NCERT Solutions Class 11 Hindi आरोह Chapter 11- नमक का दारोगा

NCERT Solutions Class 11 Hindi आरोह Chapter 11- नमक का दारोगा

NCERT Solutions Class 11  आरोह  11 वीं कक्षा से Chapter-11 नमक का दारोगा के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी आरोह के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions class 11 Core hindi आरोह Chapter 11- नमक का दारोगा


एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

Class 11 Core hindi आरोह

पाठ-11 नमक का दारोगा

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

पृष्ठ संख्या: 16

पाठ के साथ

प्रश्न 1. कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है?

उत्तर
कहानी का नायक दारोगा वंशीधर हमें सर्वाधिक प्रभावित करता है जो ईमानदार, आज्ञाकारी, धर्मनिष्ठ तथा कर्मयोगी जैसे गुणों से युक्त एक दारोगा है| वह एक भ्रष्ट समाज में रहता है जहाँ उसके पिता भी बेईमानी की सीख देते हैं| कहानी का एक पात्र पंडित अलोपीदीन दारोगा को खरीदने में असफल रहता है तथा नौकरी से निकाल देता है| लेकिन उसके ईमानदारी के आगे पंडित को भी आखिरकार झुकना पड़ता है| इस प्रकार दारोगा वंशीधर समाज के सामने अपमानित होने के डर से झूठ के सामने कमजोर नहीं पड़ता है|

प्रश्न 2. ‘नमक का दारोगा’ कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन-से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं?

उत्तर
पंडित अलोपीदीन उस इलाके का प्रतिष्ठित जमींदार है| कहानी में उसके व्यक्तित्व के दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं|

पहला पक्ष निंदनीय है| जब वह दारोगा को रिश्वत देने की कोशिश करता है, जिससे उसके भ्रष्ट व्यक्तित्व का पता चलता है| वह आरोपों से मुक्त होने के लिए कई छल प्रपंचों का सहारा लेता है जिससे उसके चालाक व्यक्तित्व का भी पता चलता है|

दूसरा पक्ष प्रशंसनीय है| जब पंडित अलोपीदीन को दारोगा को नौकरी से निकलवा देने पर पछतावा होता है और वो वापस उनसे अपनी सारी जायदाद का स्थायी मेनेजर बनने की विनती करता है| उसकी आँखों से सद्भावना झलकती है|

प्रश्न 3. कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं| निम्नलिखित पात्रों के सन्दर्भ में पाठ के उस अंश को उद्धृत करते हुए बताइए कि वह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं?
(क) वृद्ध मुंशी
(ख) वकील
(ग) शहर की भीड़


उत्तर

(क) वृद्ध मुंशी- “नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान देना, यह तो पीर की मजार है| निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए| ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो| मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है................

इस उद्धरण में वृद्ध पिता समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार की गहराई को व्यक्त करता है| घर की आर्थिक दशा इतनी दयनीय है कि वे अपने बेटे को भी रिश्वतखोरी का मार्ग अपनाने की सीख देते हैं| वे उसे नौकरी ढूंढने जाने से पहले ऊपरी आमदनी के फायदे समझाते हैं|

(ख) वकील- “वकीलों ने यह फैसला सुना और उछल पड़े|” इस कहानी में वकील पंडित अलोपीदीन के आज्ञापालक तथा गुलाम थे| यहाँ न्यायिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार की झलक दिखाई पड़ती है|

(ग) शहर की भीड़- “जिसे देखिए, वही पंडितजी के इस व्यवहार को पर टीका-टिप्पणी कर रहा था, निंदा की बौछारें हो रही थीं, मानों संसार से अब पापी का पाप कट गया| पानी को दूध के नाम से बेचने वाला ग्वाला, कल्पित रोजनामचे भरनेवाले अधिकारी वर्ग, रेल में बिना टिकट सफ़र करने वाले बाबु लोग, जाली दस्तावेज बनाने वाले सेठ और साहूकार, यह सब-के-सब देवताओं की भांति गर्दन चला रहे थे......|”

