NCERT Solutions Class 12 समाजशास्त्र (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter-4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

NCERT Solutions Class 12 समाजशास्त्र (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter-4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

NCERT Solutions Class 12 समाजशास्त्र (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) 12 वीं कक्षा से Chapter-4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी  समाजशास्त्र Sociology के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 12 समाजशास्त्र (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter-4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन


CBSE एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

Class 12 समाजशास्त्र Sociology

पाठ-4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

1. नीचे लिखे गद्यांश को पढ़ें तथा प्रश्नों के उत्तर दें-

अघनबीघा में मजदूरों की कठिन कार्य-दशा, मालिकों के एक वर्ग के रूप में आर्थिक शक्ति तथा प्रबल जाति के सदस्य के रूप में अपरिमित शक्ति के संयुक्त प्रभाव का परिणाम थीं। मालिकों की सामाजिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण पक्ष, राज्य में विभिन्न अंगों का अपने हितों के पक्ष में करवा सकने की क्षमता थीं। इस प्रकार प्रबल तथा निम्न वर्ग के मध्य खाई को चौड़ा करने में राजनीतिक कारकों का निर्णयात्मक योगदान रहा है।

1. मालिक राज्य की शक्ति को अपने हितों के लिए कैसे प्रयोग कर सके, इस बारे में आप क्या सोचते हैं?

2. मज़दूरों की कार्य दशा कठिन क्यों थी?

उत्तर-

1. एक प्रबल जाति के होने के कारण मालिक लोग आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक रूप से बेहद शक्तिशाली थे।अपने स्वार्थों को पूरा करने क लिए ये राज्य की शक्तियों का प्रयोग करते थे। वे अपने लाभ के लिए बड़ी ही कुशलता से राज्य की विभिन्न संस्थाओं का उपयोग करते थे।

2. श्रमिक बड़ी ही विषम परिस्थितियों में काम करते थे। उन्हें प्रभुत्वसंपन्न जातियों के खेतों में श्रमिक के तौर पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता था।

2. भूमिहीन कृषि मज़दूरों तथा प्रवसन करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा करने के लिए आपके अनुसार सरकार ने क्या उपाय किए हैं, अथवा क्या किए जाने चाहिए?

उत्तर- भूमिहीनों के संरक्षण के लिए उपाय :

पट्टेदारी समाप्ति तथा नियमन अधिनियम- इस कानून के द्वारा बँटाईदारी व्यवस्था को प्रोत्साहित किया गया | पश्चिम बंगाल तथा केरल, जहाँ की साम्यवादी सरकारें थीं, वहाँ पट्टेदारों को जमीन पर अधिकार दिए गए।

जमींदारी व्यवस्था का उन्मूलन-जमींदार की स्थिति किसानों तथा राज्यों के मध्य बिचौलिए की थी। सरकार ने बड़े ही प्रभावशाली तथा गहन रूप से अधिनियम को पारित कर इस व्यवस्था की खत्म कर दिया।

• विधिक रूप से बंधुआ मजदूरी की समाप्ति-गुजरात में हलपति ,बिहार तथा उत्तर प्रदेश में बंधुआ मजदूरी की प्रथा, तथा कर्नाटक में जोता व्यवस्था की भारत सरकार द्वारा कानूनी रूप से समाप्ति।

भूमि की चकबंदी-भू-स्वामी किसानों को एक या दो भूमि का बड़ा आकार वाला भाग दिया जाना चाहिए। इसे स्वैच्छिक अथवा अनिवार्य किसी भी रूप में कार्यान्वित किया जाना चाहिए। इससे किसानों की कार्यक्षमता में काफी वृद्धि होगी।

भूमि हदबंदी अधिनियम का प्रावधान-इस अधिनियम के अनुसार, भू-स्वामियों के द्वारा रखी जाने वाली जमीन की अधिकतम सीमा तय कर दी गई | इसके अतिरिक्त भूमि की पहचान कर उसे भूमिहीनों के बीच वितरित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर दी गई। भूमिहीन श्रमिकों की दशाओं को सुधारने के लिए समुचित प्रयास किए जाने चाहिए तथा इस पूरे क्षेत्र को संगठित किया जाना चाहिए।

3. कृषि मजदूरों की स्थिति तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक उध्वगामी गतिशीलता के अभाव के बीच एक सीधा संबंध है। इनमें से कुछ के नाम बताइए।
उत्तर- भारत का ग्रामीण क्षेत्र कृषि पर आश्रित है। कृषि उनकी आजीविका का एकमात्र साधन है। भारतीय ग्रामीण समाज में नाते- रिश्तेदारी की प्रथा प्रचलित है। कानून के मुताबिक महिलाओं को परिवार की संपत्ति पर समान रूप से अधिकार हैं। लेकिन व्यावहारिक रूप से कागजों पर ही सीमित है क्योकि पुरुषों के प्रभुत्व के इसका मुख्य कारण है। ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश लोग भूमिहीन हैं तथा वे अपनी आजीविका के लिए कृषि श्रमिक बन जाते हैं। उन्हें निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी मिलती हैं। उनका रोजगार सुरक्षित नहीं होता। उन्हें नियमित रूप से काम भी नहीं मिलते। अधिकांश कृषि श्रमिक दैनिक मज़दूरी पर काम करते हैं।
पट्टेदारों को भी अधिक आमदनी प्राप्त नहीं होती ,क्योंकि उन्हें अपने उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा भू-स्वामी को देना पड़ता है। सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता का निर्धारक भूमि का स्वामित्व किसानों को दिए जाने से सम्भव हैं। ग्रामीण समाज को एक वर्ग संरचना के रूप में जाति व्यवस्था के आधार पर देखा जा सकता हैं।यद्यपि यह हमेशा सत्य नहीं होता। उदाहरण के तौर पर, ग्रामीण समाज में ब्राहमण एक प्रभुत्वसंपन्न जाति है, किंतु यह प्रभुत्व भू-स्वामी नहीं है। इसलिए यह ग्रामीण समाज का अंग तो है, किंतु कृषि संरचना से बाहर हैं।
4. वे कौन से कारक हैं, जिन्होंने कुछ समूहों को नव धनाढ्य, उद्यमी तथा प्रबल वर्ग के रूप में परिवर्तन को संभव किया है? क्या आप अपने राज्य में इस परिवर्तन के उदाहरण के बारे में सोच सकते हैं?
उत्तर- इन कारकों ने कुछ समूहों को नवधनाढ्य, उद्यमी तथा प्रबल वर्ग के रूप में परिवर्तन को संभव किया-
1. शिक्षा
2. नयी तकनीक
3. नए-नए क्षेत्रों में निवेश की सुविधा।
4. यातायात के साधन
5. विकसित क्षेत्रों की तरफ पलायन
6. राजनीतिक गतिशीलता
7. मिश्रित अर्थव्यवस्था
8. बाह्य अर्थव्यवस्था से जुड़ाव।
हाँ, मैं अपने राज्य में इस तरह के परिवर्तन के बारे में सोच सकता सोचती हूँ। इन कारकों के द्वारा ही कोई भी राज्य या कोई भी समूह उद्यमी तथा प्रबल वर्ग में परिवर्तित हो सकता है।