NCERT Solutions Class 12 समाजशास्त्र (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter-5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

NCERT Solutions Class 12 समाजशास्त्र (भारत में  सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter-5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

NCERT Solutions Class 12 समाजशास्त्र (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) 12 वीं कक्षा से Chapter-5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी  समाजशास्त्र Sociology के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 12 समाजशास्त्र (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter-5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास


CBSE एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

Class 12 समाजशास्त्र Sociology 

पाठ-5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

1. अपने आसपास वाले किसी भी व्यवसाय को चुनिए और उसका वर्णन निम्नलिखित पंक्तियों में दीजिए:

(क) कार्य शक्ति का सामाजिक संगठन-जाति, लिंग, आयु, क्षेत्र।

(ख) मजदूर प्रक्रिया काम किस तरह से किया जाता है।

(ग) वेतन तथा अन्य सुविधाएँ

(घ) कार्यावस्था - सुरक्षा, आराम का समय, कार्य के घंटे इत्यादि।

उत्तर-

1. सरकार ने1990 के दशक से उदारीकरण की नीति को अपनाया। निजी कंपनियों, विशेषत: विदेशी कंपनियाँ उन क्षेत्रों में निवेश करने के लिए आगे आईं, जो पहले सरकार के लिए आरक्षित थीं।

2. सामान्यत: लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। ऐसा विज्ञापन अथवा रोजगार कार्यालयों के द्वारा संभव हुआ। औद्योगिक क्षेत्रों में पुरुष तथा महिलाएँ दोनों ही काम करते हैं | जो लोग उद्योगों में काम करते हैं, वे वेतन के अतिरिक्त भी कुछ लाभ; जैसे-चिकित्सा भत्ता ,मकान भत्ता आदि प्राप्त करते हैं।

3. कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों की नियुक्ति की प्रक्रिया में परिवर्तन हुआ। पिछले कई वर्षों से श्रमिकों का काम ठेकेदारों के मार्फत प्राप्त होता था | कानपुर की कपड़ा मिल में लोग भी कामगार होते थे | वे कामगारों के क्षेत्र तथा समुदाय के लोग होते थे। परन्तु मालिकों के कृपापात्र होने के कारण वे कामगारों पर अपना वर्चस्व दिखाते थे।

4. मिस्त्री, कामगारों पर सामाजिक दबाव भी बनाते थे। अब इन लोगों । महत्व खत्म हो चुका है। अब प्रबंधन तथा श्रम संगठनों की सहायता से कामगारों की नियुक्ति होती है।

5. कामगारों की यह भी इच्छा रहती है कि वह अपने बाद अपने बच्चों को काम पर लगवा दें। बहुत सारी फैक्टरियाँ स्थायी कर्मचारियों के स्थान पर बदले कर्मचारियों की नियुक्ति करती हैं। बहुत सारे बदली कर्मचारी वस्तुत: कई वर्षों से एक ही कंपनी में काम करते हैं, किंतु फिर भी उन्हें, स्थायी नहीं किया जाता। इसे संगठित क्षेत्र में अनुबंध का काम कहते हैं।

6. निर्माण क्षेत्रों में तथा ईंट भट्टा उद्योगों में ठेकेदारी को देखा जा सकता है। ठेकेदार गाँव में जाकर वहाँ के लोगों से काम के बारे में पूछते हैं। वे उन्हें कुछ पैसे उधार दे देते हैं। इस उधार दिए गए पैसे में काम करने के स्थान पर आने-जाने का परिवहन व्यय भी शामिल होता हैं।इन उधार दिए गए पैसों को अग्रिम मजदूरी के तौर पर माना जाता हैं तथा जब तक इस उधार को चुकता नहीं कर दिया जाता, तब तक मज़दूरी नहीं दी जाती है। पहले भूस्वामियों के द्वारा कृषि श्रमिकों को ऋण के जाल में फँसाया जाता था। अब औद्योगिक क्षेत्र में अस्थायी मजदूर के रूप में वे पुन: ऋण के जाल में फँस गए। वे ठेकेदारों से किसी अन्य सामाजिक सरोकारों से नहीं जुड़े होते हैं। इस अर्थ में वे औद्योगिक समाज में ज्यादा स्वच्छंद हैं। वे अपना अनुबंध तोड़ सकते हैं तथा अपना रोजगार ढूँढ़ सकते हैं। कभी-कभी तो पूरा परिवार ही काम की तलाश में बाहर चला जाता है तथा बच्चे अपने माता-पिता ही मदद करते हैं।