प्रस्तुत उद्धरण से पता चलता है कि सब-के-सब भ्रष्टाचार में लिप्त हैं लेकिन तमाशा देखने के लिए आतुर रहते हैं| पंडित अलोपीदीन के गिरफ्तार होने पर शहर की भीड़ टीका-टिप्पणी करने में पीछे नहीं रहती जबकि वो स्वयं गलत हैं| इससे समाज की संवेदनहीनता का पता चलता है|

प्रश्न 4. निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए- नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मजार है| निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए| ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो| मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है| ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है| वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती| ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ|
(क) यह किसकी उक्ति है?
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?
(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं?


उत्तर
(क) यह उक्ति दारोगा वंशीधर के वृद्ध पिता की है|
(ख) जिस प्रकार पूर्णमासी का चाँद धीरे-धीरे घटता जाता है उसी प्रकार मासिक वेतन महीने के पहले दिन मिलता है तथा जरूरतों को पूरा करते-करते कम होता जाता है| पूर्णमासी का चाँद धीरे-धीरे लुप्त हो जाता है, उसी प्रकार महीने के अंत तक मासिक वेतन पूरी तरह समाप्त हो जाता है|
(ग) नहीं, मैं एक पिता के इस वक्तव्य से असहमत हूँ| ऊपरी आय या रिश्वत लेना गलत बात है| जितनी ख़ुशी इमानदारी से नौकरी करने में मिलती है उतनी ख़ुशी अधिक पाने की लालसा में ऊपरी आमदनी से नहीं मिलती|

प्रश्न 5. ‘नमक का दारोगा’ कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए|

उत्तर
(i) धन के ऊपर धर्म की जीत- इस कहानी के अंत में आखिरकार, पंडित अलोपीदीन को अपनी गलती पर पछतावा होता है और वह स्वयं वंशीधर के पास चलकर आता है| उसे अपनी पूरी जायदाद का स्थायी मैनेजर बना देता है| इस प्रकार धन पर धर्म की जीत होती है|

(ii) धर्मनिष्ठ दारोगा- यह कहानी पूरी तरह से दारोगा वंशीधर पर आधारित है, जो अपने कार्य के प्रति ईमानदार तथा कर्तव्यनिष्ठ है| वह पूरी इमानदारी से अपने कर्तव्य को निभाता है|

प्रश्न 6. कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को मैनेजर नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए| आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते?

उत्तर
चूंकि पंडित अलोपीदीन स्वयं एक भ्रष्ट, बेईमान तथा लालची व्यक्ति था| उसने आजतक रिश्वत देकर अपने गलत कार्यों को अंजाम दिया था| एक वंशीधर ही ऐसा व्यक्ति था जिसे वह अपने धन के बल पर खरीद नहीं पाया| दारोगा के इस व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उसने उसे अपना मैनेजर नियुक्त किया|

मैं इस कहानी का अंत भी इसी प्रकार करता/करती|


पाठ के आस-पास

प्रश्न 1. दारोगा वंशीधर गैर-कानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है| आपके विचार से वंशीधर का ऐसा करना उचित था? आप उसकी जगह होते तो क्या करते?

उत्तर
वंशीधर का पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी के लिए तैयार होना कहीं से भी उचित नहीं जान पड़ता है| वंशीधर एक ईमानदार दारोगा था| वह चाहता तो अलोपीदीन द्वारा प्रस्तावित नौकरी के आग्रह को ठुकरा सकता था| मैं उसके जगह होती/होता तो ऐसी नौकरी कभी नहीं स्वीकार करता/करती| पंडित अलोपीदीन के काले धन का मैनेजर बनकर मैं अपने स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुँचाती/पहुंचाता|

प्रश्न 2. नमक विभाग के दारोगा पद के लिए बड़ों बड़ों का जी ललचाता था| वर्तमान समाज में ऐसा कौन-सा पद होगा जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते होंगे और क्यों?

