NCERT Solutions class 12 इतिहास Chapter 5 - यात्रियों के नज़रिए-समाज के बारे में उनकी समझ

NCERT Solutions class 12 इतिहास Chapter 5 - यात्रियों के नज़रिए-समाज के बारे में उनकी समझ

NCERT Solutions Class 12 इतिहास  12 वीं कक्षा से Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए-समाज के बारे में उनकी समझ के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 

हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स इतिहास के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions class 12 इतिहास Chapter 5 - यात्रियों के नज़रिए-समाज के बारे में उनकी समझ


सीबीएसई कक्षा -12 इतिहास

महत्वपूर्ण प्रश्न पाठ - 05

यात्रियों के नज़रिए-समाज के बारे में उनकी समझ

(लगभग दसवीं से सत्रहवीं सदी तक)

अतिलघु प्रश्न (02 अंक)

प्र-1 कोई दो यात्रियों के नाम बताइए जिन्होंने मध्यकाल (11 से 17 वी शताब्दी) में भारत की यात्रा की ।

उत्तर:- 1. अल बिरूनी, ग्यारहवी शताब्दी में उज्बेकिस्तान से आया था

2. इब्न बतूता चौदहवी शताब्दी में मोरक्कों से आया था।

3. फ्रांस्वा बर्नियर, सत्रहवीं शताब्दी में फ्रांस से आया था ।

प्र-2 अल बिरूनी के भारत आने का क्या उद्देश्य था।

उत्तरः- 1. उन लोगों के लिए सहायक जो उनसे (हिन्दुओं) धार्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते थे।

2. ऐसे लोगों के लिए एक सूचना का संग्रह जो उनके साथ संबद्ध होना चाहते है।

प्र-3 क्या आपको लगता है कि अलबिरूनी भारतीय समाज के विषय में अपनी जानकारी और समझ के लिए केवल संस्कृत के ग्रंथों पर आश्रित रहा।

उत्तर:- अल बिरूनी लगभग पूरी तरह से ब्राहणों द्वारा रचित कृतियों पर आश्रित रहा उसने भारतीय समाज को समझने के लिए अकसर वेदों, पुराणों भगवतगीता, पतंजलि की कृतियों तथा मनुस्मृति आदि से अंष उद्वत किए ।

प्र-4 भारत में पाये जाने वाले उन वृक्षों का नाम बताइए जिन्हें देखकर इब्न बतूता को आश्चर्य हुआ।

उत्तर:- 1. नारियल नारियल के वृक्ष का फल मानव सिर से मेल खाता है।

2. पान पान एक ऐसा वृक्ष हैं जिसे अगूर लता की तरह उगाया जाता है । पान का कोई फल नहीं होता और इसे केवल इसकी पत्तियों के लिए ही उगाया जाता है।

प्र-5 बर्नियर ने मुगल साम्राज्य में कौन सी अधिक जटिल सच्चाई की ओर इशारा किया ?

उत्तर:- 1. वह कहता है कि शिल्पकारों के पास अपने उत्पादों को बेहतर बनाने का कोई प्रोत्साहन नहीं था क्योंकि मुनाफे का अधिग्रहण राज्य द्वारा कर लिया जाता था

2. साथ ही वह यह भी मानता है कि पूरे विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थी। क्योंकि उत्पादों का सोने औरचाँदी के बदले निर्यात होता था।

लघु प्रश्न (05 अंक

प्र-6 अल बिरूनी ने किन “अवरोधो” की चर्चा की है । जो उसके अनुसार समझ में बाधक थे

उत्तर:- अल बिरूनी ने भारत को समझने में निम्नलिखित अवरोधों का सामना किया 

1. भाषा की समस्या उसके अनुसार संस्कृत, अरबी और फारसी से इतनी भिन्न थी कि विचारों और सिद्धांतों को एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवादित करना आसान नही था

2. धार्मिक अवस्था और प्रथा में भिन्नता अल बिरूनी मुसलमान था और उसके धार्मिक विश्वास और प्रथाए भारत से भिन्न थीं

3. स्थानीय लोगों की आत्मलीनता तथा प्रथक्करण की नीति अल – बिरूनी के अनुसार उसका तीसरा अवरोध भारतीयों की आत्मलीनता तथा प्रथक्करण की नीति थी

प्र-7 बर्नियर के अनुसार राजकीय भूस्वामित्व के क्या बुरे प्रभाव पड़े

उत्तर:- 1. भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे इसलिए वे उत्पादन के स्तर को बनाए रखने और उसमें बढ़ोतरी के लि दूरगामी निवेश के प्रति उदासीन थे

