NCERT Solutions Class 12 रसायन विज्ञान-II Chapter-11 (ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर)

NCERT Solutions Class 12 रसायन विज्ञान-II Chapter-11 (ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर)

NCERT Solutions Class 12 रसायन विज्ञान-II 12 वीं कक्षा से Chapter-11 (ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर) के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी रसायन विज्ञान-II के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
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एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

Class 12 रसायन विज्ञान-II 

पाठ-11 (ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

श्न 1.

निम्नलिखित को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक ऐल्कोहॉल में वर्गीकृत कीजिए –
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उत्तर
प्राथमिक ऐल्कोहॉल : (i), (ii), (iii)
द्वितीयक ऐल्कोहॉल : (iv), (v)
तृतीयक ऐल्कोहॉल : (vi)

प्रश्न 2.
उपर्युक्त उदाहरणों में से ऐलिलिक ऐल्कोहॉलों को पहचानिए।

उत्तर
(ii) तथा (vi)।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित यौगिकों के आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नामपद्धति से नाम दीजिए –

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उत्तर
(i) 3-क्लोरोमेथिल-2-आइसोप्रोपिलपेण्टेन-1-ऑल
(ii) 2,5-डाइमेथिलहेक्सेन -1,3-डाइऑल
(iii) 3-ब्रोमोसाइक्लोहेक्सेनॉल
(iv) हेक्स-1-ईन-3-ऑल
(v) 2-ब्रोमो-3-मेथिलब्यूट-2-ईन-1-ऑल

प्रश्न 4.
दर्शाइए कि मेथेनल पर उपयुक्त ग्रीन्यार अभिकर्मक से अभिक्रिया द्वारा निम्नलिखित ऐल्कोहॉल कैसे विरचित किए जाते हैं?

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उत्तर
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित अभिक्रिया के उत्पादों की संरचना लिखिए –

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उत्तर
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(ii) NaBH4 एक दुर्बल अपचायक है, यह ऐल्डिहाइड/कीटोन को अपचयित कर सकता है, परन्तु एस्टर को नहीं।
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(iii) -CHO समूह -CH2OH में अपचयित हो जाता है।
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प्रश्न 6.
यदि निम्नलिखित ऐल्कोहॉल क्रमशः (a) HCl-ZnCl2, (b) HBr, (c) SOCl2 से अभिक्रिया करें तो आप अपेक्षित उत्पादों की संरचनाएँ दीजिए।
(i) ब्यूटेन-1-ऑल
(ii) 2-मेथिलब्यूटेन-2-ऑल।

उत्तर
(a) HCl-ZnClz (ल्यूकास अभिकर्मक) के साथ
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(b) HBr के साथ
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(c) SOCl2 के साथ
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प्रश्न 7.
(i) 1-मेथिलसाइक्लोहेक्सेनॉल और (ii) ब्यूटेन-1-ऑल के अम्ल उत्प्रेरित निर्जलन के मुख्य उत्पादों की प्रागुक्ति कीजिए।
या
किसी ऐल्कोहॉल की किसी एक निर्जलीकरण अभिक्रिया का रासायनिक समीकरण लिखिए। (2018)

उत्तर
(i) 1-मेथिलसाइक्लोहेक्सेनॉल का अम्ल उत्प्रेरित निर्जलन दो उत्पाद, I तथा II दे सकता है। चूँकि उत्पाद (I) अधिक उच्च प्रतिस्थापित है, इसलिए सेटजेफ नियम के अनुसार यह मुख्य उत्पाद है।
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(ii) ब्यूटेन-1-ऑल का अम्ल उत्प्रेरित निर्जलन मुख्य उत्पाद के रूप में ब्यूट-2-ईन तथा गौण उत्पाद के रूप में ब्यूट-1-ईन उत्पन्न करता है। इसका कारण यह है कि ऐल्कोहॉलों का निर्जलन कार्बोधनायने माध्यमिकों के द्वारा होता है। पुनः ब्यूटेन-1-ऑल 1° ऐल्कोहॉल होने के कारण प्रोटॉनीकरण तथा H2O के विलोपन पर पहले 1° कार्बोधनायन (I) देता है जो कम स्थायी होने के कारण पुनर्व्यवस्थित होकर अधिक स्थायी 2° कार्बोधनायन (II) बनाता है, तब यह दो भिन्न प्रकारों से प्रोटॉन निकालकर ब्यूट-2-ईन या ब्यूटन-1-ईन बनाता है। चूंकि ब्यूट-2-ईन अधिक स्थायी है, इसलिए सेटजेफ नियम के अनुसार यह मुख्य उत्पाद होता है।
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प्रश्न 8.
ऑथों तथा पैरा-नाइट्रोफीनॉल, फीनॉल से अधिक अम्लीय होते हैं। उनके संगत फीनॉक्साइड आयनों की अनुनादी संरचनाएँ बनाइए।

उत्तर
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प्रतिस्थापित फीनॉलों में इलेक्ट्रॉन निष्कासक समूह (electron withdrawing group) जैसे नाइट्रो समूह; फीनॉल की अम्लीय सामर्थ्य को बढ़ा देते हैं। जब ऐसे समूह ऑर्थों एवं पैरा स्थितियों पर उपस्थित होते हैं तो यह प्रभाव अधिक प्रबल हो जाता है। इसका कारण फोनॉक्साइड आयन के ऋणायन का प्रभावी विस्थानने (delocalisation) है। अत: फीनॉल की तुलना में 0-तथा p-नाइट्रोफीनॉल अधिक अम्लीय होते हैं।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं में सम्मिलित समीकरण लिखिए –

  1. राइमर-टीमैन अभिक्रिया
  2. कोल्बे अभिक्रिया अथवा कोल्बे श्मिट अभिक्रिया। (2018)

उत्तर
1. राइमर-टीमैन अभिक्रिया (Reimer-Teimann Reaction) – फीनॉल की सोडियम हाइड्रॉक्साइड की उपस्थिति में क्लोरोफॉर्म के साथ अभिक्रिया से बेन्जीन में,—CHO समूह ऑर्थो स्थिति पर प्रवेश कर जाता है। इस अभिक्रिया को राइमर-टीमैन अभिक्रिया कहते हैं।
प्रतिस्थापित मध्यवर्ती बेन्जिल क्लोराइड क्षार की उपस्थिति में अपघटित होकर सैलिसिलैल्डिहाइड बनाता है।
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2. कोल्बे अभिक्रिया अथवा कोल्बे श्मिट अभिक्रिया (Kolbe’s Reaction or Kolbe Schmidt Reaction) – फीनॉल को सोडियम हाइड्रॉक्साइड के साथ अभिकृत कराने से बना फीनॉक्साइड आयन, फीनॉल की अपेक्षा इलेक्ट्रॉनरागी ऐरोमैटिक प्रतिस्थापन अभिक्रिया के प्रति अधिक क्रियाशील होता है। अतः यह CO2 जैसे दुर्बल इलेक्ट्रॉनरागी के साथ इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया करता है। इससे ऑथों-हाइड्रॉक्सीबेन्जोइक अम्ल मुख्य उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है।
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प्रश्न 10.
एथेनॉल एवं 3-मेथिलपेन्टेन-2-ऑल से प्रारम्भ कर 2-एथॉक्सी-3-मेथिलपेन्टेन के विलियमसन संश्लेषण की अभिक्रिया लिखिए –

उत्तर
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प्रश्न 11.
1-मेथॉक्सी-4-नाइट्रोबेन्जीन के विरचन के लिए निम्नलिखित अभिकारकों में से कौन-सा युग्म उपयुक्त है और क्यों?