उत्तर
वर्तमान समाज में सरकारी विभाग में कई ऐसे पद हैं जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते हैं| जैसे आयकर, बिक्रीकर, आयात-निर्यात विभाग, इनके उदाहरण हैं जहाँ अभी भी रिश्वत जैसी बुराइयाँ व्याप्त है| यहं मासिक आमदनी से अधिक ऊपरी आमदनी का महत्व है|

प्रश्न 3. अपने अनुभवों के आधार पर बताइए कि जब आपके तर्कों ने आपके भ्रम को पुष्ट किया हो|

उत्तर
समाज के ऊंचे तबके के बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोगों को देखकर लगता था कि वे बड़े पदों पर ईमानदारी के साथ कार्य करते हैं| उनकी बड़ी-बड़ी बातों को सुनकर मुझे भ्रम होता था कि वे जैसा बोलते हैं शायद वैसा करते भी हैं| परंतु एक बार मैंने अपने ऐसे ही करीबी मित्र को जो समाज की भलाई तथा भ्रष्टाचार मुक्त समाज की स्थापना की बातें करते हुए सुना था, उसे ही इस भ्रष्टाचार में लिप्त देखा| इस अनुभव के बाद मेरा भ्रम टूट गया|

प्रश्न 4. पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया| वृद्ध मुंशी जी द्वारा यह बात एक विशिष्ट सन्दर्भ में कही गई थी| अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताइए-
(क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो|
(ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थक लगा हो|
(ग) ‘पढ़ना-लिखना’ को किस अर्थ में प्रयुक्त किया होगा:

साक्षरता अथवा शिक्षा? (क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं?)

उत्तर
(क) जब पूरी तरह शिक्षा ग्रहण करने के बाद भी मुझे अपने योग्यता के लायक नौकरी नहीं मिली तो लगा कि मेरा पढ़ना-लिखना व्यर्थ है|
(ख) मैंने अपनी शिक्षा का उपयोग गरीब बच्चों को पढ़ाकर उन्हें साक्षर बनाने में किया तो मुझे मेरा पढ़ना-लिखना सार्थक लगा|
(ग) ‘पढ़ना-लिखना’ को शिक्षा के अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा| शिक्षा और साक्षरता दोनों का अर्थ समान नहीं है| साक्षरता का अर्थ है साक्षर होना अर्थात पढ़ने और लिखने की क्षमता से संपन्न होना| जबकि शिक्षा का अर्थ है पढ़-लिख कर विषय की गहराई समझना अथवा योग्यता प्राप्त करना|

प्रश्न 5. लडकियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं| यह वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है?

उत्तर
इस वाक्य से समाज की संकीर्ण सोच का पता चलता है, जहाँ लड़कियों को बोझ समझा जाता है| उन्हें पढ़ाने के स्थान पर घर के कामों में लगा दिया जाता है| समाज में लड़कियों का जन्म लेना अभिशाप तो माना ही जाता है लेकिन उनके बड़े होते ही विवाह की चिंता सताने लगती है|

प्रश्न 6. इसीलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आए| ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य करने वाला धन और अनन्य वाचालता हो, वह क्यों कानून के पंजे में आए| प्रत्येक मनुष्य अनसे सहानुभूति प्रकट करता था- अपने आस-पास अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को देखकर आपकी क्या प्रतिक्रिया क्या होगी? लिखें|

उत्तर
अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को देखकर मुझे ऐसा लगता है कि समाज में भ्रष्टाचार फैलाने वालों की कमी नहीं है| ऐसे लोग ही होते हैं जो कानून और न्याय व्यवस्था को आसानी से अपने पक्ष में ले आते हैं| कानून से खिलवाड़ करना इनकी आदत होती है| ये भी लगता है कि वंशीधर जैसे ईमानदार लोगों की कमी क्यों है जो ऐसे भ्रष्टाचारियों को सबक सिखा सकते हैं|

समझाइए तो जरा

प्रश्न 1. नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मजार है| निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए|