2. इस प्रकार इसने निजी भू-स्वामित्व के अभाव ने “बेहतर"भूधारको के वर्ग के उदय को रोका

3. इसके कारण कृषि का विनाश हुआ

4. इसके चलते किसानो का असीम उत्पीड़न हु

5. समाज के सभी वर्गों के जीवन स्तर में अनवरत पतन की स्थिति उत्पन्न हुई

प्र-8 सती प्रथा के विषय में बर्नियर ने क्या लिखा है 

उत्तर:- 1. यह एक क्रूर प्रथा थी जिसमें विधवा को अग्नि की भेंट चढ़ा दिया जाता था

2. विधवा को सती होने के लिए विवश किया जाता था

3. बाल विधवाओं के प्रति भी लोगों के मन में सहानुभूति नहीं थी

4. सती होने वाली स्त्री की चीखें भी किसी का दिल नहीं पिघला पाती थी

5. इस प्रक्रिया में ब्राम्हण तथा घर की बड़ी महिलाए हिस्सा लेती थी

प्र-9 "किताब उल - हिंन्द" किसने लिखी ? इसकी मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए

उत्तरः- “किताब उल - हिंन्द” की रचना अल बिरूनी ने की इसकी मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार है 

1. यह किताब अरबी में लिखी गई है

2. इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है

3. यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो सामाजिक और धार्मिक जीवन, दर्शन खगोल विज्ञान कानून आदि विषयों पर लिखी गई हैं 

4. इसे विषयों के आधार पर अस्सी अध्यायों में विभाजित किया गया है।

5. प्रत्येक अध्याय का आरम्भ एक प्र- से होता है और अंत में संस्कृतवादी परमपराओं के आधार पर उसका वर्णन किया गया है।

विस्तृत प्रश्न (10 अंक)

प्र-10 इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए ?

उत्तरः- 1. बाजारों में दास किसी भी अन्य वस्तु की तरह खुले आम बेचे जाते थे।

2. ये नियमित रूप से भेंटस्वरूप दिये जाते थे।

3. जब इब्न बतूता सिंध पहुँचा तो उसने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के लिए भेंट स्वरूप “घोड़े, ऊँट तथा दास” खरीदे ।

4. जब वह सुल्तान पहुँचा तो उसने गर्वनर को किशमिश तथा बदाम के साथ एक दास और घोड़ा भेंट के रूप में दे दिया था।

5. इब्न बतूता कहता है कि सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने नसीरुद्दीन नामक एक धर्म उपदेशक के प्रवचन से प्रसन्न होकर उसे एक लाख टके (मुद्रा) तथा 200 दास दिये थे।

6. इब्न बतूता के विवरण से प्रतीत होता है कि दासों में काफी विभेद था।

7. सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थी।

8. सुल्तान अपने अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को नियुक्त करता था।

9. दासों को समान्यतः घरेलु श्रम के लिए ही स्तेमाल किया जाता था और इब्न बतूता ने इनकी सेवाओं को, पालकी या डोले में पुरूषों और महिलाओं को ले जाने में विशेष रूप से अपरिहार्य पाया।

10. दासों की कीमत, विशेष रूप से उन दासियों की, जिनकी अवश्यकता घरेलू श्रम के लिए थी, बहुत कम होती थी।

स्रोत पर आधारित प्रश्न

                                               घोड़े पर और पैदल

डाक व्यवस्था का वर्णन इब्न बतूता इस प्रकार करता है:-

भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था है । अश्व डाक व्यवस्था जिसे उलुक कहा जाता है, इर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ो द्वारा चालित होती है । पैदल डाक व्यवस्था के प्रति मील तीन अवस्थान होते थे । इसे दावा कहते थे और यह एक मील का एक तिहाई होता है ......... अब, हर तीन मील पर घनी आबादी वाला एक गाँव होता है । जिसके बाहर तीन मंडप होते है जिसमें लोग कार्य आरम्भ के लिए तैयार बैठे रहते है। उनमें से प्रत्येक के पास दो हाथ लम्बी एक छड़ होती है । जिसके ऊपर तांबे की घंटियाँ लगी होती है । जब संदेशवाहक शहर से यात्रा आरम्भ करता है तो एक हाथ में पत्र तथा दूसरे मे घंटियों सहित छड़ लिये वह क्षमतानुसार तेज भागता है । जब मंडप में बैठे लोग घंटियों की आवाज सुनते है तो वे तैयार हो जाते है । जैसे ही संदेशवाहक उनके पास पहुँचता है, उनमें से एक उससे पत्र लेता है और वह छड़ हिलाते हुए पूरी ताकत से दौड़ता है, जब तक वह अगले दावा तक नहीं पहुँच जाता । पत्र के अपने गन्तव्य स्थान तक पहुँचने तक यही प्रक्रिया चलती रहती है । यह पैदल डाक व्यवस्था अश्वडाक व्यवस्था से अधिक तीव्र होती है, और इसका प्रयोग अकसर खुरासान के फलों के परिवहन के लिए होता है, जिन्हें भारत में बहुत पसंद किया जाता है

