NCERT Solutions Class 12 जीव विज्ञान Chapter-12 (जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग)

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NCERT Solutions Class 12 जीव विज्ञान 12 वीं कक्षा से Chapter-12 (जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग) के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी जीव विज्ञान के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
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एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

Class 12 जीव विज्ञान

पाठ-12 (जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बीटी (Bt) आविष के रवे कुछ जीवाणुओं द्वारा बनाये जाते हैं, लेकिन जीवाणु स्वयं को नहीं मारते हैं; क्योंकि –
(क) जीवाणु आविष के प्रति प्रतिरोधी हैं।
(ख) आविष अपरिपक्व है।
(ग) आविष निष्क्रिय होता है।
(घ) आविष जीवाणु की विशेष थैली में मिलता है।

उत्तर
(ग) आविष निष्क्रिय होता है।

प्रश्न 2.
पारजीनी जीवाणु क्या है? किसी एक उदाहरण द्वारा सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर
जब किसी इच्छित लक्षण वाली जीन (gene) को जीवाणु के जीनोम में प्रविष्ट कराकर कोई उत्पादन प्राप्त किया जाता है तो विदेशी जीन युक्त जीवाणु को पारजीनी जीवाणु (transgenic bacteria) कहते हैं।

उदाहरण – मानव इन्सुलिन आनुवंशिक प्रौद्योगिकी के द्वारा तैयार किया गया है। इन्सुलिन दो छोटी पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाओं का बना होता है, श्रृंखला ‘ए’ व श्रृंखला ‘बी’ जो आपस में डाइसल्फाइड बन्धों द्वारा जुड़ी होती हैं। मानव इन्सुलिन में प्राक् हॉर्मोन संश्लेषित होता है जिसमें पेप्टाइड-सी’ होता है। यह पेप्टाइड ‘सी’ परिपक्व इन्सुलिन में नहीं पाया जाता, यह परिपक्वता के समय इन्सुलिन से पृथक् हो जाता है। सन् 1983 में मानव इन्सुलिन की श्रृंखला ‘ए’ और ‘बी’ के अनुरूप दो डी०एन०ए० अनुक्रमों को तैयार किया गया जिसे ई० कोलाई के प्लाज्मिड (plasmid) में प्रवेश कराकर इन्सुलिन श्रृंखलाओं का उत्पादन किया गया। इन अलग-अलग निर्मित श्रृंखलाओं ‘ए’ और ‘बी’ को निकालकर डाइसल्फाइड बन्ध (disulphide bonds) द्वारा आपस में संयोजित कर मानव इन्सुलिन को तैयार किया गया। इन्सुलिन डायबिटीज को नियन्त्रित करने के लिए एक उपयोगी औषधि है। इन्सुलिन के जीन की क्लोनिंग करने का श्रेय भारतीय मूल के डॉ० शरण नारंग (Dr. Saran Narang) को जाता है। इन्होंने अपना प्रयोग कनाडा के ओटावा (Ottava) में किया था।
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प्रश्न 3.
आनुवंशिक रूपांतरित फसलों के उत्पादन के लाभ व हानि का तुलनात्मक विभेद कीजिए।

उत्तर
लाभ

  1. फसली पौधे आनुवंशिक रूपांतरण के द्वारा उत्पादकता की दर को बढ़ाते हैं।
  2. आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पौधे प्रतिकूल परिस्थितियों; जैसे- सूखे, अत्यधिक ठण्ड को सहने की क्षमता विकसित करते हैं।
  3. आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पौधों में विषाणु प्रतिरोधकता व हानिकारक कीट से प्रतिरोधकता | का गुण विकसित किया जाता है।
  4. फसली पौधों में आनुवंशिक रूपांतरण करके खनिज लवण को अवशोषित करने व प्रयुक्त करने के लिए पौधे विकसित किये गये हैं।
  5. आनुवंशिक रूपान्तरण से पौधे विकसित किए गये ताकि मण्ड व अन्य व्यावसायिक उत्पाद की उच्च मात्रा प्राप्त हो सके।
  6. आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पौधों की रासायनिक पीड़कनाशी पर निर्भरता कम होती है।
  7. आनुवंशिक रूपान्तरित फसलें कटाई के पश्चात् होने वाले नुकसान को कम करने में सहायक होती हैं।