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उत्तर
अभिकारकों के दोनों युग्म उपयुक्त हैं। प्रथम युग्म में, -NO2 समूह के इलेक्ट्रॉन निष्कासक प्रभाव के कारण Br परमाणु सक्रियित होता है। CH3ONa के नाभिकस्नेही आक्रमण तथा उसके पश्चात् NaBr के विलोपन से वांछित ईथर प्राप्त होता है। दूसरे युग्म में, मेथिल ब्रोमाइड पर 4-नाइट्रोफीनॉक्साइड आयन के नाभिकस्नेही आक्रमण द्वारा वांछित ईथर प्राप्त होता है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं से प्राप्त उत्पादों का अनुमान लगाइए –
(i) CH3-CH2-CH2-O-CH3 + HBr →

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(iv) (CH3)3C – OC2H5 Solutions Class 12 रसायन विज्ञान-II Chapter-3 (ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर)
उत्तर
(i) ऑक्सीजन से जुड़े दोनों ऐल्किल समूह प्राथमिक हैं, इसलिए Br आयन की अभिक्रिया छोटे ऐल्किल समूह (मेथिल समूह) से होगी तथा प्रोपेन-1-ऑल तथा ब्रोमोमेथेन का निर्माण होगा।
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(ii) अनुनाद के कारण, C6H5-O आबन्ध में कुछ द्विआबन्ध गुण विद्यमान होता है, इसलिए यह O-C2H5 आबन्ध से प्रबल होता है। अत: दुर्बल O-C2H5 आबन्ध का विदलन होता है तथा फीनॉल एवं ब्रोमोएथेन प्राप्त होते हैं।
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(iii) इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन में, ऐल्कॉक्सी समूह ऐरोमैटिक वलय को सक्रिय बनाता है तथा प्रवेश करने वाले समूह को 0-तथा p-स्थितियों की ओर निर्दिष्ट करता है। इसलिए एथॉक्सीबेन्जीन का नाइट्रीकरण 2-तथा 4-नाइट्रोएथॉक्सीबेन्जीन का मिश्रण देता है जिसमें 4-नाइट्रोएथॉक्सीबेन्जीन 2-स्थिति पर त्रिविमीय बाधा के कारण मुख्य उत्पाद होता है।
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(iv) चूंकि एथिल कार्बोधनायन की तुलना में तृतीयक-ब्यूटिल कार्बोधनायन अत्यधिक स्थायी होता है, इसीलिए अभिक्रिया SN 1 क्रियाविधि द्वारा होती है तथा तृतीयक-ब्यूटिल आयोडाइड एवं एथेनॉल निम्नलिखित प्रकार बनते हैं –
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अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित यौगिकों के आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नाम लिखिए –

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उत्तर
(i) 2, 2, 4-ट्राइमेथिलपेन्टेन-3-ऑल
(ii) 5-एथिलहेप्टेन-2, 4-डाइऑल
(iii) ब्यूटेन-2, 3-डाइऑल
(iv) प्रोपेन-1,2,3-ट्राइऑल
(v) 2-मेथिलफीनॉल
(vi) 4-मेथिलफीनॉल
(vii) 2,5-डाइमेथिलफोनॉल
(viii) 2,6-डाइमेथिलफीनॉल
(ix) 1-मेथॉक्सी-2-मेथिलप्रोपेन
(x) एथॉक्सीबेन्जीन
(xi) 1-फीनॉक्सीहेप्टेन
(xii) 2-एथॉक्सीब्यूटेन

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नाम वाले यौगिकों की संरचनाएँ लिखिए –
(i) 2-मेथिलब्यूटेन-2-ऑल
(ii) 1-फेनिलप्रोपेन-2-ऑल
(iii) 3,5-डाइमेथिलहेक्सेन-1,3,5-ट्राइऑल
(iv) 2,3-डाइएथिलफीनॉल
(v) 1-एथॉक्सीप्रोपेन
(vi) 2-एथॉक्सी-3-मेथिलपेन्टेन
(vii) साइक्लोहेक्सिलमेथेनॉल
(viii) 3-साइक्लोहेक्सिलपेन्टेन-3-ऑल
(ix) साइक्लोपेन्टेन-3-ईन-1-ऑल
(x) 3-क्लोरोमेथिलपेन्टेन-1-ऑल।

उत्तर
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प्रश्न 3.
(i) С5H12O आणिवक सूत्र वाले ऐलकोहॉलों के सभी समावयवो की सरचना लिखिए एवं  उनके आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नाम दीजिए।
(ii) प्रश्न 3(i) के समावयवी ऐल्कोहॉलों को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक ऐल्कोहॉलों में वर्गीकृत कीजिए।

उत्तर
C5H12O के 8 समावयवी सम्भव हैं। ये निम्नवत् हैं –
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(ii)

  • प्राथमिक ऐल्कोहॉल – उपर्युक्त में से (i), (iv), (v), (vii)
  • द्वितीयक ऐल्कोहॉल – उपर्युक्त में से (ii), (iii), (viii)
  • तृतीयक ऐल्कोहॉल – उपर्युक्त में से (vi)

प्रश्न 4.
समझाइए कि प्रोपेनॉल का क्वथनांक, हाइड्रोकार्बन ब्यूटेन से अधिक क्यों होता है?

उत्तर
प्रोपेनॉल तथा ब्यूटेन लगभग समान अणु द्रव्यमान के होते हैं, लेकिन प्रोपेनॉल का क्वथनांक उच्च होता है, क्योंकि इसके अणुओं के मध्य अन्तरा-आण्विक हाइड्रोजन आबन्धन पाये जाते हैं। ब्यूटेन में ध्रुवीय –OH समूह की अनुपस्थिति के कारण H-आबन्धन नहीं पाये जाते हैं। ये परस्पर दुर्बल वीण्डरवाल आकर्षण बलों द्वारा जुड़े रहते हैं।
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प्रश्न 5.
समतुल्य आण्विक भार वाले हाइड्रोकार्बनों की अपेक्षा ऐल्कोहॉल जल में अधिक विलेय होते हैं। इस तथ्य को समझाइए।

उत्तर
समतुल्य अणुभार वाले हाइड्रोकार्बनों की अपेक्षा ऐल्कोहॉल जल में अधिक विलेय होते हैं क्योंकि ऐल्कोहॉल अणु जल के साथ हाइड्रोजन आबन्धन बनाते हैं तथा जल के अणुओं के मध्य पहले से उपस्थित H-आबन्धों को तोड़ भी सकते हैं। हाइड्रोकार्बन ऐसा नहीं कर पाते हैं।

प्रश्न 6.
हाइड्रोबोरॉनीकरण-ऑक्सीकरण अभिक्रिया से आप क्या समझते हैं? इसे उदाहरण सहित समझाइए।

उत्तर
डाइबोरेन का ऐल्कीनों से योग द्वारा ट्राइऐल्किलबोरेन का निर्माण तथा इसके क्षारीय H2O2 द्वारा ऑक्सीकरण से ऐल्कोहॉल का निर्माण, यह अभिक्रिया हाइड्रोबोरॉनीकरण-ऑक्सीकरण कहलाती है।
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प्रश्न 7.
आण्विक सूत्र C7H8O वाले मोनोहाइड्रिक फीनॉलों की संरचनाएँ तथा आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नाम लिखिए।

उत्तर
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प्रश्न 8.
ऑर्थों तथा पैरा-नाइट्रोफीनॉलों के मिश्रण को भाप-आसवन द्वारा पृथक करने में भाप-वाष्पशील समावयवी का नाम बताइए। इसका कारण दीजिए।

उत्तर
o-नाइट्रोफीनॉल अन्त:अणुक हाइड्रोजन आबन्धन (intra-molecular hydrogen bonding) के कारण भाप वाष्पशील होता है, जबकि p-नाइट्रोफीनॉल अन्तरा-अणुक हाइड्रोजन आबन्धन (intermolecular hydrogen bonding) के कारण कम वाष्पशील होता है।

प्रश्न 9.
क्यूमीन से फीनॉल बनाने की अभिक्रिया का समीकरण दीजिए। (2018)

उत्तर
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प्रश्न 10.
क्लोरोबेन्जीन से फीनॉल बनाने की रासायनिक अभिक्रिया लिखिए। (2018)

उत्तर
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प्रश्न 11.
एथीन के जलयोजन से एथेनॉल प्राप्त करने की क्रियाविधि लिखिए।

उत्तर
किसी अम्ल की उपस्थिति में एथीन का जल से सीधा योग नहीं होता है। एथीन को सर्वप्रथम सान्द्र H2SO4 में प्रवाहित किया जाता है जिससे एथिल हाइड्रोजन सल्फेट बनता है।
H2SO4 → H+ + \overset { - }{ O }SO2OH
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एथिल हाइड्रोजन सल्फेट एथिल हाइड्रोजन सल्फेट को जल के साथ उबालकर जल-अपघटन करने पर एथेनॉल बनता है।
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प्रश्न 12.
आपको बेन्जीन, सान्द्र H2SO4 और NaOH दिए गए हैं। इन अभिकर्मकों के उपयोग द्वारा फीनॉल के विरचन की समीकरण लिखिए। (2013, 18)

उत्तर
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प्रश्न 13.
आप निम्नलिखित को कैसे संश्लेषित करेंगे? दर्शाइए।

  1. एक उपयुक्त ऐल्कीन से 1-फेनिलएथेनॉल
  2. SN 2 अभिक्रिया द्वारा ऐल्किल हैलाइड के उपयोग से साइक्लोहेक्सिलमेथेनॉल
  3. एक उपयुक्त ऐल्किल हैलाइड के उपयोग से पेन्टेन-1-ऑल।

