NCERT Solutions Class 12 जीव विज्ञान Chapter-4 (जनन स्वास्थ्य)

NCERT Solutions Class 12 जीव विज्ञान Chapter-4 (जनन स्वास्थ्य)

NCERT Solutions Class 12 जीव विज्ञान 12 वीं कक्षा से Chapter-4  (जनन स्वास्थ्य) के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी जीव विज्ञान के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 12 जीव विज्ञान Chapter-4 (जनन स्वास्थ्य)



एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

Class 12 जीव विज्ञान

पाठ-4  (जनन स्वास्थ्य)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
समाज में जनन स्वास्थ्य के महत्त्व के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर
समाज में जनन स्वास्थ्य का अर्थ स्वस्थ जनन अंगों व उनकी सामान्य कार्यप्रणाली से है। अतः जनन स्वास्थ्य का मतलब ऐसे समाज से है जिसके व्यक्तियों के जननअंग शारीरिक व क्रियात्मक रूप से पूर्णरूपेण स्वस्थ हों। लोगों को यौन शिक्षा के द्वारा उचित जानकारी मिलती है जिससे समाज में यौन सम्बन्धों के प्रति फैली कुरीतियाँ व भ्रांतियाँ खत्म होती हैं। जनन स्वास्थ्य के अन्तर्गत लोगों को विभिन्न प्रकार के यौन-संचारित रोगों, परिवार नियोजन के उपायों, छोटे परिवार के लाभ, सुरक्षित यौन सम्बन्ध आदि के प्रति जागरूक किया जाता है। गर्भावस्था के दौरान माता की देखभाल, प्रसवोत्तर माती व शिशु की देखभाल, शिशु के लिए स्तनपान का महत्त्व जैसे महत्त्वपूर्ण जानकारियों के आधार पर स्वस्थ व जागरूक परिवार बनेंगे। विद्यालय व शिक्षण संस्थानों में प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य तथा यौन शिक्षा से आने वाली पीढ़ी सुलझी विचारधारा वाली होगी जिससे हमारा समाज व देश सशक्त होगा।

प्रश्न 2.
जनन स्वास्थ्य के उन पहलुओं को सुझाएँ जिन पर आज के परिदृश्य में विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

उत्तर
जनन स्वास्थ्य के प्रमुख पहलू जिन पर आज के परिदृश्य में विशेष ध्यान देने की जरूरत है, इस प्रकार हैं –

  1. सुरक्षित व संतोषजनक जननिक स्वास्थ्य।
  2. जनता को जनन सम्बन्धी पहलुओं के प्रति जागरूक करना।
  3. विद्यालयों में यौन-शिक्षा प्रदान करना।
  4. लोगों को यौन संचारित रोगों, किशोरावस्था सम्बन्धी बदलावों व समस्याओं के बारे में जानकारी देना।
  5. जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणामों से अवगत कराना।
  6. गर्भपात, गर्भ निरोधक, आर्तव चक्र, बाँझपन सम्बन्धी समस्याएँ।
  7. मादा भ्रूण हत्या के लिए उल्वबेधन का दुरुपयोग आदि।

प्रश्न 3.
क्या विद्यालयों में यौन शिक्षा आवश्यक है? यदि हाँ, तो क्यों?

उत्तर
विद्यालयों में यौन शिक्षा अति आवश्यक है क्योंकि इससे छात्रों को किशोरावस्था सम्बन्धी परिवर्तनों व समस्याओं के निदान की सही जानकारी मिलेगी। यौन शिक्षा से उन्हें यौन सम्बन्ध के प्रति भ्रांतियाँ व मिथ्य धारणाओं को खत्म करने में सहायता मिलेगी; इसके साथ-साथ उन्हें सुरक्षित यौन सम्बन्ध, गर्भ निरोधकों का प्रयोग, यौन संचारित रोगों, उनसे बचाव व निदान की जानकारी प्राप्त होगी। इसके परिणामस्वरूप आने वाली पीढ़ी भावनात्मक व मानसिक रूप से समृद्ध होगी।

प्रश्न 4.
क्या आप मानते हैं कि पिछले 50 वर्षों के दौरान हमारे देश के जनन स्वास्थ्य में सुधार हुआ है? यदि हाँ, तो इस प्रकार के सुधार वाले कुछ क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।

उत्तर
पिछले 50 वर्षों के दौरान निश्चित ही हमारे देश के जनन स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। इस प्रकार के सुधार वाले कुछ क्षेत्र निम्न हैं –

  1. शिशु व मातृ मृत्यु दर घटी है।
  2. यौन संचारित रोगों की शीघ्र पहचान व उनका समुचित उपचार।
  3. बन्ध्य दम्पतियों को विभिन्न तकनीकियों द्वारा संतान लाभ।
  4. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ व जीवन स्तर।
  5. विभिन्न प्रकार के गर्भ निरोधकों की खोज व उपलब्धता।
  6. चिकित्सीय सहायता युक्त सुरक्षित प्रसव।
  7. लघु परिवारों के लिए प्राथमिकता।
  8. यौन सम्बन्धी मुद्दों पर बढ़ती हुई जागरूकता।
  9. बढ़ती जनसंख्या के नियन्त्रण हेतु प्रयासरत सरकार व आम जनता।

प्रश्न 5.
जनसंख्या विस्फोट के कौन-से कारण हैं?

