो में दें

(i) भारत में भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करें और इस आपदा के निवारण के कुछ उपाय बताएँ।

उत्तर-भारत में भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्र

भारत में अस्थिर युवा हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएँ, जिसमें उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर तथा असम राज्य, अण्डमान और निकोबार, पश्चिमी घाट, नीलगिरि में अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, भूकम्प प्रभावी क्षेत्र और इन भागों में अत्यधिक मानव क्रियाकलापों वाले वे क्षेत्र जहाँ सड़क और बाँध निर्माण अधिक किए गए हैं, भू-स्खलन से अत्यधिक प्रभावित क्षेत्रों में सम्मिलित हैं।

आपदा निवारण के उपाय-भू-स्खलन से निपटने के लिए निम्नलिखित उपाय उपयोगी होते हैं-

  1. पर्वतीय क्षेत्रों में तीव्र ढाल वाले भागों को काटकर सड़क निर्माण नहीं किया जाना चाहिए।
  2. इन क्षेत्रों में कृषि कार्य नदी घाटी तथा कम ढाल वाले भागों तक सीमित होना चाहिए तथा बड़ी विकास योजना पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  3. सकारात्मक कार्य जैसे बृहत् स्तर पर वनीकरण को बढ़ावा और जल प्रवाह को नियन्त्रित करने के | लिए बाँध आदि का निर्माण भू-स्खलन के उपायों के पूरक हैं।
  4. स्थानान्तरी कृषि वाले उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए।

(ii) सुभेद्यता क्या है? सूखे के आधार पर भारत को प्राकृतिक आपदा भेवता क्षेत्रों में विभाजित करें और इसके निवारण के उपाय बताएँ।

उत्तर-सुभेद्यता

सुभेद्यता (Vulnerability) अथवा असुरक्षा किसी व्यक्ति, समुदाय अथवा क्षेत्र को हानि पहुँचाने की वह दशा या स्थिति है जो मानव के नियन्त्रण में नहीं होती है। दूसरे शब्दो में, यह जोखिम की वह सीमा है जिस पर एक व्यक्ति या समुदाय अथवा क्षेत्र प्रभावित होता है। भारत को सूखा के आधार पर निम्नलिखित भेद्यता (प्रभावित क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है|

1. अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र—इसमें राजस्थान में अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थली और गुजरात का कच्छ क्षेत्र सम्मिलित है।

2. अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-राजस्थान का पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश का अधिकांश क्षेत्र, महाराष्ट्र | के पूर्वी भाग, तेलंगाना तथा आन्ध्र प्रदेश के आन्तरिक भाग, कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु के उत्तरी-पूर्वी भाग, झारखण्ड का दक्षिणी भाग और ओडिशा को आन्तरिक भाग अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र हैं।

3. मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र-इस वर्ग में राजस्थान के उत्तरी भाग, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिले, गुजरात के शेष भाग, झारखण्ड तथा कोयम्बटूर पठार सम्मिलित हैं (मानचित्र 7.1)।

निवारण के उपाय

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सामाजिक और प्राकृतिक पर्यावरण पर सूखे का प्रभावित तात्कालिक एवं दीर्घकालिक होता है। अतः इसके निवारण के उपाय भी तात्कालिक व दीर्घकालिक होते हैं|

1. तात्कालिक उपाय-सुरक्षित पेयजल वितरण, दवाइयाँ, पशुओं के लिए चारे और जल की | उपलब्धता तथा मानव और पशुओं को सुरक्षित स्थान पर पहुँचानी सम्मिलित है। .

2. दीर्घकालिक उपाय–अनेक ऐसी योजनाएँ बनाई जाती हैं जो सूखे की विपत्ति में उपयोगी हों; जैसे—भूमिगत जल भण्डारण का पता लगाना, जल आधिक्य क्षेत्रों से अल्प जल क्षेत्रों में जल पहुँचाना, नदियों को जोड़ना, बाँध व जलाशयों को निर्माण करना, वर्षा जल का संग्रह करना, वनस्पति आवरण का विस्तार करना तथा शुष्क कृषि फसलों के क्षेत्र में विस्तार करना आदि योजनागत उपाय महत्त्वपूर्ण हैं।

(iii) किस स्थिति में विकास कार्य आपदा का कारण बन सकता है?

उत्तर-भूमण्डलीकरण के वर्तमान दौर में ही नहीं वरन् अन्य स्थितियों में भी सामाजिक प्रगति और आर्थिक विकास हेतु विभिन्न विकास कार्य अत्यन्त आवश्यक हैं, किन्तु संकटं या आपदाओं की अनदेखी करके विकास कार्यों को करते रहना अत्यन्त घातक एवं मूर्खतापूर्ण निर्णय कहलाता है। इस परिप्रेक्ष्य में कभी-कभी विभिन्न विकास कार्य आपदा का कारण बन जाते हैं। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य उल्लेखनीय हैं

1. मानव द्वारा बाँध आदि का निर्माण जो सिंचाई तथा विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है। यदि बाँध की ऊँचाई बढ़ाई जाती है तो इसके टूटने से बाढ़ आपदा का संकट उत्पन्न हो सकता है।

2. पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण यद्यपि आवश्यक है, किन्तु तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों को काटकर सड़कें बनाई जाती हैं तथा ढाल के किनारे भूस्खलने अवरोधी दीवारों का निर्माण नहीं किया जाता है तो भू-स्खलन की विपत्ति का सामना करना पड़ सकता है।

3. बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्य आपूर्ति के लिए जंगलों का बेरहमी से विनाश करना तथा अनियोजित तरीके से लगातार भूमि उपयोग करते रहना वन, जल, वन्य-जीव आदि प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास का कारण बन सकता है।

4. तीव्र औद्योगिकीकरण आर्थिक विकास के लिए अविश्यक है, परन्तु इनसे निकलने वाली गैसें; जैसे–CFCs आदि को यदि इसी प्रकार वायुमण्डल में छोड़ा जाता रहा तो वायु-प्रदूषण की समस्या में वृद्धि होती रहेगी।

5. परमाणु ऊर्जा, जिसे वर्तमान में विकास के लिए आवश्यक समझा जाता है, के उत्पादन में मानवीय | असावधानी के करिणं रूस की वाणु संयन्त्र में दुर्घटनाओं के समान होने वाली घटनाओं में वृद्धि होती रहेगी।

इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि सामाजिक प्रगति और आर्थिक विकास के लिए विकास कार्य आवश्यक हैं, पर इन्हें प्रारम्भ करने से पूर्व पर्यावरण असन्तुलन का मूल्यांकन तथा आपदा जैसे संकटों को न्यूनतम करने और इनमें वृद्धि न होने के उपायों के लिए योजनाओं का निर्माण और क्रियान्वयन करना भी अत्यन्त आवश्यक है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्प प्रलं

प्रश्न 1. प्राकृतिक आपदाएँ होती हैं

(क) जन्तुजनित

(ख) मानवजनित

(ग) वनस्पतिजनित

(घ) प्रकृतिजनित

उत्तर-(घ) प्रकृतिजनित ।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में कौन-सी प्राकृतिक आपदा नहीं है?

(क) ज्वालामुखी विस्फोट

(ख) जनसंख्या विस्फोट

(ग) बादल विस्फोट

(घ) चक्रवात

उत्तर-(क) ज्वालामुखी विस्फोट

प्रश्न 3. भू-प्लेटों के खिसकने से क्या होता है।

(क) ज्वालामुखी विस्फोट

(ख) चक्रवात

(ग) बाढ़

(घ) सूखा

उत्तर-(क) ज्वालामुखी विस्फोट

प्रश्न 4. विश्व में सर्वाधिक भूकम्प कहाँ आते हैं?

(क) जापान

(ख) भारत

(ग) इटली

(घ) सिंगापुर

उत्तर-(क) जापान

प्रश्न 5. भू-स्खलन से सबसे अधिक प्रभावित कौन-सा क्षेत्र है?

(क) पहाड़ी प्रदेश

(ख) मैदानी भाग

(ग) पठारी प्रदेश

(घ) ये सभी

उत्तर-(क) पहाड़ी प्रदेश ।

प्रश्न 6. सागरों में भूकम्प के समय उठने वाली लहरों को क्या कहते हैं?

(क) सुनामी

(ख) चक्रवात

(ग) भूस्खलन ।

(घ) ज्वार-भाटा

उत्तर-(क) सुनामी

प्रश्न 7. निम्नलिखित में से कौन-सी प्राकृतिक आपदा नहीं है?

(क) सूखा

(ख) चक्रवात

(ग) रेल दुर्घटना

(घ) सूनामी

उत्तर--(ग) रेल दुर्घटना

प्रश्न 8. निम्नलिखित में से कौन-सी आपदा मानव-निर्मित है?