उत्तर
1. तनु H2SO4 की उपस्थिति में एथिनिलबेन्जीन से जल का योग 1-फेनिलएथेनॉल देता है।
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2. जलीय NaOH द्वारा साइक्लोहेक्सिलमेथिल ब्रोमाइड का जल-अपघटन साइक्लोहेक्सिलमेथेनॉल देता है।
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3. जलीय NaOH द्वारा 1-ब्रोमोप्रोपेन का जल-अपघटन प्रोपेन-1-ऑल देता है।
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प्रश्न 14.
ऐसी दो अभिक्रियाएँ दीजिए जिनसे फीनॉल की अम्लीय प्रकृति प्रदर्शित होती हो, फीनॉल की अम्लता की तुलना एथेनॉल से कीजिए।

उत्तर
फीनॉल की अम्लीय प्रकृति प्रदर्शित करने वाली अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं –
(i) सोडियम से अभिक्रिया (Reaction with sodium) – फीनॉल सक्रिय धातुओं; जैसे–सोडियम से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन मुक्त करता है।
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(ii) NaOH से अभिक्रिया (Reaction with NaOH) – फीनॉल NaOH में घुलकर सोडियम फीनॉक्साइड तथा जल बनाता है।
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फीनॉल तथा एथेनॉल की अम्लता की तुलना
(Comparison of Acidity of Phenol and Ethanol)
एथेनॉल की तुलना में फीनॉल अधिक अम्लीय होता है। इसका कारण यह है कि फीनॉल से एक प्रोटॉन निकल जाने के बाद प्राप्त फोनॉक्साइड आयन अनुनाद द्वारा स्थायित्व प्राप्त कर लेता है, जबकि एथॉक्साइड आयन (एथेनॉल से एक प्रोटॉन निकलने के बाद) स्थायी नहीं होता है।
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प्रश्न 15.
समझाइए कि ऑर्थों-नाइट्रोफीनॉल, ऑर्थों-मेथॉक्सीफीनॉल से अधिक अम्लीय क्यों होता है।

उत्तर
NO2 समूह के प्रबल –R तथा -[ प्रभाव के कारण O-H आबन्ध पर इलेक्ट्रॉन घनत्व घट जाता है, अत: प्रोटॉन आसानी से मुक्त हो जाता है।
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प्रोटॉन त्यागने के पश्चात् शेष बचा o-नाइट्रोफीनॉक्साइड आयन अनुनाद द्वारा स्थायित्व प्राप्त करता है।
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ऑर्थों-नाइट्रोफीनॉक्साइड आयन अनुनाद स्थायी होता है, अत: 0- नाइट्रोफीनॉल एक प्रबल अम्ल है। दूसरी तरफ OCH3 समूह के +R प्रभाव के कारण O–H आबन्ध पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ जाता है, अत: प्रोटॉन का निष्कासन कठिन हो जाता है।
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अब o- मेथॉक्सीफोनॉक्साइड आयन जो कि प्रोटॉन के खोने के बाद शेष रहता है, अनुनाद के कारण विस्थायी (destablized) हो जाता है।
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दो ऋणावेश परस्पर प्रतिकर्षित करते हैं तथा 0-मेथॉक्सीफीनॉक्साइड आयन को विस्थायी (destablize) करते हैं, अत: o-नाइट्रोफीनॉल, o-मेथॉक्सीफीनॉल से अधिक अम्लीय होता है।

प्रश्न 16.
समझाइए कि बेन्जीन वलय से जुड़ा–OH समूह उसे इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन के प्रति कैसे सक्रियित करता है?

उत्तर
फीनॉल को निम्नलिखित संरचनाओं को अनुनादी संकर माना जाता है –
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–OH समूह का + R प्रभाव बेन्जीन वलय पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ा देता है जिससे इलेक्ट्रॉनस्नेही की आक्रमण सरल हो जाता है। अतः –OH समूह की उपस्थिति से बेन्जीन वलय इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन क्रियाओं के प्रति सक्रियित होती है। चूंकि ऑथों तथा पैरा स्थानों पर इलेक्ट्रॉन घनत्व आपेक्षिक रूप से उच्च होता है, अत: इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन मुख्यत: ऑर्थों तथा पैरा स्थानों पर अधिक होता है।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं के लिए समीकरण दीजिए –
(i) प्रोपेन-1-ऑल का क्षारीय KMnO4 के साथ ऑक्सीकरण
(ii) ब्रोमीन की CS2 में फीनॉल के साथ अभिक्रिया
(iii) तनु HNO3 की फीनॉल से अभिक्रिया
(iv) फीनॉल की जलीय NaOH की उपस्थिति में क्लोरोफॉर्म के साथ अभिक्रिया।

उत्तर
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प्रश्न 18.
निम्नलिखित को उदाहरण सहित समझाइए –

  1. कोल्बे अभिक्रिया (2018)
  2. राइमर-टीमैन अभिक्रिया
  3. विलियमसन ईथर संश्लेषण
  4. असममित ईथर।

उत्तर
1. पाठ्यनिहित प्रश्न संख्या 9 (ii) देखिए।
2. पाठ्यनिहित प्रश्न संख्या 9 (i) देखिए।
3. विलियमसन ईथर संश्लेषण (Williamson Ether Synthesis) – यह सममित और असममित ईथरों को बनाने की एक महत्त्वपूर्ण प्रयोगशाला विधि है। इस विधि में ऐल्किल हैलाइड की सोडियम ऐल्कॉक्साइड के साथ अभिक्रिया कराई जाती है।
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प्रतिस्थापित (द्वितीयक अथवा तृतीयक) ऐल्किल समूह युक्त ईथर भी इस विधि द्वारा बनाए जा सकते हैं। इस अभिक्रिया में प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड पर ऐल्कॉक्साइड आयन का (SN 2) आक्रमण होता है।
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यदि ऐल्किल हैलाइड प्राथमिक होता है तो अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। द्वितीयक एवं तृतीयक ऐल्किल हैलाइडों की अभिक्रिया में विलोपन, प्रतिस्पर्धा में प्रतिस्थापन से आगे होता है। यदि तृतीयक ऐल्किल हैलाइड का उपयोग किया जाए तो उत्पाद के रूप में केवल ऐल्कीन प्राप्त होती है तथा कोई ईथर नहीं बनता। उदाहरणार्थ– CH3ONa की (CH3)3C-BF के साथ अभिक्रिया द्वारा केवल 2-मेथिलप्रोपीन प्राप्त होती है।
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4. असममित ईथर (Unsymmetrical ethers) – यदि ऑक्सीजन परमाणु से जुड़े ऐल्किल या ऐरिल समूह भिन्न-भिन्न होते हैं तो ईथर को असममित ईथर कहा जाता है। उदाहरणार्थ– एथिल मेथिल ईथर, मेथिल फेनिल ईथर आदि।
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प्रश्न 19.
एथेनॉल के अम्लीय निर्जलन से एथीन प्राप्त करने की क्रियाविधि लिखिए।

उत्तर
क्रियाविधि (Mechanism) – एथेनॉल के अम्लीय निर्जलन से एथीन प्राप्त करने की क्रियाविधि निम्नलिखित पदों में सम्पन्न होती है –
प्रथम पद : प्रोटॉनित ऐल्कोहॉल का बनना (Formation of protonated alcohol) –
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द्वितीय पद : कार्बोधनायन का बनना (Formation of Carbocation) – यह सबसे धीमा पद है, अतः यह अभिक्रिया का दर निर्धारक पद होता है।
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तृतीय पद : प्रोटॉन के निकल जाने से एथीन को बनना (Formation of ethene by elimination of a proton) –
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प्रथम पद में प्रयुक्त अम्ल, अभिक्रिया के तृतीय पद में मुक्त हो जाता है। साम्य को दायीं ओर विस्थापित करने के लिए एथीन बनते ही निष्कासित कर ली जाती है।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित परिवर्तनों को किस प्रकार किया जा सकता है?
(i) प्रोपीन → प्रोपेन-2-ऑल
(ii) बेन्जिल क्लोराइड → बेन्जिल ऐल्कोहॉल
(iii) एथिल मैग्नीशियम क्लोराइड → प्रोपेन-1-ऑल
(iv) मेथिल मैग्नीशियम ब्रोमाइड → 2-मेथिलप्रोपेन-2-ऑल।

उत्तर
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प्रश्न 21.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं में प्रयुक्त अभिकर्मकों के नाम बताइए –

  1. प्राथमिक ऐल्कोहॉल का कार्बोक्सिलिक अम्ल में ऑक्सीकरण
  2. प्राथमिक ऐल्कोहॉल का ऐल्डिहाइड में ऑक्सीकरण
  3. फीनॉल का 2, 4, 6-ट्राइब्रोमोफीनॉल में ब्रोमीनीकरण
  4. बेन्जिल ऐल्कोहॉल से बेन्जोइक अम्ल
  5. प्रोपेन-2-ऑल का प्रोपीन में निर्जलन ।
  6. ब्यूटेन-2-ऑन से ब्यूटेन-2-ऑल।

उत्तर

  1. अम्लीकृत पोटैशियम डाइक्रोमेट या उदासीन, अम्लीय या क्षारीय KMnO4
  2. पिरीडीनियम क्लोरोक्रोमेट (PCC), C5H5NH+Cr CrO3Cl (CH2Cl2 में)
  3. या पिरीडीनियम डाइक्रोमेट (PDC), (C5H5\overset { + }{ N }H)2Cr2O7 (CH2Cl2 में)
  4. जलीय ब्रोमीन अर्थात् Br2/H2O
  5. अम्लीकृत या क्षारीय KMnO4
  6. सान्द्र H2SO4 (443 K पर)
  7. Ni/H2 या LiAlH4 या NaBH4

प्रश्न 22.
कारण बताइए कि मेथॉक्सीमेथेन की तुलना में एथेनॉल का क्वथनांक उच्च क्यों होता है?