उत्तर
जनसंख्या विस्फोट
विश्व की आबादी 2 व्यक्ति प्रति सेकण्ड या 2,00,000 व्यक्ति प्रतिदिन या 60 लाख व्यक्ति प्रतिमाह या लगभग 7 करोड़ प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है। आबादी में इस तीव्रगति से वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट कहते हैं। यह मृत्युदर में कमी और जन्मदर में वांछित कमी न आने के कारण होता है।

जनसंख्या में वृद्धि एवं इसके कारण
किसी भी क्षेत्र में एक निश्चित समय में बढ़ी हुई आबादी या जनसंख्या को जनसंख्या वृद्धि कहते हैं। जनसंख्या वृद्धि के निम्नलिखित कारण हैं –

    a.स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण शिशु मृत्युदर (Infant Mortality Rate-IMR) एवं मातृ मृत्युदर (Matermal Mortality Rate-MMR) में कमी आई है।
      b.जनन योग्य व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि का होना।
        c.अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं के कारण जीवन स्तर में सुधार होना।
          d.अशिक्षा के कारण व्यक्तियों को परिवार नियोजन के साधनों का ज्ञान न होना और परिवार नियोजन के तरीकों को पूर्ण रूप से न अपनाया जाना।
          1. वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति के कारण खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि।
          2. सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों द्वारा अनेक महामारियों का समूल रूप से निवारण होना।
          3. निम्न सामाजिक स्तर के कारण अधिकांश निर्धन व्यक्ति यह विश्वास करता है कि जितने अधिक बच्चे होंगे, वे काम करके अधिक धनोपार्जन करेंगे।
          4. सामाजिक रीति-रिवाजों के कारण पुत्र प्राप्ति की चाह में दम्पति सन्तान उत्पन्न करते रहते हैं।

          प्रश्न 6.
          क्या गर्भ निरोधकों का उपयोग न्यायोचित है? कारण बताएँ।

          उत्तर
          विश्व की बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के गर्भ-निरोधकों का प्रयोग किया जाता है। कंडोम जैसे गर्भ निरोधक से न सिर्फ सगर्भता से बचा जा सकता है बल्कि यह अनेक यौन संचारित रोगों व संक्रमणों से भी बचाव करता है। गर्भ निरोधक के प्रयोग द्वारा किसी भी प्रकार के अवांछनीय परिणाम से बचा जा सकता है या उसे रोका जा सकता है। विश्व के अधिकांश दम्पति गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करते हैं। गर्भनिरोधकों के इन सभी महत्त्वों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इनका उपयोग न्यायोचित है।

          प्रश्न 7.
          जनन ग्रन्थि को हटाना गर्भ निरोधकों का विकल्प नहीं माना जा सकता है, क्यों?

          उत्तर
          गर्भ निरोधक के अन्तर्गत वे सभी युक्तियाँ आती हैं जिनके द्वारा अवांछनीय गर्भ को रोका जा सकता है। गर्भ निरोधक पूर्ण रूप से ऐच्छिक व उत्क्रमणीय होते हैं, व्यक्ति अपनी इच्छानुसार इनका प्रयोग बन्द करके, गर्भधारण कर सकता है। इसके विपरीत जनन ग्रन्थि को हटाने पर शुक्राणु व अण्डाणुओं का निर्माण स्थायी रूप से खत्म हो जाता है अर्थात् ये उत्क्रमणीय नहीं होते हैं। एक बार जनन ग्रन्थि के हटाने पर पुनः गर्भधारण करना असंभव होता है।

          प्रश्न 8.
          उल्वबेधन एक घातक लिंग निर्धारण (जाँच) प्रक्रिया है, जो हमारे देश में निषेधित है। क्या यह आवश्यक होना चाहिए? टिप्पणी कीजिए।