उत्तर
इस कहानी में प्रस्तुत पंक्तियाँ वंशीधर के वृद्ध पिता के द्वारा कही गई हैं| इन पंक्तियों के द्वारा समाज के लोगों की सोच पर कटाक्ष किया गया है| ऐसा समाज जहाँ योग्यता के बल पर मिले पद को उसमें हो रहे आमदनी के कारण महत्व दिया जाता है| केवल मासिक वेतन को ही नहीं बल्कि ऊपरी आमदनी को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है|

प्रश्न 2. इस विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्धि पथ-प्रदर्शक और आत्मावलंबन ही अपना सहायक था|

उत्तर
प्रस्तुत पंक्ति कहानी के नायक दारोगा वंशीधर के लिए कही गई हैं| यह समाज में रह रहे उनलोगों के लिए है जो भ्रष्टाचार जैसी कुरीतियों से प्रभावित नहीं होते| वे ईमानदारी, स्वावलंबन तथा धैर्य से जीवन व्यतीत करने में विश्वास रखते हैं|

प्रश्न 3. तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया|

उत्तर
एक रात वंशीधर की नींद गाड़ियों की खड़खड़ाहट से खुल जाती है| उन्हें लगता है कि इतनी रात को कोई गाड़ियों को पुल के पार क्यों ले जा रहा है? उन्हें संदेह हुआ कि जरूर कोई गैरकानूनी समान ले जाया जा रहा है| उनके मन में हुए भ्रम ने तर्क के स्तर पर सोचना शुरू किया कि जरूर कुछ गलत हो रहा है और आखिरकार उनका तर्क सही निकला|

प्रश्न 4. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं इन्हें वह जैसे चाहती है नचाती है|

उत्तर
प्रस्तुत पंक्ति द्वारा न्याय व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को दर्शाया गया है| जिस न्याय व्यवस्था में धन के बल पर न्याय किया जाता हो वहाँ एक दोषी अपने आरोपों से आसानी से मुक्त हो जाता है| जहाँ धन का बल हो या पक्षपात हो वहाँ न्याय की कल्पना भी नहीं की जा सकती|

प्रश्न 5. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी|

उत्तर
उस रात जब अलोपीदीन को गिरफ्तार किया गया, लोग सो रहे थे| लेकिन उसकी गिरफ्तारी की खबर अगले दिन सुबह होने तक पूरे शहर में फ़ैल गई| इससे यही पता चलता है कि लोगों को रात्रिकाल में भी निंदनीय बातों की जानकारी होने में देर नहीं लगती|

प्रश्न 6. खेद ऐसी समझ पर! पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया|

उत्तर
लेखक द्वारा लिखी गई इन पंक्तियों से समाज के उन लोगों पर कटाक्ष किया गया है जो पढाई को धन अर्जित करने का साधन समझते हैं| जब वंशीधर को नौकरी से निकाल दिया जाता है तो उनके वृद्ध पिता को लगा कि पढाई-लिखाई व्यर्थ चला गया| उनके अनुसार वंशीधर को पढ़ाना-लिखाना बेकार हो गया क्योंकि वह दुनियादारी नहीं समझ सका|

प्रश्न 7. धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला|

उत्तर
यहाँ धन और धर्म को क्रमशः सद्वृति और असद्वृति, बुराई और अच्छाई, सत्य और असत्य के रूप में भी समझा जा सकता है| कहानी के अंत में जब अलोपीदीन को अपनी गलती का एहसास होता है और वो वंशीधर को अपनी पूरी जायदाद का मैनेजर बना देता है तब ऐसा प्रतीत होता है कि सच्चाई और धर्म के आगे धन की हमेशा पराजय होती है| अलोपीदीन आजतक किसी के आगे सर नहीं झुकाया था लेकिन वंशीधर की सच्चाई और ईमानदारी ने उसे परास्त कर दिया|

प्रश्न 8. न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया|

उत्तर
जब अदालत में अलोपीदीन को दोषी के रूप में पेश किया गया तब वकीलों की सेना अपने तर्क से उन्हें निर्दोष सिद्ध करने में एकजुट हो गई| आरोपों को गलत प्रमाणों द्वारा झूठा साबित किया जाने लगा| उल्टा वंशीधर पर ही उद्दंडता तथा विचारहीनता का आरोप मढ़ दिया गया जो इमानदारी और सत्य के बल पर अदालत में खड़े थे| गवाहों को खरीद लिया गया था| धन के बल पर न्याय पक्षपाती हो गया और अखिरकार दोषी को निर्दोष करार दे दिया गया|