उत्तर
ऋणविद्युती ऑक्सीजन परमाणु के हाइड्रोजन परमाणु से जुड़े होने के कारण एथेनॉल में अन्तरा-अणुक हाइड्रोजन आबन्धन पाया जाता है जिसके परिणामस्वरूप एथेनॉल संयुग्मी अणु के रूप में पाया जाता है। H-आबन्धों को तोड़ने के लिए ऊर्जा की अत्यधिक मात्रा की आवश्यकता पड़ती है। अतः एथेनॉल का क्वथनांक मेथॉक्सीमेथेन, जो कि हाइड्रोजन आबन्धन नहीं बनाता है, से उच्च होता है।

प्रश्न 23.
निम्नलिखित ईथरों के आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नाम दीजिए –

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उत्तर
(i) 1.एथॉक्सी-2-मेथिलप्रोपेन
(ii) 2-क्लोरो-1-मेथॉक्सीएथेन
(iii) 4.नाइट्रोऐनिसोल
(iv) 1-मेथॉक्सीप्रोपेन
(v) 4-एथॉक्सी-1,1-डाइमेथिलसाइक्लोहेक्सेन
(vi) एथॉक्सीबेन्जीन

प्रश्न 24.
निम्नलिखित ईथरों को विलियमसन संश्लेषण द्वारा बनाने के लिए अभिकर्मकों के नाम एवं समीकरण लिखिए –
(i) 1-प्रोपॉक्सीप्रोपेन
(ii) एथॉक्सीबेन्जीन
(iii) 2-मेथॉक्सी-2-मेथिलप्रोपेन
(iv) 1-मेथॉक्सीएथेन।

उत्तर
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प्रश्न 25.
कुछ विशेष प्रकार के ईथरों को विलियमसन संश्लेषण द्वारा बनाने की सीमाओं को उदाहरणों से समझाइए।

उत्तर
विलियमसन संश्लेषण को तृतीयक ऐल्किल हैलाइडों को बनाने में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है, चूंकि इससे ईथर के स्थान पर ऐल्कीन प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ– CH3ONa की (CH3)3C-Br के साथ अभिक्रिया द्वारा केवल 2-मेथिलप्रोपीन प्राप्त होती है।
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ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ऐल्कॉक्साइड ने केवल नाभिकरागी होते हैं, अपितु प्रबल क्षारक भी होते हैं। वे ऐल्किल हैलाइडों के साथ विलोपन, अभिक्रिया देते हैं।

प्रश्न 26.
प्रोपेन-1-ऑल से 1-प्रोपॉक्सीप्रोपेन को किस प्रकार बनाया जाता है? इस अभिक्रिया की क्रियाविधि लिखिए।

उत्तर
निम्नलिखित विधि का प्रयोग किया जाता है –
(a) विलियमसन संश्लेषण द्वारा (By Williamson synthesis)
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(b) 413 K पर 1-प्रोपेनॉल का सान्द्र H2SO4 के साथ निर्जलन द्वारा (By dehydration of 1-propanol with conc. H2SO4 at 413 K)
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प्रश्न 27.
द्वितीयकृ अथवा तृतीयक ऐल्कोहॉलों के अम्लीय निर्जलन द्वारा ईथरों को बनाने की विधि उपयुक्त नहीं है। कारण बताइए।

उत्तर
प्राथमिक ऐल्कोहॉलों का ईथरों में अम्लीय निर्जलन SN 2 क्रियाविधि द्वारा होता है जिसमें ऐल्कोहॉल अणु का नाभिकस्नेही आक्रमण प्रोटॉनीकृत ऐल्कोहॉल अणु पर होता है।
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इन परिस्थितियों में द्वितीयक तथा तृतीयक ऐल्कोहॉल ईथरों के स्थान पर ऐल्कीन देते हैं। प्रोटॉनीकृत ऐल्कोहॉल अणु पर ऐल्कोहॉल अणु का नाभिकस्नेही आक्रमण नहीं होता है। इसके स्थान पर प्रोटॉनीकृत द्वितीयक तथा तृतीयक ऐल्कोहॉल जल का एक अणु खोकर स्थायी 2° तथा 3° कार्बोधनायन बनाते हैं। ये कार्बोधनायन वरीयता से H+ खोकर ऐल्कीन बनाते हैं।
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समान प्रकार से 3° ऐल्कोहॉल ईथरों के स्थान पर ऐल्कीन देते हैं।
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प्रश्न 28.
हाइड्रोजन आयोडाइड की निम्नलिखित के साथ अभिक्रिया के लिए समीकरण लिखिए –
(i) 1-प्रोपॉक्सीप्रोपेन
(ii) मेथॉक्सीबेन्जीन तथा
(iii) बेन्जिल एथिल ईथर।

उत्तर
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प्रश्न 29.
ऐरिल ऐल्किल ईथरों में निम्नलिखित तथ्यों की व्याख्या कीजिए –

  1. ऐल्कॉक्सी समूह बेन्जीन वलय को इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन के प्रति सक्रियित करता है। तथा
  2. यह प्रवेश करने वाले प्रतिस्थापियों को बेन्जीन वलय की ऑर्थोएवं पैरास्थितियों की ओर निर्दिष्ट करता है।

उत्तर
1. ऐरिल ऐल्किल ईथरों में ऐल्कॉक्सी समूह +R प्रभाव के कारण बेन्जीन वलय पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ा देता है तथा बेन्जीन वलय को इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं के प्रति सक्रिय करता है।
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2. चूँकि इलेक्ट्रॉन घनत्व m-स्थानों की तुलना में ऑर्थो तथा पैरा स्थानों पर अधिक हो जाता है, इसलिए इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ मुख्यत: ऑर्थों तथा पैरा स्थानों पर होती हैं।
उदाहरणार्थ –
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ऐरोमैटिक ईथर फ्रीडेल-क्राफ्ट ऐल्किलीकरण तथा फ्रीडेल-क्राफ्ट ऐसिलीकरण अभिक्रियाएँ भी देते हैं।
उदाहरणार्थ
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प्रश्न 30.
मेथॉक्सीमेथेन की HI के साथ अभिक्रिया की क्रियाविधि लिखिए।

उत्तर
मेथॉक्सीमेथेन तथा HI की सममोलर मात्राएँ मेथिल ऐल्कोहॉल तथा मेथिल आयोडाइड का मिश्रण बनाती हैं। अभिक्रिया की क्रियाविधि इस प्रकार है –
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यदि HI की अधिक मात्रा का प्रयोग किया जाता है तो द्वितीय पद में बना मेथेनॉल निम्नलिखित क्रियाविधि द्वारा मेथिल आयोडाइड में परिवर्तित हो जाता है –
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प्रश्न 31.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं के लिए समीकरण लिखिए –

  1. फ्रीडेल-क्राफ्ट अभिक्रिया-ऐनिसोल का ऐल्किलीकरण
  2. ऐनिसोल का नाइट्रीकरण
  3. एथेनोइक अम्ल माध्यम में ऐनिसोल का ब्रोमीनीकरण
  4. ऐनिसोल का फ्रीडेल-क्राफ्ट ऐसीटिलीकरण।

उत्तर
1. फ्रीडेल-क्राफ्ट अभिक्रिया (Friedel-Crafts reaction) – ऐनिसोल फ्रीडेल-क्राफ्ट अभिक्रिया दर्शाता है अर्थात् निर्जलीय ऐलुमिनियम क्लोराइड (लुईस अम्ल) उत्प्रेरक की उपस्थिति में ऐल्किल हैलाइड से अभिक्रिया होने पर ऐल्किल समूह ऑर्थों तथा पैरास्थितियों पर निर्देशित हो जाता है।
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2. ऐनिसोल को नाइट्रीकरण (Nitration of Anisole) – ऐनिसोल की अभिक्रिया सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल तथा सान्द्र नाइट्रिक अम्ल के मिश्रण से कराने पर ऑथों तथा पैरा-नाइट्रोऐनिसोल का मिश्रण प्राप्त होता है।
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3. एथेनोइक अम्ल के माध्यम में ऐनिसोल का ब्रोमीनीकरण ( हैलोजेनीकरण) [Bromination of Anisole in medium of Ethanoic Acid (Halogenation)] – फेनिलऐल्किल ईथर बेन्जीन वलय में सामान्य हैलोजेनीकरण दर्शाते हैं; उदाहरणार्थ– ऐनिसोल आयरन (II) ब्रोमाइड उत्प्रेरक की अनुपस्थिति में भी एथेनोइक अम्ल माध्यम में ब्रोमीन के साथ ब्रोमीनीकरण दर्शाता है। ऐसा मेथॉक्सी समूह द्वारा बेन्जीन वलय को सक्रियत करने के कारण होता है। पैरा समावयव की 90% मात्रा प्राप्त होती है।
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4. ऐनिसोल का फ्रीडेल-क्राफ्ट ऐसीटिलीकरण (Friedel-Crafts acetylation of anisole) –
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प्रश्न 32.
उपयुक्त ऐल्कीनों से आप निम्नलिखित ऐल्कोहॉलों का संश्लेषण कैसे करेंगे?