          उत्तर
          उल्वबेधन एक ऐसी तकनीक है जिसके अन्तर्गत माता के गर्भ में से एम्नियोटिक द्रव (amniotic fluid) का कुछ भाग सीरिंज द्वारा बाहर निकाला जाता है। इस द्रव में फीट्स की कोशिकाएँ होती हैं जिसके गुणसूत्रों का विश्लेषण करके भ्रूण की लिंग जाँच, आनुवांशिक संरचना, आनुवांशिक विकार व उपापचयी विकारों का पता लगाया जा सकता है। अत: इस जाँच प्रक्रिया का प्रमुख उद्देश्य होने वाली संतान में किसी भी संभावित विकलांगता अथवा विकार का पता लगाना है जिससे माता को गर्भपात कराने का आधार मिल सके।

          किन्तु आजकल इस तकनीक का दुरुपयोग भ्रूण लिंग ज्ञात करके, मादा भ्रूण हत्या के लिए हो रहा है। इसके फलस्वरूप हमारे देश का लिंगानुपात असंतुलित होता जा रहा है। मादा भ्रूण के सामान्य होने पर भी गर्भपात कर दिया जाता है क्योंकि अभी भी हमारे समाज में पुत्र जन्म को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसा गर्भपात एक बच्चे की हत्या के समतुल्य है, अतः उल्वबेधन पर कानूनी प्रतिबन्ध लगाना अति आवश्यक है।

          प्रश्न 9.
          बन्ध्य दम्पतियों को संतान पाने हेतु सहायता देने वाली कुछ विधियाँ बताइए।

          उत्तर
          बन्ध्य दम्पतियों को संतान प्राप्ति हेतु सहायता देने के लिए निम्न विधियाँ हैं –
          1. परखनली शिशु (Test Tube Baby) – इसके अन्तर्गत शुक्राणु व अण्डाणुओं को इन विट्रो निषेचन कराया जाता है। तत्पश्चात् भ्रूण को सामान्य स्त्री के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। स्त्री के गर्भ में गर्भकाल की अवधि पूर्ण होने पर सामान्य रूप से शिशु का जन्म होता है।

          2. युग्मक अन्तः फैलोपियन स्थानान्तरण (Gamete Intra- Fallopian Transfer) – इस विधि का प्रयोग उन महिलाओं पर किया जाता है, जो लम्बे समय से बन्ध्य हैं। इसके अन्तर्गत लेप्रोस्कोप की सहायता से फैलोपियन नलिका के एम्पुला में शुक्राणु व अण्डाणुओं का निषेचन कराया जाता है।

          3. अन्तःकोशिकाद्रव्यीय शुक्राणु बेधन (Intra-Cytoplasmic Sperm Injection) – इसके अन्तर्गत शुक्राणुओं को प्रयोगशाला में सम्बन्धित माध्यम में रखकर प्रत्यक्ष ही अण्डाणु में बेध दिया जाता है। तत्पश्चात् भ्रूण या युग्मनज को स्त्री के गर्भाशय में स्थापित कर दिया जाता है।

          4. कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Inseminaion) – इसका प्रयोग उन पुरुषों पर किया जाता है। जिनमें शुक्राणुओं की कमी होती है। इस विधि मे पुरुष के वीर्य को एकत्रित करके स्त्री की योनि में स्थापित कर दिया जाता है।
          इसके अतिरिक्त निसंतान दम्पति, अनाथ व आश्रयहीन बच्चों को कानूनी रूप से गोद ले सकते हैं।

          प्रश्न 10.
          किसी व्यक्ति को यौन संचारित रोगों के सम्पर्क में आने से बचने के लिए कौन-से उपाय अपनाने चाहिए?

          उत्तर
          यौन संचारित रोग यौन सम्बन्धों के द्वारा संचारित व अति संक्रामक होते हैं। इन रोगों से बचने के लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिए –

          1. सहवास के दौरान कंडोम का प्रयोग करें।
          2. समलैंगिकता से दूर रहें।
          3. परगामी व्यक्ति से यौन सम्बन्ध न बनायें।
          4. वेश्यावृत्ति से दूर रहें।
          5. किसी भी प्रकार की यौन समस्या होने पर कुशल चिकित्सक से परामर्श लें।
          6. अनजान व्यक्ति से यौन सम्बन्ध न बनाये।

          प्रश्न 11.
          निम्नलिखित वाक्य सही हैं या गलत, व्याख्या सहित बताएँ –

          1. गर्भपात स्वतः भी हो सकता है। (सही/गलत)
          2. बन्ध्यता को जीवनक्षम संतति न पैदा कर पाने की अयोग्यता के रूप में परिभाषित किया गया है और यह सदैव स्त्री की असामान्यताओं/दोषों के कारण होती है। (सही/गलत)
          3. एक प्राकृतिक गर्भ निरोधक उपाय के रूप में शिशु को पूर्ण रूप से स्तनपान कराना सहायक होता है। (सही/गलत)
          4. लोगों के जनन स्वास्थ्य के सुधार हेतु यौन सम्बन्धित पहलुओं के बारे में जागरूकता पैदा करना एक प्रभावी उपाय है। (सही/गलत)