(क) भू-स्खलन

(ख) भूकम्प

(ग) हरितगृह प्रभाव

(घ) सूनामी लहरें

उत्तर-(ग) हरितगृह प्रभाव

प्रश्न 9. सूनामी है

(क) एक नदी

(ख) एक पवन

(ग) एक पर्वत चोटी।

(घ) एक प्राकृतिक आपदा ।।।

उत्तर-(घ) एक प्राकृतिक अपदा ।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. आपदाओं को ‘सभ्यता का शत्रु क्यों कहा जाता है?

उत्तर–आपदाएँ प्राकृति एवं मानवीय प्रक्रियाओं द्वारा उत्पन्न वह स्थिति है जिससे मनुष्य एवं जीव-जन्तुओं की सामान्य जीवनचर्या में भारी व्यवधान ही उत्पन्न नहीं होता, बल्कि इसके कारण अनेक लोगों की मृत्यु और सम्पत्ति का विनाश भी होता है। कई सभ्यताएँ; जैसे-हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो, बेबीलोन तथा नील नदी घाटी आदि इसी के कारण नष्ट हुई हैं। इसीलिए आपदाओं को सभ्यता का शत्रु कहा जाता है।

प्रश्न 2. आपदाओं की तीव्रता एवं आवृत्ति किन बातों पर निर्भर करती है?

उत्तर-आपदाओं की तीव्रता एवं आवृत्ति वृद्धि की दर पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन पर निर्भर करती है। वर्तमान भोगवादी अर्थव्यवस्था और जनसंख्या तीव्रता के कारण प्राकृतिक संसाधनों के कुप्रबन्धन एवं ह्रास में वृद्धि हुई है, जिसके कारण प्राकृतिक प्रक्रिया तन्त्र में व्यवधान उत्पन्न होने के कारण आपदाओं की तीव्रता एवं आवृत्ति में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 3. प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं के नामों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-–प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं के नाम निम्नलिखित हैं(1) भूकम्प, (2) ज्वालामुखी विस्फोट, (3) भू-स्खलन, (4) चक्रवाती तूफान, (5) बादल फटना, (6) बाढ़, (7) सूखा, (8) सुनामी आदि। इन सभी आपदाओं को रोकना असम्भव है किन्तु इनसे होने वाले जान-माल के नुकसान को विशेष , सुरक्षात्मक उपायों द्वारा न्यूनतम अवश्य किया जा सकता है।

प्रश्न 4. चरम घटनाओं से क्या तात्पर्य है।

उत्तर-प्राकृतिक एवं मानवीय कारकों द्वारा जनित सभी दुर्घटनाएँ चरम घटनाएँ कहलाती हैं। चरम घटनाएँ कभी-कभी ही घटित होती हैं। अतः जब प्राकृतिक प्रक्रम या मानवीय अनुक्रियाएँ इतनी त्वरित हों जिसका अनुमान लगाना कठिन हो और मानव समाज पर इसके प्रतिकूल प्रभाव से संकट या विनाश की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो उनको चरम घटनाएँ या आपदा कहा जाता है।

प्रश्न 5. बहिर्जात आपदाएँ कौन-सी होती है? उनके नाम बताइए।

उत्तर-बहिर्जात आपदाओं का सम्बन्ध वायुमण्डल से होता है, इसीलिए इन्हें ‘वायुमण्डलीय आपदाएँ भी कहते हैं। प्रमुख बहिर्जात आपदाओं के नाम इस प्रकार हैं-चक्रवाती तूफान, बादल का फटना, आकाशीय विद्युत का गिरना, तड़ित झंझा, ओलावृष्टि, सूखा, बाढ़, ताप एवं शीत लहर आदि।

प्रश्न 6. मानवजनित आपदाओं को कौन-कौन से वर्गों में विभाजित किया जाता है?

उत्तर-मानवजनित आपदाओं को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जाता है(1) मानवजनित भौतिक आपदाएँ, (2) मानवजनित रासायनिक आपदाएँ, (3) मानवजनित सामाजिक आपदाएँ, (4) मानवजनित जीवीय आपदाएँ।

प्रश्न 7. विश्व बैंक ने आपदा को किस प्रकार परिभाषित किया है?

उत्तर-विश्व बैंक ने आपदा को निम्नलिखित प्रकार परिभाषित किया है –

“आपदा अल्पावधि की एक असाधारण घटना है, जो देश की अर्थव्यवस्था को गम्भीर रूप से अस्त-व्यस्त कर देती है।”

प्रश्न 8. भू-स्खलन के लिए उत्तरदायी कारक बताइए।

उत्तर-भू-स्खलन के लिए कई प्राकृतिक एवं मानवीय कारक उत्तरदायी होते हैं

  • प्राकृतिक कारक-भूकम्प, वर्षा की अधिकता, ढालयुक्त कमजोर चट्टानें, पर्वतीय चट्टानों में भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय की अधिकता तथा जलप्रवाह में अवरोध उत्पन्न होना।
  • मानवीय कारक-वनों का अत्यधिक विनाश, अनियोजित भूमि उपयोग, अकुशल विधियों द्वारा उत्खनन, निर्माण कार्यों हेतु पर्वतों का कटान एवं दोषपूर्ण स्थान का चयन।।

प्रश्न 9. भारत में भू-स्खलन से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों के नाम लिखिए।

उत्तर-भू-स्खलन भीषणता के आधार पर भारत के उत्तर-पश्चिमी एवं पूर्वोत्तर पर्वतीय राज्य सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। इन राज्यों में जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखण्ड राज्यों में प्रतिवर्ष भू-स्खलन से सर्वाधिक हानि होती है।

प्रश्न 10. प्रतिरोधक दीवारों का निर्माण किस प्रकार भू-स्खलन रोकने में उपयोगी है?

उत्तर-भू-स्खलन रोकने एवं क्षति को न्यूनतम करने के लिए भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्रों में प्रतिरोधक दीवारों का निर्माण उपयुक्त युक्ति है। इस प्रकार की दीवारें सड़कों के किनारे तीव्र ढाल को रोकने में सहायक होती हैं। इन दीवारों के बनने पर पत्थर एवं मलबा गिरने से रुक जाता है तथा भू-स्खलन से क्षति न्यूनतम हो जाती है और कुछ समय बाद भू-स्खलन की सम्भावना भी नगण्य रह जाती है।

प्रश्न 11. बाढ़ एवं त्वरित बाढ़ में क्या अन्तर है?

उत्तर-बाढ़ को सामान्य अर्थ स्थलीय भाग को निरन्तर कई दिनों तक जलमग्न होना है। वास्तव में बाढ़ प्राकृतिक पर्यावरण की एक विशेषता है, जिसे जलीय चक्र का संघटक माना जाता है; जबकि त्वरित बाढ़ या फ्लैश फ्लड तब उत्पन्न होती है जब तटबन्ध टूट जाते हैं या बैराज से अधिक मात्रा में जल छोड़ दिया जाता है।

प्रश्न 12. बाढ़ आपदा के लिए उत्तरदायी कारक बताइए।

उत्तर-बाढ़ प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों कारकों का परिणाम है। प्राकृतिक कारकों में लम्बी अवधि तक उच्च तीव्रता वाली जलवर्षा, नदियों के घुमावदार मोड़, नदियों की जलधारा में अचानक परिवर्तन, भू-स्खलन आदि उत्तरदायी हैं; जबकि मानवीय कारकों में वनों का विनाश, नगरीकरण एवं अनियोजित भूमि उपयोग महत्त्वपूर्ण कारक हैं।

प्रश्न 13. भारत में बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों के नाम लिखिए।

उत्तर-भारत में पश्चिम बंगाल, असम, बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित राज्य हैं। वास्तव में देश की गंगा द्रोणी में बाढ़ का प्रकोप अधिक रहता है। ऐसा अनुमान है कि देश की कुल आपदा की लगभग 60 प्रतिशत हानि केवल गंगा के प्रवाह क्षेत्रों में होती है।

प्रश्न 14. भारत के भीषण सूखा प्रभावित राज्यों के नाम बताइए।

उत्तर-भारत में राजस्थान एवं गुजरात भीषण सूखा प्रभावित राज्यों की श्रेणियों में आते हैं। यहाँ लगभग प्रतिवर्ष कम वर्षा के कारण कहीं-न-कहीं भीषण सूखे का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 15. भारत में अत्यधिक भूकम्प सम्भावित क्षेत्रों के नाम लिखिए।

उत्तर-भारत में अत्यधिक भूकम्प सम्भावित क्षेत्र जोन-V के अन्तर्गत आता है। इस क्षेत्र में भारत की हिमालय पर्वतश्रेणी, बिहार में नेपाल का सीमावर्ती क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी उत्तराखण्ड, भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य, कच्छ प्रायद्वीप तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह सम्मिलित हैं।

प्रश्न 16. भूकम्प के दौरान प्रबन्ध की विधियाँ बताइए।

उत्तर-भूकम्प के दौरान निम्नलिखित कार्यविधि अपनाना उचित रहता है(1) भूकम्प आने पर घबराएँ नहीं बल्कि साहस बनाए रखें। (2) आप जहाँ हैं, वहीं रहें, परन्तु दीवारों, छतों और दरवाजों से दूरी बनाए रखें। (3) दरारों, पलस्तर झड़ने आदि पर नजर रखें। यदि ऐसा हो तो सुरक्षित स्थान पर जाने का प्रयास करें। (4) यदि चलती कार में हों तो कार को सड़क के किनारे रोक लें, पुल या सुरंग पार न करें। (5) बिजली का मेनस्विच बन्द कर दें, गैस सिलेण्डर का रेगुलेटर बन्द करके सिलेण्डर को सील कर दें।