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उत्तर
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4-मेथिलहेप्ट-3-ईन से अम्ल की उपस्थिति में H2O के योग से वांछित ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है।
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पेन्ट-1-ईन से H2O का योग होने पर वांछित ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है।
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अतः वांछित ऐल्कीन पेन्ट-2-ईन के स्थान पर पेन्ट-1-ईन होगा।
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इनमें से किसी भी ऐल्कीन से अम्ल की उपस्थिति में H2O के योग से वांछित ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है।
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प्रश्न 33.
3-मेथिलब्यूटेन-2-ऑल को HBr से अभिकृत कराने पर अग्रलिखित अभिक्रिया होती है –

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[संकेत-चरण II में प्राप्त द्वितीयक कार्बोकैटायन हाइड्राईड आयन विचलन के कारण पुनर्विन्यासित होकर स्थायी तृतीयक कार्बोकैटायन बनाते हैं।
उत्तर
दिए गए ऐल्कोहॉल के प्रोटॉनित होकर जल के अणु को निष्कासित करने पर 2° काबकैटायन (I) प्राप्त होता है जो अस्थायी होने के कारण 1,2-हाइड्राइड शिफ्ट द्वारा पुनर्व्यवस्थित होकर अधिक स्थायी 3° कार्बोकिटायन (II) देता है। इस कार्योकैटायन (II) पर Br आयन की नाभिकरागी अभिक्रिया अन्तिम उत्पाद देती है।
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
ऐल्केनॉल समजात श्रेणी को प्रदर्शित करने वाला सामान्य सूत्र है
(i) CnH2n+2O
(ii) CnH2nO2
(iii) CnH2nO
(iv) CnH2n+1O

उत्तर
(i) CnH2n+2O

प्रश्न 2.
CH3-O-CH3 का सामान्य एवं IUPAC नाम क्या है? (2013)
(i) क्रमश: डाइमेथिल ईथर व मेथॉक्सी मेथेन
(ii) क्रमश: डाइमेथिल ईथर व मेथॉक्सी एथेन
(iii) क्रमश: डाइएथिल ईथर व मेथॉक्सी मेथेन
(iv) क्रमशः डाइएथिल ईथर व मेथॉक्सी एथेन

उत्तर
(i) क्रमश: डाइमेथिल ईथर व मेथॉक्सी मेथेन

प्रश्न 3.
ग्लूकोस को एथिल ऐल्कोहॉल में परिवर्तित करने के लिए प्रयुक्त एन्जाइम है – (2016)
(i) इनवटेंस
(ii) जाइमेस
(iii) डायस्टेस
(iv) ये सभी

उत्तर
(ii) जाइमेस

प्रश्न 4.
जब एक ऐल्कोहॉल सान्द्र H2SO4 से क्रिया करता है, तब निर्मित मध्यवर्ती है –
(i) कार्बोधनायन
(ii) ऐल्कॉक्सी आयन
(iii) ऐल्किल हाइड्रोजन सल्फेट
(iv) इनमें से कोई नहीं

उत्तर
(i) कार्बोधनायन

प्रश्न 5.
तनु अम्ल की उपस्थिति में आइसोप्रोपिल ऐल्कोहॉल वायु-ऑक्सीकृत होकर देता है –
(i) C6H5COOH
(ii) C6H5COCH3
(iii) C6H5CHO
(iv) C6H5OH

उत्तर
(iv) C6H5OH

प्रश्न 6.
फीनॉल पहले सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल से क्रिया करता है, फिर सान्द्र नाइट्रिक अम्ल से क्रिया करके देता है – (2017)
(i) p-नाइट्रोफीनॉल
(ii) नाइट्रोबेंजीन
(iii) 2, 4, 6-ट्राइनाइट्रोबेंजीन
(iv) 0-नाइट्रोफीनॉल

उत्तर
(iv) 0-नाइट्रोफीनॉल

प्रश्न 7.
सान्द्र H2SO4 की उपस्थिति में फीनॉल को थैलिक ऐनहाइड्राइड के साथ गर्म करने पर बनता है – (2017)
(i) थैलिक अम्ल
(ii) फीनोन
(iii) क्वीनोन
(iv) फिनॉल्फ्थे लीन

उत्तर
(iv) फिनॉल्फ्थेलीन

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में पिक्रिक अम्ल है – (2017)
(i) ०-हाइड्रॉक्सी बेन्जोइक अम्ल
(ii) m-नाइट्रोबेन्जोइक अम्ल
(iii) 2, 4, 6-ट्राइनाइट्रो फीनॉल
(iv) ०, ऐमीनो बेन्जोइक अम्ल

उत्तर
(iii) 2, 4, 6-ट्राइनाइट्रो फीनॉल

प्रश्न 9.
आयोडोफॉर्म परीक्षण देने वाला यौगिक है – (2017)
(i) CH3CH2COCH2CH3
(ii) (CH3)2CHOH
(iii) CH3CH2COC6H5
(iv) CH3CH2CH2-OH

उत्तर
(ii) (CH3)2CHOH

प्रश्न10.
ल्यूकास अभिकर्मक का प्रयोग मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल के विभेद में किया जाता है – (2017)
(i) प्राथमिक
(ii) द्वितीयक
(iii) तृतीयक
(iv) इनमें से सभी

उत्तर
(iv) इनमें से सभी

प्रश्न 11.
फीनॉल का 0.20% विलयन निम्न में से किस रूप में कार्य करता है? (2016)
(i) ऐन्टीसेप्टिक
(ii) प्रतिऑक्सीकारक
(iii) ज्वरनाशक
(iv) ऐन्टीबायोटिक

उत्तर
(i) ऐन्टीसेप्टिक

प्रश्न 12.
जब ऐल्किल हैलाइड को शुष्क Ag2O के साथ गर्म करते हैं, तब यह बनाता है –
(i) एस्टर।
(ii) ईथर
(iii) कीटोन
(iv) ऐल्कोहॉल

उत्तर
(ii) ईथर

प्रश्न13.
क्लोरोबेन्जीन की क्रिया क्यूप्रस ऑक्साइड की उपस्थिति में अमोनिया से कराने पर प्राप्त होता है – (2017)
(i) फीनॉल
(ii) एनिलीन
(iii) बेन्जीन
(iv) बेन्जोइक ऐसिड

उत्तर
(ii) ऐनिलीन

प्रश्न 14.
Solutions Class 12 रसायन विज्ञान-II Chapter-3 (ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर)
(i) एथेन
(ii) एथिलीन
(iii) ब्यूटेन
(iv) प्रोपेन

उत्तर
(i) एथेन

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक ऐल्कोहॉल की तुलना में t-ब्यूटिल ऐल्कोहॉल धात्विक सोडियम से कम तेजी से क्रिया करता है, क्यों?

उत्तर
तृतीयक ब्यूटिल ऐल्कोहॉल में केन्द्रीय C-परमाणु पर उपस्थित तीन -CH3 समूहों की उपस्थिति के कारण यह आंशिक ऋणावेशित हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप यह O-H के इलेक्ट्रॉन युग्म को हाइड्रोजन परमाणु की ओर धकेलता है, अत: H-परमाणु आसानी से प्रतिस्थापित नहीं होता है।

प्रश्न 2.
C2H5OH तथा CH3OCH3 दोनों के अणुभार समान हैं किन्तु कमरे के ताप पर C2H5OH द्रव है तथा CH3OCH3 गैस है क्यों? (2015)

उत्तर
C2H5OH के अणुओं के मध्य अन्तराणुक हाइड्रोजन बन्ध बनता है जिसके कारण इसके अणुओं का संगुणन हो जाता है और यह द्रव अवस्था में रहता है जबकि CH3O-CH3 के अणुओं के मध्य हाइड्रोजन बंध नहीं है इसलिए यह गैस है।

प्रश्न 3.
दुर्बल ऐल्कोहॉल जल में विलेय होते हैं प्रबल ऐल्कोहॉल नहीं, क्यों?