          उत्तर

          1. गलत। सामान्य परिस्थितियों में गर्भपात स्वत: नहीं होता है। गर्भपात का अर्थ है स्वेच्छा से या किसी दुर्घटनावश गर्भ का नष्ट होना।
          2. गलत। बन्ध्यता स्त्री या पुरुष दोनों के दोषों या विकारों के कारण होती है।
          3. सही। प्रसव के उपरान्त शिशु को भरपूर स्तनपान कराने से अण्डोत्सर्ग नहीं होता है। अत: आर्तव चक्र के प्रारम्भ न होने से गर्भ ठहरने की संभावना भी नहीं रहती है। किन्तु यह प्रसव के पश्चात् 4-6 महीने तक ही प्रभावी होता है।
          4. सही। जनन स्वास्थ्य के लिए लोगों को यौन सम्बन्धी समस्याओं, भ्रान्तियों व अवधारणाओं के बारे में सही जानकारी देना जरूरी है। सुरक्षित यौन सम्बन्ध, गर्भ निरोधन, यौन रोगों से बचाव आदि महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ, लोगों को जनन स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाती हैं।

          प्रश्न 12.
          निम्न कथनों को सही कीजिए –

          1. गर्भ निरोध के शल्य क्रियात्मक उपाय युग्मक बनने को रोकते हैं।
          2. सभी प्रकार के यौन संचारित रोग पूरी तरह से उपचार योग्य हैं।
          3. ग्रामीण महिलाओं के बीच गर्भनिरोधक के रूप में गोलियाँ (पिल्स) बहुत अधिक लोकप्रिय हैं।
          4. ई० टी० तकनीकों में भ्रूण को सदैव गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है।
            उत्तर
          1. गर्भ निरोध के शल्य क्रियात्मक उपाय युग्मक परिवहन अथवा युग्मक संचार को रोकते हैं।
          2. जेनिटल हर्षीज, HIV संक्रमण, यकृत शोथ-B के अतिरिक्त शेष सभी प्रकार के यौन संचारित रोग पूरी तरह से उपचार के योग्य हैं, यदि इन्हें सही समय पर पहचान कर इलाज कराया जाये।
          3. गर्भ निरोधक गोलियाँ (पिल्स) सभी महिलाओं के बीच लोकप्रिय हैं।
          4. ई० टी० तकनीक में भ्रूण को हमेशा गर्भाशय में स्थानान्तरित किया जाता है।

          परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

          बहुविकल्पीय प्रश्न
          प्रश्न 1.
          ऐम्नियोटिक द्रव की कोशिकाओं में निम्न में से किसकी उपस्थिति से भ्रूणीय शिशु का लिंग निर्धारण होता है?
          (क) बार पिण्ड
          (ख) लिंग-गुणसूत्र
          (ग) काइऐज्मेटा
          (घ) प्रतिजन

          उत्तर
          (क) बार पिण्ड

          अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

          प्रश्न 1.
          विश्व जनसंख्या दिवस कब मनाया जाता है?

          उत्तर
          11 जुलाई को।

          प्रश्न 2.
          गर्भ निरोधक गोलियों में कौन-सा पदार्थ होता है?

          उत्तर
          प्रोजेस्टेरॉन तथा एस्ट्रोजेन्स।

          प्रश्न 3.
          कॉपर-टी का प्रमुख कार्य क्या है?

          उत्तर
          युग्मकों के निषेचन को रोकना।

          प्रश्न 4.
          IUCD का पूरा नाम बताइए।

          उत्तर
          इन्ट्रा यूटेराइन कॉन्ट्रासेप्टिव डिवाइस।

          प्रश्न 5.
          सरोगेट मदर किसे कहते हैं?

          उत्तर
          वह परिचारक माँ जिसके गर्भ में वास्तविक माँ का अण्डाणु पलता है, सरोगेट मदर कहलाती है।

          लघु उत्तरीय प्रश्न

          प्रश्न 1.
          टिप्पणी लिखिए।
          (क) सगर्भता का चिकित्सीय समापन
          (ख) सरोगेट माँ