7. आज औद्योगिक क्षेत्र में 15-60 वर्ष तक के सभी जाति तथा लिंगों के लोग काम करते हैं। देश के कुछ हिस्सों में दूसरे-क्षेत्रों की तुलना में अधिक उद्योग हैं।

8. श्रमिकों को उद्योगों में उनकी योग्यता, अनुभव, उम्र तथा कार्य की जोखिम के दृष्टिगत कार्य का समय भिन्न-भिन्न निर्धारित होता है। अनुबंध की सेवा-शर्तों के अधीन ठेका श्रमिकों को एक निश्चित मज़दूरी दी जाती है। असंगठित क्षेत्रों की तुलना में संगठित क्षेत्र में वेतन तथा अन्य भत्तें ज्यादा मिलते हैं।
9. औद्योगिक श्रमिकों की कार्य-दशाओं में सुधार के लिए भारत सरकार ने कई कानून बनाए हैं। सन् 1952 के खान अधिनियम में एक सप्ताह में एक कामगार द्वारा किसी उद्योग में काम करने के कुल घंटों को परिभाषित किया गया है। औद्योगिक श्रमिकों को निर्धारित समयाविधि के बाद काम करने के बदले में अतिरिक्त भुगतान की व्यवस्था का प्रावधान है | इन नियमों का पालन बड़ी कंपनियों के द्वारा तो किया जाता है किंतु छोटी कम्पनियाँ इनकी अवहेलना करती हैं | इसके अलावा उप-अनुबंध भी आजकल फैल रहा है।
10. भूमिगत खानों में काम करने वाले मजदूर बेहद जोखिम भरी स्थितियों में काम करते हैं। इनके सामने बाढ़, आग, खान की दीवारों तथा छतों का गिरना, गैसों का उत्सर्जन तथा ऑक्सीजन की कमी का खतरा हमेशा रहता है। बहुत से कामगारों को साँस लेने में कठिनाई होती है तथा कई प्रकार की बीमारियों का खतरा रहता है।
2. ईंटें बनाने के, बीड़ी रोल करने के, सॉफ्टवेयर इंजीनियर या खदान के काम जो बॉक्स में वर्णित किए गए हैं, के कामगारों के सामाजिक संघटन का वर्णन कीजिए। कार्यावस्थाएँ कैसी हैं और उपलब्ध सुविधाएँ कैसी हैं? मधु जैसी लड़कियाँ अपने काम के बारे में क्या सोचती हैं?
उत्तर-
• सामाजिक संस्थाएँ, जैसे- संपर्क, लिंग,जाति, रिश्तेदारी,तथा क्षेत्र कार्य के क्षेत्र का निर्धारण करते हैं। ये ही निर्धारण करते हैं कि उत्पादन का विपणन किस प्रकार से होता है।
• कुछ रोजगार के क्षेत्रों तथा विभागों में महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक संख्या में काम करती हैं। उदाहरण, शिक्षक तथा नर्स के रूप में महिलाएं पुरुषों से ज़्यादा संख्या में काम करती हैं।
• भारत में 90% कार्य (कृषि , उद्योग ,सेवा)असंगठित अथवा अनौपचारिक क्षेत्र में है।
• सरकारी रोजगार ही अब तक जनसंख्या के अधिकांश लोगों का कल्याण करने का एकमात्र मार्ग था, लेकिन अब वह भी कम होता जा रहा है।
• नगरीय क्षेत्र में इस प्रकार के मौके मिल जाते हैं। नगरीय क्षेत्र में आपका पड़ोसी आपसे भिन्न क्षेत्र का हो सकता है। मोटे तौर पर अधिकतर भारतीय लोग छोटे पैमाने पर ही कार्य कर रहे स्थानों पर ही कार्य करना पसंद करते हैं |
• भारत में लगभग 60% लोग प्राथमिक क्षेत्र (कृषि तथा खान), 17% लोग द्वितीयक क्षेत्र (उत्पादक, निर्माण तथा
उपयोगिता) तथा 23% लोग तृतीयक क्षेत्र (व्यापार, यातायात, वित्तीय, सेवाएँ इत्यादि) में कार्यरत थे।
• भारत में कृषि के क्षेत्र में तीव्रता से कमी आई है। इस क्षेत्र में होने वाले कार्य लगभग आधे रह गए हैं। यह स्थिति बहुत ही गंभीर है।