भाषा की बात

प्रश्न 1. भाषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और मुहावरों के जानदार उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप एवं बोलचाल की भाषा के लिहाज से यह कहानी अद्भुत है| कहानी में से ऐसे उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी बताइए कि इनके प्रयोग से किस तरह कहानी का कथ्य अधिक असरदार बना है?

उत्तर
भाषा की चित्रात्मकता
• वकीलों का फैसला सुनकर उछल पड़ना,

• अलोपीदीन का मुस्कुराते हुए बाहर आना ,

• चपरासियों का झुक-झुक कर सलाम करना,

• लहरों ने अदालत की नींव हिला दी,

• वंशीधर पर व्यंग्य बाणों की बौछार,

• अलोपीदीन का सजे-धजे रथ पर सवार होकर सोते जागते चले जाना।

लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग

• कगारे का वृक्ष

• दाँव पर पाना

• निगाह में बांध लेना

• जन्म भर की कमाई

• शूल उठाना

• ठिकाना न होना

• इज्जत धूल में मिलना

• कातर दृष्टि से देखना

• मस्जिद में दीया जलाना

• सिर पीट लेना

• सीधे मुँह बात न करना

• मन का मैल मिटना

• आँखे डबडबाना

• हाथ मलना

• मुँह में कालिख लाना

• मुँह छिपाना

• सिर-माथे पर लेना

हिंदी उर्दू का साझा रूप

• बेगरज को दाँव पर पाना जरा कठिन है|

• इन बातों को निगाहों में बाँध लो|

बोल चाल की भाषा

• ‘कौन पंडित अलोपीदीन? दातागंज के’

• ‘बाबू साहब ऐसा न कीजिए, हम मिट जाएँगे|’

• ‘क्या करें, लड़का अभागा कपूत है|’

उपरोक्त सभी विशेषताओं के कारण भाषा में सजीवता एवं रोचकता आ गई है| इससे कहानी कल्पित कथा न लगकर वास्तविक घटना प्रतीत होती है|

प्रश्न 2. कहानी में मासिक वेतन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है? इसके लिए आप अपनी ओर से दो-दो और विशेषण बताइए| साथ ही विशेषणों के आधार को तर्क सहित पुष्ट कीजिए|

उत्तर
कहानी में मासिक वेतन के लिए पूर्णमासी का चाँद, मनुष्य की देन जैसे विशेषणों का प्रयोग किया गया है|

चार दिन की चाँदनी- वेतन मिलने के बाद कुछ दिन तक सभी जरूरतें पूरी की जाती हैं और कुछ दिन बाद सारे खर्च हो जाते हैं|

खून-पसीने की कमाई- यह पूरे महीने भर की मेहनत की कमाई होती है|

प्रश्न 3. दी गई विशिष्ट अभिव्यक्तियों एक निश्चित संदर्भ में निश्चित अर्थ देती हैं| संदर्भ बदलते ही अर्थ भी परिवर्तित हो जाता है| अब आप किसी अन्य संदर्भ में इन भाषिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग करते हुए समझाइए|

उत्तर
(क) बाबूजी आशीर्वाद !
• बाबूजी आपके आशीर्वाद के बिना मुझे किसी काम में सफलता नहीं मिलती|

(ख) सरकारी हुक्म!
• सरकारी हुक्म तो मानना ही पड़ेगा|
• मुझे सरकारी हुक्म मिला है|

(ग) दातागंज के!
• में दातागंज का रहने वाला हूँ|
• पंडित अलोपीदीन दातागंज के निवासी थे|

(घ) कानपुर!
• ये गाड़ियाँ कानपुर जाएँगी|

एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 11 आरोह पीडीएफ

    (अ) काव्य भाग

        (ब) गद्य भाग