          उत्तर
          (क) सगर्भता का चिकित्सीय समापन
          गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले जानबूझ कर या स्वैच्छिक रूप से गर्भ के समापन को प्रेरित गर्भपात या चिकित्सीय सगर्भता समापन (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेन्सी, MTP) कहते हैं। पूरी दुनिया में हर साल लगभग 45 से 50 मिलियन (4.5-5 करोड़) चिकित्सीय सगर्भता समापन कराए जाते हैं जो कि संसार भर की कुल सगर्भताओं का 1/5 भाग है। निश्चित रूप से यद्यपि जनसंख्या को घटाने में MTP की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसका उद्देश्य जनसंख्या घटाना नहीं है तथापि MTP में भावनात्मक, नैतिक, धार्मिक एवं सामाजिक पहलुओं से जुड़े होने के कारण बहुत से देशों में यह बहस जारी है कि चिकित्सीय सगर्भता समापन को स्वीकृत या कानूनी बनाया जाना चाहिए या नहीं।

          भारत सरकार ने इसके दुरुपयोग को रोकने की शर्तों के साथ 1971 ई० में चिकित्सीय सगर्भता समापन को कानूनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। इस प्रकार के प्रतिबन्ध अंधाधुंध और गैरकानूनी मादा भ्रूण हत्या तथा भेदभाव को रोकने के लिए बनाए गए, जो अभी भी भारत देश में बहुत ज्यादा हो रहा है।

          चिकित्सीय सगर्भता समापन क्यों? निश्चित तौर पर इसका उत्तर अनचाही सगर्भताओं से मुक्ति पाना है। फिर चाहे वे लापरवाही से किए गए असुरक्षित यौन सम्बन्धों का परिणाम हों या मैथुन के समय गर्भ निरोधक उपायों के असफल रहने या बलात्कार जैसी घटनाओं के कारण हों। इसके साथ ही चिकित्सीय सगर्भता समापन की अनिवार्यता कुछ विशेष मामलों में भी होती है जहाँ सगर्भता बने रहने की स्थिति में माँ अथवा भ्रूण अथवा दोनों के लिए हानिकारक अथवा घातक हो सकती है।

          सगर्भता की पहली तिमाही में अर्थात् सगर्भता के 12 सप्ताह तक की अवधि में कराया जाने वाला चिकित्सीय सगर्भता समापन अपेक्षाकृत काफी सुरक्षित माना जाता है। इसके बाद द्वितीय तिमाही में गर्भपात बहुत ही संकटपूर्ण एवं घातक होता है। इस बारे में एक सबसे अधिक परेशान करने वाली यह बात देखने में आई है कि अधिकतर MTP गैर कानूनी रूप से, अकुशल नीम-हकीमों से कराए जाते हैं। जो कि न केवल असुरक्षित होते हैं, बल्कि जानलेवा भी सिद्ध हो सकते हैं। दूसरी खतरनाक प्रवृत्ति शिशु के लिंग निर्धारण के लिए उल्ववेधन का दुरुपयोग (यह प्रवृत्ति शहरी क्षेत्रों में अधिक) होता है।

          बहुधा ऐसा देखा गया है कि यह पता चलने पर कि भ्रूण मादा है, MTP कराया जाता है, जो पूरी तरह गैर-कानूनी है। इस प्रकार के व्यवहार से बचना चाहिए, क्योंकि यह युवा माँ और भ्रूण दोनों के लिए खतरनाक है। असुरक्षित मैथुन से बचाव के लिए प्रभावशाली परामर्श सेवाओं को देने तथा गैर-कानूनी रूप से कराए गए गर्भपातों में जान की जोखिम के बारे में बताए जाने के साथ-साथ अधिक-से-अधिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए ताकि उपर्युक्त प्रवृत्तियों को रोका जा सके।

          (ख) सरोगेट माँ
          कुछ विरल परिस्थितियों में इन विट्रो निषेचित अण्डाणुओं को परिपक्व होने के लिए सरोगेट माँ का उपयोग किया जाता है। कुछ स्त्रियों में अण्डाणु का निषेचन तो सामान्य रूप से होता है किन्तु कुछ विकारों के कारण भ्रूण का परिवर्धन नहीं हो पाता है। ऐसी परिस्थितियों में स्त्री के अण्डाणु व उसके पति के शुक्राणु का कृत्रिम निषेचन कराया जाता है तथा भ्रूण को 32-कोशिकीय अवस्था में किसी अन्य इच्छुक स्त्री के गर्भाशय में रोपित कर दिया जाता है। यह स्त्री सरोगेट माँ कहलाती है तथा भ्रूण के पूर्ण विकसित होने पर शिशु को जन्म देती है। मनुष्य के साथ पशुओं में भी इस प्रक्रिया द्वारा शिशु उत्पत्ति करायी जा रही है। मनुष्य की तुलना में पशुओं के भ्रूण का स्थानान्तरण अधिक सरल होता है। यद्यपि परखनली शिशु का जन्म जीव विज्ञान की दृष्टि से एक अत्यधिक सफल उपलब्धि है, किन्तु इससे जुड़ी अनेक कानूनी व नैतिक समस्याएँ भी सामने आ रही हैं, जैसे इस प्रकार जन्मे बच्चे के ऊपर कानूनी हक आदि।