उत्तर
दुर्बल ऐल्कोहॉल जल के साथ H-आबन्ध बनाते हैं, लेकिन प्रबल ऐल्कोहॉल वृहद् जलविरागी भाग के कारण H-आबन्ध नहीं बना सकते हैं।

प्रश्न 4.
क्या होता है जब एथेनॉल को 453 K पर सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म किया जाता है? अभिक्रिया की क्रियाविधि समझाइए।

उत्तर
जब एथेनॉल को 453 K पर सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म किया जाता है, तब एथीन बनती है।
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प्रश्न 5.
सैटजैफ नियम को उदाहरण सहित लिखिए। (2017)

उत्तर
मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल को सान्द्र H2SO4 के साथ 160 – 170°C पर गर्म करने पर ऐल्कोहॉल का –OH तथा α-hydrogen परमाणु मिलकर H2O के अणु के रूप में निकल जाते हैं तथा एथिलीन बनती हैं।
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प्रश्न 6.
आप मेथिल ऐल्कोहॉल और एथिल ऐल्कोहॉल में विभेद कैसे करेंगे? (केवल एक रासायनिक परीक्षण तथा अभिक्रिया का समीकरण दीजिए)। (2013, 16)

उत्तर
मेथिल ऐल्कोहॉल और एथिल ऐल्कोहॉल में विभेद आयोडोफॉर्म परीक्षण द्वारा किया जा सकता है। एथिल ऐल्कोहॉल को जब आयोडीन तथा जलीय सोडियम हाइड्रॉक्साइड या जलीय सोडियम कार्बोनेट विलयन के साथ गर्म करते हैं तो पीला क्रिस्टलीय ठोस आयोडोफॉर्म बनता है।
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मेथिल ऐल्कोहॉल आयोडोफॉर्म परीक्षण नहीं देता है।

प्रश्न 7.
एथेनॉल के उपयोग लिखिए। (2016)

उत्तर
एथेनॉल के प्रमुख उपयोग निम्नवत् हैं –

  1. मेथिलित स्पिरिट बनाने में।
  2. पेन्ट, वार्निश, गोंद, सल्फर, आयोडीन आदि के विलयन के रूप में।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित यौगिकों को अम्ल की बढ़ती हुई प्रबलता के क्रम में लिखिए- (2015)
(i) Phenol
(ii) 0-Cresol
(iii) m-Cresol
(iv) p-Cresol

उत्तर
o-Cresol < p-Cresol < m-Cresol < Phenol अम्ल की प्रबलता का बढ़ता हुआ क्रम है।

प्रश्न 9.
फीनॉल का लीबरमान अभिक्रिया द्वारा परीक्षण लिखिए। (2013, 18)

उत्तर
जब फीनॉल सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल में घुले सोडियम नाइट्राइट से अभिक्रिया करता है तो नीला या हरा रंग प्रकट होता है। क्रियाकारी मिश्रण को जल से तनु करने पर रंग लाल हो जाता है तथा आधिक्य में NaOH मिलाने पर रंग पुनः नीला हो जाता है। इस अभिक्रिया को ही लीबरमान अभिक्रिया कहते हैं।
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प्रश्न 10.
आण्विक सूत्र C4H10O वाले सभी सम्भव ईथरों के संरचना सूत्र लिखिए। (2017, 18)

उत्तर
(i) C2H5-O-C2H5 डाइएथिल ईथर
(ii) CH3-O-CH2-CH2-CH3 मेथिल n-प्रोपिल ईथर
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प्रश्न 11.
उदाहरण देते हुए समझाइए कि ईथर लूइस-बेस के समान व्यवहार करता है और अम्लों के साथ क्रिया करके ऑक्सोनियम लवण बनाता है। (2014)

उत्तर
ईथर अणु में ऑक्सीकरण परमाणु पर दो एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित होते हैं जिसके कारण यह प्रबल अम्लों के प्रति क्षारक जैसा व्यवहार प्रदर्शित करता है। ईथर (C2H5-O-C2H5) सान्द्र H2SO4 के साथ ऑक्सोनियम लवण बनाता है।
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प्रश्न 12.
ईथर पर क्लोरीन की अभिक्रिया निरूपित कीजिए। (2009, 10)

उत्तर
ईथरों की क्रिया क्लोरीन से कराने पर ईथरों में कार्बन परमाणु पर प्रतिस्थापन होता है। उदाहरणार्थ– डाइएथिल ईथर अंधेरे में क्लोरीन से क्रिया करके 1, 1 -डाइक्लोरो- डाइएथिल ईथर बनाता है।
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प्रकाश की उपस्थिति में परक्लोरोडाइएथिल ईथर बनता है।
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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यौगिक C4H10O एक ऐल्केन की H2SO4/H2O के साथ क्रिया से निर्मित होता है जो कि प्रकाशिक समावयवियों में पृथक नहीं होता है। यौगिक की पहचान कीजिए।

उत्तर
सूत्र सुझाता है कि यौगिक एक ऐल्कोहॉल है। चूंकि यह समावयवियों में पृथक् नहीं होता है अतः यह सममित है तथा यह तृतीयक ब्यूटिल ऐल्कोहॉल है। संगत ऐल्केन आइसोब्यूटेन है। ऐल्कोहॉल का निर्माण निम्नवत् होता है –

प्रश्न 2.
मेथिल ऐल्कोहॉल बनाने की दो विधियों का वर्णन कीजिए। आवश्यक रासायनिक समीकरण भी लिखिए मेथिल ऐल्कोहॉल से डाइमेथिल ईथर कैसे प्राप्त करेंगे? (2016)

उत्तर
मेथिल ऐल्कोहॉल बनाने की दो विधियाँ निम्नवत् हैं –
1. मेथेन के ऑक्सीकरण द्वारा मेथिल ऐल्कोहॉल का निर्माण – मेथेन और ऑक्सीजन के 9 : 1 (आयतन से) मिश्रण को 100 वायुमण्डल दाब और 200°C ताप पर कॉपर की नली में से प्रवाहित करने पर मेथेन का मेथिल ऐल्कोहॉल में ऑक्सीकरण होता है।

2. कार्बन मोनॉक्साइड के हाइड्रोजनीकरण द्वारा मेथिल ऐल्कोहॉल का निर्माण – उच्च ताप (300- 400°C) और उच्च दाब (200- 300 atm) पर ZnO – Cr2O3 उत्प्रेरक की उपस्थिति में कार्बन मोनॉक्साइड का हाइड्रोजनीकरण करने पर मेथिल ऐल्कोहॉल बनता है।

मेथिल ऐल्कोहॉल से डाइमेथिल ईथर का निर्माण – मेथिल ऐल्कोहॉल की अधिकता में 140°C पर डाइमेथिल ईथर बनता है।

प्रश्न 3.
मेथिल ऐल्कोहॉल से एथिल ऐल्कोहॉल कैसे प्राप्त करेंगे? (2015, 16)

उत्तर

प्रश्न 4.
प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक ऐल्कोहॉलों में विभेद करने वाला एक रासायनिक परीक्षण लिखिए। समीकरण भी दीजिए। (2009)
या
ल्यूकास परीक्षण क्या है ? यह किस प्रकार के यौगिकों की पहचान में उपयोगी है? (2010, 12, 17, 18)

उत्तर
ल्यूकास परीक्षण – यह प्राइमरी, सेकण्डरी तथा टर्शियरी ऐल्कोहॉलों में विभेद करने की अत्यन्त सरल विधि है। यह भिन्न-भिन्न ऐल्कोहॉलों की ‘ल्यूकास अभिकर्मक’ (सान्द्र HCl + निर्जल ZnCl2) के प्रति भिन्न-भिन्न गति से अभिक्रिया करने पर आधारित है। किसी ऐल्कोहॉल में ल्यूकास अभिकर्मक मिलाने पर ऐल्किल क्लोराइड बनते हैं जिससे धुंधलापन उत्पन्न होता है। इस प्रकार,

  1. कमरे के ताप पर टर्शियरी ऐल्कोहॉल तुरन्त धुंधलापन उत्पन्न करते हैं।
  2. कमरे के ताप पर सेकण्डरी ऐल्कोहॉल 5-10 मिनट बाद धुंधलापन उत्पन्न करते हैं।
  3. कमरे के ताप पर प्राइमरी ऐल्कोहॉल धुंधलापन उत्पन्न नहीं करते हैं; अत: विलयन पारदर्शक होता है।

प्रश्न 5.
सोडियम एथॉक्साइड तथा निर्जल ऐल्कोहॉल की उपस्थिति में फीनॉल तथा एथिल आयोडाइड की क्रिया से प्राप्त मुख्य उत्पाद डाइएथिल ईथर होता है, फेनीटोल नहीं। क्यों?