हानि

  1. अपतृणनाशी जीन पौधों में प्रविष्ट कराये जाते हैं, इनसे फसली पौधों में से कोई भी स्वयं सुपर अपतृण बन सकती है।
  2. आनुवंशिक रूपांतरित फसलें लोगों में एलर्जी उत्पन्न कर सकती हैं।
  3. आनुवंशिक रूपांतरित फसलें बहुत महँगी पड़ती हैं।
  4. ऐसी फसलें काटने की प्रक्रिया में बहुत-से पौधों के अवशेष भूमि में छोड़ दिये जाते हैं, जो जैविक वायुमण्डल को नुकसान पहुंचाते हैं।
  5. इस विधि द्वारा उत्पादित कुछ फसलों में बीज पैदा करने की क्षमता का क्षय हो सकता है।

प्रश्न 4.
क्राई प्रोटीन्स क्या हैं? उस जीव का नाम बताइए जो इसे पैदा करता है। मनुष्य इस प्रोटीन को अपने फायदे के लिए कैसे उपयोग में लाता है?

उत्तर
क्राई प्रोटीन एक विषाक्त प्रोटीन है जो cry gene द्वारा कोड की जाती है। क्राई प्रोटीन्स कई प्रकार के होते हैं, जैसे- जो प्रोटीन्स जीन क्राई 1 ऐ०सी० वे क्राई 2 ए० बी० द्वारा कूटबद्ध होते हैं, वे कपास के मुकुल कृमि को नियन्त्रित करते हैं, जबकि क्राई 1 ए० बी० मक्का छेदक को नियन्त्रित करता है।

क्राई प्रोटीन बेसिलस थुरिनजिएंसिस (Bt) द्वारा बनता है। इसके निर्माण को नियन्त्रित करने वाले जीन को क्राई जीन कहते हैं, जैसे—क्राई 1 ए० वी०, क्राई 1 ए० सी०, क्राई 11 ए० वी०। यह जीवाणु प्रोटीन को एन्डोटॉक्सिन के रूप में प्रोटॉक्सिन क्रिस्टलीय अवस्था में उत्पन्न करता है।

दो क्राई (cry) जीन कॉटन (Bt कॉटन) में डाले जाते हैं, जबकि एक कॉर्न (Bt कॉर्न) में डाला जाता है। जिसके परिणामस्वरूप Bt कॉटन बॉलवार्म के लिए प्रतिरोधक बन जाता है, जबकि Bt कॉर्न प्रतिरोधकता-कॉर्नबोर के लिये विकसित करता है।

प्रश्न 5.
जीन चिकित्सा क्या है? एडीनोसीन डिएमीनेज (ADA) की कमी का उदाहरण देते हुए इसका सचित्र वर्णन कीजिए। (2018)

उत्तर
“जीन चिकित्सा में मानव में उपस्थित दोषपूर्ण जीन को स्वस्थ्य व क्रियाशील जीन से बदला जाता है।
जीन चिकित्सा द्वारा किसी बच्चे या भ्रूण में चिह्नित किए गये जीन के दोषों को सुधार किया जा सकता है। इसमें रोग के उपचार के लिए जीन को व्यक्ति की कोशिकाओं या ऊतकों में प्रवेश कराया जाता है। इस विधि में आनुवंशिक दोष वाली कोशिकाओं के उपचार हेतु सामान्य जीन को व्यक्ति या भ्रूण में स्थानान्तरित करते हैं जो निष्क्रिय जीन की क्षतिपूर्ति कर उसके कार्यों को सम्पन्न करते हैं।
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जीन चिकित्सा का पहला प्रयोग सन् 1990 में एक चार वर्षीय लड़की में एडीनोसीन डिएमिनेज (ADA) की कमी को दूर करने के लिए किया गया था। यह एंजाइम प्रतिरक्षातंत्र में कार्य के लिए अति आवश्यक होता है। कुछ बच्चों में ADA की कमी को उपचार अस्थिमज्जा में प्रत्यारोपण से होता है। जीन चिकित्सा में सर्वप्रथम रोगी के रुधिर से लसीकाणु को निकालकर शरीर से बाहर संवर्धन किया। जाता है।