प्रश्न 17. सुनामी उत्पन्न होने के तीन महत्त्वपूर्ण कारण बताइए।

उत्तर-सुनामी उत्पन्न होने के तीन महत्त्वपूर्ण कारण हैं-(1) भूकम्प, (2) ज्वालामुखी विस्फोट, (3) भू-स्खलन। जब समुद्र या उनके निकटवर्ती क्षेत्रों में इनमें से किसी भी एक आपदा की आवृत्ति होती है। तो सागरों में सुनामी उत्पन्न हो जाती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. आपदाओं का क्या अर्थ है? संक्षेप में लिखिए।

उत्तर-आपदा प्राकृतिक एवं मानवीय प्रक्रियाओं द्वारा उत्पन्न वह स्थिति है जो व्यापक रूप से मनुष्य एवं अन्य जीव-जन्तुओं की सामान्य जीवनचर्या में भारी व्यवधान डालती है। इसके कारण सम्पत्ति की भारी क्षति ही नहीं होती बल्कि अनेक लोग काल-कवलित भी हो जाते हैं।

प्राचीनकाल में विनाशकारी आपदाओं को प्रकृति के साथ की गई छेड़छाड़ के लिए प्रकृति द्वारा दिया गया दण्ड माना जाता था, किन्तु वर्तमान में इसे एक घटना के रूप में देखा जाता है। यह घटना प्राकृतिक या मानवीय दोनों में से किसी भी कारक द्वारा उत्पन्न हो सकती है। आपदाओं और घटनाओं का निकट का सम्बन्ध है। कभी-कभी इन्हें एक-दूसरे के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाता है। घटना एक आशंका है तो आपदा दु:खद घटना का एक परिणाम है। विश्व बैंक ने आपदा को इस प्रकार परिभाषित किया है-“आपदा अल्पावधि की एक असाधारण घटना है जो देश की अर्थव्यवस्था को गम्भीर रूप से अस्त-व्यस्त कर देती है।”

प्रश्न 2. आपदाएँ कितने प्रकार की होती हैं। किसी एक प्रकार की आपदा का वर्णन कीजिए।

उत्तर-सामान्यतः आपदाएँ दो प्रकार की होती हैं

(i) प्राकृतिक आपदाएँ तथा (ii) मानवकृत आपदाएँ।

प्राकृतिक आपदाएँ-प्राकृतिक रूप से घटित वे सभी आकस्मिक घटनाएँ जो प्रलयकारी रूप धारण का मानवसहित सम्पूर्ण जैव जगत् के लिए विनाशकारी स्थिति उत्पन्न कर देती हैं, प्राकृतिक आपदाएँ कहलाती हैं। प्राकृतिक आपदाओं को सीधा सम्बन्ध पर्यावरण से है। पर्यावरण की समस्त प्रक्रिया पृथ्वी की अन्तर्जात एवं बहिर्जात शक्तियों द्वारा संचालित होती है। यही वे शक्तियाँ हैं जो पर्यावरण को गतिशील रखती हैं तथा विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक संकट और आपदाओं के लिए उत्तरदायी हैं।

प्रश्न 3. सुनामी लहरों से सुरक्षा के क्या उपाय हैं?

उत्तर-सुनामी लहरों से सुरक्षा के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. चेतावनी दिए जाने के बाद क्षेत्र को खाली कर देना चाहिए तथा जोखिम और खतरे से बचने के लिए विशेषज्ञों की सलाह लेना उपयुक्त रहता है।
  2. कमजोर एवं क्षतिग्रस्त मकानों का निरीक्षण करते रहना चाहिए तथा दीवारों और छतों को अवलम्ब देना चाहिए।
  3. वास्तव में, भूकम्प एवं समुद्री लहरों जैसी प्राकृतिक आपदा से बचने का कोई विकल्प नहीं है। सावधानी, जागरूकता और समय-समय पर दी गई चेतावनी ही इसके ब्रचाव का सबसे उपयुक्त उपाय है।
  4. समुद्रतटवर्ती क्षेत्रों में मकान तटों से अधिक दूर और ऊँचे स्थानों पर बनाने चाहिए। मकान बनाने से पूर्व विशेषज्ञों की राय अवश्य लेनी चाहिए।
  5. यदि आप समुद्री लहरों से प्रभावित क्षेत्रों में रहते हैं तो सुनामी लहरों की चेतावनी सुनने पर मकान खाली करके किसी सुरक्षित समुद्र तट से दूर ऊँचे स्थान पर चले जाएँ। यदि आप स्थान छोड़कर जा रहे हैं तो अपने पालतू पशुओं को भी साथ ले जाएँ।
  6. बहुत-सी ऊँची इमारतें यदि मजबूत कंक्रीट से बनी हैं तो खतरे के समय इन इमारतों की ऊपरी मंजिलों को सुरक्षित स्थान के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
  7. खुले समुद्र में सुनामी लहरों की हलचल को पता नहीं चलता। अत: यदि आप समुद्र में किसी नौका या जलयान पर हों और आपने चेतावनी सुनी हो, तब आप बन्दरगाह पर न लौटें क्योंकि इन समुद्री लहरों का सर्वाधिक कहर बन्दरगाहों पर ही होता है। अच्छा रहेगा कि आप समय रहते जलयान को गहरे समुद्र की ओर ले जाएँ।
  8. सुनामी आने के बाद घायल अथवा फँसे हुए लोगों की सहायता से पहले स्वयं को सुरक्षित करते हुए पेशेवर लोगों की सहायता लें और उन्हें आवश्यक सामग्री लाने के लिए कहें।

प्रश्न 4. भूस्खलन के लिए महत्त्वपूर्ण समझे जाने वाले कारणों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-सामान्यतः भूस्खलन का मुख्य कारण पर्वेतीय ढालों या चट्टानों का कमजोर होना है। चट्टानों के कमजोर होने पर उनमें प्रविष्ट जल चट्टानों को बाँध रखने वाली मिट्टी को ढीला कर देता है। यही ढीली हुई मिट्टी ढाल की ओर भारी दबाव डालती है। इस कारण मलबे के तल के नीचे सूखी चट्टानें ऊपर के भारी और गीले मलबे एवं चट्टानों का भार नहीं सँभाल पातीं, इसलिए वे नीचे की ओर खिसक जाती हैं और भूस्खलन हो जाता है। पहाड़ी ढीलों और चट्टानों के कमजोर होने तथा भूस्खलन को उत्प्रेरित करने वाले मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

  1. भूस्खलन भूकम्पों या अचानक शैलों के खिसकने के कारण होते हैं।
  2. खुदाई या नदी-अपरदन के परिणामस्वरूप ढाल के आधार की ओर भी तेज भूस्खलन हो जाते हैं।
  3. भारी वर्षा या हिमपात के दौरान तीव्र पर्यतीय ढालों पर चट्टानों का बहुत बड़ा भाग जल तत्त्व की अधिकता एवं आधार के कटाव के कारण अपनी गुरुत्वीय स्थिति से असन्तुलित होकर अचानक तेजी के साथ विखण्डित होकर गिर जाता है, क्योंकि जल भार के कारण चट्टानें स्थिर नहीं रह सकती हैं; अत: चट्टानों पर दबाव की वृद्धि भूस्खलन का मुख्य कारण होती है।
  4. कभी-कभी भूस्खलन का कारण त्वरित भूकम्प, बाढ़, ज्वालामुखी विस्फोट, अनियमित वन कटाई तथा सड़कों का अनियोजित ढंग से निर्माण करना भी होता है।
  5. सड़क एवं भवन बनाने के लिए लोग प्राकृतिक ढलानों को सपाट स्थितियों में परिवर्तित कर देते हैं। इस प्रकार के परिवर्तनों के परिणामस्वरूप भी पहाड़ी ढालों पर भूस्खलन होने लगते हैं।

प्रश्न 5. भारत के मुख्य भू-स्खलन क्षेत्र बताइए।

उत्तर-भारत के मुख्य भू-स्खलन क्षेत्र निम्नलिखित हैं

1. उत्तरी-पश्चिमी हिमालय क्षेत्र–इस क्षेत्र में भूस्खलन आपदा से सर्वाधिक हानि होती है, अत: इसे उच्च से अति उच्च भूस्खलन क्षेत्र कहा जाता है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखण्ड इसी क्षेत्र में सम्मिलित हैं।

2. पूर्वोत्तर पर्वतीय क्षेत्र-भारत के समस्त उत्तर-पूर्वी राज्य इस क्षेत्र में सम्मिलित हैं। यहाँ वर्षा ऋतु में उच्च भीषणता वाले भूस्खलन से जान-माल की अधिक हानि होती है।