1. दो प्रकार की डाक प्रणालियों के नाम बताओं । (1

2. पैदल डाक व्यवस्था किस प्रकार काम करती थी? व्याख्या कीजिए । (3

3. इब्न बतूता ऐसा क्यों सोचता है कि भारत की डाक व्यवस्था कुशल है ? (3

4. 14वी शताब्दी में राज्य व्यापारियों को किस प्रकार प्रोत्साहित करता था ? (1

उत्तर:- 1. दो प्रकार की डाक प्रणालियाँ थी अश्व डाक प्रणाली तथा पैदल डाक प्रणाली

2. पैदल डाक व्यवस्था में प्रतिमील तीन अवस्थान होते थे इसे दावा कहते थे जो एक मील का तिहाई भाग होता था। अब, हर ती मील पर घनी आबादी वाला एक गाँव होता है । जिसके बाहर तीन मंडप होते है जिसमें लोग कार्य आरम्भ के लिए तैयार बैठे रहते है उनमें से प्रत्येक के पास दो हाथ लम्बी एक छड़ होती है । जिसके ऊपर तांबे की घंटियाँ लगी होती है । जब संदेशवाहक शहर  यात्रा आरम्भ करता है तो एक हाथ में पत्र तथा दूसरे में घंटियों सहित छड़ लिये वह क्षमतानुसार तेज भागता है । जब मंडप में बैठे लोग घंटियों की आवाज सुनते है तो वे तैयार हो जाते है। जैसे ही संदेशवाहक उनके पास पहुँचता है, उनमें से एक उससे पत्र लेता  और वह छड़ हिलाते हुए पूरी ताकत से दौड़ता है, जब तक वह अगले दावा तक नहीं पहुँच जाता । पत्र के अपने गन्तव्य स्थान त पहुँचने तक यही प्रक्रिया चलती रहती है

3. इब्न बतूता के अनुसार सिंध से दिल्ली की यात्रा करने में जहाँ 50 दिन लग जाते थे वही सुल्तान तक गुप्तचरों की सूचना पहुँचने में मात्र पाँच दिन लगते थे । इब्न बतूता डाक प्रणाली की कुशलता पर हैरान था इस प्रणाली से व्यापारियों के पास लग्बी दूरी  भेजी जाती थी

4. 14वी शताब्दी में राज्य व्यापारियों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष पग उठाता था उदाहरण के लिए लगभग सभी व्यापारि मार्गो पर सराय तथा विश्रामगृह बनाए गए थे

                                                         वर्ण व्यवस्था

अल बिरूनी वर्ण व्यवस्था का इस प्रकार उल्लेख करता है

सबसे ऊची जाति ब्राहमणों की है जिनके विषय में हिन्दुओं के ग्रंथ हमें बताते है कि वे ब्रह्मन के सिर से उत्पन्न हुए थे क्योंकि ब्रह्म प्रकृति नामक शक्ति का ही दूसरा नाम है, और सिर ...... शरीर का सबसे ऊपरी भाग है, इसलिए ब्राहमण पूरी प्रजाति के सबसे चुनिंदा भाग है । इसी कारण से हिन्दु उन्हें मानव जाति में सबसे उत्तम मानते है अगली जाति क्षत्रियों की है जिनका सृजन, ऐसा कहा जाता है, ब्रह्मन् के कंधो और हाथो से हुआ था उनका दर्जा ब्राहमणों से अधि नीचे नही है 

उनके पश्चात् वैश्य आते है जिनका उद्भव ब्रह्मन् की जंघाओं से हुआ था

शूद्र जिनका सृजन उनके चरणों से हुआ था 

अंतिम दो वर्गों के बीच अधिक अन्तर नहीं है । लेकिन इन वर्गों के बीच भिन्नता होने पर भी ये एक साथ ही शहरों एक गाँवों में रहते है,