सक्रिय ADA का सी०डीएनए (cDNA) संवाहक द्वारा लसीकाणु में प्रविष्ट कराकर लसीकाणु को रोगी के शरीर में वापस पहुँचा दिया जाता है। ये कोशिकाएँ मृतकाय होती हैं। इसलिए आनुवंशिक निर्मित लसीकाणु को समय-समय पर रोगी के शरीर से अलग करने की आवश्यकता होती है। यदि मज्जा कोशिकाओं से विलगित अच्छे जीन्स को प्रारंभिक भ्रूणीय अवस्था की कोशिकाओं से उत्पादित ADA में प्रवेश करा दिया जाए तो यह एक स्थाई उपचार हो सकता है।

प्रश्न 6.
ई० कोलाई जैसे जीवाणु में मानव जीन की क्लोनिंग एवं अभिव्यक्ति के प्रायोगिक चरणों का आरेखीय निरूपण प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर
पुनर्योगज डी०एन०ए० तकनीक
DNA में किसी प्रकार के हेर-फेर या एक जीव के DNA में दूसरे जीव के DNA को जोड़ना, DNA पुनर्योगज (DNA recombination) कहलाता है। इस तकनीक को आनुवंशिक इंजीनियरिंग या DNA इंजीनियरिंग भी कहते हैं।

इस तकनीक द्वारा DNA खण्डों के नए क्रम तैयार किए जाते हैं। प्रकृति में यह कार्य गुणसूत्रों में विनिमय (crossing over) प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न होता है। DNA पुनर्योगज तकनीक द्वारा उच्च जन्तु और पौधों के DNA के इच्छित भागों की अनेकों प्रतिकृतियाँ (copies) तैयार की जाती हैं। इस प्रक्रिया को प्रायः जीवाणुओं में सम्पन्न कराया जाता है।
पुनर्योगज DNA प्राप्त करने के लिए निम्न तीन विधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं –

(i) DNA की दो शृंखलाओं के अन्तिम छोर पर नई DNA श्रृंखलाएँ जोड़कर (By joining new DNA chains at the end point of two chains of DNA) – यदि DNA के सिरे पर कुछ क्षारक (जैसे- CCCCC) जोड़ दें तथा दूसरे DNA के सिरे पर इसके संयुग्मी क्षारक (GGGGG) जोड़ दें और फिर इन दोनों प्रकार के DNA को मिलाएँ तो नई श्रृंखला आपस में हाइड्रोजन बन्ध बनाकर दो भिन्न DNA अणुओं को संयुक्त कर देगी। इस कार्य के लिए विशेष एन्जाइम टर्मिनल ट्रान्सफरेज (terminal transferase) का उपयोग किया जाता है। अनजुड़े स्थानों को डी०एन०ए० लाइगेज (DNA ligase) नामक एन्जाइम द्वारा जोड़ देते हैं।
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(ii) प्रतिबन्ध एन्जाइम्स की सहायता से (With the help of restriction enzymes) – इस विधि में संयुग्मी क्षारकों के बीच हाइड्रोजन बन्ध बनाकर संकर DNA का निर्माण किया जाता है। इस विधि में एक विशेष एन्जाइम, प्रतिबन्ध एण्डोन्यूक्लिएज टाइप-II एन्जाइम (restriction endonuclease enzyme) का उपयोग किया जाता है। ये एन्जाइम चाकू की तरह कार्य करते हैं तथा DNA श्रृंखला को विशिष्ट स्थानों पर इस प्रकार से काटते हैं कि वांछित जीन्स वाले खण्ड प्राप्त हो सकें। अब तक लगभग 350 प्रकार के प्रतिबन्ध एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम ज्ञात हैं जो DNA अणु में 100 से अधिक अभिज्ञान स्थलों (recognition sites) को पहचानते हैं। पृथक् DNA खण्ड को लाइगेज एन्जाइम द्वारा आवश्यकतानुसार DNA खण्ड से जोड़कर पुनर्योगज DNA अणु के रूप में (संवाहक वेक्टर) किसी पोषद कोशिका में प्रवेश कराकर इसकी असंख्य प्रतियाँ प्राप्त की जा सकती हैं।