उत्तर
एथॉक्साइड आयन की उपस्थिति में फीनॉल फीनेट आयन (C6H5O) में परिवर्तित हो जाता है, इस पर नाभिकस्नेही C2H5I के आक्रमण से अपेक्षित फेनीटोल प्राप्त होना चाहिए लेकिन C2H5O, C6H5O की तुलना में फेनिल समूह की इलेक्ट्रॉन निष्कासक (electron withdrawing) प्रवृत्ति के कारण प्रबल नाभिकस्नेही (nucleophile) होता है, अत: C2H5O आयन C2H5I से क्रिया करके उत्पाद में डाइएथिल ईथर बनाता है।

फेनीटोल (C6H5-O-C2H5) लघु मात्रा में बन सकता है।

प्रश्न 6.
ऐल्कोहॉल, फीनॉल तथा ईथर के प्रमुख उपयोग लिखिए। (2016)

उत्तर
ऐल्कोहॉल के प्रमुख उपयोग निम्नवत् हैं –

  1. मेथिल ऐल्कोहॉल तथा गैसोलीन का 20% मिश्रण एक श्रेष्ठ मोटर ईंधन है।
  2. इसका प्रयोग तेल, वसा तथा वार्निश के विलायक के रूप में किया जाता है।
  3. इसका प्रयोग स्वचालित वाहनों के रेडिएटरों में प्रतिशीतलक के रूप में किया जाता है।
  4. इसका प्रयोग रंजक, औषधियों तथा सुगन्धियों के निर्माण में किया जाता है।
  5. इसका प्रयोग टेरीलीन तथा पॉलीथीन के निर्माण में भी होता है।
  6. इसका प्रयोग ऐल्कोहॉलीय पेय पदार्थ बनाने में किया जाता है।

फीनॉल के प्रमुख उपयोग निम्नवत् हैं –

  1. इसका प्रयोग पिक्रिक अम्ल (विस्फोटक) के निर्माण में तथा रेशम व ऊन के रंजन में किया जाता है।
  2. इसका प्रयोग साइक्लोहेक्सेनॉल विलायक के निर्माण में किया जाता है।
  3. इसका प्रयोग साबुन, लोशन तथा आयण्टमेण्ट में ऐण्टिसेप्टिक के रूप में किया जाता है।
  4. इसका प्रयोग ऐजो रंजक, फीनॉल्फ्थेलीन आदि के निर्माण में किया जाता है।
  5. इसका प्रयोग बैकेलाइट प्लास्टिक के निर्माण में किया जाता है।
  6. इसका प्रयोग ऐस्प्रिन, सेलॉल आदि औषधियों के निर्माण में किया जाता है।

ईथरों के प्रमुख उपयोग निम्नवत् हैं –

  1. इनका सर्वाधिक प्रयोग प्रयोगशाला एवं उद्योगों में तेल, रेजिन, गोद आदि के विलायकों के रूप में किया जाता है।
  2. ईथर ग्रिगनार्ड अभिकर्मकों के बनाने तथा वुज अभिक्रिया में अभिकर्मक के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
  3. ईथर का प्रयोग ‘सामान्य बेहोशीकारक (anaesthetic) के रूप में किया जाता है।
  4. ऐल्कोहॉल तथा ईथर के मिश्रण का प्रयोग पेट्रोल के विकल्प के रूप में किया जाता है।
  5. ईथर का प्रयोग प्रशीतक के रूप में किया जाता है क्योंकि यह वाष्पन पर ठण्डक उत्पन्न करता है। ईथर तथा शुष्क बर्फ (ठोस CO2) -110°C ताप उत्पन्न करता है।
  6. ईथर का प्रयोग धुआँरहित (smokeless) पाउडर बनाने में करते हैं। इनका प्रयोग सुगन्धी उद्योग में भी किया जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को समझाइए – (2015)

  1. ऐल्कोहॉलों का अणुभार बढ़ने पर जल में इनकी विलेयता घटती है।
  2. पावर ऐल्कोहॉल क्या है? उसका उपयोग क्या है?
  3. फीनॉल अम्लीय होते हैं। क्यों? (2009, 11, 12, 13, 17)

उत्तर

  1. क्योंकि ऐल्किल समुह जलविरोधी होते हैं तथा जल में अविलेय हैं। निम्न ऐल्कोहॉल में ऐल्किल समूह छोटा होता है तथा ऐल्कोहॉल का -OH समूह अणु को जल में विलेय बनाने में प्रभावी रहता है। जैसे-जैसे ऐल्किल समूह का आकार बढ़ता है उच्च अणुभार के ऐल्कोहॉलों में ऐल्किल समूह की जल विरोधी प्रकृति -OH समूह की जल स्नेही प्रकृति पर प्रभावी होती जाती है इसलिए विलेयता घटती है।
  2. परिशोधित स्पिरिट बेंजीन की उपस्थिति में पेट्रोल में मिश्रित हो जाती है। पेट्रोल + औद्योगिक ऐल्कोहॉल और बेंजीन का मिश्रण मोटर ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। यह मिश्रण पावर ऐल्कोहॉल कहलाता है।
  3. फीनॉल को जल में घोलने पर यह H+ आयन तथा फीनॉक्साइड आयन देता है जो अनुनाद के कारण स्थायी होता है इसलिए फीनॉल अम्लीय गुण प्रदर्शित करता है।
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प्रश्न 2.
स्टार्च से एथिल ऐल्कोहॉल उत्पादन की औद्योगिक विधि का वर्णन कीजिए। सम्बन्धित रासायनिक अभिक्रियाओं के समीकरण लिखिए। परिशुद्ध ऐल्कोहॉल उत्पादन कैसे किया जाता है? (2009, 11, 12, 13)

उत्तर
स्टार्च से एथिल ऐल्कोहॉल के निर्माण में आलू, चावल, जौ आदि स्टार्चयुक्त पदार्थ कच्चे पदार्थ के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
1. स्टार्च से वाश बनाना – अंकुरित जौ को उबालकर, पीसकर छानने से प्राप्त निष्कर्ष को माल्ट-निष्कर्ष (malt-extract) कहते हैं। इसमें डायस्टेस एन्जाइम होता है। स्टार्चयुक्त पदार्थों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर वे कुचलकर उच्च दाब तथा 150°C ताप पर भाप में गर्म करते हैं, जिससे एक पेस्ट बन जाता है। इस पदार्थ को मैश (mash) कहते हैं। इसमें स्टार्च होता है। मैश में माल्ट-निष्कर्ष मिलाकर उसे 50-60°C पर गर्म करते हैं। माल्ट-निष्कर्ष में उपस्थित डायस्टेस एन्जाइम स्टार्च को माल्टोस नामक शर्करा में जल-अपघटित कर देता है।
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माल्टोस के तनु विलयन में यीस्ट मिलाने पर, यीस्ट में उपस्थित माल्टेस एन्जाइम, माल्टोस को ग्लूकोस में जल अपघटित कर देता है, जिसे यीस्ट में उपस्थित जाइमेस एन्जाइम, एथिल ऐल्कोहॉल में अपघटित कर देता है, इससे प्राप्त विलयन को वाश कहते हैं, जिसमें लगभग 10% एथिल ऐल्कोहॉल होता है।
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2. वाश से शुद्ध एथिल ऐल्कोहॉल प्राप्त करना – वाश के प्रभाजी आसवन से एथिल ऐल्कोहॉल कॉफे भभके (Coffey’s still) द्वारा प्राप्त किया जाता है। इस भभके में दो प्रभाजक स्तम्भ होते हैं, इनमें एक विश्लेषक (analyser) और दूसरा परिशोधक (rectifier) कहलाता है। विश्लेषक तथा परिशोधक एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। विश्लेषक ताँबे की प्लेटों द्वारा कई खानों में विभक्त रहता है। जिनके तल समान्तर रहते हैं। इन प्लेटों में छिद्र होते हैं, जिनमें ऊपर की ओर खुलने वाले वाल्व लगे। होते हैं। प्रत्येक से एक नली निकलकर अपने से नीचे वाले प्याले में डूबी रहती है। परिशोधक (rectifier) का निचला आधा अंश भी विश्लेषक (analyser) की भाँति इसी प्रकार खानों में विभक्त होता है।