3. पश्चिमी घाट तथा नीलगिरि की पहाड़ियाँ-भारत के प्रायद्वीप के पश्चिमी घाट के राज्यों का समुद्रतटीय क्षेत्र जिसमें महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल राज्य तथा तमिलनाडु की नीलगिरि पहाड़ियों का क्षेत्र सम्मिलित है। यहाँ मध्यम से उच्च भीषणता वाला भूस्खलन होता रहता है।

4. पूर्वी घाट–पूर्वी घाट के राज्यों के तटवर्ती क्षेत्र में कभी-कभी सामान्य भूस्खलन की घटनाएँ होती | रहती हैं, जो वर्षा ऋतु में अधिक हानिकारक हो जाती हैं। भीषणता की दृष्टि से यह भारत का निम्न | भूस्खलन क्षेत्र माना जाता है।

5. विन्ध्याचल–यहाँ प्राचीन पहाड़ियों और पठारी भू-भाग वाले क्षेत्र में निम्न भीषणता वाले भूस्खलन की घटनाएं होती रहती हैं।

प्रश्न 6. चक्रवात के न्यूनीकरण की मुख्य युक्तियाँ समझाइए।

उत्तर-चक्रवात यद्यपि अत्यन्त विनाशकारी विपत्ति है, किन्तु वर्तमान में भौतिक विकास के साथ-साथ भवन रचनाओं में तकनीकी परिवर्तनों और अन्य शमनकारी रणनीतियों द्वारा इस पर नियन्त्रण तथा क्षति न्यूनीकरण सम्भव है। चक्रवात न्यूनीकरण से सम्बन्धित मुख्य युक्तियाँ निम्नलिखित हैं–

  • चक्रवात सम्भावित क्षेत्रों में समुद्र से निकली भूमि पर नुकीली पत्तियों वाले पेड़ों की हरित पट्टी का विस्तार करनी चाहिए।
  • समुद्रतटीय भाग में विस्तृत भू-भाग पर ऊँचे चबूतरे, तटबन्ध आदि का निर्माण करना चाहिए।
  • तटीय क्षेत्रों में घास-फूस की छतों वाले कच्चे घर बनाने की अनुमति नहीं होनी चाहिए, बल्कि इनके स्थान पर निश्चित विशेषताओं वाले मकान ही बनाए जाएँ।
  • चक्रवात सम्भावित क्षेत्रों में सरकार को मकान बनाने के लिए समुचित मार्गदर्शन तथा ऋण सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए।
  • सम्भावित क्षेत्रों में विशेष प्रकार के शरैण-स्थल बनवाए जाने चाहिए जिनसे राहत एवं बचाव दल को सुविधा प्राप्त होगी।

प्रश्न 7. 1999 के ओडिशा के भीषण चक्रवात के प्रभाव का एक स्थिति-विषयक अध्ययन कीजिए।

उत्तर-भारत का पूर्वी तटीय क्षेत्र चक्रवाती तूफानों की दृष्टि से सबसे अधिक संवेदनशील है। यहाँ ओडिशा में चक्रवाती तूफानों द्वारा कई बार भारी क्षति हो चुकी है। ऐसा ही एक भयंकर चक्रवाती तूफान 29 अक्टूबर, 1999 ई० को आया जिसकी गति 260-300 किमी प्रति घण्टा थी। इस तूफाने का प्रभाव केवल समुद्र तटों तक ही सीमित न रहा, बल्कि 250 किमी अन्दर तक इसने क्षति पहुँचाई। 36 घण्टे की अवधि में इस तूफान ने लगभग 200 लाख हेक्टेयर भूमि नष्ट कर दी और अपने पीछे बरबादी के भयावह नजारे छोड़ गया। यह महाचक्रवाती तूफान इतना विस्तृत और विनाशकारी था कि इसने हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया तथा लाखों मकानों को नष्ट कर दिया।

प्रश्न 8. सूखा निवारण के दो महत्त्वपूर्ण उपाय बताइए।

उत्तर-सूखा निवारण के दो महत्त्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित हैं

1. सूखा प्रभावित क्षेत्रों में वर्षाजल का संग्रह और जल संरक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय है। भारत में वर्षा पर्याप्त मात्रा में होती है परन्तु वर्षाजल का समुचित उपयोग नहीं किया जाता। जल के अकुशल प्रबन्धन के कारण वर्षा का समस्त जल नदियों में बह जाता है या बाढ़ की स्थिति उत्पन्न करता है। अतः वर्षाजल का समुचित संग्रह और प्रबन्धन कर उस जल का उपयोग सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए किया जाना चाहिए।

2. सूखाग्रस्त क्षेत्रों में हरित पट्टी को विस्तार किया जाना चाहिए। हरा-भरा पर्यावरण वातावरण-आर्द्रता के संरक्षण और जलवायु सन्तुलन का सबसे उत्तम माध्यम होता है, जिससे सूखे की समस्या पर नियन्त्रण किया जा सकता है।

प्रश्न 9. आधुनिक काल में प्राकृतिक आपदाओं के स्वरूप में आपको किस प्रकार के परिवर्तन का अनुभव होता है?

उत्तर-आपदाएँ आदि-अनादिकाल से प्रकृति के घटनाक्रम के रूप में प्रकट होती रही हैं। प्राचीनकाल में जनसंख्या अत्यन्त कम थी। दूसरे, प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा के उपायों का ज्ञान भी मनुष्य को नहीं था। आधुनिक काल में जनसंख्या वृद्धि के कारण मनुष्य के प्रकृति-विपरीत कार्यों में वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता और आवृत्ति में भी वृद्धि का अनुभव किया जाता है। इसके अतिरिक्त अंब मनुष्य ने अपने तकनीकी ज्ञान का विकास भी पूर्व की अपेक्षा अधिक कर लिया है। अत: यदि इन उपायों का ठीक से पालन किया जाए तो आपदाओं से होने वाली क्षति को पूर्वकाल की अपेक्षा कम किया जा सकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. आपदाओं से क्या तात्पर्य है? इनका वर्गीकरण कीजिए।

उत्तर-आपदा का अर्थ

आपदा प्राकृतिक एवं मानवीय प्रक्रियाओं द्वारा उत्पन्न वह स्थिति है जो व्यापक रूप से मनुष्य एवं अन्य जीव-जन्तुओं की सामान्य जीवनचर्या में भारी व्यवधाम डालती है। इसके कारण सम्पत्ति की भारी क्षति ही नहीं होती, बल्कि अनेक लोग काल-कवलित भी हो जाते हैं। इसीलिए आपदाओं को ‘सभ्यता का शत्रु’ कहा जाता है। कई सभ्यताएँ; जैसे-हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो, बेबोलोन तथा नील नदी घाटी आदि आपदाओं के कारण ही आज इतिहास की विषय-वस्तु बन गई हैं। प्राकृतिक आपदाएँ कभी-कभी इतनी त्वरित या आकस्मिक होती हैं कि इनसे सँभल पाना कठिन हो जाता है। जब इनका प्रभाव विस्तृत या क्षेत्रीय होता है तो समूचा राष्ट्र आक्रान्त हो जाता है। विश्व बैंक के अनुसार, आपदाएँ अल्पावधि की एक असाधारण घटना हैं जो देश की अर्थव्यवस्था को गम्भीर रूप से अस्त-व्यस्त कर देती हैं। अत: आपदाएँ देश की अर्थव्यवस्था को ही नहीं, सामाजिक एवं जैविक विकास की दृष्टि से भी विनाशकारी होती हैं।

आपदा एक अनैच्छिक घटना है जो बाह्य शक्तियों के कारण मनुष्य के नियन्त्रण में नहीं है। आपदा की चेतावनी तुरन्त नहीं मिलती; यह थोड़े समय के बाद मिलती है, तब तक आपदा आ चुकी होती है, बेचाव को समय कम मिलता है जिससे जान एवं सम्पत्ति की व्यापक हानि होती है तथा संकटकालीन परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है।

आपदाओं का वर्गीकरण

आपदाओं से शक्ति से निपटने के लिए उनकी पहचान एवं वर्गीकरण को एक प्रभावशाली कदम समझा जाता है। आपदाओं को सामान्यत: दो बृहत् वर्गों-(i) प्राकृतिक एवं (ii) मानवकृत आपदाओं में विभाजित किया जाता है। प्राकृतिक आपदाएँ निम्नलिखित चार प्रकारों में वर्गीकृत की जाती हैं|

1. वायुमण्डलीय-इनके अन्तर्गत बर्फानी तूफान, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात, सूखा, पाला, लू तथा शीतलहर को सम्मिलित किया जाता है।

2. भौमिक–इनमें स्थलमण्डलीय आपदाएँ शामिल हैं; जैसे—भूकम्प, भू-स्खलन, ज्वालामुखी, मृदा अपरदन तथा अवतलन आदि।

3. जलीय-जल के कारण उत्पन्न आपदाएँ जलीय प्राकृतिक आपदाएँ कहलाती हैं। इनके अन्तर्गत बाढ़, ज्वार, महासागरीय घटनाएँ तथा सुनामी सम्मिलित हैं।

4. जैविक-पौधों के कीट-पतंगे, फफूद, बैक्टीरिया और वायरल संक्रमण, बर्ड फ्लू, डेंगू, मलेरिया, प्लेग आदि जैविक आपदाएँ हैं।

मानवकृत आपदाओं में वे सभी आपदाएँ आती हैं जो मानव की असावधानी या जानकारी होते हुए लापरवाही भी बरतने के कारण घटित होती हैं। इस प्रकार की आपदाएँ आकस्मिक या दीर्घ अवधि दोनों समयान्तरालों में घटित हो सकती हैं। दुर्घटना, जहरीली गैसों का रिसाव, विभिन्न प्रकार के प्रदूषण, परमाणु विस्फोट, बम विस्फोट, आन्तरिक गृह युद्ध, साम्प्रदायिक दंगे, आतंकवादी वारदात आदि मानवकृत आपदाओं के उदाहरण हैं।

प्रश्न 2. क्या प्राकृतिक आपदाएँ विश्वव्यापी होती हैं? यदि हाँ, तो विश्व स्तर पर इन्हें रोकने के क्या प्रयास हैं?