जैसे- ई० कोलाई प्लाज्मिड संवाहक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इस विधि से दो विभिन्न जीवों; विभिन्न प्रकार के पौधों आदि के मध्य संकरण की सम्भावना बढ़ गई है। इतना ही नहीं, पौधों और जन्तुओं में संकरण की सम्भावना भी बढ़ गई है। संकरित जीन में दोनों ही जीवों के गुण उपस्थित होंगे।
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(iii) क्लोनिंग (Cloning)—यह विधि सबसे सरल तथा उपयोगी है। शरीर में प्रत्येक पदार्थ के संश्लेषण के लिए कोई निश्चित जीन उत्तरदायी होता है। यदि इस विशिष्ट जीन को प्लाज्मिड के साथ संकरित करा दिया जाए और इस संकरित DNA को पुनः जीवाणु की कोशिका में स्थापित कर उपयुक्त संवर्धन माध्यम में उगने दिया जाए तो जीवाणु में वह जीन उसी पदार्थ को संश्लेषण करता है जो कि वह मूल शरीर में करता था। इस समस्त प्रक्रम को क्लोनिंग कहते हैं। पोषी जीवाणु के लिए ई० कोलाई का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 7.
तेल के रसायनशास्त्र तथा r-DNA तकनीक के बारे में आपको जितना भी ज्ञान प्राप्त है, उसके आधार पर बीजों से तेल हाइड्रोकार्बन हटाने की कोई एक विधि सुझाइए।

उत्तर
ग्लिसरॉल के एक अणु के साथ तीन वसीय अम्लों के संघनन द्वारा तेल बनता है। वसीय अम्ल एक एंजाइम संकर द्वारा बनते हैं जिसे वसीय अम्ल सिन्थेटेज कहते हैं। एक या ज्यादा जीन बनाने वाले वसीय अम्ल की निष्क्रियता वसीय अम्लों का संश्लेषण रोक सकती है। प्लेवट् टोमेटो में एंजाइम पॉलीग्लेक्टोमूटेनेज की निष्क्रियता से जुड़ा होता है। यह बिना तेल वाले बीज उत्पन्न करेगा।

प्रश्न 8.
इण्टरनेट से पता लगाइए कि गोल्डन राइस (गोल्डन धान) क्या है?

उत्तर
गोल्डन राइस (ओराइजा सैटाइवा) जैव प्रौद्योगिकी द्वारा उत्पन्न चावल की एक किस्म है। इस किस्म के चावल में बीटा कैरोटीन (प्रो-विटामिन A) पाया जाता है जो कि जैव संश्लेषित है। सन् 2005 में गोल्डन राइस-2 की एक और किस्म तैयार की गई जिसमें 23 गुना अधिक बीटा केरोटीन होता है।
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प्रश्न 9.
क्या हमारे रक्त में प्रोटिओजेज तथा न्यूक्लिएजेज हैं?

उत्तर
नहीं।

प्रश्न 10.
इण्टरनेट से पता लगाइए कि मुखीय सक्रिय औषध प्रोटीन को किस प्रकार बनाएँगे? इस कार्य में आने वाली मुख्य समस्याओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर
मुखीय औषध प्रोटीन के निर्माण में ड्यूटेरियम एक्सचेंज मास स्पेक्ट्रोमीटरी (DXMS : Deuterium Exchange Mass Spectrometry) तकनीक का प्रयोग किया जाता है। यह तकनीक प्रोटीन संरचना और उसके प्रकार्यों का अध्ययन करने के लिए एक शक्तिशाली माध्यम है। इस कार्य में आने वाली मुख्य समस्याएँ श्रम और समय की हैं। यह एक जटिल प्रक्रिया होती है। अत: मुखीय प्रोटीन्स का निर्माण कम ही किया जा रहा है।

जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करके जीवाणुओं की सहायता से पुनर्योगज चिकित्सीय औषधि मानव इन्सुलिन (ह्यूमुलिन) प्राप्त की गई है। यह एक औषध प्रोटीन है। निकट भविष्य में मानव इन्सुलिन मधुमेह रोग से पीड़ित लोगों को मुख से दिया जा सकेगा।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
Bt टॉक्सिन है – (2014)
(क) अन्त: कोशिकीय लिपिड
(ख) अन्तः कोशिकीय क्रिस्टलित प्रोटीन
(ग) बाह्य कोशिकीय क्रिस्टलित प्रोटीन
(घ) लिपिड

उत्तर
(ग) बाह्य कोशिकीय क्रिस्टलित प्रोटीन

प्रश्न 2.
पौधों में अपतृणनाशी प्रतिरोधक जीन होता है – (2014)
(क) Ct
(ख) Mt
(ग) Bt
(घ) Gst

उत्तर
(घ) Gst

प्रश्न 3.
विडाल परीक्षण किसके निदान से संबंधित है? (2014)
(क) मलेरिया
(ख) कोलेरा
(ग) टाइफॉइड
(घ) पीत ज्वर

उत्तर
(ग) टाइफॉइड

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रकृति में समजात डी०एन०ए० का पुनर्योजन कहाँ और कैसे होता है? लिखिए।

उत्तर
प्रकृति में समजात डी०एन०ए० का पुनर्योजन डी०एन०ए० के समजात अणुओं या इन अणुओं के समजात खण्डों के बीच होता है। ये निम्नलिखित प्रक्रियाओं द्वारा होता है –

  1. पारगमने
  2. संयुग्मन
  3. रूपान्तरण
  4. पारक्रमण
  5. स्थान परिवर्तन।

प्रश्न 2.
असमजात डी०एन०ए० पुनर्संयोजन को परिभाषित कीजिए तथा स्थान-परिवर्ती (ट्रांसपोसॉन) या जम्पिंग जीन्स को समझाइए।

उत्तर

  1. असमजात डी0एन0ए0 पुनर्संयोजन – इस प्रकार के पुनर्संयोजन में एक गुणसूत्र का कोई खण्ड इससे पृथक् होकर किसी अन्य असमजात गुणसूत्र से जुड़ता है।
  2. स्थान-परिवर्ती या जम्पिंग जीन्स – कोशिकाओं में स्थित DNA अणुओं के ऐसे जीनरूपी खण्ड जो अणु के एक स्थान से हटकर अन्य स्थान पर जुड़ते रहते हैं और इस प्रकार DNA अणुओं का पुनसँयोजन करते रहते हैं, स्थान-परिवर्ती या जम्पिंग जीन्स कहलाते हैं।

प्रश्न 3.
पारजीनी जन्तु से आप क्या समझते हैं? (2014, 16)
या
‘पारजीनी जन्तु क्या हैं? पारजीनी जन्तुओं के उत्पादन की एक मुख्य विधि का उल्लेख कीजिए। (2017)

उत्तर
ऐसे जन्तु जिनके DNA में परिचालन विधि द्वारा एक अतिरिक्त जीन व्यवस्थित कर दिया जाता है तथा जो अपना लक्षण भी व्यक्त करता है, पारजीनी जन्तु कहलाते हैं।
पारजीनी जन्तुओं को रिकॉम्बीनेन्ट DNA तकनीक द्वारा विजातीय जीन को प्रवेश कराकर आनुवंशिक रूप से रूपान्तरित किया जाता है।

प्रश्न 4.
बायोपाइरेसी किसे कहते हैं? (2014, 15, 16, 17, 18)

उत्तर
मल्टीनेशनल कम्पनियों व दूसरे संगठनों द्वारा किसी राष्ट्र या उससे सम्बन्धित लोगों से बिना व्यवस्थित अनुमोदन वे क्षतिपूरक के जैव संसाधनों का उपयोग करना बायोपाइरेसी कहलाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्योगज डी०एन०ए० तकनीकी की सहायता से इन्सुलिन का उत्पादन हम कैसे कर सकते हैं? (2018)
या
डी०एन०ए० पुनर्योगज तकनीक का मानव हित में उपयोग बताइए। (2014, 15, 16, 17)