• वे अपने परिवार के साथ बैठकर अन्य महिलाओं के साथ गपशप करती हैं। वे अपना अधिकांश समय बीड़ी बनाने में लगाती हैं।
• भारत में बहुत थोड़े से लोग ही सुरक्षित रोजगार प्राप्त करने में सफल हो पाते हैं। साथ ही वेतनभोगी वर्ग का एक छोटा-सा हिस्सा भी अनुबंध श्रम के प्रचलन के कारण असुरक्षित हो गया है।
• बहुत कम लोग बड़ी फार्मों में काम करते हैं जहाँ कि वे दूसरे क्षेत्रों और पृष्ठभूमि वाले लोगों से मिल पाते हैं।
• मधु जैसी लड़कियाँ बीड़ी बनाने तथा तेंदु के पत्ते को गोल कर उसमें तंबाकू भरने का पूरा आनंद उठाती है।
भारत अभी भी एक बड़ा कृषि प्रधान देश है। सेवा क्षेत्र-दुकानें, बैंक, आई०टी० उद्योग, होटल तथा अन्य क्षेत्रों में ज्यादा लोग कार्यरत हैं।
• लंबे समय तक एक ही मुद्रा में बैठे रहने के कारण मधु की पीठ में दर्द हो जाता है। मधु फिर से विद्यालय जाना चाहती है।
3. उदारीकरण ने रोजगार के प्रतिमानों को किस प्रकार प्रभावित किया है?
उत्तर-उदारीकरण ने रोजगार के प्रतिमानों को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित किया है :
• भारतीय बाजारों तथा दुकानों में विदेशी सामान बड़ी सहजता से मिलने लगे हैं। इसकी वजह से कुटीर उद्योगों की समाप्ति हुई है। 
• विश्व के बड़े व्यापारिक संस्थान; जैसे-वॉलमार्ट स्टोर्स, कैरेफोर तथा टिस्को भारत में प्रवेश की राह तलाश रहे हैं जबकि बाज़ार में सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर प्रतिबंध लगा रखा है।
• उदारीकरण का दूसरा क्षेत्र खुदरा व्यापार का क्षेत्र है। बड़ी विदेशी कंपनियों तथा व्यापारियों के भारत में आने से भारत के हस्तकला विक्रेता, हॉकर ,छोटे व्यापारी, दुकानदार,इत्यादि अपना रोजगार खो बैठे अथवा उनका छोटा व्यापार इससे बुरी तरह से प्रभावित हुआ। इसका कारण बड़े-बड़े मॉल, शोरूम, रिलायंस अथवा शुभिच्छा थे।
• सरकार सार्वजनिक कंपनियों के अपने हिस्से को निजी क्षेत्र की कंपनियों को बेचने का प्रयास कर रही हैं इसे विनिवेश कहा जाता है |
• वॉलमार्ट, कैरीफोर तथा टिस्को एक संयुक्त उपक्रम स्थापना करने वाली हैं। भारत का खुदरा व्यापार क्षेत्र लोगों को केवल इसलिए नहीं आकर्षित कर रहा है कि यह तेजी से संवृद्धि कर रहा है बल्कि इसलिए कि छोटी-छोटी दुकानों का व्यापार कुल राष्ट्रीय व्यापर का 97% है। लेकिन उद्यमों की इस विशेषता को देखते हुए सरकार विदेशियों को बाजार में प्रवेश करने से क्यों रोक रही है?
• बहुत सारी भारतीय कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने खरीद लिया। इसके साथ ही बहुत सारी भारतीय कंपनियाँ
बहुराष्ट्रीय कंपनी के रूप में भी उभरी। उदाहरण, पारले पेय को कोका कोला ने खरीद लिया।
• कंपनियाँ अपने स्थायी कर्मचारियों की संख्या में कमी कर रही हैं तथा छोटी-छोटी कंपनियों के द्वारा अपना काम करवा रही हैं (बह्यस्रोत के रूप में)। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए बह्यस्रोतों से काम करवाना अब वैश्विक रूप धारण करता जा रहा है। ये कंपनियाँ भारत जैसे विकासशील देशों में, जहाँ कि श्रम काफी सस्ता है, बह्यस्रोतों से काम करवा रही हैं, छोटे-छोटे धर्मों में संगठित होना श्रम संगठनों के लिए बेहद कठिन है।