उत्तर- सामान्यत: प्राकृतिक आपदाएँ विश्वव्यापी होती हैं। ये कहीं भी, कभी भी अपने आगोश में जीवजगत को लेकर क्षतिग्रस्त कर सकती हैं। जिस ढंग से प्रत्येक सामाजिक वर्ग इनसे निपटता है वह अद्वितीय होता है, क्योंकि दो आपदाएँ न तो समान होती हैं और न ही उनमें आपस में तुलना की जा सकती है। अत: विश्व समुदाय आपदाओं से आज भी उतना ही भयभीत एवं आक्रान्त है जितना वह प्राचीन काल में था। वर्तमान में प्राकृतिक आपदाओं के परिणाम, गहनता एवं बारम्बारता और इसके द्वारा किए गए नुकसान बढ़ते जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण मानव जनसंख्या में वृद्धि तो है ही, साथ ही उसका प्रकृति के प्रति शत्रुरूप में व्यवहार एवं पर्यावरण सिद्धान्त के प्रति उदासीन होना भी है। इन विचारों की पुष्टि निम्नांकित सारणी से भी होती है जो गत 60 वर्षों में 12 गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं से विभिन्न देशो में मरने वालों की संख्या को दर्शाती है।

तालिका : विश्व के विभिन्न देशों में गत 60 वर्षों (1948 से 2005)

में प्राकृतिक आपदाओं से हुई मौतें

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स्रोत: *यूनाइटेड नेशन्स इन्वारनमेण्टल प्रोग्राम (यू०एन०ई०सी०) 1991.

**राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन संस्थान की न्यूज़ रिपोर्ट, भारत सरकार, नई दिल्ली। वास्तव में आपदा द्वारा पहुँचाई गई क्षति के परिणाम भू-मण्डलीय प्रतिघाते हैं और अकेले किसी राष्ट्र में इतनी क्षमता नहीं है कि वह इन्हें सहन कर सके। इसलिए 1989 में संयुक्त राष्ट्र सामान्य असेम्बली में इस मुद्दे को उठाया गया था और मई 1994 में जापान के याकोहामा नगर में आपदा प्रबन्ध की विश्व कॉन्फ्रेंस में इसे औपचारिकता प्रदान कर दी गई थी। बाद में इसी प्रयास को योकोहामा रणनीति तथा अधिक सुरक्षित संसार के लिए कार्ययोजना कहा गया।

इसी प्रयास के अन्तर्गत 1990-2000 को आपदा न्यूनीकरण का अन्तर्राष्ट्रीय दशक भी घोषित किया गया।

प्रश्न 3. आपदाओं के न्यूनीकरण एवं प्रबन्धन के उपायों की एक योजना प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर-यद्यपि आपदाएँ जीव-जन्तुओं के लिए सामान्य रूप से तथा मानव समुदाय के लिए मुख्य रूप से संकटापन्न होती हैं, परन्तु प्राकृतिक संरचनाओं की दृष्टि से प्राकृतिक आपदाएँ कतिपय लाभदायक भी होती हैं; जैसे—बाढ़ द्वारा बाढ़कृत मैदान का निर्माण जिसकी मिट्टी पोषक तत्वों से युक्त होने के कारण अत्यन्त उपजाऊ होती है। ज्वालामुखी विस्फोट से निकलने वाली राख और लावा काली मिट्टी का निर्माण करता है। जो कपास की कृषि के लिए आवश्यक होती है। इसी प्रकार, भू-स्खलन से क्षेत्र में झील का निर्माण तथा भूकम्प के कारण भूमिगत जल के प्रवाह अवरोध से जलभर (Aquifer) (पारगम्य शैल की परत जिसमें जल भरा रहता हो) का निर्माण हो जाता है जो उन क्षेत्रों की जलापूर्ति में सहायक है। इस प्रकार, प्राकृतिक आपदाएँ एक ओर प्रकृति का वरदान हैं तो दूसरी ओर मानव की असावधानी और प्रकृति-विरुद्ध कार्यों में वृद्धि के कारण मानव समुदाय के लिए एक बहुत बड़ा अभिशाप हैं। इसलिए प्राकृतिक और मानवजनित । दोनों ही प्रकार की आपदाएँ जन-धन की क्षति की दृष्टि से अत्यन्त कष्टकारी स्थिति उत्पन्न कर देती हैं। अत: मानव हित में आपदाओं के न्यूनीकरण एवं प्रबन्धन महत्त्वपूर्ण हैं। प्रबन्ध के लिए निम्नलिखित तीन स्थितियों पर योजना बनाने की आवश्यकता है

1. आपदापूर्व प्रबन्धन योजना-आपदापूर्व प्रबन्धन का अर्थ किसी आपदा या विपत्ति से होने वाले जोखिम को न्यूनतम करने का पूर्व प्रयास है। इसके अन्तर्गत विपत्ति का सामना करने की पूर्ण तैयारी, जनजागरूकता और आपदा न्यूनीकरण के उपायों हेतु योजना बनाई जाती है। पूर्ण तैयारी में आपदा प्रभावित क्षेत्रों की पहचान एवं जोखिम का मूल्यांकन और प्रभाव का पूर्वानुमान लगाया जाता है, फिर इसके आधार पर अन्य तैयारी की रूपरेखा बनाई जाती है। इसमें पूर्व सूचना प्रणाली को विकसित करना, संसाधन प्रबन्धन पर ध्यान देते रहना और सहायता के लिए अभ्यास करते, रहना आवश्यक है।

2. आपदा के समय प्रबन्धन योजना-आपदा के समय प्रबन्धन से यह अभिप्राय है कि आपदा के दौरान प्रभावित क्षेत्रों में पहुँचकर बचाव कार्यों को तत्काल शुरू किया जाए और प्रभावित मानव समुदाय की विभिन्न प्रकार से सहायता की जाए। इस अवधि में मुख्य ध्यान खोज और बचाव तथा राहत सामग्री के उचित रूप से प्रबन्ध एवं वितरण पर दिया जाना आवश्यक है।

3. आपदा के पश्चात् प्रबन्धन योजना-आपदा के पश्चात् पुनर्वास, पुनर्लाभ और विकास कार्यों से सम्बन्धित बातों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। इस समय नीति निर्धारकों की अहम् भूमिका होती है। उन्हें वर्तमान में हुई आपदा से क्षतिपूर्ति को पूरा करने के लिए उचित वितरण प्रणाली के साथ-साथ मानक तकनीकों के अनुसार ही विकास कार्यों को पूरा करना चाहिए। इसी अवसर पर आपदापूर्व, प्रबन्धन के अन्तर्गत स्थापित आपात कोष तथा जोखिम स्थानान्तरण संस्थाओं (बीमा कम्पनी) के कार्यों का पूरा उपयोग करते हुए राहत एवं पुनर्वास कार्यों में सहयोग प्रदान करना होता है। अत: आपदा निवारण हेतु आपदा न्यूनीकरण प्रबन्धन को न केवल जीवन के अंग के रूप में बल्कि आवश्यक जीवन रक्षा कौशल के रूप में अपनाकर अपनी और प्रियजनों की सुरक्षा के लिए तत्पर रहना और जनसामान्य को तैयार करना ही सर्वोत्तम उपाय है।।

प्रश्न 4. भूकम्प क्यों आते हैं? भारत में इसके गहनता क्षेत्र बताइए। इस आपदा से होने वाली क्षति | को किस प्रकार न्यूनतम किया जा सकता है?