          प्रश्न 2.
          मनुष्य में यौन सम्बन्धी उत्पन्न रोगों के लक्षण बताइए।

          उत्तर
          मनुष्य में यौन सम्बन्धी उत्पन्न रोग
          इन्हें लैंगिक संचारित रोग (sexual transmitted disease, STD) कहते हैं। ये लैंगिक संसर्ग से या प्रजनन मार्ग से संचारित होते हैं। ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –
          1. क्लेमायइिओसिस (Chlamydiosis) – यह सर्वाधिक रूप में पाया जाने वाला जीवाणु जनित STD है। यह रोग क्लेमायडिआ ट्रेकोमेटिस (Chlamydia trachomatis) नामक जीवाणु से होता है। संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध बनाने से इस रोग का संचारण होता है। इसका उद्भवन काल (incubation period) एक सप्ताह का होता है।
          लक्षण (Symptoms) – इस रोग में पुरुष के शिश्न से गाढ़े मवाद जैसा स्राव होता है तथा मूत्र-त्याग में अत्यन्त पीड़ा होती है। स्त्रियों में इस रोग के कारण गर्भाशय-ग्रीवा, गर्भाशय व मूत्र नलिकाओं में प्रदाह (inflammation) होता है। उपचार न होने पर यह श्रोणि प्रदाह रोग (pelvic inflammatory disease) में परिवर्तित होकर बन्ध्यता का कारण बनता है।

          2. सुजाक (Gonorrhoea) – यह (ग्रामऋणी) जीवाणुवीय STD है जो डिप्लोकॉकस जीवाणु, नाइसेरिया गोनोरिया (Neisseria gonorrhoeae) द्वारा होता है। संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध बनाने से यह रोग फैलता है। इसका उद्भवन काल 2 से 10 दिन होता है।
          लक्षण (Symptoms) – इस रोग का प्रमुख लक्षण यूरोजेनीटल (urogenital) पथ की श्लेष्मा कला में अत्यधिक जलन होना है। रोगी को मूत्र-त्याग के समय जलन महसूस होती है। सुजाक के लक्षण पुरुष में अधिक प्रभावी होते हैं। सुजाक से अन्य विकार; जैसे–प्रमेय जन्य सन्धिवाह (gonorrheal arthritis), पौरुष ग्रंथ प्रवाह (prostatitis), मूत्राशय प्रवाह (cystitis) व स्त्रियों में जरायु प्रदाह (meritis), डिम्ब प्रणाली प्रदाह (sapingititis), बन्ध्यता आदि हो जाते हैं।

          3. एड्स (AIDS) – विषाणुओं से चार प्रमुख STDs होते हैं एड्स अर्थात् उपार्जित प्रतिरोध क्षमता अभाव सिन्ड्रोम (Acquired Immuno Deficiency Syndrome) एक विषाणु जनित रोग है। जो भयंकर रूप से फैल रहा है। एड्स रीट्रोवाइरस या HIV अथवा लिम्फोट्रापिक विषाणु टाइप III या HTLV III आदि नामक विषाणु से होता है। इस रोग का उद्भवन काल 9-30 माह है। रक्त आधान से सम्बन्धित व्यक्तियों में यह काल 4-14 माह होता है।
          लक्षण (Symptoms) – निरन्तर ज्वर, पेशियों में दर्द, रातों को पसीना आना तथा लसीका ग्रंथियों का चिरस्थायी विवर्धन, लिंग अथवा योनि से रिसाव, जननांगीय क्षेत्र में अल्सर या जाँघों में सूजन आदि इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

          4. जेनीटल हर्षीज Genital Herpes) – यह रोग टाइप-2 हपज सिम्पलेक्स विषाणु (type-2 herpes simplex virus) से उत्पन्न होता है। परगामी व्यक्ति से सम्भोग करने पर यह रोग फैलता है।
          लक्षण (Symptoms) – इस रोग के प्राथमिक लक्षण जननांगों पर छाले पड़ना व दर्द होना, ज्वर, मूत्र-त्याग में पीड़ा, लसीका ग्रन्थियों की सूजन आदि हैं। छालों के फूटने से संक्रमण तेजी से फैलता है।

          विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

          प्रश्न 1.
          जनसंख्या वृद्धि पर कैसे नियन्त्रण किया जा सकता है? परिवार नियोजन की वैज्ञानिक विधियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
          या
          जन्म नियन्त्रण के लिए प्रयोग होने वाले विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।