वाश को शोधन में ले जाने वाली सर्पाकार नली में पम्प द्वारा विश्लेषक के ऊपर पहुँचाकर नीचे छोड़ा जाता है। विश्लेषक में नीचे से ऊपर की ओर भाप प्रवाहित की जाती है, जो नीचे आने वाले द्रव के वाष्पशील द्रव को वाष्पों में बदलकर ऊपर ले जाती है। यह वाष्प विश्लेषक से लगी नली द्वारा परिशोधक के नीचे पहुँचती है और फिर परिशोधक में ऊपर उठती है। परिशोधक के ऊपर एक नली लगी होती है जो एक संघनित्र से जुड़ी होती है। ऊपर आने वाली वाष्प इस नली से होती हुई परिशोधक के ऊपर पहुँचती है और ठण्डी होकर द्रवित हो जाती है। जिसमें 95.6% एथिल ऐल्कोहॉल होता है। इसको परिशोधित स्पिरिट (rectified spirit) कहते हैं। विश्लेषक (analyser) के पेंदे में बचा हुआ पदार्थ स्पेन्ट वाश (spent wash) कहलाता है।
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3. परिशोधित स्पिरिट का शोधन – कॉफे भभके से प्राप्त परिशोधित स्पिरिट में जल के अतिरिक्त, ग्लिसरीन, सक्सिनिक अम्ल, ऐसीटेल्डिहाइड और फ्यूजेल तेल आदि अशुद्धियाँ मिली होती हैं। इन | अशुद्धियों को दूर करने के लिए पहले परिशोधित स्पिरिट को कोयले के छन्ने में छान लेते हैं और फिर इसका प्रभाजी आसवन करते हैं। प्रभाजी आसवन से मुख्य तीन अंश मिलते हैं –

  1. प्रथम अंश-इसमें ऐसीटेल्डिहाइड होता है।
  2. द्वितीय अंश-इसमें 95.6% शुद्ध एथिल ऐल्कोहॉल तथा 4.4% जल होता है।
  3. अन्तिम अंश-इसमें फ्यूजेल तेल होता है। यह बहुत विषैला पदार्थ होता है, जिसके मिलाने पर एथिल ऐल्कोहॉल दवाइयाँ बनाने के लिए अयोग्य हो जाता है।

4. व्यापारिक मात्रा में परिशुद्ध ऐल्कोहॉल बनाना – परिशोधित स्पिरिट और बेंजीन के मिश्रण का प्रभाजी आसवन करने से 64.8°C पर जल, ऐल्कोहॉल तथा बेंजीन को स्थिर क्वथनी मिश्रण (constant boiling mixture) प्राप्त होता है। फिर 68.30°C पर बेंजीन तथा ऐल्कोहॉल का स्थिर क्वथनी मिश्रण अलग हो जाता है। इस मिश्रण को पुनः आसवित करने पर 78.3°C पर परिशुद्ध ऐल्कोहॉल पृथक् हो जाता है।

प्रश्न 3.
मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल बनाने की दो सामान्य विधियाँ लिखिए और एथिल ऐल्कोहॉल की सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ भिन्न तापों पर अभिक्रिया लिखिए। उपर्युक्त अभिक्रियाओं से सम्बन्धित सभी समीकरण भी दीजिए। (2016)

उत्तर
मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल बनाने की सामान्य विधियाँ निम्नलिखित हैं –
1. ऐल्किल हैलाइडों के जल-अपघटन द्वारा – ऐल्किल हैलाइड (RX) को जलीय सोडियम हाइड्रॉक्साइड या नम (moist) सिल्वर ऑक्साइड के साथ गर्म करने पर ऐल्कोहॉल बनता है।
Solutions Class 12 रसायन विज्ञान-II Chapter-3 (ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर)
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2. एस्टरों के जल-अपघटन द्वारा – एस्टर का सोडियम हाइड्रॉक्साइड या पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड विलयन द्वारा जल-अपघटन करने पर कार्बोक्सिलिक अम्ल का लवण और ऐल्कोहॉल बनते हैं।
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3. प्राथमिक ऐमीनों की नाइट्रस अम्ल से क्रिया द्वारा – ऐलिफैटिक प्राथमिक ऐमीन की नाइट्रस अम्ल (NaNO2 + HCl) से क्रिया कराने पर ऐल्कोहॉल बनता है और नाइट्रोजन गैस निकलती है।
NaNO2 + HCl → NaCl + HNO2
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उदाहरणार्थ– एथिलऐमीन की नाइट्रस अम्ल (NaNO2 + HCl) से क्रिया कराने पर एथिल ऐल्कोहॉल बनता है और नाइट्रोजन गैस निकलती है।
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4. ऐल्कीनों के जलयोजन द्वारा – सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल में ऐल्कीन को अवशोषित करने पर ऐल्किल हाइड्रोजन सल्फेट बनता है, जिसका जल-अपघटन करने पर ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है।
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एथिल ऐल्कोहॉल की सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल से अभिक्रिया – एथिल ऐल्कोहॉल पर सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया से भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न पदार्थ बनते हैं।
(i) एथिल ऐल्कोहॉल और सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के मिश्रण को 100°C पर गर्म करने पर एथिल हाइड्रोजन सल्फेट बनता है।
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एथिल हाइड्रोजन सल्फेट का समानीत दाब (reduced pressure) पर आसवन करने पर एथिल सल्फेट बनता है।
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(ii) एथिल ऐल्कोहॉल के आधिक्य को सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ 140°C पर गर्म करने पर डाइ एथिल ईथर बनता है। अभिक्रिया अग्रलिखित पदों में होती है –
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(iii) एथिल ऐल्कोहॉल को सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के आधिक्य में 170-180°C पर गर्म करने पर एथिलीन बनती है।
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प्रश्न 4.
प्रयोगशाला में डाइ एथिल ईथर बनाने की विधि का सचित्र वर्णन कीजिए। सम्बन्धित रासायनिक अभिक्रिया लिखिए। इस विधि को अविरत ईथरीकरण विधि क्यों कहते हैं? इसके मुख्य रासायनिक गुण भी दीजिए। (2010)
या
डाइ एथिल ईथर बनाने की प्रयोगशाला विधि का सचित्र वर्णन कीजिए। सम्बन्धित अभिक्रियाओं के रासायनिक समीकरण भी दीजिए। इसकी अंधेरे में क्लोरीन के साथ अभिक्रिया का समीकरण दीजिए। (2009, 12, 16, 17)
या
ईथर की शुद्धता का परीक्षण कैसे करेंगे? (2012)

उत्तर
प्रयोगशाला में डाइ एथिल ईथर, एथिल ऐल्कोहॉल के आधिक्य और सान्द्र H2SO4 को 140°C पर गर्म करके बनाया जाता है।
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एक गोल पेंदी के फ्लास्क में C2H5OH और सान्द्र H2SO4, 2 : 1 के अनुपात में लेकर उपकरण को चित्रानुसार लगाया जाता है। फ्लास्क को बालू ऊष्मक पर 140-145°C तक गर्म करते हैं जिससे ईथर बर्फ के जल में रखे ग्राही पात्र में एकत्र होने लगता है। इस विधि को अविरत ईथरीकरण विधि कहते हैं, क्योंकि एथिल ऐल्कोहॉल और सल्फ्यूरिक अम्ल के गर्म मिश्रण में एथिल ऐल्कोहॉल डालकर ईथर लगातार प्राप्त किया जा सकता है।
इस प्रकार प्राप्त आसवित ईथर में अल्प मात्रा में H2SO4, ऐल्कोहॉल और जल की अशुद्धियाँ मिली रहती हैं। इसके लिए ईथर को कास्टिक सोडा विलयन के साथ धोते हैं फिर इसमें निर्जल CaCl2 डालकर रख देते हैं। इसके बाद छानकर आसवित करने पर 34-35°C पर शुद्ध एवं शुष्क ईथर एकत्र कर लिया जाता है।

1. PCl5 से क्रिया – एथिल क्लोराइड बनता है।
C2H5OC2H5 + PCl5 → 2C2H5Cl + POCl3

2. अंधेरे में ईथर क्लोरीन और ब्रोमीन के साथ हैलोजनीकृत व्युत्पन्न देता है।
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3. H2O के साथ अभिक्रिया – ईथर साधारण परिस्थितियों में अम्लों या क्षारों द्वारा जल अपघटित नहीं होते हैं। तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ उच्च दाब और उच्च ताप पर गर्म करने पर डाइएथिल ईथर बहुत कठिनाई से एथिल ऐल्कोहॉल में जल अपघटित होता है।
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4. ठण्डे HI के साथ अभिक्रिया – डाइ एथिल ईथर की ठण्डे सान्द्र हाइड़िऑडिक अम्ल (HI) से क्रिया कराने पर एक अणु एथिल आयोडाइड और एक अणु एथिल ऐल्कोहॉल बनता है।
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ईथर की शुद्धता का परीक्षण – ईथर की शुद्धता का परीक्षण पोटेशियम आयोडाइड विलयन द्वारा करते हैं। यदि ईथर में पोटैशियम आयोडाइड डालने पर आयोडीन मुक्त होती है तो ईथर अशुद्ध है। शुद्ध ईथर में आयोडीन मुक्त नहीं होती है।


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