उत्तर-हमारी पृथ्वी गतिशील सक्रिय ग्रह है। इसकी सबसे ऊपरी सतह क्रस्ट का निर्माण विशाल प्रस्तरीय प्लेटों से हुआ है। विशाल प्रस्तरीय प्लेटें अति प्रत्यास्थ एवं सान्द्र प्रकृति की भीतरी सतह, मैंटिल में उत्पन्न संवहन तरंगों के कारण निरन्तर गतिशल, संघनित एवं प्रसारित होती रहती हैं। इन भू-विवर्तनिकी गतियों के कारण भू-भाग कहीं संकुचित हो जाते हैं तो कहीं परस्पर टकराते हैं और प्रसारित होते हैं, जिससे पृथ्वी पर . कम्पन उत्पन्न होने से भूकम्प आते हैं। अतः भूकम्प का प्रमुख कारण पृथ्वी की प्लेटों का गतिशील होना है। इस गतिशीलता के परिणामस्वरूप भूगर्भीय ऊर्जा का निष्कासन होता है, तभी भूकम्प का अनुभव किया जाता है।

भारत के भूकम्पीय कटिबन्धीय क्षेत्र या वितरण

राष्ट्रीय भू-भौतिकी प्रयोगशाल, भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण, मौसम विज्ञान विभाग तथा कुछ समय पूर्व बने राष्ट्रीय प्रबन्धन संस्थान ने भारत में आए 1,200 भूकम्पों के गहन विश्लेषण के आधार पर देश को निम्नलिखित 5 भूकम्पीय क्षेत्रों (Zones) में बाँटा है

1. अत्यधिक क्षति जोखिम क्षेत्र (जोन-V)-इसमें हिमालय पर्वतश्रेणी, नेपाल, बिहार सीमावर्ती क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी उत्तराखण्ड, देश के उत्तर-पूर्वी राज्य तथा कच्छ प्रायद्वीप और अण्डमान निकोबार द्वीप समूह सम्मिलित हैं।

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2. अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र (जोन-IV)-इसके अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, . उत्तराखण्ड (उत्तर-पश्चिमी एवं दक्षिणी भाग), उत्तर प्रदेश.एवं बिहार के उत्तरी मैदानी भाग तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश सम्मिलित हैं।

3. मध्य क्षति जोखिम क्षेत्र (जोन-II)—इस क्षेत्र का विस्तार उत्तरी प्रायद्वीपीय पठार पर अधिक है।

4. निम्न क्षति जोखिम क्षेत्र (जोन-1)-इसमें उत्तर-पश्चिमी राजस्थान, मध्य प्रदेश का उत्तरी | भाग, पूर्वी राजस्थान, पश्चिमी ओडिशा तथा प्रायद्वीप के आन्तरिक भाग सम्मिलित हैं।

5. अति निम्न क्षति जोखिम क्षेत्र (जोन-I)-इसके अन्तर्गत जोन II के अन्तर्गत सम्मिलित क्षेत्र के आन्तरिक भाग सम्मिलित हैं।

भूकम्प आपदा से सुरक्षा के उपाय – भूकम्प आपदा से सुरक्षा के मुख्य उपाय निम्नलिखित हैं

  1. भूकम्परोधी भवनों का निर्माण किया जाए।
  2. जनसामान्य को भूकम्प आपदा की जानकारी प्रदान की जाए तथा सुरक्षात्मक प्रशिक्षण दिया जाए।
  3. भूकम्प के दौरान घर की छत, दीवार, दरवाजे और खिड़कियों से दूर रहा जाए।
  4. यदि आप घर से बाहर हैं तो खुले मैदान में रहने का प्रयास करें।
  5. ऐसे समय पर घबराएँ नहीं, साहस रखें और बिजली के खम्भों एवं ज्वलनशील पदार्थों से दूर रहें।

प्रश्न 5. सुनामी लहरें क्या हैं? सुनामी लहरों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-प्राकृतिक आपदाओं में समुद्री लहरें अर्थात् सुनामी सबसे अधिक विनाशकारी आपदा है। सुनामी जापानी मूल का शब्द है जो दो शब्दों सु (बन्दरगाह) और ‘नामी’ (लहर) से बना है अर्थात् सुनामी का अर्थ है—बन्दरगाह की ओर आने वाली समुद्री लहरें। इन लहरों की ऊँचाई 15 मीटर या उससे अधिक होती है । और ये तट के आस-पास की बस्तियों को तबाह कर देती हैं। सुनामी लहरों के कहर से पूरे विश्व में हजारों लोगों के काल-कवलित होने की घटनाएँ इतिहास में दर्ज हैं। भारत तथा उसके निकट समुद्री द्वीपीय देश श्रीलंका, थाईलैण्ड, मलेशिया, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार आदि में 26 दिसम्बर, 2004 को इसी प्रलयकारी सुनामी ने करोड़ों की सम्पत्ति का विनाश कर लाखों लोगों को काल का ग्रास बनाया था।

समुद्री लहरों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण तथ्य

  1.  सुनामी लहरें अत्यधिक शक्तिशाली होती हैं। इनकी भयावह शक्ति से कई टन वजन की विशाल चट्टान, नौका तथा अन्य प्रकार का मलबा मुख्य भूमि में कई मीटर अन्दर पॅस जाता है।
  2. तटवर्ती मैदानी इलाकों में सुनामी की गति 50 किमी प्रति घण्टा हो सकती है।
  3. कुछ सुनामी लहरों की गति वृहदाकार होती है। तटीय क्षेत्रों में इनकी ऊँचाई 10 से 30 मीटर तक हो सकती है।
  4. समुद्री लहरें एक के बाद एक आती रहती हैं। प्रायः पहली लहर इतनी विशाल नहीं होती। पहली लहर आने के बाद कई घण्टों तक आने वाली लहरों का खतरा बना रहता है। कभी-कभी समुद्री लहरों के कारण समुद्र तट का पानी घट जाता है और समुद्र तल नजर आने लगता है। इसे प्रकृति | की ओर से सुनामी आने की चेतावनी समझना चाहिए।
  5. ये लहरें दिन या रात में कभी भी आ सकती हैं। जलधाराओं या समुद्रों में मिलने वाली नदियों में प्रवेश करने पर सुनामी लहरें उफान पैदा कर देती हैं।
  6. भूकम्प के कारण उत्पन्न समुद्री लहरें कई सौ किलोमीटर प्रति घण्टा की रफ्तार से तट की ओर दौड़ती हैं और भूकम्प आने के कई घण्टों बाद ही तट तक पहुँचती हैं।
  7. गहरे समुद्र में सुनामी लहरों की उत्पत्ति के समय समुद्र में कोई हलचल न होने के कारण ये दिखाई नहीं देतीं। उत्पत्ति के समय इन लहरों की लम्बाई 100 किमी तक होने के बावजूद बीच समुद्र में ये लहरें बहुत ऊँची नहीं उठतीं और कई सौ किमी की रफ्तार से दौड़ती हैं।
सुनामी लहरें अपनी इसी विशाल ऊर्जा के कारण बड़ी तेज रफ्तार से सागर तक पहुँचने में सक्षम होती हैं। इनकी रफ्तार समुद्र की गहराई के साथ बढ़ती जाती है, जबकि उथले सागर में रफ्तार कम होती है। यही कारण है कि समुद्र तट के पास पहुँचने पर सागर की गहराई अचानक कम होने पर लहरों की रफ्तार कम हो जाती है, परन्तु पीछे से तेजी से आती लहरें एक के ऊपर एक सवार होकर लहरों की ऊँची दीवार बना देती हैं। इसी ऊँचाई और ऊर्जा का घातक मेल सागर तटों पर तबाही का कारण बनता है।

प्रश्न 6. सुनामी लहरों की उत्पत्ति क्यों होती है? इनसे प्रभावित क्षेत्र बताइए।

उत्तर-सुनामी लहरों की उत्पत्ति के कारण

विनाशकारी समुद्री लहरों (सुनामी) की उत्पत्ति भूकम्प, भू-स्खलन तथा ज्वालामुखी विस्फोटों का परिणाम है। हाल के वर्षों के किसी बड़े क्षुद्रग्रह (उल्कापात) के समुद्र में गिरने को भी समुद्री लहरों का कारण माना जाता है। वास्तव में, समुद्री लहरें इसी तरह उत्पन्न होती हैं, जैसे तालाब में कंकड़ फेंकने से गोलाकार लहरें किनारों की ओर बढ़ती हैं। मूल रूप से इन लहरों की उत्पत्ति में सागरीय जल का बड़े पैमाने पर विस्थापन ही प्रमुख कारण है। भूकम्प या भू-स्खलन के कारण जब कभी भी सागर की तलहटी में कोई बड़ा परिवर्तन आता है या हलचल होती है तो उसे स्थान देने के लिए उतना ही ज्यादा समुद्री जल अपने स्थान से हट जाता है (विस्थापित हो जाता है) और लहरों के रूप में किनारों की ओर चला जाता है। यही जल ऊर्जा के कारण लहरों में परिवर्तित होकर ‘सुनामी लहरें” कहलाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि समुद्री लहरें सागर में आए बदलाव को सन्तुलित करने का प्राकृतिक प्रयास मात्र हैं।

पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक इन समुद्री लहरों को ‘भूगर्भिक बम’ कहते हैं। सन् 1949 में ला–पाल्का आइलैण्ड के उत्तरी तटीय भाग में एक ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था। यह विस्फोट इतनी तीव्र था कि ज्वालामुखी बीच से ही आधा चिटक गया था, किन्तु यह चिटका हुआ भागे समुद्री में नहीं गिरा था अन्यथा वहाँ भी अकल्पनीय विनाशकारी समुद्री लहरें उत्पन्न हो सकती थीं। अब वैज्ञानिकों का मानना है। कि जब भी यह ज्वालामुखी जाग्रत होगा तब 50 अरब टन का ज्वालामुखी का चिटका हुआ आधा हिस्सा अटलाण्टिक महासागर में गिरकर विनाशकारी समुद्री लहरें उत्पन्न कर देगा। समुद्री लहरों से यद्यपि प्रशान्त महासागर के तटीय भाग सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र हैं, परन्तु अटलाण्टिक एवं हिन्द महासागर में भी तटवर्ती भूकम्प एवं ज्वालामुखी मेखलाओं में सुनामी लहरों को कहर होता रहता है।

सुनामी प्रभावित क्षेत्र ।

यद्यपि विश्व के सभी समुद्री तटवर्ती क्षेत्रों को सुनामी प्रभावित क्षेत्रों के अन्तर्गत रखा जा सकता है, किन्तु भूकम्प संवेदनशील क्षेत्र सुनामी की दृष्टि से अधिक प्रभावशाली होते हैं। विश्व में प्रशान्त महासागर तटवर्ती क्षेत्र, जहाँ भूकम्प आने की सम्भावनाएँ अधिक विद्यमान हैं, में सुनामी का सर्वाधिक जोर रहता है। यह भाग भूकम्प और ज्वालामुखियों की सर्वप्रमुख मेखलाओं से घिरा है। यहाँ प्रतिवर्ष लगभग दो बार सुनामी का प्रकोप हो जाता है। अत: प्रशान्त महासागरीय तट पर, जिसमें अलास्का, जापान, फिलिपीन्स, दक्षिण-पूर्व एशिया के दूसरे द्वीप इण्डोनेशिया और मलेशिया तथा हिन्द महासागर में म्यांमार, श्रीलंका और भारत के तटीय भाग सुनामी प्रभावित मुख्य क्षेत्र हैं।

प्रश्न 7. भू-स्खलन क्या है? इसके लिए उत्तरदायी कारक कौन-कौन से हैं? भारत में इसके प्रभाव

एवं प्रभावित क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-भू-स्खलन का अर्थ, प्रभाव एवं प्रभावित क्षेत्र ।

पर्वतीय ढालों का कोई भाग जब जल तत्त्व भार की अधिकता एवं आधार चट्टानों के कटाव के कारण अपनी गुरुत्वीय स्थिति से असन्तुलित होकर अचानक तीव्रता के साथ सम्पूर्ण अथवा विच्छेदित खण्डों के रूप में गिरने लगता है तो यह घटना भू-स्खलन कहलाती है। भू-स्खलन प्रायः तीव्र गति से आकस्मिक उत्पन्न होने वाली प्राकृतिक आपदा है। भौतिक क्षति और जन-हानि इसके दो प्रमुख दुष्प्रभाव हैं। भू-स्खलन अपने मार्ग में आने वाले प्रत्येक पदार्थ-मानव बस्तियों, खेत-खलियान, सड़क आदि सभी को नष्ट कर देता है। भू-स्खलन से नदी मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं जिससे नदी के ऊपरी भाग में बाढ़ आ जाती है। कभी-कभी किसी क्षेत्र में बड़ी झील बन जाती है जिसके टूटने पर त्वरित बाढ़ से भारी तबाही होती है। भू-स्खलन मानव समुदाय पर कहर बरसाने वाली प्रकृतिक आपदा है। भारत में इस आपदा का रौद्र रूप हिमालय पर्वतीय प्रदेश एवं पश्चिमी घाट में बरसात के दिनों में अधिक देखा जाता है। वस्तुतः हिमालय प्रदेश युवावलित पर्वतों से बना है, जो विवर्तनिक दृष्टि से अत्यन्त अस्थिर एवं संवेदनशील भू-भाग है। यहाँ की भूगर्भिक संरचना भूकम्पीय तरंगों से प्रभावित होती रहती है। इसलिए यहाँ भू-स्खलन की घटनाएँ अधिक होती रहती हैं।

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भू-स्खलन के लिए उत्तरदायी कारक

भू-स्खलन के लिए कई प्राकृतिक एवं मानवीय कारक उत्तरदायी होते हैं। इन कारकों की गहनता ही भू-स्खलन की तीव्र उत्पत्ति के कारणों को प्रभावी बनाती है। सामान्यतः भू-स्खलन के लिए निम्नलिखित कारक अधिक उत्तरदायी माने जाते हैं—

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प्रश्न 8. उत्तराखण्ड राज्य के भूस्खलन सुभेद्य क्षेत्रों का वर्णन कीजिए तथा इसकी क्षति के न्यूनीकरण की युक्तियाँ बताइए।

उत्तर-उत्तराखण्ड के भूस्खलन सुभेद्य क्षेत्र

उत्तराखण्ड राज्य का भू-स्खलन प्रभावशाली की दृष्टि से विश्व में चौथा स्थान है। यहाँ लगभग 1200 से अधिक गाँवों को भू-स्खलन सुभेद्य क्षेत्र में सम्मिलित किया गया है। हैदराबाद स्थित सुदूर संवेदन संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार इनमें से अधिकांश गाँव ऋषिकेश-बद्रीनाथ-गंगोत्री-केदारनाथ मार्ग पर स्थिति हैं। एन०आर०एस० के लैण्ड हेजार्ड जोनेशन मानचित्र के आधार पर अलकनन्दा घाटी में 137, गंगा-अलकनन्दा घाटी में 24, गंगा-चन्द्रप्रभा घाटी में 25, गंगा घाटी में 21 तथा बेतसुथी नदी के निकट 23 गाँव संवेदनशील हैं। रुद्रप्रयाग-ऊखीमठ-केदारनाथ क्षेत्र के 60 तथा पिथौरागढ़-मालपा मार्ग के 13 गाँव अति संवेदनशील बताए गए हैं। राज्य के आपदा प्रबन्धन एवं न्यूनीकरण केन्द्र के अनुसार भी ऋषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग पर लगभग 600, रुद्रप्रयाग-ऊखीमठ-केदारनाथ मार्ग पर 200, पिथौरागढ़-मालपा मार्ग पर 150 तथा उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग पर 275 गाँव भू-स्खलन सुभेद्य क्षेत्र में सम्मिलित हैं।

न्यूनीकरण की युक्तियाँ

भूस्खलन के न्यूनीकरण हेतु निम्नलिखित युक्तियाँ महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकती हैं।

1. नियोजित भूमि उपयोग–नियोजित भूमि उपयोग भू-स्खलन न्यूनीकरण की महत्त्वपूर्ण युक्ति है। इसके अन्तर्गत विभिन्न कार्यों के लिए उपयुक्त भूमि का चुनाव सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। यदि मकानों का निर्माण सुरक्षित स्थानों पर किया जाए तथा वनस्पति के लिए निर्धारित अनुपात में भूमि का उपयोग हो तो भू-स्खलन का जोखिम कम हो जाता है।

2. प्रतिधारण दीवारों का निर्माण-भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्रों में सड़कों के किनारे तीव्र ढाल को रोकने के लिए विशेष प्रकार की प्रतिधारण दीवारों का निर्माण किया जाता है। रेल लाइनों के लिए बनाई गई सुरंग तथा मार्ग के किनारे काफी दूर तक इन दीवारों को बनाने से पर्वतीय ढाल से आने वाले मलबे को रोका जा सकता है।

3. स्थलीय जल प्रवाह को नियन्त्रित करना-वर्षा तथा अन्य स्रोतों से बहने वाले जल के निकास की उचित व्यवस्था करने से जल तत्त्व चट्टानों पर अपना दबाव नहीं बनाता है। इसीलिए आधार चट्टानें सुरक्षित रहती हैं, जिससे भू-स्खलन की सम्भावनाओं में कमी आती है।

4. इन्जीनियरी संरचना–कुशल अभियन्ताओं द्वारा निर्धारित मानकों के आधार पर भवनों की संरचनाएँ अधिक टिकाऊ होती हैं। अतः भू-स्खलन सम्भावित क्षेत्रों में कुशल इंजीनियरों के मार्गदर्शन में ही भवनों का निर्माण किया जाना उपयुक्त है।

5. वनस्पति आवरण-भू-स्खलन को नियन्त्रित एवं न्यूनतम करने में वनस्पति आवरण सबसे सरल और सस्ता उपाय है। इसके द्वारा चट्टानों को सुरक्षा कवच प्राप्त होता है तथा चट्टानें जल तत्त्व के प्रभाव से मुक्त रहकर भू-स्खलन से प्रेरित नहीं होती हैं।