          उत्तर
          जनसंख्या नियन्त्रण
          भारत में तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाये जा सकते हैं –
          1. शिक्षा की सुविधाओं का विस्तार – शिक्षित व्यक्ति प्रायः आय एवं व्यय के सिद्धान्त से भली-भाँति परिचित होने के कारण सीमित परिवार के महत्त्व को समझते हैं। यही कारण है कि शिक्षित परिवार सामान्यतः सीमित ही होते हैं।

          2. बच्चों की संख्या का निर्धारण – जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए प्रति परिवार बच्चों की संख्या निर्धारित की जानी चाहिए। इसके लिए सरकारी स्तर पर कानून में संशोधन किये जाने चाहिए और यदि सम्भव न हो तो सीमित परिवार वाले व्यक्तियों को ऐसे प्रोत्साहन दिये जाने चाहिए जिनसे कि जन-सामान्य में इसके प्रति रुचि उत्पन्न हो सके। परिवार में बच्चों की संख्या निश्चित करके अनियन्त्रित ढंग से बढ़ रही जनसंख्या पर तुरन्त प्रभावी रोक लगायी जा सकती है।

          3. विवाह योग्य आयु में वृद्धि – विवाह का जनन से सीधा सम्बन्ध है; अतः विवाह योग्य आयु में वृद्धि करने से प्रजनन दर में कमी लायी जा सकती है। वर्तमान समय में यह स्त्रियों के लिए कम-से-कम 18 वर्ष तथा पुरुषों के लिए कम-से-कम 21 वर्ष है। इसे अब क्रमशः 23 वर्ष और 25 वर्ष कर देना चाहिए। इसके साथ-साथ देर से विवाह करने वाले स्त्रियों एवं पुरुषों को प्रोत्साहन पुरस्कार देना भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

          4. गर्भपात को ऐच्छिक एवं सुविधापूर्ण बनाना – हमारे देश में गर्भपात को प्राचीन समय से ही घृणित माना गया है। गर्भपात की सुविधा को शीघ्र ही राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध कराना जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए बहुत आवश्यक है। अनावश्यक गर्भ से छुटकारा पाकर स्त्रियाँ अपने परिवार में बच्चों की संख्या सीमित रख सकती हैं।

          5. समन्वित ग्रामीण विकास एवं परिवार कल्याण कार्यक्रमों में तालमेल – सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक विकास योजनाएँ चला रखी हैं। यदि इनके साथ परिवार कल्याण के कार्यक्रमों को भी जोड़ दिया जाये तथा इन्हें सफलतापूर्वक प्रतिपादित करने के लिए विकास खण्डों के स्तर पर आर्थिक सहायता एवं अन्य प्रोत्साहन दिये जाएँ तो इन कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार को सन्तति निरोध के साधन व दवाएँ निःशुल्क बॉटनी चाहिए तथा नसबन्दी ऑपरेशन के लिए शिविर आयोजित कराने चाहिए।

          6. कृषि एवं उद्योगों के उत्पादन में वृद्धि – ग्रामीण क्षेत्रों में प्राय: यह सोचा जाता है कि कृषि के लिए अधिकाधिक जनशक्ति आवश्यक है, जिसके फलस्वरूप इन क्षेत्रों में सीमित परिवार की विचारधारा ठीक से नहीं पनप पायी है। यदि ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक कृषि यन्त्रों एवं तकनीकों को अधिकाधिक उपलब्ध कराया जाये तो कम जनशक्ति द्वारा ही कृषि की जा सकेगी तथा सीमित परिवार के प्रति लोगों में रुचि उत्पन्न होगी। उद्योगों के उत्पादन में वृद्धि से भी बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता मिलेगी, रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी तथा आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

          7. सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में वृद्धि एवं सुधार – सरकार को सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों; जैसे–पेंशन, ग्रेच्युटी एवं सेवानिवृत्त होने पर मिलने वाली सुविधाएँ आदि में इतनी वृद्धि करनी चाहिए कि सेवा-निवृत्त होने पर कर्मचारी को अपने परिवार पर बोझ बनकर न रहना पड़े। इससे आम व्यक्ति ‘सन्तान बुढ़ापे की लाठी’ जैसी विचारधारा से मुक्ति पा सकेंगे तथा उनमें सीमित परिवार के प्रति रुचि बढ़ेगी।

          8. परिवार कल्याण कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी बनाया जाये – जनसंख्या वृद्धि की समस्या का वास्तविक निदान जनसंख्या को नियोजित एवं नियन्त्रित करने में निहित है। इसके लिए निम्नलिखित बातों पर सरकार को ध्यान देना चाहिए –