उत्तर
इन्सुलिन एक प्रोटीन है जिसके अमीनों अम्ल अनुक्रम (प्राथमिक संरचना) के बारे में सर्वप्रथम फ्रेडरिक सेंगर, 1954 ने पता लगाया। यह प्रोटीन दो पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं का बना होता है-A श्रृंखला (A chain) तथा B श्रृंखला (B chain), जो आपस में डाइसल्फाइड बंधों द्वारा जुड़ी होती हैं। A श्रृंखला 21 अमीनो अम्ल अवशेष से जबकि B श्रृंखला 30 अमीनो अम्ल अवशेष से बनी होती है। A-श्रृंखला में एक N-छोर ग्लाइसिन (GLY) एवं एक C-छोर होता है जबकि B-श्रृंखला में एक N-छोर फिनाइल एलेनीन (Phe) एवं एक C-छोर एलेनीन (Ala) होता है। दो सल्फाइड बंध (-S-S-) A श्रृंखला की 7वीं तथा 20वीं स्थिति पर तथा B श्रृंखला की 7वीं तथा 19वीं स्थिति पर सिस्टीन अमीनो अम्लों के बीच स्थित होते हैं। एक तीसरा डाइसल्फाइड बंध (-S-S-) A श्रृंखला की 6वीं एवं 11 वीं स्थिति पर सिस्टीन (cys) अमीनो अम्लों के बीच भी स्थित होता है।

इन्सुलिन की दोनों श्रृंखलाओं का जैव संश्लेषण (bio-synthesis) एकल पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला प्रोइन्सुलिन (proinsulin) के रूप में होता है जिसमें B श्रृंखलाएँ 33 अमीनो अम्लों के संयोजी पॉलीपेप्टाइड द्वारा अन्तरआबंध होती हैं।
प्रोइन्सुलिन के संश्लेषण का नियंत्रण क्रोमोसोम संख्या 11 की छोटी भुजा पर स्थित जीन द्वारा होता है। इसकी प्रोटियोलाइटिक संसाधन द्वारा इन्सुलिन के रूप में उत्पत्ति होती है।

आनुवंशिकतः अभियांत्रिक इन्सुलिन (Genetically Engineered Insulin) – वयस्कों में होने वाले मधुमेह का नियंत्रण निश्चित समयांतराल पर इन्सुलिन लेने से ही संभव है।
मानव सहित स्तनधारियों में इन्सुलिन प्राक्-हार्मोन (pro – hormone) के रूप में संश्लेषित होता है। जिसमें एक अतिरिक्त फैलाव होता है जिसे पेप्टाइड ‘सी’ (peptide – C) कहते हैं। संसाधन (processing) से बने इन्सुलीन में यह ‘C’ पेप्टाइड नहीं होता है। क्योंकि परिपक्वता के समय यह इन्सुलिन से अलग हो जाता है। पुनर्योगज DNA तकनीकियों का प्रयोग करते हुए इन्सुलिन के उत्पादन में मुख्य चुनौती यह है कि इन्सुलिन को एकत्रित कर परिपक्व रूप में तैयार किया जाये।

सन् 1983 में एली लिली (Eli Lilly) नामक एक अमेरिकी कम्पनी ने दो DNA अनुक्रमों को तैयार किया जो मानव इन्सुलिन की श्रृंखला A तथा B के अनुरूप होते हैं, जिसे ईश्चेरिचिया कोलाई (E.coli) के प्लास्मिड में प्रवेश कराया जाता है। अब E. coli को संवर्धन माध्यम में वृद्धि कराते हैं। यह अवश्य ध्यान दिया जाता है कि संवर्धन माध्यम (culture medium) में इन्सुलिन बनाने वाले सभी अमीनो अम्ल अवश्य हों। E.coli द्वारा दो पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं (A और B) का संश्लेषण अलग-अलग होता है।

इन अलग-अलग निर्मित श्रृंखलाओं में A और B को निकालकर डाइसल्फाइड बंध बनाकर आपस में संयोजित कर मानव इन्सुलिन का निर्माण किया गया है। यह इन्सुलिन मानव इन्सुलिन से अत्यधिक समानता रखता है; अतः इसे झूमेलिन (humalin) कहा जाता है। इसको मधुमेह रोगी द्वारा लिए जाने पर कोई साइड-इफेक्ट या एलर्जी भी नहीं होती है।


एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 जीव विज्ञान