प्रश्न 9. बाढ़ तबाही से आप क्या समझते हैं। इसके उत्पन्न होने के क्या कारण हैं? भारत के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-बाढ़ का सामान्य अर्थ स्थलीय भाग का कई दिनों तक जलमग्न होना है। सामान्य तौर पर बाढ़ की स्थिति उस समय उत्पन्न होती है जब जल नदी के किनारों के ऊपर प्रवाहित होते हुए विस्तृत क्षेत्र में फैल जाता है। वास्तव में, बाढ़ प्राकृतिक पर्यावरण की एक विशेषता है जिसे जलीय-चक्र का संघटक माना जाता है, किन्तु जब वह लगातार तीव्र गति से कई दिनों तक बनी रहती है तो इसी प्रक्रिया को बाढ़ तबाही या बाढ़ आपदा कहा जाता है।

बाढ़ प्रकोप के कारण

यद्यपि बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है जिसके लिए कई प्राकृतिक कारण उत्तरदायी हैं, किन्तु वर्तमान में उन कारकों को उत्तेजित करने में मानवीय कारकों का विशेष योगदान है। अतः बाढ़ प्राकृतिक एवं मानवजनित कारकों का सम्मिलित परिणाम है। संक्षेप में इन कारणों का वर्णन निम्नांकित है

1. अत्यर्थिक वर्षा-लम्बी अवधि तक घनघोर वर्षा का होना नदियों की बाढ़ के लिए सर्वप्रथम कारक है। नदियों के ऊपरी जल-ग्रहण क्षेत्रों में घनघोर वर्षा के कारण निचले भागों में जल के आयतन में आकस्मिक वृद्धि हो जाती है, जिस कारण नदियों में अपार जलराशि प्रवाहित होकर आस-पास के क्षेत्रों को जलमग्न कर देती है।

2. पर्यावरण हास-मानव द्वारा प्रकृति के कार्यों में अत्यधिक हस्तक्षेप के कारण पर्यावरण ह्रास या विनाश की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है, जो बाढ़ का प्रमुख कारण बनता जा रहा है। नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों तथा अन्य सभी भागों में तेजी से वन-विनाश हो रहा है। इसलिए भूमि कटाव अधिक होता है। जो नदियों के तल को ऊँचा कर देता है। अत: वर्षा के समय जल नदी के किनारों से बाहर आकर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर देता है।

3. भू-स्खलन-पर्वतीय क्षेत्रों में भू-स्खलन होने से नदी का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है तथा बड़े-बड़े जलाशय बन जाते हैं। जब कभी अनाचक जलाशय टूटते हैं या नदी का मार्ग खुलता है तो • प्रलयकारी बाढ़ आ जाती है। इस प्रकार की बाढ़ का वेग इतना तीव्र होता है कि वह बड़ी-से-बड़ी बस्ती का अस्तित्व समाप्त कर देती है। उत्तराखण्ड की गंगा घाटी में 1978 में डबरानी तथा 1992 में गंगवाड़ी में इसी कारण बाढ़ आई थी।

4. बाँध या तटबन्ध का टूटना-कभी-कभी अचानक बाँध या नदी के तटबन्ध टूट जाते हैं जिससे प्रचण्ड बाढ़ आ जाती है। 1984 में पूर्वी कोसी नदी का तटबन्ध टूटने के कारण ही बाढ़ की भयावह स्थिति उत्पन्न हुई थी।

5. नगरीकरण-बढ़ता अनियोजित नगरीकरण मानवजनित बाढ़ आपदा का प्रमुख कारण है। नगरीकरण के परिणामस्वरूप भूमि अभाव के कारण निम्न भूमि क्षेत्रों के उपयोग से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

बाढ़ प्रभावित क्षेत्र

विश्व में बांग्लादेश के बाद भारत सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित देश है। भारत में बिहार, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा असम को प्रतिवर्ष बाढ़ का सामना करना पड़ता है। ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश एवं तेलंगाना, राजस्थान व पंजाब को भी कभी-कभी बाढ़ का सामना करना पड़ता है। पर्यावरण में आए परिवर्तनों के कारण तो राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों को विगत कुछ वर्षों से बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है। देश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया जा सकता है

1. प्रमुख बाढ़ प्रभावित क्षेत्र—भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा की द्रोणी, असम में ब्रह्मपुत्र की द्रोणी तथा ओडिशा में वैतरणी, ब्राह्मणी और स्वर्ण रेखा नदियों की द्रोणियाँ भारत के सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र हैं (चित्र में देखें)। देश की कुल बाढ़ आपदा की लगभग 60% हानि केवल गंगा के जल-प्रवाह क्षेत्रों में होती है। पश्चिम बंगाल, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रतिवर्ष बाढ़ आपदा से सर्वाधिक हानि होती है।

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2. गौण बाढ़ प्रभावित क्षेत्र देश के सामान्य बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और राजस्थान राज्य आते हैं। इन राज्यों में 1976-77 के बीच बाढ़ आपदा में देश की कुल बाढ़ क्षति का आधा हिस्सा थी। 1993 की बाढ़ द्वारा पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में 423 व्यक्तियों की मृत्यु तथा लगभग 20 हजार पशु-सम्पदा क्षतिग्रस्त हो गई थी।

प्रश्न 10. भारत में चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों मुंख्य वाओं का उल्लेख कीजिए तथा इस आपदा से सुरक्षा के उपाय बताइए।

उत्तर-भारत में, ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश एवं तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र तथा गुजरात राज्यों के तटीय क्षेत्र चक्रवात प्रभावित क्षेत्र हैं (चित्र)।

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भारत विश्व के उन 6 प्रमुख क्षेत्रों में सम्मिलित है जहाँ प्रतिवर्ष उष्ण कटिबंधीय चक्रवात आते हैं। यद्यपि 1999 के चक्रवात को सुपर साइक्लोन कहा जाता है। इस चक्रवात की गति 250 किमी प्रति घण्टा थी। ओडिशा राज्य में करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हो गई थी तथा हजारों की संख्या में लोग काल के ग्रास बन गए थे, किन्तु भारत के आपदा इतिहास के इसके अतिरिक्त भी अन्य अनेक विनाशकारी चक्रवाती तूफानों का आगमन होता रहा है। आन्ध्र प्रदेश के समुद्रतटीय भाग पर 9 मई, 1990 को आया चक्रवात, सन् 1977 के विनाशंकारी चक्रवाते की अपेक्षा लगभग 25 गुना अधिक शक्तिशाली था। इसमें 1000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी तथा लगभग 30 लाख लोग बेघर हो गए थे। भारत में चक्रवाती तूफानों के कारण मृत व्यक्तियों का ऐतिहासिक परिदृश्य तालिका से स्पष्ट होता है जिसमें 1737 से 1999 तक मानवे क्षति को दर्शाया गया है

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चक्रवाती आपदा से सुरक्षा के महत्त्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित हैं

1. मजबूत एवं ऊँचे मकानों का निर्माण-चक्रवाती तूफानों से प्रभावित समुद्रतटीय क्षेत्रों में फूस की | छतों वाले या कमजोर मकान बनाने पर प्रतिबन्ध होना चाहिए। इसके स्थान पर निर्धारित मानक वाले तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा सुझाई विधियों के आधार पर ही मकान बनाने की अनुमति होनी चाहिए। इन क्षेत्रों में ऊँचे टीलों या बल्लियों (मचान) पर घर बनानी अधिक सुरक्षित होता है। चक्रवाती तूफानों से तेज गतिं वाली हवाएँ और समुद्री लहरें उठती रहती हैं जिससे तटीय क्षेत्र जलमग्न हो जाते हैं। अतः आवास-स्थल का चयन अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना अत्यन्त

आवश्यक है। चक्रवात सम्भावित क्षेत्रों में नक्शे के आधार पर ठोस आधार वाली सन्तुलित इमारतें | सर्वाधिक सुरक्षित रहती हैं।

2. चक्रवातरोधी ढाँचों का निर्माण-हवाओं और मूसलाधार वर्षा के वेग को झेल सकने के लिए समुद्रतटीय भागों में चक्रवातरोधी ढाँचों का निर्माण किया जाना चाहिए। ये ढाँचे निर्धन जनता द्वारा नहीं बनाए जा सकते। इसलिए सरकार द्वारा इन्हें बनाने में विशेष आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए।

3. शरणस्थलों का विकास-चक्रवाते सम्भावित क्षेत्रों में सरकार को चक्रवात शरणस्थलों की | व्यवस्था करनी चाहिए। ओडिशा तथा आन्ध्र प्रदेश राज्यों को इस प्रकार के शरणस्थलों के विकास | पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है।

4. विशेष प्रकार के वृक्षों की हरित पटेर्यों का विस्तार-चक्रवातों और पवनों के वेग को कम | करने की सबसे कारगर रणनीति ऐसे विशेष पेड़ लगाए जाना है, जिनकी जड़े मजबूत तथा पत्तियाँ सुई जैसी हों। इन पेड़ों को उखड़ने से बचाने के लिए उनके चारों ओर बाड़े लगाई जानी चाहिए। वृक्षों की ऐसी हरित पट्टियाँ पूरे तटीय क्षेत्र में बनाई जानी चाहिए।

मानचित्र कार्य

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