समान घरों और आवासों में मिल जुल कर ।

1. अल बिरूनी द्वारा वर्णित वर्ण व्यवस्था का वर्णन कीजिए। (4)

2. क्या आप इस प्रकार के वर्ण विभाजन को उचित समझते है ? तर्क सहित व्याख्या कीजिए । (2)

3. वास्तविक जीवन में यह व्यवस्था किस प्रकार इतनी कड़ी भी नहीं थी ? व्याख्या कीजिए। (2)

उत्तर:- 1. अल बिरूनी ने भारत की वर्ण-व्यवस्था का उल्लेख इस प्रकार किया है -

(1) ब्राहमण ब्राहमणों की जाति सबसे ऊंची थी । हिन्दू ग्रंथो के अनुसार उनकी उत्पति ब्राहमण के सिर से हुई थी । क्योकि ब्रह्म प्रकृति का दूसरा नाम है और सिर शरीर का ऊपरी भाग है, इसलिए हिन्दू उन्हें मानव जाति में सबसे उत्तम मानते है ।

(2) क्षत्रीय माना जाता है कि क्षत्रीय ब्रह्मन् के कंधो और हाथों से उत्पन्न हुए थे। उनका दर्जा ब्राम्हणों से अधिक नीचे नहीं है।

(3) वैश्य वैश्य जाति व्यवस्था में तीसरे स्थान पर आते है । वे ब्राहान की जंघाओं से जन्में थे ।

(4) शूद्र इनका जन्म ब्रह्मन के चरणों से हुआ था । अंतिम दो वर्गों में अधिक अन्तर नही है । ये शहर और गाँवों में मिल - जुल कर रहते थे।

2. नहीं, मैं इस प्रकार के वर्ण विभाजन को उचित नहीं मानता, क्योंकि जन्म से कोई ऊँचा नीचा नहीं होता । मनुष्य के अपने कर्म उसे ऊँचा नीचा बनाते हैं।

3. जाति व्यवस्था के विषय में अल बिरूनी का विवरण पूरी तरह से संस्कृत ग्रंथों के अध्ययन से प्रभावित था । इन ग्रंथों में ब्राम्हणवादी जाति व्यवस्था को संचालित करने वाले नियमों का प्रतिपादन किया गया था । परन्तु वास्तविक जीवन में यह व्यवस्था इतनी कड़ी नहीं थी उदाहरण के लिए जाति - व्यवस्था के अन्तर्गत न आने वाली श्रेणियों से प्रायः यह अपेक्षा की जाति थी कि वे किसानों और जमींदारों को सस्ता श्रम प्रदान करें | भले ही ये श्रेणियाँ प्रायः सामाजिक प्रताडना का शिकार होती थी, फिर भी उन्हें आर्थिक तंत्र में शामिल किया जाता था ।

                            मध्यकाल के तीन यात्रियों का तुलनात्मक अध्ययन्





यात्री का नामअल-बिरूनी इब्न - बतूताफ्रांस्वा बर्नियर 
यात्रा की 
तारीख 
 ग्यारहवीं शताब्दीचौदहवीं शताब्दी  सत्रहवीं शताब्दी
देश जिससे 
वह आए
 उज्वेकिस्तानमोरक्को  फ्रांस
किताब जिसकी किताब -उल – हिन्द रिहा ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर
रचना की   
किताब की
 भाषा
अरबी  अरबी अंग्रेजी
 शासक जिसके
शासनकाल में यात्रा की
सुल्तान महमूद गजनीसुल्तान मुहम्मद बिन तुगलकमुगल शासक शाहजहाँ और औरंगजेब
विषयवस्तु जिस पर उन्होंने लिखासमाजिक और धार्मिक जीवन, भारतीय दर्शन, खगोलशास्त्र, मापतंत्र, विज्ञान,न्यायिक व्यवस्था ऐतिहासिक ज्ञान, जाति प्रथा नारियल और पान, भारतीय शहरों,कृषि, व्यापार तथा वाणिज्य, संचार तथा डाक प्राणाली, दास प्रथा सती प्रथा, भूमि स्वामित्व,विभिन्न प्रकार के नगर,राजकीय कारखाने, मुगल शिल्पकार
 कार्य की प्रमाणिकताप्रमाणिक मानते है |  प्रमाणिक नही मानते हैंप्रमाणिक मानते है।


एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग I - II - III