          1. आकाशवाणी एवं दूरदर्शन जैसे संचार माध्यमों द्वारा परिवार कल्याण के कार्यक्रमों को अधिकाधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए।
          2. बन्ध्याकरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए चल चिकित्सालयों, चिकित्सा शिविरों एवं अन्य आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था व्यापक स्तर पर की जानी चाहिए।
          3. सन्तति निरोध सम्बन्धी विभिन्न सामग्री को नि:शुल्क अथवा अत्यधिक सस्ते मूल्यों पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
          4. बन्ध्याकरण के लिए आवश्यक योग्य चिकित्सकों एवं अन्य कर्मचारियों को समय-समय पर ग्रामीण क्षेत्रों में भेजा जाना चाहिए और यदि सम्भव हो तो शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात् चिकित्सकों को एक या दो वर्ष के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा करने के लिए बाध्य किया जाए।

          9. सकारात्मक और निषेधात्मक प्रेरकों पर आधारित विवेकपूर्ण जनसंख्या नीति – जनसंख्या को नियन्त्रित रखने के लिए विवेकपूर्ण नीति को अपनाया जाना तथा समय-समय पर उसका पुनर्मूल्यांकन कर उसमें आवश्यक संशोधन करते रहना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।

          10. विदेशियों के आगमन पर रोक – भारत में प्रतिवर्ष अनेकानेक विदेशी आकर बस जाते हैं। प्राय: बांग्लादेश और नेपाल से अनेक लोग आकर भारत में बस गये हैं। सरकार को विदेशी लोगों के आगमन को प्रतिबन्धित कर देना चाहिए, साथ ही अनाधिकृत रूप से भारत में आकर बस गये विदेशियों को हटाने की व्यवस्था करनी चाहिए।

          11. जनसंख्या के धार्मिक आयाम का अध्ययन एवं वस्तुनिष्ठ निर्णय – भारत में जनसंख्या वृद्धि के मजहबी आयाम को धर्म निरपेक्षता के नाम में अनदेखा किया जाता है। अब वह समय आ गया है जब सभी धर्मावलम्बियों, राजनीतिज्ञों एवं आम व्यक्तियों को कठोर निर्णय लेने ही चाहिए।

          परिवार नियोजन की विधियाँ/गर्भ निरोधक
          जनसंख्या को सीमित रखने के लिए विभिन्न प्रकार से परिवारों में सन्तानोत्पत्ति की दर को नियन्त्रित करके मानव जनसंख्या की वृद्धि को कम किया जा सकता है। इस प्रकार परिवार के आकार को सीमित रखना ही परिवार नियोजन है। इसके लिए कई विधियाँ अपनायी जाती हैं। इन्हें निम्नलिखित श्रेणियों में बाँटा गया है –
          1. बन्ध्याकरण या नसबन्दी (Sterilization) – इस प्रक्रिया को वैसेक्टॉमी (vasectomy) भी कहते हैं। इस प्रक्रिया में पुरुषों में वृषणकोष के ऊपरी भाग में शुक्रवाहिकाओं को काटकर इनके दोनों कटे सिरों को बाँध देते हैं। स्त्रियों में इसे सैल्पिजेक्टोमी या ट्युबेक्टोमी (salpingectomy or tubectomy) कहते हैं।

          2. कण्डोम का प्रयोग (Use of Condom) – यह एक पतली झिल्ली होती है। पुरुष सम्भोग के समय इसे लिंग पर चढ़ा लेता है। इस प्रकार, वीर्य स्त्री की योनि में स्खलित न होकर कण्डोम
          में ही रह जाता है।

          3. गर्भ निरोधक गोलियाँ (Contraceptive Pills) – इसमें ऐसे हॉर्मोन्स की गोलियाँ होती हैं जो युग्मानुजनन तथा गर्भधारण में हस्तक्षेप करते हैं। इन हॉर्मोन्स के कारण पिट्यूटरी ग्रन्थि के
          हॉर्मोन्स (FSH तथा LH) का स्रावण बहुत घट जाता है, जो अण्डाशयों को सक्रिय करते हैं।

          4. अन्तः गर्भाशयी यन्त्र (Intrauterine Device = IUD) – इस विधि में प्लास्टिक या ताँबे या स्टील की कोई युक्ति (device) गर्भाशय में रोप दी जाती है। जितने समय तक यह युक्ति
          गर्भाशय में रहती है, भ्रूण का रोपण गर्भाशय में नहीं हो पाती।

          5. बाधा विधियाँ (Barrier Methods) – ये विधियाँ शुक्राणुओं को गर्भाशय में पहुँचने से रोकती हैं। इन विधियों में योनिधानी (vaginal pouch), तनुपट (diaphragm) तथा ग्रीवा टोपी (cervical cap) का प्रयोग किया जाता है।

          एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 जीव विज्ञान